"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 71

71 आज  के  विचार

( सन्देसो  देवकी सौं कहियो...)

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 71 !! 

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श्याम कुशल हैं ?  प्रसन्न हैं  ?  

बताओ उद्धव !  सुखी हैं ना  श्याम सुन्दर ?

कण्ठ भर आया था बृजपति नन्द  का -  यहाँ रहते हुये  उसनें  हम सब की रक्षा की थी........एक बार नही  उद्धव !   बारबार  !

आज जो तुम हम लोगों को देख रहे हो ना जीवित,   ये सब श्याम का ही किया है ..........उसी नें हम सब गोप गोपियों को बचाया है ........इस वृन्दावन को बचाया है  ।

उद्धव सुन रहे हैं ........बृजपति नन्द  सुबुकते जा रहे हैं  और बताते जा रहे हैं .....गोपों को , गोपियों को,  और गायों का जीवन,  उसका ही दिया हुआ है  .........कालीदह में जाकर नाग नथ लाया था ..........तब से  जमुना का जल भी शुद्ध हो गया .......हम लोग कितनें खुश हुए थे  ।

कंस उधर से राक्षसों को भेजता था ......पर  हमारा श्याम उन्हें मार देता और हमें  प्रसन्न रखनें का प्रयास करता था.......दावानल लगा दिया   कंस नें,  चारों ओर से हम  उस दावाग्नि में घिर गए थे .......गौएँ गोप  ये सब भाग रहे थे इधर उधर ........उद्धव !      हम सब मर जाते उसी में जलकर ,  अगर हमारे कन्हाई नें हमें नही बचाया होता तो  ! 

इन्द्र  क्रुद्ध हो गया था ..........वर्षा कर दी प्रलयंकारी ...........उस समय भी  हमारे ही लाल नें  हमें बचाया था गिरिराज उठाकर  ।

हमें  जीवन दिया है  हमारे श्याम नें.............बृजपति गदगद् होकर ये सब बता रहे थे ........रोम रोम  खड़े हो गए थे उनके ......पसीनें निकलनें लगे थे  रोम से ..........वज्रनाभ !  स्पर्धा सी हो गयी थी  पसीनें और आँसुओं में .......बृजपति के नेत्र  , उनके देह का रँग  उनकी काँपती बूढी काया ...........एक क्षण के लिये तो उद्धव भी डर गए ........कहीं  देह तो नही त्याग देंगें ये  !    क्यों की   उनकी पलकें नही गिर रही थीं अब ।

मेरा ध्यान गया   मैया यशोदा के ऊपर .................

मैं क्यों बैठी हूँ यहाँ  ?    अरे !  कन्हाई आएगा तो माखन मांगेगा ........

सुनिये !   मैं माखन निकाल लूँ ........इन अतिथि से आप ही बतिया लीजिये ......मेरा बैठना जरूरी है क्या  ?    

बृजपति नें  उद्धव की ओर देखा ..........पर   कुछ बोले नही   ।

उठनें लगीं   दीवार का आधार लेकर मैया यशोदा ............

बहुत भूलनें लगी हूँ मैं आजकल........मैं  भी !    फिर अपना माथा पीटती हैं........कन्हाई  के लिये माखन निकालना भूल गयी ।

उद्धव का सिर चकरानें लगा.........इनको  कैसे समझाऊँ ? 

क्या कहकर समझाऊँ ?         इन्हें तो बारबार    आवेश आरहा है .....जैसे इनका कन्हाई यहीं कहीं हो  !    मैं कैसे समझाऊँ  इनको ?

मैं उद्धव !    किसी को भी समझा सकता हूँ ...........किसी को भी !

मैं बृहस्पति का शिष्य हूँ .......मेरे ऊपर  उनकी कृपा  है .........

मेरा जैसा ज्ञानी और बुद्धिमान कौन होगा  ?      

पर  यहाँ  मेरी बुद्धि काम नही कर रही ..........शब्दों का कितना अभाव होगया है आज मेरे पास ............मैं  इनको क्या कहूँ  ? 

क्या  ऐसा बोलूँ   जिससे इनका  वियोग कुछ तो कम हो ..........इनको  इस विरह के दुःख से  कुछ तो  राहत मिले .........पर क्या कहूँ  !

