"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 75

75 आज  के  विचार

 ( श्रीराधा और उद्धव का सम्वाद )

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 75 !! 


"मैं उद्धव !   मैं दूत हूँ श्रीकृष्ण चन्द्र का"

उद्धव,  लता वृक्ष  से बाहर आगये थे ......और  श्रीराधारानी को प्रणाम कर  अपना परिचय भी दे दिया था  ।

दूत  ?         अपनी सखियों की ओर देखनें लगी थीं  श्रीराधारानी ।

हाँ ......मुझे भेजा है श्रीकृष्ण नें ..और कहा है कि सन्देश देकर आना ।

श्रीराधा रानी हँसी  उद्धव को देखकर .........उसकी बातें सुनकर  ।

हे कृष्ण दूत !       पर  सन्देश  तो उसे दिया जाता है ना ......जो  दूर गया हो ...........पर  हमारे प्रियतम कहाँ गए हैं  हमसे दूर  ?    

श्रीराधा रानी  इतना ही बोलीं,   और  चारों ओर देखनें लगीं ...........

वो देखो !   वे रहे  मेरे प्रियतम............देखा  उद्धव ?     

श्रीराधा रानी  जिस ओर  दिखा रही थीं .....उद्धव उधर ही तो देख रहे थे .....पर  उन्हें कुछ दिखाई नही दिया  ।

नही ......मुझे उस तरफ कुछ  दिखाई नही दे रहा ।

अरे !  उद्धव ......उधर देखो !      वे खड़े  मेरे श्याम सुन्दर .........देखो ! मुझे बुला रहे हैं........दीखे  ?      श्रीराधा नें फिर पूछा ।

"नही".....उद्धव कोशिश कर रहे हैं......पर  उन्हें कुछ नही दिखाई दे रहा ।

ओह !     चले गए वे तो ......उद्धव !  चले गए...........

मुझ से अपराध हो गया ............उद्धव !  मुझ से आज बहुत बड़ा अपराध हो गया ..............।

कल रात्रि में ही मेरे प्रियतम कह रहे थे ..........राधा !    मैं तुमसे जो  बातें करता हूँ .......वो बातें  किसी को मत बताया करो ......क्यों की हम दोनों की बातें हैं ना   !

उद्धव !     मैने तुम्हे दिखा दिया ना.......वो तो  चुपके से आते और मेरे नयनों को बन्द कर देते.......ये उनका नित्य का काम है......वे आही तो रहे थे ........पर मैं ही  कितनी मूर्खा हूँ .......तुमको दिखा दिया ......वे तुम्हे  देखकर  शरमा गए  और अंतर्ध्यान हो गए ।

ओह !   अब कहाँ मिलेंगें  वे .......क्रन्दन शुरू हो गया था  श्रीराधा का ।

पर  तुम  क्या कह रहे थे ?  उनका सन्देश लाये हो ?

 मथुरा से आये हो ?

पर ये झूठ है..........ये झूठ है कि -  वे हमें छोड़कर मथुरा गए  ।

धड़ाम से धरती पर गिर पडीं  ये कहते हुए  श्रीजी  ..........कुछ देर में उन्हें होश आया था  ।

उद्धव !    जिनका मन मेरे बिना एक पल भी नही लगता .......वे हमें छोड़कर कैसे जा सकते हैं  ?    वो मुझ से नित्य ही कहते थे .......राधे !  तुम कितनी सुन्दर हो ....फिर  अपनी उँगलियाँ चटकाते थे ......नजर न लगे ।

मेरे मुख से   उनकी दृष्टि हटती ही नही थी  ।

वे नही जा सकते मुझे छोड़कर !

मन ही मन बुदबुदाने लगीं थीं  ।

क्या सच में  वे चले गए हैं   ?     फिर भाव बदला   श्रीराधा का  ।

ओह !    तभी तो   ये सब गोपियाँ रो रही हैं.......ये वृक्ष लताएँ ,   ये यमुना , ये कुञ्ज ......ये मोर , ये पक्षी......सब की दशा देखो तो लगता है ........कृष्ण चले ही गए मथुरा  ।

उद्धव !   तुम मथुरा से आये हो ?     तो बताओ ना !   मेरे श्याम सुन्दर कैसे हैं  ?   क्या उन्हें मेरी याद आती है  ?    किसी भी  प्रसंग में   उद्धव !  क्या वे   हम वृन्दावन की गोपिकाओं का  थोडा भी उल्लेख करते हैं ?

