52 आज के विचार
( अब सौ वर्ष का दारुण वियोग..)
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 52 !!
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मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ .....थोडा शीघ्र करो ना !
क्या हो गया आज तुम्हे.....क्यों इस तरह मुँह फुलाये बैठी हो !
न तुमनें आज इस कानन को सजाया है .......न सुमन सेज ?
न इस मार्ग को ......न इस कुञ्ज को .........क्यों ?
हे वृन्दा ! तुमनें मेरा हर समय साथ दिया ...........पर आज क्या हो गया तुम्हे ? देखो ! मेरी श्रीराधा बरसानें से निकल चुकी हैं ...अब वह यहाँ पहुंचनें ही वाली है ...........तुम इस वृन्दावन की अधिदेवी हो .........मेरी सखी हो ..........फिर क्यों आज मेरा साथ छोड़ रही हो ?
अक्रूर भी निकल चुके हैं मथुरा से !
वृन्दा देवी नें श्याम सुन्दर को देखते हुए कहा ।
क्या ! चौंक गए कृष्ण ................
क्यों ? अनजान से बनते हो सखे ? सब तुम स्वयं ही करते हो .....फिर हमारे सामनें ऐसे भोले क्यों बनते हो ? क्यों ?
क्यों सजाऊँ इस वृन्दावन को मैं ? बोलो ?
अक्रूर आरहा है ......तुम्हे ले जाएगा ...........उसके बाद इस वृन्दावन का क्या होगा ? वृन्दा देवी रोनें लगीं ये कहते हुए ।
भोली भानु लली श्रीकिशोरी को कुछ नही पता .........तुमनें बताया भी नही होगा ............कैसे रहेंगीं वो ! ओह ! तुम्हारे बिना एक पल भी जिनको चैन नही आता ..............वैसे श्रीराधा ही क्यों ? इस वृन्दावन के तो ग्वाले, गोपी, ये वृक्ष, पक्षी यमुना ........सबकी दशा बिगड़नें वाली है अब ...............मुझे कह रहे हो श्याम ! कि अन्य दिनों की तरह आज भी मैं कुञ्जों का निर्माण करूँ ..........सुमन सेज सजा दूँ तुम युगलवर के लिये ...........पर कल तो तुम चले जाओगे ना !
फिर ये सब क्यों करूँ मैं ? मुझे क्षमा करना नन्दनन्दन ! कुसुम विकास का समय अब समाप्त हो चला है....अब तो इस वृन्दावन के दुर्दिन ही प्रारम्भ हो गए हैं......ये कहते हुए फिर सुबुकनें लगी थी वृन्दा देवी ।
वृन्दा ! मेरी सखी ! तुझे तो सब पता है ना ! मैं अवतार लेकर आया हूँ .......बाकी का कार्य जो भी है मुझे करना ही पड़ेगा ........इसलिये मुझे जाना है ........दुष्टों के विनाश के लिए मुझे जाना है .........धर्म की स्थापना करनें के लिये मुझे जाना होगा ......मेरा भी मन कहाँ लगेगा इन कुञ्जों को छोड़कर ।............सजन नेत्र हो गए थे कृष्ण के ।
आँसू पोंछते हुए हँसी वृन्दा ............दुष्टों के संहार की बड़ी चिन्ता है तुम्हे ........पर यहाँ क्या क्या होगा ........यहाँ सब का संहार करदेगा ये तुम्हारा विरह देव..............कैसे बचाओगे मुझे .......मेरे इस कानन को ............कैसे बचाओगे अपनी प्रिया को ....?
धर्म की स्थापना ? क्या प्रेम से बड़ा कोई धर्म है ?
हे श्याम सुन्दर ! प्रेम को ही समाप्त करके क्या पाओगे धर्म की स्थापना करके .......कोमल हृदय को विरह के खंजर से क्यों घायल करना चाहते हो ......मत करो ऐसा, मत करो ।
रो गयी वृन्दा देवी .......कृष्ण किंकर्तव्य विमूढ़ से हो गए थे ।
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गोविन्द ! सखे ! प्रिय ! कहाँ हो तुम ?
