"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 65

65 आज  के  विचार

( जब उग्रसेन की सभा में "वृन्दावन" की बात चली...)

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 65 !! 

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मधुपुरी के रक्षक , यदुवीर,  यादवों के त्राता,  माथुर राज्य के जन नायक श्रीकृष्ण चन्द्र महाराज पधार रहे हैं.......

उग्रसेन की सभा लगी हुयी है.....आज सभा में उपस्थित हो रहे हैं कृष्ण ।

सभासद सब उठे ,  मन्त्री, मन्त्रीमण्डल  के सब मान्य व्यक्ति  स्वागत के लिये खड़े हो गए थे........महामन्त्री तो  उद्धव हैं.......उनके चेहरे में एक  अलग ही चमक देखी जा सकती थी.......वो चहक से रहे थे  ।

महाराज उग्रसेन के  उठनें की आवश्यकता नही थी .....वो  राजा हैं .........पर  श्रीकृष्ण नें ही तो उन्हें  राजा बनाया है  ......मथुरा की प्रजा तो चाहती थी कि .....कंसवध  पश्चात्  कृष्ण ही मथुरा नरेश बनें ......पर  नही ....कृष्ण नें ये स्वीकार नही किया .......और कंस के पिता को ही राज्य सौंप दिया  ।

राजा उग्रसेन ये जानते हैं .....की लोकप्रिय  जननायक  तो कृष्ण ही हैं  मथुरा के.....उठे राजा उग्रसेन   कृष्ण के सम्मान में  ।

उच्च आसन  जो  कृष्ण के लिये ही लगाया गया था  उसमें  गम्भीरता के साथ आकर बैठ गए थे कृष्ण ।

पर  कुछ मंत्रियों की नजर में कृष्ण बालक ही हैं ......बुजुर्ग हैं यादवों में ये ......इसलिये  ज्यादा गम्भीरता से लेते नही हैं  कृष्ण को ये लोग ।

आप कब पधारे  ?     हाथ जोड़कर राजा उग्रसेन  नें पूछा  ।

उठे कृष्ण  - आप राजा हैं  इसलिये इस तरह उठकर  और मेरे सामनें  हाथ न जोड़ें ......मैं तो आपका सेवक हूँ महाराज !     कृष्ण नें   उग्रसेन को हाथ जोड़कर ये सब कहा  ।

साधू !  साधू !        सभासद सब बोल उठे  ............

उद्धव गदगद् हो रहे हैं .........वो तो बस  अपनें  स्वामी को ही  अपलक देखे जा रहे हैं  ।

बैठे राजा उग्रसेन......कृष्ण नें  चारों ओर देखा   पर गम्भीर ही बने रहे ।

विद्या पूरी हो गयी  आपकी  ?     एक वृद्ध सभासद नें पूछा था  ।

जी !    आपकी कृपा से  पूरी हो गयी"

....वयोवृद्ध का कितना सम्मान करते हैं  कृष्ण    ।

"मैं  यादवों का महामन्त्री  उद्धव,   मथुरा नरेश   महाराज उग्रसेन को   प्रणाम करते हुये ...........

सभा में विराजे  विशेष  महत्पुरुष  श्रीकृष्ण चन्द्र जी के चरणों में  वन्दन करते हुए.........आज की सभा  प्रारम्भ करनें की अनुमति महाराज से चाहता हूँ" ......उद्धव नें   सभा में उठकर सबके सामनें भूमिका रखी   ।

अनुमति है   - महाराज उग्रसेन नें  आज्ञा दी  ।

"कंस की मृत्यु के पश्चात्,    कंस पत्नियाँ   वो अपनें पिता के यहाँ चली गयी हैं".....उद्धव बोल रहे थे ......."नही नही   हममें से किसी नें उन्हें  यहाँ से भगाया नही है ......ये बात मैं स्पष्ट कर दूँ.........सब हँसे    ।

पर कृष्ण गम्भीरता से  सुनते रहे   ।

अब  मथुरा के ऊपर  एक संकट मंडरा रहा है .......जिसे हम  नजरअंदाज नही कर सकते .......उद्धव नें कहा   ।

संकट ये है  -   गुप्तचरों से हमें ये सूचना  मिली है कि   जरासन्ध  अब  मथुरा आक्रमण की तैयारी में है .......इसके लिये उसनें  देश विदेश से राक्षसों और आतंककारियों  को जुटाना भी शुरू कर दिया है  ।

इसलिये हमें सावधान रहनें की आवश्यकता है .........इसके लिये हमारी क्या रणनीति होनी चाहिए  इसपर  हम विचार करें  ।

इतना कहकर  उद्धव बैठ गए  ।

सब  ठीक है ना ?  

