78 आज के विचार
( विरह जगावे दरद को - "भ्रमरगीत" )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 78 !!
प्रिय से बिछुड़ना अपनें आपसे बिछुड़ना है .......और जिसनें अपनें आपसे बिछुड़ना नही जाना , वह उस प्यारे के प्रेम का अधिकारी भी नही है ......अरे ! जिसनें अपनें आपको न्यौछावर कर दिया....उसी में इतनी हिम्मत आती है कि ...वो अपनें प्रियतम को कुछ भी कह सके ।
हे वज्रनाभ ! प्रेम के इस उन्माद की स्थिति में..... रूठ के बैठे प्रेमी को....ऐसा लगता है कि "वो" कुछ कह रहा है....और हमें जबाब देना चाहिये ।
यहाँ भँवरा कोई कृष्ण का दूत नही है.....न कृष्ण नें उसे भेजा है ।
वो तो कमल के पुष्प का पराग पी रहा था ......तो इधर भी आगया ।
भौंरा बोलता नही है........वो अपनी मस्ती में गुनगुन करता है ........पर प्रेम की उन्मादिनी स्थिति में श्रीराधा को ऐसा लगता है कि .......ये हमसे बातें कर रहा है.......ये हम को कह रहा है.........प्रेमी जो जो सोचता है .....वो सब सामनें वाले पर आरोपित करके बोलता है......ये बड़ी विचित्र और अद्भुत स्थिति है प्रेम की ........जो अभी श्रीराधा रानी की हो रही है ।
महर्षि शाण्डिल्य आनन्दित हैं "भ्रमरगीत" का वर्णन करते हुए ।
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चला गया मधुप ! भौंरा चला गया ?
चला गया था वो भँवरा , गुनगुन करता हुआ ।
अरे ! कैसा दूत है ये ? कमसे कम हमारा पूरा सन्देशा तो ले जाता ।
श्रीराधा रानी फिर दुःखी हो जाती हैं ।
पर ये क्या ! भँवरा फिर आगया !......और फिर उन्हीं सुकुमार, सुन्दर, सरस श्रीराधारानी के चरणों में गिरनें लगा था .......
अब क्या कहनें आगया तू ? बोल ? श्रीराधा भ्रमर से पूछती हैं ।
अच्छा ! ये कह रहा है भ्रमर ! -
" नही ! नही ....आप जैसा सोच रही हैं ......वैसा नही है मथुरा में ।
कृष्ण तो वहाँ शान्त रहते हैं.......और हाँ आपके इन्हीं चरणों का ध्यान करते रहते हैं......वहाँ किसी नारी से....स्त्रियों से बहुत दूर रहते हैं ....बस आपकी ही यादों में पड़े रहते हैं श्याम सुन्दर ।
अच्छा ! तू सच कह रहा है .....श्याम सुन्दर के जीवन में केवल मैं ही हूँ ..अगर ये सच है......तो फिर वो यहाँ क्यों नही आजाते.....बोल !
श्रीराधारानी नें भँवर से ही पूछा ।
इसलिये नही आते क्यों की आप रूठी हो......
...श्रीराधा रानी को लग रहा है कि भ्रमर बोल रहा है ।
आप अगर मान जाओ......रूठना छोड़ दो तो वे आजायेंगें.....
भँवर का कहना था ।
मैं मान कैसे जाऊँ ? हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय किया है उसनें ।
श्रीराधा रानी बोलीं ।
उद्धव, भँवरा और श्रीराधारानी का सम्वाद सुनकर चकित हैं ......
आगे जो कृष्ण के अन्याय का वर्णन श्रीराधा रानी नें किया है ......उसे सुनकर तो उद्धव की बुद्धि पूर्ण रूप से शून्य हो गयी थी ।
हे भँवरा ! एक बार ...बस एक बार श्याम सुन्दर नें हमें अपनें अधरामृत का पान कराया था .........
