"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 80

80 आज  के  विचार

( वो छलिया नन्द को ....)

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 80 !! 

वृन्दावन में भक्ति का राज्य है ....."प्रेम का उन्माद" यहाँ का राजा है ।

फिर कैसे बुद्धि का प्रवेश यहाँ सम्भव है  ?     फिर भी अक़्ल  जबरदस्ती आएगी   तो उसे कैद ही तो कर दिया जाएगा..........

उद्धव की बुद्धि कैद हो गयी है  मानों ......अब उद्धव को भी लगनें लगा ....कि  इस प्रेम राज्य में  दिमाग को लाना ही नही चाहिये था ......दिल  ही  सम्भाल लेता   ।

इनकी बातें तो सुनो - बिल्कुल पागलपंती की बातें ......अकारण हँसना ....फिर  अकारण दहाड़ मारकर रोनें लग जाना ..........

अब क्या जानूँ मैं   ?     उद्धव सोच रहे हैं   ।

मैं बृहस्पति का शिष्य तो हूँ .......बुद्धिमानों  में श्रेष्ठ हूँ  !     पर  "हृदय" से एकदम अपरिचित......मैं क्या जानूँ  कि   किस बात पर हँसती हैं ये ...और किस बात पर रोती हैं  ? 

पर  उद्धव जी कहते हैं -  इतना अवश्य समझता हूँ  कि......संसारियों की तरह रोना नही है इनका........इनका रोना भी    उच्च साधना प्रतीत होती है मुझे तो........इनका अन्तःकरण  कितना शुद्ध है .........पवित्र है .......उद्धव जी विचार करते हैं  - वेदान्त के  निरन्तर अभ्यास से भी मेरा मन इतना पवित्र नही हो सका है ........पर  इनका मन ?    

फिर हँसते हैं उद्धव ,    "इनका तो मन ही नही है"...........इनके मन नें तो कृष्ण का ही आकार धारण कर लिया है ।   

चलो !    अब मैं  इस भँवरा और श्रीराधा रानी के मध्य जाता हूँ .....और  इन्हें  समझाता हूँ  कि........उद्धव  इधर  ऐसा विचार कर ही रहे थे कि .......उधर  श्रीराधा रानी का उन्माद फिर भँवरे को देखकर  प्रकट हो गया था......उद्धव फिर   ध्यान से सुननें लगे  थे  ।

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मैं गीत गा रहा हूँ ....सुनो !  तुम्हारे  प्रियतम के गीत गा रहा हूँ ....

अब तो खुश हो जाओ.......मानों  श्रीराधा को  वो भँवरा बोला  ।

श्रीराधारानी  उस भँवरें को देखती हैं  -  नही,  हमें कुछ नही सुनना ।

और हाँ ...........आज से हम  उस छलिया "काले" की कोई बातें  नही सुनना चाहतीं. .....इसलिये  तू जा  !    यहाँ से जा   !

तू हँस रहा है........अरे !  निर्दयी मधुप !  तुझे तनिक भी दया नही है  ।

हम  स्त्रियां  रो रही हैं ..........बिलख रही हैं ......और तू हँस रहा है ......इतनी क्रूरता कैसे आयी तुझमे   ?     श्रीराधा  बोल रही हैं  ।

अच्छा !       अब समझीं   मैं ...........दूत किसका है  तू ?   

उसी छलिया का ना !     वह भी  निर्दयी है ......क्रूर है ........कठोर, अत्यन्त कठोर है  ।

क्या उसे  पता नही है ........कि  हम उसके लिये रो रही हैं ......बिलख रही हैं ........मधुप !     कुछ असर हुआ क्या  ?     नही हुआ ......ना ही होगा .........क्यों की कठोर हृदय है उसका ........काले लोग ऐसे ही होते हैं ......पर श्याम तो बाहर का भी  काला ,  भीतर का भी काला ......

सुन !  सुन !        फिर  एकाएक बोल उठीं   श्रीराधा  -

अब बन्द कर   उस काले की  चर्चा....कोई नहि करेगा  उसकी चर्चा....

न उसका कोई नाम लेगा.......न  उसको कोई याद करेगा......

बस बहुत हो गया.......श्रीराधा रानी का उन्माद  फिर बढ़ गया था ।

सब शान्त हो गए .....भ्रमर भी शान्त हो गया........सुबकती रहीं  कुछ देर श्रीराधा रानी.................

फिर  भ्रमर को  देखनें लगीं .......कि  वो कहीं चला तो नही गया  !

पर भ्रमर भी पक्का था........वो  वहीं था,     फिर आगया ।

अरी सखियों  !     सुनो !   उस काले की करतूत  !

