आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 123 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही ।
तीसरे दिन का युद्ध.........आज वानर सेना पूरे जोश में थी ।
रावण पगला गया था जब उसनें ये सुना की .......वानर लोग राक्षसों को पकड़ पकड़ कर मार रहे हैं ............समुद्र में फेंक रहे हैं ......।
वानर लोग पहाड़ उठाते और जहाँ राक्षसों का समूह देखते वहीं फेंक मारते ........सैकड़ों राक्षस एक साथ मर जाते थे ।
आज युद्ध में अतिउत्साहित था वानर समाज ....................।
तभी "प्रहस्त" रावण का मन्त्री......अपनें साथ दस हजार राक्षसी सेना को अपनें साथ ले आया ।
महाराज सुग्रीव ! ये रावण का मुख्य सहायक है.......और मन्त्री भी है ......और सम्बन्धी में मामा भी लगता है .........ये बात विभीषण नें बताई थी .......इतना सुनते ही सुग्रीव , जामवन्त, नल नील अंगद ये सब प्रहस्त को मारनें की योजना बनानें लगे .................
तभी जामवन्त नें सुग्रीव के कान में कुछ कहा..........सुग्रीव नें सिर "हाँ" में हिलाया .........और दोनों सामनें के पहाड़ की ओर दौड़े .....प्रहस्त अपना रथ लेकर वानर सेना से लड़ ही रहा था ।
विशाल पर्वत को उखाड़ लिया दोनों नें मिलकर .............सुग्रीव और जामवन्त नें ।
और दोनों ही पर्वत को लेकर दौड़े ..................प्रहस्त की ओर ।
प्रहस्त नें देखा .............वो डर कर पीछे भागनें लगा .............तभी पीछे से हनुमान आगये ...........वो रूक गया .........रुकना उसकी मजबूरी थी .........हनुमान भी पर्वत की तरह रास्ता रोक कर खड़े हो गए थे ............"जय श्रीराम" ...........सुग्रीव और जामवन्त चिल्लाते हुए प्रहस्त के ऊपर , उस विशाल पर्वत को फेंक दिया ।
चूर चूर हो गया प्रहस्त का शरीर ।
त्रिजटा इतना कहकर चुप हो गयी ...................।
फिर क्या हुआ बता ना त्रिजटा ?
त्रिजटा मुझे, राक्षसी माया के द्वारा बैठी बैठी, सब देखते हुये, युद्ध का हाल, अशोक वाटिका में ही बता रही थी ..............।
आगे ? अपनें पसीनें पोंछे त्रिजटा नें ............
वो भी थक गयी थी ....................पर फिर शून्य में तांकते हुये मुझे बतानें लगी थी ।
रामप्रिया ! रावण को ये सूचना मिली कि प्रहस्त मारा गया ।
टूट गया रावण !.............उसनें अपना रथ श्रीराम की ओर दौड़ाया ...........मेरे पिता विभीषण श्रीराम से कह रहे हैं ......रावण का ये प्रिय था ............बचपन से ही दोनों साथ में रहे हैं .........इसलिये प्रभु ! अब रावण का पागलपन चरम पर होगा.........हमें सावधान रहनें की जरूरत है ।
तभी रावण का रथ तीव्रता से आगया.........राम ! तुमनें आज मेरे प्रहस्त को मार कर अच्छा नही किया.............
त्रिजटा ! तू मुस्कुरा क्यों रही है ? बोल ना क्या कहा मेरे श्रीराम नें ?
मेरी बात सुनकर त्रिजटा फिर हँसी .........और बोली .....श्रीराम अपनें भाई लक्ष्मण से कह रहे हैं ...............रावण में तेज़ बहुत है ......देखो ! लक्ष्मण ! कुछ भी हो रावण वीर तो है ................इसका मुख मण्डल अन्य राक्षसों की तरह नही है .........ये एक तेजस्वी ब्राह्मण स्पष्ट लगता है .............।
मेरे श्रीराम इस समय रावण की प्रशंसा कर रहे हैं ?
मुझे भी आश्चर्य हो रहा था ।
राम ! मुझ से युद्ध करो.........रावण नें ललकारा श्रीराम को ।
पर रावण नें लक्ष्मण के ऊपर बाण का प्रहार किया राम के ऊपर नहीं ......हे राम प्रिया ! लक्ष्मण मूर्छित हो गए हैं । त्रिजटा के मुख में भी चिन्ता की लकीरें स्पष्ट दिखाई दीं ।
अब क्या हुआ ? मैने घबडा कर त्रिजटा से पूछा ।
अब ? अब तो अपनी मायावी शक्ति से रावण आकाश में चला गया है ......और वहीँ से बाणों को चला रहा है ।
लक्ष्मण का क्या हुआ ? मैने पूछा ।
लक्ष्मण को जामवन्त लेगये और बूटी सुंघाई है ........लक्ष्मण उठ गए हैं .........त्रिजटा प्रसन्न हो गयी ये कहते हुए .............।
लक्ष्मण के स्वस्थ होनें की बात से मैं भी प्रसन्न हो गयी थी ।
अब आगे हनुमान श्रीराम के पास गए हैं .....और उन्होंने श्रीराम से कहा है........मायवी से इस तरह नही युद्ध होता भगवन् ! आप मुझे गरुण बनाएं और मेरी पीठ पर बैठें ..........फिर युद्ध करें ।
रामप्रिया ! श्रीराम को ये बात ठीक लगी है .................
श्रीराम बैठ गए हैं हनुमान की पीठ पर ................
एक ही बाण से रावण रथ सहित नीचे गिर गया.............उसकी मायवी शक्ति को नष्ट कर दिया श्रीराम नें ।
दूसरे बाण से रावण के धनुष को तोड़ दिया .......तीसरे बाण से रावण के सारथि को मार दिया .......और चौथे बाण से रथ की ध्वजा काट दी ।
रावण दीन हीन सा होगया है ..........त्रिजटा नें बताया ।
श्रीराम नें रावण को कहा युद्ध भूमि में .........रावण ! हम थके हारे योद्धा पर शस्त्र नही उठाते ........जाओ .......विश्राम करो ।
इतना कहकर श्रीराम हनुमान को लेकर लक्ष्मण के पास चल दिए हैं ।
रावण टूट गया है रामप्रिया !
हूँ .............मैं कुछ बोली नही ..........................
त्रिजटा भी चुप हो गयी ..............क्यों की रावण लौट गया था वापस ............अंदर से टूटा हुआ रावण .............।
एक घड़ी तक हम दोनों कुछ नही बोले ............
तभी ........त्रिजटा ! मैने आकाश में त्रिजटा को कुछ दिखाया.......
एक विशाल देहधारी ...........जिसके केश बादलों से टकरा रहे थे .......और छिन्न भिन्न हो रहे थे ........उसका रूप भयानक था ।
ये तो कुम्भकर्ण है ..........पर 6 महिंने अभी पूरे हुए नही है .....ये कैसे जाग गया ? .............त्रिजटा के माथे में चिन्ता की लकीरें थीं ।
मैं उसे देख रही थी......रावण के भाई कुम्भकर्ण को ......"ये रावण से ज्यादा शक्तिशाली है"..........त्रिजटा नें ही मुझे बताया था ।
रामप्रिया ! लगता है.......मानसिक रूप से टूटा रावण ......क्या करता ......अपनें भाई कुम्भकर्ण को ही जगा दिया ........त्रिजटा नें कहा ।
शेष चरित्र कल ......
Harisharan
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