उद्धव !   बारबार बोलनें की कोशिश करते हैं ...............पर   मैया यशोदा और बृजपति नन्द को देखते ही ...........वो कुछ बोल ही नही पा रहे हैं  ...........।

गिर गयी थीं  मैया यशोदा ...............माखन निकालनें की जिद्द करते हुये  गिर गयी थीं ................

यशोदा !     रो गए  नन्द जी ......सम्भाला  यशोदा को ...........

हाथ में चोट लग गयी थी .................अपना उत्तरीय फाड़ कर  यशोदा के हाथों में बाँध दिया .............

"तेरा लाला मथुरा गया है .....यहाँ नही है" ................कान में जाकर जोर से  बोले थे नन्द जी.......   यशोदा के कान में ......।

क्या ?     क्या सच में ही वो मथुरा गया है  !   

फिर टूट गयीं ............और  बैठ गयीं       ।

कुछ देर तक  रोती रहीं .............बृजपति नें जल पिलाया  ।

ये कौन है  ?    मेरे कन्हाई   जैसा  ?      

उद्धव को देखकर फिर पूछनें लगी थीं     ।

उद्धव  की बुद्धि फिर चकराई ...........मैं इनको क्या  समझाऊँ  ?  

ये  श्याम का सखा है .......इसका नाम उद्धव है   ........बृजपति नें  फिर परिचय दिया .......।

मथुरा से आया है  ये  ?     यशोदा  उद्धव की ओर  खिसकीं ..........

हाँ .....मथुरा से आया है ...............उद्धव नाम है  इसका  ।

उद्धव !  

    पास में ही आगयी थीं   यशोदा मैया ........अपनें हाथों से  चेहरा  छूआ था उद्धव का ......... 

मेरा एक काम करेगा !   बोल उद्धव !     करेगा  ?

उद्धव नें  "हाँ"  में उत्तर दिया   ।

मेरा एक सन्देस  देवकी को देगा  ? 

       यशोदा कितनी उन्मादिनी हो उठी थीं  ।

सुन उद्धव  देवकी से कहना -  यशोदा तो धाय माँ है  तेरे कृष्ण कि ......सगी माँ तो तू ही है ............जन्म तो तेनें ही दिया है ..........यशोदा नें  पाला है  सिर्फ .........जैसे  कोई "धाय"  को रख लेता है .....ऐसे ही  देवकी !  तेनें भी   यशोदा नाम कि धाय को रख लिया था ..............पर  अब  तो    तेरा कृष्ण तेरे पास चला आया है ना ?

अच्छा हुआ ?   तुम खुश तो हो ना  देवकी !   मैं भी कितनी पागल हूँ....मेरा कन्हाई है ही  ऐसा ....जहाँ जाता है....वहीं ख़ुशी फैलाता है  ।

देवकी  !    कन्हाई कि कुछ आदतें हैं .....मेरी प्रार्थना है  तुम समझोगी  !

देवकी !      कन्हाई को  भूख लगती है   तो वह कहता भी नही है ......कि मुझे भूख लगी है......मेरा लाला संकोची है.....उसे  जबरदस्ती खिलाना पड़ता है .......पेट दवा दवा कर खिलाती थी मैं ......तब जाकर वो खाता था.....देवकी !   इस बात का ख्याल रखना ।

अकेले मत सुलाना उसे...........उसे अकेले सोनें कि आदत नही है .......मेरे साथ ही सोता रहा है   11 वर्ष तक  भी  ।

तुम सोना उसके साथ ........वो  बाहर देखनें में लगता है  की  शक्तिशाली है ......पर  अंदर से कमजोर है  वो.......रात में उठकर डर जाता था ........तब मैं उसे  अपनी छाती से चिपकाकर सुलाती थी .......देवकी !  तू भी ऐसे ही करना  ।

उसे माखन बहुत प्रिय है......स्वयं ही निकालना माखन .......और  अपनें हाथों उसे खिलाना .........वो मना करेगा .......पर मानना मत ।

देवकी !  थोड़ा पेट दवाकर देख लेना ...............अगर पेट गीला हो  तो उसकी मत मानना.......उसका ख्याल रखना ...........उसे कभी भी   इस बूढी मैया यशोदा कि याद न आये  इतना प्यार देना .............

ये सब  कहते हुये    वाणी अवरुद्ध होगयी थी   यशोदा मैया कि ......वो आगे कुछ भी  बोल नही पाईँ ..............

शेष चरित्र कल .....

Harisharan

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