.उठकर खड़ी हो गयीं सखियों के मध्य में,   श्रीराधारानी   ।

दूसरे को कष्ट देनें में,  मारनें में ,  तड़फानें में ....उसे मजा आता है  ।

सखियों !  तुम्हे नही पता  ?     तो सुनो  -    

राजा बलि के पास  यही  छलिया गया था वामन बनकर......जब दान माँगने  गया .....तब बौना बना .....और जब दान लेनें की बारी आयी  तो विराट बन गया .......और पता है ......बाँध दिया  बेचारे बलि को ।

श्रीराधारानी  फिर आगे कहती हैं -   बाली ......वो किष्किन्धा का राजा बाली .....उसे मार दिया.......कुछ नही बिगाड़ा था  इसका   उस बाली नें ...........फिर भी मार दिया .........हँसी श्रीराधा रानी ........इसे मजा आता है ......किसी को भी अकारण मारनें में .......हट्ट  ! 

उद्धव   स्तब्ध हैं   ये सब सुनकर ..........मैं इनको गाँव की गंवारन समझता था .........पर  ये तो  सब जानती हैं ......इन्हें  तो ये भी पता है कि ...कृष्ण ही वामन हैं ........और कृष्ण ही  राम भी बने थे   !

उद्धव देखते हैं  श्रीराधा रानी को .......वो और उन्मादिनी हो उठी थीं -

"और  उस  बेचारी स्त्री को.......सूर्पनखा को.......क्या किया इसनें  !

सखियों !   कुरूप बना दिया.......नाक कान काट दिए  उसके  ।

क्या अपराध किया था  उस बेचारी नें  ?   बोल  भ्रमर !     

क्या प्यार का इज़हार करना   पाप है ?  ......अपराध है  ? 

बेचारी   सुन्दरता देखकर  .गयी थी इसके पास ...........पर  ये तो शुरू से ही स्त्री  विरोधी रहा है ना........अरे !  नही करना था विवाह ...तो नही करता ..........उसे कह देता  जाओ !  मुझे नही करनी तुमसे शादी .....पर नही .....स्वयं नें तो  उस से विवाह किया ही नही ...........उस बेचारी के नाक कान काट कर .....किसी और से भी विवाह नही करनें दूँगा  ये सन्देश और दे दिया ........बताओ !  इससे बड़ा क्रूर और कोई होगा  ? 

श्रीराधिका  बोले जा रही हैं .........इसलिये भँवरे !   तू जा !     उस काले की चर्चा यहाँ पर मत कर ..........

आपके बाल भी तो काले हैं ......मानों  भ्रमर बोल रहा है .........

हाँ  तो  इन केशों को भी कटवा दूंगी........श्रीराधा बोलीं  ।

आपके आँखों की पुतरी भी तो काली है.......भ्रमर ही बोला  ।

आँखों को भी निकलवा दूंगी ...........पर  मधुप !  उस काले से  अब कोई सम्बन्ध नही रखना .........न उसकी चर्चा सुननी है ........न उसकी बातें करनी हैं ....न उसका नाम लेना है........इतना कहकर   श्रीराधा रानी बैठ गयीं   और मौन  हो गयीं   ।

उद्धव  देख रहे हैं -  कुछ देर तक शान्ति बनी रही ...........पर -

क्या  स्वामिनी  !     कृष्ण की  चर्चा किये बगैर तुम रह सकोगी  ?

ललिता सखी नें  ये प्रश्न किया था  ।

फिर  अश्रु धार बह चले  श्रीराधिका के -  यही तो हमारा दुर्भाग्य है ....कि   उस काले की चर्चा, कथा   नें ही हमारे जीवन को बर्बाद किया है .....हम सब जानती हैं ........फिर भी उसकी  चर्चा किये बगैर हम रह  नही सकतीं ......उसकी  कथा सुनें बगैर हम जी नही  सकतीं  ।

हे वज्रनाभ !   ये  प्रेम की उच्चतम स्थिति हैं.........ये  प्रेम राज्य है ....यहाँ के  नियम कानून ही अलग हैं.....महर्षि शाण्डिल्य बोले थे -

इस प्रेम राज्य में  रोना,    हँसना है ....और हँसना,  रोना है ........

गाली देना ,  प्रशंसा  करना है....और  प्रशंसा करना,  गाली देना है .....

हे वज्रनाभ !    ना ना ,  का अर्थ है   इस प्रेम राज्य में ......हाँ हाँ ...और हाँ हाँ ....का अर्थ है  ........निषेध   यानि ना ना  है  !   

ये  प्रेम  राज्य के  अटपटे  कानून हैं.......जरा सम्भल कर चलना ।

शेष चरित्र कल -

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