नाचती होंगीं ना  !   मथुरा की नारियाँ कृष्ण के आगे......क्षीण कटि दिखाती हुयी नाचती होंगी.....उस समय भी  हमारी याद आती है  उस कृष्ण को .।    उद्धव !      नाचती तो हम भी थीं उसके आगे .....पर हम कहाँ ?   और मथुरा की  वो  नागरी कहाँ  ?  

नागरियों को तो बोलनें , चलनें, गानें, नाचनें का  शऊर तो होगा ही ना ! 

पर हम तो .......बस अपनें  कन्हाई को रिझानेँ के लिये मटक लेती थीं ।

उद्धव !       मथुरा की नारियाँ  जब नाचती होंगीं ........शहर की नारियाँ हैं ......स्वाभाविक है  रिझाना हम से ज्यादा उन्हें आता होगा ...!

हमें मतलब नही है.......पर  हम तो इतना ही पूछना चाहती हैं  कि -

मथुरा की नारियों  का नृत्य देखकर  उन्हें क्या हमारी याद नही आती ?

हँसते नही है  हमारे श्याम सुन्दर ......ये कहते हुए  -  कि   तुम लोग  कितना सुन्दर नाचती हो ...........और एक वो थीं .....जिन्हें  न मटकना आता था ......न नयन की भंगिमा ............गँवार गोपीयाँ  !     

उद्धव !     ऐसा कहते होंगें ना    हमारे प्रिय कन्हाई  ।

हमें बुरा नही लगेगा .........कोई बात नही .........उद्धव !  चाहे  अच्छाई से याद करें  चाहे बुराई से ......याद किया हमें ,   हमें इतना ही काफी है ।

क्या उद्धव !     मथुरा में जाकर वो हमें क्यों भूल गए  ?

   श्रीराधा रानी नें इतना अवश्य पूछा  था ।

मन को पक्का किया ............फिर  उद्धव जी   बतानें लगे  -

"आप लोग आँखें बन्द करो"

.....उद्धव को लगा  योग के माध्यम से ही इनका विरह शान्त तो  करूँ  !     

खुली आँखों से ही  उसके दर्शन होते हैं .....अब  बन्दकर लेने पर तो   उसकी याद और आएगी......पूरा वृन्दावन डूब जाएगा  अश्रु धार में  । 

श्रीराधा रानी नें उत्तर दिया था ।

हृदय को शान्त करो - उद्धव नें फिर कहा  ।

आग लगी है हृदय में....शान्त नही होगा ।  श्रीराधा  सुबुक रही थीं ।

प्रणायाम करो ......साँस के सिथिल होंने पर   शान्ति का अनुभव होगा .......उद्धव नें  योग सिखाना शुरू किया  ।

हम नित्य प्रणायाम ही करती रहती हैं.......हे उद्धव !  तुम तो  सुबह शाम ही  प्रणायाम करते होगे .......हम तो   चौबीसों घण्टे ही प्रणायाम में लीन रहती हैं.....हमारी साँसों को देखो उद्धव !    जब विरह बढ़ता है  तब  साँस की गति तेज़ हो जाती है......और जब  प्रेम स्मृति जागती है .......तब साँस की गति  धीमी  बहुत धीमी हो जाती है ।

तो  आसन सिद्ध करो !

 .....उद्धव का योग सन्देश अभी खतम कहाँ हुआ था ।

आसन सिद्ध  करो ......उद्धव बोले  ।

    हँसी  श्रीराधारानी    उद्धव की बातें सुनकर  ।

बैठो !   आओ उद्धव !     चलो  साथ मैं बैठो हमारे ..........किसका आसन सिद्ध है  बता देती हैं हम   ।

हम अविचल बैठी रहेंगीं .....गोपियों नें कहा  

कितनी घड़ी तक  ?   उद्धव नें पूछा ।

तुम बताओ उद्धव !   हम तो उसकी प्रतीक्षा में  जीवन भर   एक आसन से बैठ सकती हैं.........बताओ  तुम  !

उद्धव  को आश्चर्य हुआ..........महीनों तक !   एक आसन से  ?

गोपियों !   तुम  नही समझोगी   -  ये ज्ञान की बातें हैं  ..........

जाओ उद्धव !   तुम भी नही समझोगे   -  ये प्रेम की बातें  हैं  ।

हे वज्रनाभ !    उद्धव   ज्ञान सिखानें आये थे .....इन लोगों के विरह ताप को  कुछ तो कम कर सकूँ , ऐसा सोचकर आये थे .......पर उद्धव से कुछ नही हो रहा ...वो कैसे ज्ञान दें इन गोपियों को ?    कैसे समझायें ?  

उद्धव  माथा पकड़ कर  बैठ गए थे .................

शेष चरित्र कल -

Harisharan

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