"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 62

62 आज  के  विचार

( वज्रनाभ के प्रश्न , महर्षि शाण्डिल्य के उत्तर )

!!  "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 62 !! 

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किन्तु  वियोगिनी श्रीराधारानी का दुःख    कम होनें के स्थान पर और बढ़ता ही  जा रहा था  ।

कितनी बार तो  व्याकुलता यहाँ तक बढ़ गयी  कि सखियों को लगनें लगा था कि   अब तो श्रीराधा के प्राण बचेंगे ही नही  ।

पर उस समय    सखियाँ एक ही काम करतीं ......गुंजा की माला गले में डाल देतीं......बस  किशोरी जी के प्राण तो मानों इन्हीं गुंजा माला में ही उलझ कर रह जाते......हे वज्रनाभ !  " मैं आऊँगा"  यह वचन श्रीराधा भूल नही पातीं हैं.....मेरे प्रियतम  नें कहा  है   "मैं आऊँगा"......बस इन्हीं में प्राण उलझ कर रह जाते    ।

पर  श्रीकृष्ण  आये क्यों नही  ?       वज्रनाभ नें  आज प्रश्न कर दिया  ।

कुछ आक्रामक से दीखे  वज्रनाभ........हे गुरुदेव !  मुझे क्षमा करना .........ऐसे  दिव्य चरित्र को सुनते हुए ......प्रश्न  करनें नहीं  चाहियें ....
प्रश्न उठनें भी नही चाहिये ..........पर  गुरुदेव !    कुछ दिनों से   ये प्रश्न मुझे  परेशान किये हुए हैं ......मैं क्या करूँ  ?    

मुझे अब लगनें लगा है  कि .........ये तो अन्याय किया कृष्ण नें  श्रीराधा रानी के साथ   !    क्यों  ? 

उन्हें  क्यों जाना था मथुरा  ?      मेरा पहला प्रश्न  ......वज्रनाभ को आज प्रश्न करना है   ।

हे गुरुदेव !  मेरा दूसरा प्रश्न .......चलो ! कार्य था इसलिये गए ........जैसे कंस को मारना था इसलिये गए ........पर जाकर आसकते थे ना ? 

वापस वृन्दावन क्यों नही आये  ?   और  मथुरा और वृन्दावन की दूरी कुछ ज्यादा भी तो नही है  !

या  गुरुदेव !  आप कहेंगें  कि   इतना समय कहाँ मिलता था कृष्ण को  कि  वो वृन्दावन आजाते !

ठीक !   मैं मानता हूँ ......वृन्दावन नही आसकते थे  समयाभाव के कारण  तो  इन सबको मथुरा में ही बुलवा लेते .........या मथुरा में हीं इन वृन्दावन वासियों को  बसा लेते ........एक अलग से ही नगर बसा देते मथुरा में .........क्यों नही किया ये सब  ?      

वज्रनाभ  को  लग रहा है  कि   अन्याय हुआ  श्रीराधा के साथ ......वज्रनाभ को लगनें लगा है कि ............इन लोगों के  आँसुओं के कारण ही  हमारा वंश नष्ट हुआ     ।

शान्त वज्रनाभ !   शान्त !    महर्षि सहज हैं.........वो समझा रहे हैं .........ये चरित्र तुम्हे उद्विग्न बनानें के लिये मैं नही सुना रहा ........ये चरित्र तुम्हे  मैं  आक्रामक बनानें के लिये नही सुना रहा.......हे वज्रनाभ !  इस चरित्र को सुनानें का मेरा एक ही उद्देश्य है ..........कि हम उस दिव्य प्रेम को समझ सकें.........प्रेम  क्या है  !    मैं तो एक झाँकी दिखा रहा हूँ  तुम्हे  वज्रनाभ !       राग द्वेष से भरे   इस जगत में    प्रेम किसे कहते हैं ........देखो !  दर्शन करो ........इन दोनों प्रियाप्रियतम का ......दोनों ही प्रेम के खिलौना हैं ......और  प्रेम से ही खेल रहे हैं ......आहा !    

मिलन में  प्रियतम  एक ही जगह दीखता है .......और विरह में  वह सर्वत्र दिखाई देनें लग जाता है ...........हे वज्रनाभ !  इस चरित्र को तुम  क्या समझ रहे हो ........श्रीराधा  दुःखी तो हैं .........पर उनका दुःख कोई संसारियों की तरह थोड़े ही है........प्रेमोन्माद में   आँसू गिरते हैं ....दर्द भी होता है ............पर ........उसका अपना आनन्द है ........ये बात प्रेमी ही समझ सकता है  .......एक कसक,  एक दर्द ,    पर मीठा लगता है । 

महर्षि समझाते हैं .....मथुरा क्यों गए  कृष्ण  ?

   यही प्रश्न है ना तुम्हारा  !

मथुरा  तो जाना ही था उन्हें ........कंस को मारनें के लिये ........

अगर नही जाते ......तो  आज न कल वो  वृन्दावन को ही  खतम कर देता .......इसलिये भी गए मथुरा कृष्ण  ......महर्षि नें कहा  ।

तुमनें पूछा - मथुरा जाकर  वृन्दावन वापस क्यों नही आये  ? 