  महाराज उग्रसेन  नें  धीरे से पूछा  कृष्ण से ।

थोडा मुस्कुरा दिए  बस   कृष्ण   ।

अब हम सब  श्री कृष्ण चन्द्र की वाणी सुनना चाहेंगें  ..........सभा से आवाज उठी  ।

महाराज उग्रसेन और महामन्त्री उद्धव नें  कृष्ण की ओर देखा  ।

कृष्ण नें  सिर हिला दिया  "नही"   में   ।

क्या बात है  !    क्या  कृष्ण का स्वास्थ ठीक नही है ..........न बोल रहे हैं  न मुस्कुरा रहे हैं ........कितनें गम्भीर बने हैं   ।

यहाँ उन्हें   अच्छा तो लग रहा है ना  ?       

सभा में लोग  बातें करनें लग गए  थे ...............पर ये बातें कानों से होते हुए  सभा में फैलनें लगी थी ..............

इनके लिये  मथुरा में अच्छी से अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये ........इन्हीं "कमलनयन"  की कृपा से ही  हम कंस के अत्याचार से मुक्त हुए हैं .......

बड़े बड़े लोग  भी यही कह रहे थे    ।

"कहीं  वृन्दावन की याद तो नही आरही ?  

एक वृद्ध  यदुवंशी नें  हँसते हुए  ये प्रश्न कर दिया  ।

सब हँसे ......पूरी सभा हँसी   ।

नही ..ये  विनोद की बात नही है ........भई  वो वृन्दावन  में रहे हैं ......वो गांव है .........और ये नगर .....गाँव के लोग   सहज सरल होते हैं ...और हम नागरी लोग    ?           सब हँसे   ये बात सुनकर   ।

अब हम नागरी लोगों का अपमान न करो  चाचा !   

 एक सभासद हँसते हुए  बोला ।

नही,   सही बात है ........और सुना है  वहाँ  ये  केवल माखन ही खाते थे ......खाते नही थे   चुराते थे ..........वही  वृद्ध स्नेह से  बोले  ।

कहीं  याद तो नही आरही  ?

राधा  !  राधा की याद !

ये  कोई  फुसफुसाकर किसी के  कान में बोल रहा था ।

कृष्ण मुड़े .....और जब पीछे  देखा ......अक्रूर थे  जो  धीरे बोल रहे थे  ।

राधा !    वृन्दावन !   और  ये मथुरा  ?     कृष्ण के नेत्र सजल हो उठे ।

ऊपर दृष्टि उठाई ............झाड़ फानूस ..........बड़े बड़े    सुवर्ण के खम्भे .........दिव्य पच्चीकारी    द्वारों और और दीवारों में .........

कृष्ण देख रहे हैं ....................और  वहाँ  ?

मैया यशोदा ..........माखन निकाल रही है .............मेरे लिए ।

ग्वाले खड़े हैं .........मेरे लिये .....गोपियाँ जल भरनें भी जाती हैं  मेरे लिये ..............और  मेरी राधा  वो तो जी ही रही है   मेरे लिए  ।

पर  यहाँ कौन  है ऐसा  जो मेरे लिये हो ............सिर्फ  मेरे लिये  ।

यहाँ तो सब  अपनें लिए ही जी रहे हैं ...........और वहाँ  ?   

रो गए कृष्ण ............पहले तो आँसुओं को रोकनें की कोशिश की .....पीताम्बरी से पोंछते भी रहे ........पर ......प्रेम छुपता कहाँ है ।

सभा स्तब्ध हो गयी ...........सबको लगनें लगा  हमसे कोई गलती हो गयी क्या  ?    

महाराज उग्रसेन काँप गए   ।

कृष्ण उठे ........और  बिना किसी से बात किये ............उस सभा से ही चल दिए .................उद्धव   नें  देखा  ...........महाराज उग्रसेन नें इशारे में कहा .......जाओ !  जानकारी लेकर आओ  कि  बात क्या है  ? 

उद्धव  पीछे भागे..........कृष्ण की पीताम्बरी  गिर गयी  पर उन्हें कुछ भान नही है ........वो बस अपनें महल की ओर चले जा रहे हैं  ।

वत्स !  मुस्कुराते हुये   सामनें खड़ी मिलीं  देवकी माता  ।

कृष्ण नें देखा ..............उनके हाथों  में देखा ....एक थाल है .......जो किसी रेशमी वस्त्र से ढंका हुआ है .............

पता है  ये क्या है  ?      हँसते हुए देवकी माता  नें कहा  ।

कृष्ण  नें बस आँखों के इशारे से ही पूछा ......क्या है   ।

मेरे पुत्र ! ये माखन है,  अब मैं यशोदा की तरह तो निकाल नही सकती ।

दासियों से कहकर,  और रोहिणी नें मेरी मदद करी ......देवकी नें कहा ।

ओह !    यशोदा मैया का नाम और उनका  वात्सल्य से सना माखन .....कृष्ण की हिलकियाँ  छूट गयीं......आँसुओं की धार  निकल पड़ी ।

महल में गए ......और   महल का द्वार बन्द कर दिया  भीतर से ..........

और  खूब रोते रहे....खूब रोते रहे.............

शेष चरित्र कल -

Harisharan

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