70 आज के विचार
( वो ममता की मारी - मैया यशोदा )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 70 !!
*******************
हे वज्रनाभ ! प्रेम के अनेक रूप है .......जैसे ईश्वर के अनेक रूप होते हैं ऐसे ही प्रेम के भी अनेक रूप हैं ।
प्रेमरस का एक रूप ये है - वात्सल्य ।
माँ का हृदय जब तड़फता है अपनें पुत्र के लिये ...........महर्षि नें अपनी बात पूरी नही की ............पता नही क्यों उन्हें आजकल "कथा" में ही प्रवेश करनें की लगी रहती है ............क्यों की ये सब लीलाएं महर्षि के हृदय में चल रही हैं .....महर्षि भाव सिन्धु में डूबे हुए हैं ।
****************************************************
उद्धव का रथ बृजपति नन्द के द्वार पर ही जाकर रुका था ।
खिरक से लौट रहे थे बृजपति ............उन्होंने रथ देखा ........मुख मण्डल थोडा प्रसन्न हुआ था उन्हें लगा - कहीं ?
आँखों से कम दिखाई पड़नें लगा है बृजपति को .....वृद्ध तो इतनें नही हैं ........पर कृष्ण के वियोग नें वृद्धावस्था को शीघ्र ही बुला दिया ।
उद्धव का रँग भी सांवला ही है ...........वस्त्र भी उन्हीं के पहनें हैं ......काँधे में काली कमरिया है ................
बृजपति पास में आये .........और पास ......बड़े ध्यान से उद्धव के मुख को देखा था .......सायंकाल भी तो होनें को आया है ।
उद्धव पहचान गए थे .................तुरन्त रथ से उतरकर .......
"देवभाग का पुत्र बृहस्पति का शिष्य यादवों का महामन्त्री मैं उद्धव"
इतना कहते हुए बृजपति के चरणों में अपनें मस्तक को रख दिया था ।
पर कानों से भी अब कम सुननें लगे हैं......उठाकर अपनें गले लगाते हुये .......कौन मेरा श्याम ? गदगद् कन्ठ से बोले थे ।
नही .......मैं कृष्ण का सन्देश वाहक उद्धव......उद्धव जोर से बोले ।
कोई बात नही, तुम भी मेरे श्याम जैसे ही हो......
नेत्र आँसुओं से भर गए थे ।
उद्धव का कर बड़े प्रेम से पकड़कर भवन भीतर ले गए थे नन्द जी ।
यशोदा ! यशोदा ! देखो ....कन्हाई का मित्र आया है ।
बृजपति नें पुकारा था यशोदा मैया को ........पर उस तरफ से कोई उत्तर नही आया ...........तब नन्द जी बोले -
तुम जाओ उद्धव ! .......भीतर जाओ .........कन्हाई की मैया बैठी है .....जाओ ! उसके लाला के बारे में बता दो उसे.......बेचारी यशोदा ! ......नन्द जी के नेत्र अब अच्छे से बहनें लगे थे ।
मैं स्नान करके सन्ध्या कर लेता हूँ ........तब तक तुम यशोदा से बातें कर लो ..........उसे बहुत कुछ जानना है अपनें लाल के बारे में .......तुम्हे बताएगी भी वो ......सुन लेना उद्धव ! नन्द जी नें इतना कहकर उद्धव को भेज दिया था - जिस तरफ मैया यशोदा थीं ।
*****************************************************
सो जा मेरे लाल ! सो जा मेरा कान्हा ! सो जा मेरे श्याम !
मैं उद्धव ! मैं देवभाग का पुत्र उद्धव ....आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ ............उद्धव नें देखा एक वात्सल्य से भीगीं माता ........
झूले को हिला रही है.......और आश्चर्य ! वो झूला खाली है ।
चुप ! चुप ! मत बोल ............बहुत धीरे से बोलीं थीं वो माता ।
बड़ी मुश्किल से सुलाया है इसे ..............तू जोर से बोलेगा न ......तो जग जाएगा ..........चुप ! फिर मैया शुरू -
सो जा मेरे लाल ! सो जा मेरे कान्हा ! सो जा मेरे श्याम !
