63 आज के विचार
( पतंग तो जलता है, सखी ! दीपक भी तो जलता है )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 63 !!
*************************
हे वज्रनाभ ! "उद्धव".......हाँ ये कृष्ण के बड़े प्रिय हैं ......और हाँ बहुत बड़े विद्वान भी हैं ............क्यों न हों विद्वान, देवगुरु बृहस्पति नें इन्हें अपना शिष्य बनाकर शिक्षा जो दी है .........ज्ञानी हैं .......नही नही ज्ञानियों में श्रेष्ठतम हैं .......और बुद्धिमानों में उत्तमोत्तम ।
हे वज्रनाभ ! ये मथुरा में मिले थे कृष्ण को ....... कृष्ण को ये बड़े प्रिय लगे .......तो सखा ही बन गए .......सखा भी मात्र सखा नही ....."प्रिय सखा" .....जिससे अपनें हृदय की छुपी बातें भी कह सकें ।
उज्जैन से लौट आये हैं कृष्ण........विद्याध्यन करनें गए थे उज्जैन ।
आज पूर्णिमा है ..........प्रातः ही सब मथुरा के लोग यमुना स्नान को चल दिए थे ...........
देवकी नें रोहिणी को भेजा था कृष्ण के महल में........रोहिणी ! जाकर कृष्ण को कहो ना ......कि हम लोगों के साथ यमुना स्नान को वो चले !
रोहिणी गयीं.........उन्हें लग रहा था कि कृष्ण अभी सो ही रहे होंगें क्यों की वृन्दावन में देर से ही उठते थे .......पर ये क्या !
कृष्ण तो बैठे हैं ...........सुखासन से ........आँखें बन्द हैं .............
कृष्ण ! कृष्ण !
आवाज दी रोहिणी नें ।
उठे ध्यान से , उठे और प्रणाम किया माँ रोहिणी को ।
कृष्ण ! तुम कालिन्दी स्नान को चलोगे ! चलो ! आर्यपुत्र वसुदेव और देवकी की इच्छा है कि आज तुम अपनें माता पिता के साथ स्नान करो ।
धीरे से मुस्कुराये कृष्ण ..............
नही माता ! आप लोग जाइए ।
इतना रुखा उत्तर ?
रोहिणी वापस आईँ और मना कर दिया देवकी को ...........
उदास हो देवकी अपनें पति वसुदेव के साथ अन्य रोहिणी इत्यादि सब थे .........गए स्नान करनें के लिये यमुना में ।
******************************************************
उद्धव ! उद्धव !
कृष्ण नें उद्धव को देखा झरोखे से....तो जोर से आवाज लगानें लगे ।
उद्धव प्रसन्नता से भरे कृष्ण के पास आये .........बड़ी श्रद्धा से चरणों में प्रणाम किया .........आज्ञा गोविन्द ! उद्धव नें कहा ।
यमुना स्नान को चलोगे ?
पर आपनें नें माता रोहिणी को मना कर दिया ......माता देवकी भी कितनी दुःखी हो गयीं ..........उद्धव नें कहा था ।
छोडो ना उद्धव ! दुःखी होना क्या है मथुरा वाले क्या जानें ?
सजन नयन हो गए थे कृष्ण के ये कहते हुए ।
चलो ! कालिन्दी के किनारे बैठेगें ........नही नही स्नान मात्र करके आयेंगें नही......बैठेगें........मौन होकर बैठेगें.......उद्धव ! चलो ना ! कृष्ण नें उद्धव को कहा.......और दोनों ही यमुना की ओर चल पड़े थे ।
आर्यपुत्र ! कृष्ण .............देवकी नें वसुदेव को दिखाया ।
रोहिणी और वसुदेव नें भी देखा........मेरे साथ नही आया मेरा पुत्र .....उद्धव के साथ आगया........मैने उसे बुलवाया भी था ......मेरी कितनी इच्छा थी कि हम सब परिवार एक साथ स्नान करते ......उज्जैन से आनें की प्रतीक्षा ही करती रही थी मैं ........ताकि अपनें पुत्र के साथ समय बिताऊँ .........इतना कहते हुए रो गयीं देवकी ।
देखो ! देवकी ! इस तरह से दुःखी मत हो ............ग्यारह वर्ष हो गए ये हमसे दूर रहा है ............इसलिये शायद हमसे सहज नही हो पाता .........समय लगेगा देवकी ! देवकी को समझाते रहे वसुदेव जी ।
************************
हाँ ..........ये स्थान ठीक है ............एकान्त है .........यमुना यहाँ शान्त भी हैं ......ओह ! कदम्ब का वृक्ष भी है यहाँ तो ............
मुस्कुराते हुये देख रहे थे कृष्ण यमुना की लहरों को ..............
पर ................उफ़ ! याद आगयी ..................
क्या अभी भी इसी कालिन्दी के किनारे बैठती होगी मेरी श्रीराधा !