तो हे वज्रनाभ !      कंस वध के पश्चात्   मथुरा में राजनीति की दृष्टि से  अस्थिरता आगयी थी..........जरासन्ध  कंस का ससुर था .........जमाई मर गया  ये जब सुना जरासन्ध नें ...........तब  उसनें तैयारी कर ली  मथुरा में आक्रमण करनें की ........ऐसे समय में   वृन्दावन वापस आना कृष्ण का ,   क्या उचित होता  ?      

तुमनें पूछा  वज्रनाभ !   कि -      बीच में आते जाते रहते वृन्दावन ....क्यों की मथुरा से  दूरी तो है ही नही     ।

देखो ! वज्रनाभ !   अगर कृष्ण वृन्दावन आते जाते रहते .........मिलते जुलते रहते  श्रीराधा से ........गोपी गोप से ....मैया बाबा से .........तो  क्या  इसकी सम्भावना नही थी  कि ......शत्रु पक्ष  जरासन्ध इत्यादि  ये समझ जाते  कि    "कृष्ण की कमजोरी है वृन्दावन" .........तब क्या ये स्थिति नही आजाती ........कि जरासन्ध   इत्यादि  वृन्दावन को ही अपना निशाना बनाना शुरू कर देते ......और ऐसी स्थिति अगर आती  तो क्या ये बेचारे बृजवासी  जरासन्ध का सामना कर पाते ?  और उस समय कृष्ण पर क्या गुजरती  ?  

  तुमनें  एक प्रश्न और रखा मेरे सामनें ........ .....कृष्ण अगर मथुरा में  ही बुला लेते इन बृजवासियों को  तो  ?      

बुला लेते .........पर  क्या  ये बृजवासी वहाँ जाते ?     श्रीराधारानी मथुराधीश के दर्शन करतीं  ?     क्या  उन गोपियों को  रुचिकर लगता  वो  राजसी भेष  कृष्ण का ?      

हँसे  महर्षि शाण्डिल्य .........हे  वज्रनाभ !  तुमनें अंतिम प्रश्न किया  कि ....मथुरा में ही बसा लेते   इन वृन्दावन वासियों को भी  ।

हे  वज्रनाभ !  तुम प्रेम के सिद्धान्त को अभी तक समझ नही पाये ।

ऐसे कैसे रह जातीं  श्रीराधा रानी  मथुरा में  ?  

ऐसे कैसे रह जातीं  मैया यशोदा ,नन्द बाबा , ग्वाल बाल  गोपियाँ ?

कृष्ण  रसिक शेखर हैं ......"रस सिद्धान्त" को इनसे ज्यादा और कौन समझता है  वज्रनाभ !    

अगर कृष्ण  मथुरा में  बसा भी लेते  इन सबको ..........तब तो  एक बड़ा संकट खड़ा  हो जाता  ........"प्रेम का संकट" !

जिन गोपियों नें   अपनें सामनें  जिसे नचाया .......जिसे  बाँधा ......जिसे  अधिकार से चूमा .........आलिंगन किया ..........उसकी दया पर पलेंगीं  ये गोपियाँ  ?      श्रीराधा ?     ऐसा कृष्ण कर ही नही सकते थे ।

कोई उपाय नही था   कृष्ण के सामनें ............श्रीराधा  और  अन्य बृजवासियों  को  उनकी विरह वेदना के साथ  छोड़नें के सिवा  ।

"प्रेम"  कोई  दीन हीन नही है.......प्रेम की अपनी ठसक है ......होनी भी चाहिये .........

मैने सुना था  वज्रनाभ !   कि  एक बार   बस एक बार ......गोपियाँ मथुरा गयी थीं .......श्रीराधा रानी नहीं ........अन्य गोपियाँ ..........उन गोपियों की मुखिया बनके गयी थी  चन्द्रावली  सखी ........मथुरा गयीं  ......

पर  पता है वज्रनाभ !  वो सब कृष्ण से  बिना मिले ही आगयीं .............

लोगों नें पूछा उनसे .........जब गयी थीं मथुरा  तो मिल भी लेतीं  ।

तब चन्द्रावली का उत्तर था -  नही  हम तो  "गोपाल" से मिलनें गए थे ...."मथुराधीश"  से नही .........वहाँ  हमारा "गोपाल" नही है .....वहाँ तो  राजा है  मथुराधीश है ...........फिर हमें क्या काम राजा से ।

हे वज्रनाभ !    बाकी सब लीला है.....मैने तुम्हे पहले भी कहा ही था ।

हाँ .......उद्धव जी  को भेजा वृन्दावन  कृष्ण नें..........

ये भी तब किया  जब   उनसे  रहा नही गया था .............असह्य हो गया श्रीराधा का वियोग कृष्ण को .........तब उन्होंने अपनें मित्र  उद्धव जी को भेजा था ..............उद्धव आये थे   .......महर्षि नें कहा  ।

मुझे  उस प्रसंग को भी सुनना है .........हे गुरुदेव !   आपनें  मेरी जिज्ञासा शान्त की........अब  मुझे  उद्धव  और  श्रीराधारानी  का प्रसंग सुनाइये.......अब मैं स्पष्ट समझ गया  कि .......विशुद्ध प्रेम की  परिभाषा समझानें के लिये   "श्रीराधा प्रेम" को जगत में लाये थे कृष्ण .....ताकि स्वार्थ से  , राग द्वेष , अहंकार  में रचे पचे मनुष्य समझ सकें  कि  प्रेम क्या होता है   !  

वज्रनाभ का प्रश्न सुनकर  महर्षि बड़े प्रसन्न हुए  ।

शेष चरित्र कल ..

Harisharan

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