उद्धव के कुछ समझ में नही आरहा ....कि यहाँ क्या हो रहा है ये सब ।
सुन ! फिर धीरे से बोलनें लगीं यशोदा मैया ..............
आज बड़ा ऊधम मचाया इसनें.........मैं तो परेशान हो गयी हूँ .....क्या करूँ ? अब देख ! पहले कह रहा था माखन दे .....फिर कहनें लगा .....चन्द्रमा दे.............मुँह छुपाकर हँसनें लगीं मैया ।
अब आकाश का चन्द्रमा मैं कहाँ से दूँ ?
फिर कहनें लगा .......बहू ला दे .................बहू चाहिये इसे ......हँसी रुक ही नही रही है यशोदा की .....................
जैसे तैसे मैने इसे समझाया...........और माखन खिलाकर सुला दिया .....बड़ी मुश्किल से सोया है ये........यशोदा मैया बोले जा रही हैं ।
ऐसी स्थिति होगयी है कृष्ण के मैया की ?
उद्धव को अच्छा नही लग रहा ।
पर माता ! वो तो मथुरा गए हैं !.............उद्धव को सच बोलनें का व्यसन है ..............यहाँ भी सच बोल ही दिया ।
नही .........ये झूठ है .........जो ये कहता है मेरा लाला मथुरा गया .....वो झूठ बोलता है ..........मेरा कन्हाई यहीं है...........देख ! यहीं है ।
और जैसे ही पालनें में हाथ रखा मैया नें.......पालना खाली है.....
धड़ाम से गिर गयीं धरती पर.........और मूर्छित हो गयीं ।
****************************************************
कैसे हैं वसुदेव ? कैसे हैं महाराज उग्रसेन ? मथुरा वासी अब प्रसन्न तो होंगें ना ? अक्रूर कैसे हैं ?
बृजपति नें ही आकर यशोदा को सम्भाला था ........जल का छींटा देकर उठाया था ...........यशोदा ! ये है हमारे कन्हाई का मित्र - उद्धव !
बड़े ध्यान से देखती रहीं यशोदा, उद्धव को .............
मेरा लाल ? कहाँ है मेरा कन्हाई ? उद्धव के मुख में देखती हुयी पूछ रही हैं ।
वो आएगा ! देखो यशोदा ! उसनें अपनें मित्र को भेजा है ना !
नन्द जी बोले ।
ये मित्र है ? तुम मित्र हो मेरे लाल के ?
हाँ हाँ ....ये मित्र हैं ........अब कुछ देर चुप हो जाओ ........मुझे बात करनें दो .....नन्द जी , यशोदा को समझाकर अब उद्धव से चर्चा करनें लगे थे ।
कैसे हैं वसुदेव ? कैसे हैं महाराज उग्रसेन ? अक्रूर कैसे हैं ?
इन प्रश्नों को यशोदा मैया नें सुन लिया ............चिल्ला पडीं एकाएक -
अरे ! आपको क्या मतलब वसुदेव से ......आपको क्या लेना देना है उग्रसेन से .......उस अक्रूर से क्या प्रयोजन हम लोगों का .....
आप सीधे पूछिये ना ! हमारा कन्हाई कैसा है ?
आप सीधे पूछिये ना ! मेरा लाल कैसा है ?
मथुरा में उसे भर पेट माखन मिलता तो है ना ?
यशोदा के इस प्रश्न पर नन्द जी नें यशोदा से ही कहा -
अरे ! मथुरा में वो राजमहल में है ........उसे क्या कमी है वहाँ !
नही ........राजमहल है तो क्या हुआ ? मेरा लाल, जब तक उसे कोई जिद्द करके न खिलाये .......वो खाता ही नही है ...............उसे कोई जिद्द करके खिलाता है ? कहीं ऐसा न हो मेरा लाला भूखा ही रह जाए ।
हिलकियों से रो पडीं यशोदा मैया .........अपनें आँसू पोंछते हुये नन्द जी नें अपनी भार्या यशोदा को सम्भाला था ।
उद्धव कुछ समझ नही पा रहे .......कि मैं इन्हें कैसे समझाऊँ ........मुझे श्रीकृष्ण नें समझानें के लिये ही तो भेजा है .........पर !
शेष चरित्र कल .......
Harisharan
0 Comments