आगयीं हैं श्रीराधा रानी वृन्दावन में.......और वो खोज रही हैं.....पुकार रही हैं अपनें प्रियतम को......पर श्याम सुन्दर आज वृन्दा सखी से ही बाते करनें में लीन हैं ।
लम्बी साँस लेकर वृन्दा बोलती रही........"तुम्हारे जानें के बाद ये वृन्दावन ऐसा हरा रहेगा ? इस यमुना में जल रहेगा श्याम ? इन बृजवासियों में प्राण रहेंगें ? हे श्याम ! तुम्हारे लिये और भी बहुत कुछ है कर्तव्य , धर्म, नीति बहुत कुछ ......पर इन वृन्दावन वासियों के पास कुछ नही तुम्हारे सिवा .........तुम ही इनके धर्म हो , तुम्हीं कर्तव्य, तुम्ही नीति , रीती ........सब तुम्ही हो ............
हिलकियों से रो पड़ी वृन्दा देवी .............मैं देख रही हूँ अक्रूर निकल रहा है मथुरा से .....कंस नें भेजा है उसे ........वो तुम्हे लेनें ही आरहा है ..........तुम तो चले जाओगे ...........ओह ! सौ वर्ष के लिए ?
सौ वर्ष का दारुण वियोग......
वृन्दा के आँसु अविरल बहते जा रहे थे ।
श्याम सुन्दर ! प्यारे ! कहाँ हो ?
इधर श्रीराधारानी पुकारती हुयी घूम रही हैं वृन्दावन में ।
"जाओ ! अपनी अल्हादिनी के पास" अपनें आँसू पोंछे वृन्दा नें .....अब तो इन्हीं आँसुओं के सहारे ही जीना है........वृन्दा क्या कहती !
जाओ ! तुम्हारी प्रिया आगयीं हैं .......जाओ श्याम !
क्या कहोगे अपनी आल्हादिनी से, कि अक्रूर तुम्हे लेने चल दिया है मथुरा से ? और तुम्हे जाना है मथुरा ...........कह सकोगे ?
नही ! .........आवाज भर्रा गयी थी श्याम सुन्दर की ।
नही कह सकूँगा .............इतनी हिम्मत नही है मुझ में ........वो मेरी कोमलांगी "श्रीजी" सह नही पायेगी ।
इतना ही बोल सके थे श्याम सुन्दर ।
जाओ अब ! सजा देती हूँ तुम्हारे विहार के लिये सुमन सेज .......जाओ अपनी श्रीराधा के पास ............सजा देती हूँ कुञ्जों को ........ये लीला अब वृन्दावन में अंतिम है ?
रो गए कृष्ण ......ऐसा मत बोलो ..................
"जाओ ! मैं अब जा रही हूँ बरसाना .....और अब कभी नही आऊँगी ....तुम बजाते रहो बाँसुरी .........मैं गयी ........श्रीराधा रानी जानें लगी थीं बरसाना वापस ........श्याम सुन्दर को इशारा किया वृन्दा नें ..........कृष्ण श्रीराधा के सामनें प्रकट हो गए थे ।
मैं जा रही हूँ....अब तुम ही रहो इस वन में,
गुस्से में श्रीराधा रानी चल दीं ।
राधे ! क्या तुम सचमुच नाराज हो ? पीछे दौड़ पड़े थे श्याम सुन्दर ।
मुझे सजा दो ........मुझे अपनें नखों से आघात करो ......अपनी बाहों में मुझे कैद करो .......अपनें दाँतो से मुझे काटो........पर प्रिये ! . मान जाओ .....रूठो मत.........हाथ जोड़कर बैठ गए थे कृष्ण ।
पर - श्याम सुन्दर रो गए ............इस तरह से रोते हुए कभी देखा नही था श्रीराधा रानी नें भी ।
हिलकियों से रो रहे हैं......."हे राधे ! तुम ही मेरा श्रृंगार हो .......तुम ही मेरे जीवन की आधार हो .....तुम्हारा हृदय ही मेरा हृदय है ......नील कमल की तरह तुम्हारी ये आँखें क्यों आज रक्त हो रही हैं .......मैं अपराधी हूँ राधे ! मैं अपराधी हूँ ......मैं जन्मों जन्मों का अपराधी हूँ तुम्हारा ......मुझे क्षमा कर सको तो......इससे आगे कुछ बोल न सके कृष्ण ।
श्रीराधा रानी चकित भाव से अपनें प्यारे को देख रही थीं .........कि क्या हुआ इन्हें ! मान करना ....रूठना ये तो मेरा सहज था ........पर इस तरह कभी रोये नही श्याम सुन्दर ..........क्या हुआ ?
