69 *आज के विचार*
*( बृज के बिरही लोग बेचारे...)*
*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 69 !!*
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कन्हाई आगया ? ये उसी का रथ है ?
कैसे नाचनें लगे थे सब ग्वाल बाल ।
यह प्रतीक्षा , प्राणों की अथक, अविचल प्रतीक्षा .....दिन पर दिन, महिनें पर महिनें, वर्ष पर वर्ष बीतने पर भी इसी प्रकार चल सकती है ......हे वज्रनाभ ! चल रही है ..........यह कोई विश्वास करेगा ?
लेकिन ये वृन्दावन है .......प्रेम की भूमि इसे, ऐसे ही तो नही कहा है !
अवसाद, नैराश्य से असंस्पृष्ट अविराम और अनर्थक प्रतीक्षा चल रही है.......इसीलिये तो ये वृन्दावन धन्य है......हे वज्रनाभ ! दुर्लभ है इस प्रेम की भूमि का एक रज कण भी......देवता ऐसे ही नही तरसते इस वृन्दावन के लिये ।
अरे ! मनसुख ! तुझे क्या हो गया एकाएक .............अभी तो तू खुश हो रहा था .....नाच रहा था ......कन्हाई आगया .....रथ आगया ..........पर अब क्या हुआ तुझे ? श्रीदामा नें मनसुख को पूछा ।
मैं नही जाऊँगा ........मैं उससे मिलूँगा भी नही ............जाओ ! आगया ना तुम्हारा कन्हाई !.......अब जाओ ..........देखो ! आगया रथ !
तू पागल है क्या मनसुख ! चल उठ ..........हमारा कन्हाई आगया है ।
मैं नही जाऊँगा ...........वो रथ से उतरे ......मेरे पैर छुये ....मुझे से क्षमा माँगे.......मनसुख बोले जा रहा था ।
क्षमा ? किस बात की क्षमा ! श्रीदामा नें कहा ।
किस बात की क्षमा ? अरे ! हमें छोड़कर चला गया ........हमें आँसू दे गया ........हम पागल हैं ......जो यहाँ बैठे बैठे रोते रहते हैं ......कि अब आएगा ......अब आएगा ......आज आएगा .....कल आएगा .......
मनसुख बोला .......तुम जाओ .....मिलो उस कन्हाई से ......पर मैं नही मिलूँगा ...........मुझे वो मनायेगा .........मुझे वो ............
रथ पास में आगया था..........."क्या नन्दमहल इधर ही है ?
उद्धव नें ग्वाल बालों से इतना ही पूछा था ।
सब लोग देख रहे हैं.........अपलक देख रहे हैं उद्धव को ।
मनसुख क्रन्दन कर उठा - नही आया वो निष्ठुर ।
तुम कैसे कह सकते हो .................श्रीदामा नें पूछा ।
आया होता ना .......तो अभी तक रथ में नही बैठा रहता .........वो कूदकर उतरता दूर से ही........और हम लोगों को अपनें गले से लगा लेता..........नही आया ! आज भी नही आया ।
हमारा कन्हाई नही आया ? मधुमंगल नें डरते हुए पूछा ।
डरते हुए इसलिये वज्रनाभ ! कहीं नही आया तो ?
पर बड़े निर्मम स्वर से उद्धव नें कह दिया - "नही आये"......
बस इतना सुनते ही ..........वो खिले हुए चेहरे मुरझा गए थे .......
यही ग्वाल बाल जो रथ को देखकर उछल रहे थे ..........वही दुर्बल अतिदुर्बल लगनें लगे थे ...........
यही ग्वाल बाल जो बढ़ चढ़ कर बोले जा रहे थे .............अब वही बोल भी नही पा रहे थे ।
नही आया ? ओह ! रोना, सुबकना , ये तो सामान्य बात है ................जड़वत् हो गए थे कुछ देर के लिये ।
तुम कौन हो ? ये भी बड़ी मुश्किल से पूछ पाये थे ।
मैं कृष्ण दूत उद्धव !
......उद्धव नें अपनें आपको "कृष्ण दूत" कहकर परिचय दिया ।
मनसुख हँसा ........ये हँसी दुःख के अति होनें पर आती है ।
अच्छा ! हमारा कन्हाई अब दूत भेजनें लगा .........देखो ! हमारे कन्हाई का ये दूत है .............
क्यों ? तुम्हे क्यों भेजा है यहाँ उसनें .......मनसुख बोले जा रहा है ।
अब तो हमारे पास कुछ नही है तुम लोगों को देनें के लिये
हे मथुरा वासी !..........हमारी निधि तो कन्हाई ही था जिसे तुम ले जा चुके हो........अब क्यों आये हो ?
फिर एकाएक रो पड़ा मनसुख...........हमें कंगाल बना दिया तुम मथुरा वासियों नें........हम कितनें धनी हुआ करते थे ........पर हमारे जीवन धन को तुम लोगों नें छीन लिया........अब क्या लेनें आये हो ?
मनसुख रोता जा रहा है.........कंस मर गया ना अब ! तुम लोग इसलिये लेगये थे ना हमारे कन्हाई को ....अब मर तो गया .......अब क्या लेनें आये हो.......हमारे पास अब कुछ नही है अब ।
मधुमंगल आगे आया........हमें लेने आये हो ? बोलो कन्हाई के दूत !
क्यों अब कंस के श्राद्ध के लिये तुम लोगों को यहाँ से कोई चाहिए ?
बहुत स्वार्थी हो रे ! ले गया था अक्रूर हमारे प्राणधन को ......वापस छोड़ देना चाहिये ना ! पर नही........हाँ तुम लोगों को क्या मतलब ? अपनें अपनें में लगे रहते हो !
मैनें पूछा है आप लोगों से - कहाँ हैं नन्दभवन ? उद्धव नें फिर पूछा ।
ओह ! इन्हें हमसे कोई देना देना नही है ..........सुनो ! तुम्हे नन्दभवन जाना है ना ..........तो एक निशानी बताते हैं तुम्हे .............
ये जो पनारा निकल रहा है ना ......पानी का पनारा ........बस इसके साथ साथ चलते रहो ......ये जहाँ से निकल रहा होगा ......बस नन्दमहल वही है ...........ये कहते हुए ग्वाल बाल चुप हो गए ।
मैं समझा नही .....उद्धव नें फिर पूछा.......ये पानी जहाँ से आरहा है ?
हाँ कृष्ण दूत ! ये पानी नही हैं ..........ये हमारी यशोदा मैया के अश्रुधार हैं .......जो निरन्तर बहते रहते हैं ..........देखो ! ऐसी स्थिति होगयी है यहाँ ..........देखो जा कर ....उस मैया को ........अपनें लाला के वियोग में कैसी मरणासन्न सी हो गयी है ।
उद्धव के ज्ञान को पहली बात झटका लगा.......ओह ! ये कैसी स्थिति है.........निरन्तर व्याकुलता ?
उद्धव की बुद्धि यहीं से जबाब दे जाती है ..............
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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