66 आज के विचार
( ऊधो ! मोहि बृज की याद सतावे...)
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 66 !!
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गोविन्द ! गोविन्द ! द्वार खोलिए !
मैं हूँ ........मैं उद्धव !
उद्धव महल के बाहर खड़े हैं और द्वार खटखटा रहे हैं ।
कुछ देर में द्वार खुला ।
क्या हुआ ? आपनें द्वार क्यों बन्द किया था ?
भगवन् ! माता देवकी द्वार पर खड़ी रो रही थीं........वो शायद आपके लिये माखन निकाल कर लाईं थीं......पर ।
हँसे कृष्ण ! "और बताओ उद्धव ! कैसे हो ? सब ठीक हैं ना " ?
हाँ भगवन् ! सब ठीक है...........उद्धव नें कहा ।
पर ........पर आप से मुझे एक शिकायत है.........
शिकायत तो सबकी बनी ही रहती है एक दूसरे से..........कृष्ण कृत्रिम हँसी हँस रहे थे............
पर नाथ ! देवकी माता आपकी माँ हैं ..............
उद्धव ! बात क्या हो गयी ? जो तुम मुझ से ये सब कह रहे हो ।
वो माखन लेकर आयी थीं.........उन्हें माखन निकालना भी नही आता ......फिर भी उन्होंने ये सब किया.......बड़े प्रेम से लाईं थीं पर तुमनें द्वार ही बन्द कर दिया । उद्धव कृष्ण को ये सब बता रहे थे ।
पर ...उद्धव ! यमुना के दर्शन यहाँ से कितनें अच्छे होते हैं ना !
कृष्ण बात को बदल रहे हैं बार बार ।
चरणों को पकड़ लिया उद्धव नें..........मुझे आपनें अपना सखा माना है ..........है ना ?
हाँ हाँ .....तुम मेरे सखा हो उद्धव ! तुम प्रिय सखा हो मेरे ।
फिर बताइये ना ! जो आपके हृदय में है.......क्यों इतना दवाये रखे हैं ......बता दीजिये ना मुझे ......आपको हल्का लगेगा ।
नाथ ! मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ ........आप अकेले रहना पसन्द करते हैं.......और अकेले में यमुना को ही देखते रहते हैं.........फिर आपके नेत्रों से अश्रु बरस पड़ते हैं......मुझे बता दीजिये कि क्या कमी है मथुरा में .......जो आप इस तरह से विरहाकुल से दिखाई देते हैं ।
कमी वाली बात नही है उद्धव !
कमी नही है तो फिर क्या है ? .......मैं स्वर्ग के सुख को भी उतार लाऊँगा आपके लिये मथुरा में, नाथ ! आप आज्ञा तो दीजिये ।
चरणों को ही पकड़ कर बोल रहे हैं उद्धव ।
ना ! ना ! बहुत सुन्दर व्यवस्था है यहाँ........उद्धव ! मेरे लिये कितनें सेवक हैं !.........और मैं जब बाहर निकलता हूँ तो मेरे साथ सैनिक भी लग जाते हैं सुरक्षा में.......मैं हर समय लोगों से घिरा रहता हूँ.......सब बढ़िया है यहाँ........सब अच्छा है ।
इतना कहकर फिर गवाक्ष से कृष्ण यमुना को देखनें लगे थे ।
फिर ये सब क्यों ? उद्धव नें जिद्द से पूछा ।
क्या उद्धव ! अच्छा छोडो इन बातों को........और बताओ राज्य में सब ठीक है ना ?
मुझे आप अपना नही मानते .....है ना ?
कृष्ण नें देखा.........उद्धव नें बड़ी आत्मीयता से ये बात कही थी ।
देखते रहे कृष्ण उद्धव की आँखों में......फिर वहाँ से जानें लगे .....
उद्धव नें चरण पकड़ लिये ........नाथ ! ऐसे मुँह मत मोड़िये ! बता दीजिये.........रुके कृष्ण .....मुड़े उद्धव की ओर .............
और अपनें हृदय से लगा लिया उद्धव को......हिलकियों से रो पड़े ।
कोई कमी नही है यहाँ .......उद्धव ! कोई कमी नही है.........
मुझे मथुराधीश कहते हैं .....मुझे कृष्ण चन्द्र महाराज कहते हैं ......लोग जयजयकार लगाते हैं........पर ...........
उद्धव ! पर यहाँ कोई "कन्हैया" नही कहता ......दास दासियाँ हजारों हैं यहाँ ........पर वहाँ तो मेरे लिये हर समय बेचैन रहती थी स्वयं मेरी मैया यशोदा.......पता है उद्धव ! मुझे हल्की खरोंच भी लग जाती थी ना .....तो रात भर मेरी मैया सोती नही थी.......मैं सुबह जाता था गैया चरानें तो वो लौटनें की मेरी ही प्रतीक्षा करती रहती थी .....।
और मेरे ग्वाल बाल ..........वो तो सब बाबरे हैं मेरे लिये .........
एक दिन कंस नें ही भेजा था अघासुर, अजगर के रूप में आया था .....उसके मुँह में मैं चला गया था उद्धव ! ......तो सारे ग्वाल बाल ये जानते हुए कि अजगर उन्हें भी खा जाएगा ........फिर भी वो सब गए क्यों की " मैं गया था" अजगर के मुँह में ........अरे ! मरेंगें तो सब मरेंगें .........हमारा कन्हैया गया है......ये कहते हुए सब अजगर के मुँह में प्रवेश कर गए थे ।
उद्धव ! वहाँ के लोग मेरे लिए जीते हैं......वो जिन्दा भी हैं तो मेरे लिये ........मर जाते कब के वो लोग मेरे वियोग में ......पर नही ........मुझे अच्छा नही लगेगा कहकर वो मरते भी नही हैं........
और मेरी राधा ? बस राधा का नाम आते ही.......कृष्ण कुछ देर तो बोल ही नही सके.......उनकी वाणी अवरुद्ध हो गयी थी ।
मैं राधा को ही अपनी बाँसुरी देकर आया था उद्धव ! ये कहकर आया था कि ...."मेरी याद आये तो बजा लेना ,मैं उसी क्षण प्रकट हो जाऊँगा".........पर नही .......आज कितनें मास बीत गए........नही बजायी राधा नें बाँसुरी ....और वो बजायेंगी भी नही.......
उद्धव ! प्रेम क्या है - तो मेरी राधा को देखो .........बाँसुरी बजाकर अपनें सुख के लिये मुझे क्यों बुलाये राधा .......ये भावना है उन लोगो की ।
अपनें सुख का पूर्ण त्याग..........सिर्फ ! मेरी ख़ुशी ।
इससे ज्यादा कुछ कह नही सके कृष्ण....और वहीं धरती पर गिर गए ।
उद्धव नें दौड़ कर सम्भाला.......पर उद्धव को बड़ा विचित्र लगा उस समय ......जब कृष्ण एक उच्च आराधक की तरह "राधा राधा राधा" नाम का उच्चारण देहातीत होकर कर रहे थे ।
उफ़ ! आज उद्धव की बुद्धि नें काम करना बन्द कर दिया था ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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