क्या गोपियाँ अभी भी जल भरनें आती होंगीं !
और वहाँ बैठकर मेरी चर्चा करती होंगीं ...........
नेत्रों से अश्रु बूँद गिरनें लगे कृष्ण के ।
*********************************************
वृन्दावन ........यमुना के किनारे आज यहाँ भी भीड़ है ।
श्रीराधारानी मध्य में हैं.......सखियाँ उनको घेरकर बैठी हुयी हैं ।
यही यमुना मथुरा जाती है ना ? एक सखी बोल गयी ।
क्या हमारी तरह कृष्ण भी यमुना के किनारे बैठते होंगें मथुरा में ?
दूसरी सखी भी बोल पड़ी ।
ओह ! शान्त बैठी श्रीराधा रानी को मानों किसी नें झकझोर दिया हो ..............
उठकर गयीं एकाएक .....चार कदम चलते हुए यमुना के जल में आकर फिर खड़ी हो गयीं ।
देखती रहीं उस नीले जल को.....टप् टप् करके आँसू गिरनें लगे ।
हे वज्रनाभ ! अपनें प्रियतम कृष्ण को सन्देश देती हैं श्रीराधारानी .....
माध्यम चुना है आज कालिन्दी को ।
**************************
हे कालिन्दी ! मेरा एक सन्देश कहोगी मेरे प्रियतम से !
कहना ! तेरी राधा रोज मेरे तट में आती है ......बैठी रहती है.......मेरे नीले रँग को देखकर तुझे याद करती है .........तुमनें जिस गागर को छूआ था ......उसी गागर को लेकर आती है ।.......पर कालिन्दी ! मैं तुम्हे कितना "नयन जल" दे जाती हूँ - ये मत कहना ।
और हाँ यमुनें ! कहना उनसे - तेरी राधा साँझ सवेरे नन्दगाँव भी जाती है......बाबा और मैया से भी मिल आती है.......गैया मानती नही है अपना दूध तुझ से दुहाना चाहती है ......तब मैं ही जाकर तेरे घर की गैया दुह आती हूँ......दुह तो आती हूँ......पर दूध कितना धरती पर गिरता है कितना पात्र पर गिरता है ........हे कालिन्दी ! ये मत कहना ।
और हाँ कालिन्दी ! कहना उनसे -मैं ही दीपकर जला आती हूँ तेरे घर में....मैया यशोदा को कुछ भान नही है...साँझ कब हुयी सुबह कब हुयी ।
जब रोते हुए मुझ से पूछती हैं .......लाली ! कब आएगा मेरा गोपाल ?
तब मैं कृत्रिम हँसी हँसते हुए ............"बस दो चार दिन में"
झूठ बोल आती हूँ ........क्या करूँ तू ही बता !
पर कब तक झूठ बोलती रहूँ मैं ?
आस भी अब निराशा में बदल रही है .............कहना उनसे ।
पर कालिन्दी ! सब कहना, पर हृदय की पीर न कहना ।
तभी श्रीराधारानी को आवेश आगया........किनारे में अनन्त कमल खिले हुए थे ......उन कमलों को तोड़नें लगीं....तोड़कर एक माला बनाई .......एक सखी से दोना मंगवाया......उस दोना में माला को रखकर अपनें प्रियतम के लिए बहा दिया ।
***************************************************
उद्धव ! कालिन्दी के साथ मेरा बड़ा गहरा सम्बन्ध है ............
मैं इसमें खूब खेला कूदा हूँ ..............पता है उद्धव ! मेरी राधा !
"राधा" कहकर कुछ बोलनें ही जा रहे थे कृष्ण .......कि उन्हें सब सन्देश श्रीराधा का स्पष्ट सुनाई देनें लगा.......आँसुओं की धार लग गयी कृष्ण के ........रोम रोम से राधा राधा राधा शब्द गूंजनें लगा ।
देह भान भूल गए कृष्ण ........................
उतरनें लगे यमुना में...........और उतरते उतरते जब मध्य में जाकर डुबकी लगाई कृष्ण नें ...........
उधर से वो दोना बहता हुआ आया जिसे श्रीराधा नें बहाया था ।
डुबकी लगाकर जैसे ही बाहर सिर निकाला......श्रीराधा का भेजा दोना सिर में आगया था........निकले जब जल से .....तब वह दोना उलटा होगया ......और कमल की माला सीधे कृष्ण के कण्ठ में ।
बस इसके बाद तो कृष्ण वहीं यमुना जल में ही गिर गए थे ........उद्धव ही गए और कृष्ण को उठाकर लाये ......मूर्छित हो गए थे कृष्ण ।
पर उस मूर्च्छावस्था में भी उद्धव नें देखा .......रोम रोम से "राधा राधा राधा" यही नाम निकल रहा था उनके ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
0 Comments