तब तो आपको अपना भाग्य, सौभाग्य मानना चाहिये .........कि श्रीकृष्ण के अधर सुधा का पान किया ..........भँवरे नें कहा ।
हँसी श्रीराधा रानी - अरे भँवरे ! उस कपटी को हम जानती हैं ......उसनें हमें अपनें अधर का पान इसलिये कराया है ........कि हम मरें नहीं .........हमें मारना नही चाहता वो .......इसलिये अधरामृत पिलाया था उसनें ।
विचित्र हैं आप श्रीराधे ! अरे ! जीवन दिया ...........धन्यवाद कहो ..........श्याम सुन्दर नें आप सबको जीवन दिया है ........अधर अमृत पिलाकर वो आप को बचा रहे हैं .......ये तो अच्छी बात है .......।
तुम्हारे लिये अच्छी बात होगी भ्रमर ! जीवन जीनें से अच्छा है हम मर जाती तो ठीक रहता ..........कमसे कमसे ये विरह का ताप तो कुछ कम होता ......पर ये सब जानते हुये भी वो हमें तड़फ़ाना चाहता है .....हमें घुट घुट कर जीनें के लिये मजबूर कर रहा है .....
ये मर गयीं तो मैं रुलाउंगा किसे ?
ऐसी सोच से हमें जिन्दा रखे हुये है वो .......श्रीजी नें कह दिया ।
अच्छा ! मैं समझ गया ..........आपको वो अधरामृत फिर चाहिये ना ? एक बार ही पिलाया, यही शिकायत है ना आपकी ।
तो हे स्वामिनी ! मैं मथुरा जा रहा हूँ ...........उनसे कह दूँगा ....एक पात्र में भर कर अधरामृत दे दो ........श्रीराधा पीती रहेंगीं ...।
ये सुनकर फिर हँसी श्रीराधारानी - अधर और अमृत ये दोनों अलग नही हैं मधुप ! उनके अधर ही अमृत हैं......उनके "अधर"
"अमृत" के आधार नही हैं........स्वयं अमृत रस ही हैं और हे मधुप ! अगर उनके अधर से अमृत अलग हो गया.....तब तो वो अमृत ही नही रहेगा । श्रीराधा रानी की बातें सुनकर स्तब्ध हैं उद्धव ।
हाँ उनको ला सको .....तो लाओ......पर अधर मात्र नही लाया जा सकता.....श्याम सुन्दर को पूरा ही आना पड़ेगा.....लाओ उनको ......
ये कहते हुये खुल कर हँसी थीं श्रीराधा रानी ।
अगर तुम इतना ही दोष देती हो तो पीया ही क्यों था उन अधरों को !
भँवर नें पूछा ।
फिर हँसी श्रीराधा रानी - हमनें कहाँ पीया .......हमें पिलाया गया ।
जबरदस्ती पिलाया उसनें हमें.....हम क्यों पीनें लगीं उसके अधर ।
अपनी मोहिनी वाणी से ....अपनें मोहिनी रूप से ......अपनी मोहिनी बाँसुरी से .......हमको मोहित कर दिया ........हम बेसुध हो गयीं ।
हम गंवार , हम अनपढ़ अशिक्षित , हम अज्ञानी नारी को फ़ंसानें में उन्हें कितनी देर लगती ...........मीठी मीठी बोली बोल कर हमें फंसा लिया.........और जैसे भँवर ! तुम किसी फूल में बैठते हो ......रस को चूस कर चले जाते हो फिर दूसरे फूल की तलाश में .........ऐसे ही किया कृष्ण नें हमारे साथ ..............बड़े बड़े दैत्यों और देवों को मोहित करनें वाला ये कृष्ण .........अरे ! देवताओं को ही नही .......अपनी मोहिनी रूप से तो इसनें महादेव को भी मोहित कर दिया था .......फिर मैं क्या हूँ ? एक नारी जात ! फंस गयी उसके मोह पाश में !
और आज मेरी स्थिति देख भँवर ! न जी सकती हूँ ....न मर सकती हूँ ।
इतना कहकर फिर हिलकियों से श्रीराधा रानी रोनें लगी थीं ।
उद्धव के नेत्र अब सजल होनें लगे थे .........उन सूखे नयनों में जल आनें लगा था ........उद्धव अपनें आँसू पोंछते हैं । !
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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