कुछ बोलो राधे ! कुछ तो बोलो ! मैं आज तुम्हारे चरणों में महावर लगाता हूँ ...........ना ! मना मत करना .............
श्रीराधा के चरण अपनी गोद में रख लिये थे श्याम सुन्दर नें ।
बड़े प्रेम से श्याम सुन्दर महावर लगाते रहे .........नेत्रों से अश्रु बहाते रहे .........अश्रु तो वृन्दा देवी भी बहा रही थीं इस दृश्य को देखकर ......क्यों की अब ऐसे प्रेमपूर्ण दृश्य कहाँ दिखाई देंगें ...........
दाहिनें चरण में महावर लगा दिया था श्याम सुन्दर नें ..........बाएं चरण में जब लगानें लगे .......ना ! ना ! राधे ! दाहिने चरण को धरती पर मत रखो ............ये महावर अभी गीला है ...........मेरे हृदय में रख दो दाहिनें चरण को ........सूख जाएगा ................
आज नयन भी नही मिला पा रहे हैं श्रीराधा से श्याम सुन्दर .......बस नयन बरस रहे हैं .............मैने क्षमा कर दिया प्यारे! कृष्ण के कपोल को छूते हुये श्रीराधा रानी नें कहा ।
पर राधे ! मैं अपनें आप को कभी क्षमा नही कर पाउँगा ।
श्याम ! कान्हा ! कन्हाई !
वृन्दा देवी नें देखा...........ग्वाल बाल सब आगये हैं ......और कृष्ण को पुकारते हुए आरहे हैं ..................
आलिंगन में भर लिया था श्याम सुन्दर नें अपनी प्यारी को ......
कन्हैया ! कहाँ है रे तू ? फिर पुकारा ग्वालों नें ।
एक रथ चला आरहा है.......उस रथ में बैठे हैं अक्रूर ।
ये रथ ! कृष्ण का ध्यान गया रथ की ओर ..........
ग्वाल बाल सब रथ के साथ थे ....................
क्या हुआ ? श्रीराधा नें पूछा .........
नही ............मुस्कुरा रहे थे पर नेत्र बरस रहे थे कृष्ण के ।
ये कौन है ....जो रथ में आरहा है .........कौन है ये ?
श्रीराधा नें कृष्ण को पूछा ...............बताओ ना ?
कोई नही .................इतना कहते हुये अपनें बाहु पाश में बांध लिया था श्याम नें फिर अपनी प्रिया को ।
बता दो ना ! कि तुम कल जा रहे हो मथुरा ......और फिर कभी नही आओगे .....बता दो ...........बताना तो पड़ेगा ही ना !
वृन्दा देवी नें श्याम सुन्दर से कहा ।
नही बता पाउँगा........मुझ से नही होगा ये......जोर से बोले थे कृष्ण ।
क्या नही बता पाओगे ? श्रीराधारानी नें पूछा ।
नही .....कुछ नही ..............कृष्ण इतना ही बोले ।
कन्हाई ! कृष्ण ! कहाँ है तू ?
देख तेरे काका आये हैं मथुरा से......अक्रूर काका ।
ग्वालों नें चिल्लाते हुए कह दिया था ।
क्यों आये हैं तुम्हारे काका मथुरा से ? श्रीराधा रानी नें पूछा ।
मुझे लेनें के लिये ! इतना ही बोल सके कृष्ण ........
श्रीराधा रानी स्तब्ध हो गयीं ...........क्या ! तुम जाओगे अब मथुरा !
पूरा वृन्दावन रो उठा ....वृन्दावन की अधिदेवी वृन्दा रो पड़ी ।
पर श्रीराधा रानी ? ओह ! उनकी दशा क्या बताऊँ वज्रनाभ !
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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