51 आज के विचार
( "होरी" - मधुर रस का अद्भुत समर्पण )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 51 !!
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मधुर रस कहो, या आत्मसमर्पण कहो........अद्भुत भाव है ।
पर स्वार्थ कलुषित चित्त मानव ठीक न समझ सके - स्वाभाविक है ।
हे वज्रनाभ ! मधुररस में अपना सुख, अपनी तृप्ति, अपना सम्मान कुछ है ही नही । इसमें तो अपना उत्सर्ग है ....अपनें आपका सम्पूर्ण दान ।
श्रृंगार इसलिये कि वे देख कर प्रसन्न होते हैं ........भोजन इसलिये कि उनका प्रिय यह देह स्वस्थ रहे ........अरे ! रूठना और मनाना भी इसलिये कि उनके सुख में वृद्धि हो ......उन्हें आनन्द मिले ।
उनका सुख, उनका आनन्द, उनका आल्हाद.......अपनेंपन का इतना उत्सर्ग कि ...."अपनी" सत्ता ही समाप्त ।
उनका, उनका , उनका और वे - "मैं" कहीं खो गया है ..........और वे इतनें करीब आगये कि ......अब तो "वे ही रह गए हैं" ।
तुम जानते हो वज्रनाभ ! यह बरसाना है ......"मधुर रस" का केन्द्र......
और इस माधुर्य रस की अधिष्ठात्री देवी हैं - श्रीराधा रानी ...।
खूब रस बरसा था उस दिन.........खूब रंग बरसा था बरसानें में ।
महर्षि शाण्डिल्य आज आँखें मूंद कर बोल रहे हैं .............मानों उनके हृदय को अभी भी कोई रँग रहा हो............अनुराग के रँग से ।
होरी में क्या होता है ? बरसानें वारी श्रीराधा रानी रँग बरसाती हैं ।
किस पर ?
कृष्ण पर ............फिर प्रसादी सब पर, महर्षि नें समझाया ।
कौन सा रँग ?
प्रेम का रँग, अनुराग का रँग ..........
अच्छा वज्रनाभ ! एक बात तो बताओ ....रँग का अर्थ क्या होता है ?
फिर स्वयं ही महर्षि "रँग" का अर्थ बतानें लगे ।
जिससे हृदय रंग जाए.......उसे ही रँग कहते हैं ......आहा !
पता है बरसानें की होली कैसी होती है ?
महर्षि बतानें लगे - कृष्ण प्रेम का रँग श्रीराधा रानी दूसरों पर डालती हैं ........ये इन करुणामयी की कृपा है.......फिर कृष्ण, "श्रीराधा प्रेम" का रँग दूसरों पर डालते हैं ...........अब दोनों तरफ से प्रेम का रँग इतना डलता है कि.......चारों और सृष्टि लाल ही लाल हो जाती है ।
रँग वृष्टि से बादल रंग गए ......धीरे धीरे आकाश भी रंग गए .....इस तरह सम्पूर्ण जगत ही रंग गया ...........
बाह्य जगत ही नही रँगा....अंतर जगत भी अनुराग के रँग से रँग गया ।
फिर जब अंतर यानि मन बुद्धि इत्यादि रँग गए ............तब तो प्रेम में इह लोक भी रँग गया ....और परलोक भी रँग गया .......सब प्रेममय हो गया ......सब प्यार की सृष्टि चारों ओर दीखनें लगी ।
बड़ी गम्भीरता से आज "रस चर्चा" कर रहे थे महर्षि शाण्डिल्य ।
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प्यारे ! देखो मेरी ओर .......ध्यान से देखो इधर .......मुझ से आँखें मिलाओ .........इधर उधर नजरें क्यों चुराते हो .........ओह ! समझी अब मैं ......देख रही हूँ तुम्हारी ये आँखें लाल क्यों हो गयी हैं ?
गुलाल से भी ज्यादा लाल .....क्या हुआ बताओ ?
कमल और गुलाल को भी तुम्हारे आँखों की लालिमा नें पीछे छोड़ रखा है ....क्यों ? बताओ ! कैसे , किसनें बिना किसी साज बाज के लाल कर दीं तुम्हारी आँखें .......बोलो ?
हाँ बहुत चतुर होगी वो ......है ना ? और ये तो बताओ कि इन आँखों की रंगाई का मोल तुमनें कितना दिया है ?
पकड़ लिया था श्रीराधा नें अपनें श्याम सुन्दर को .......जब बृषभान जी के महल में चुपके से चढ़ तो गए थे ........पर "श्रीजी" सामनें ..... तब प्रश्नों की बौछार कर दी थी श्रीराधारानी नें ।
कहाँ खेलकर आये हो होरी ? किसनें खिला दिया तुम्हे होरी ?
व्यंग बाणों की चोट सह रहे थे श्याम सुन्दर ।
आँखें तो लाल हो गयीं ...........पर तुम्हारे लाल अधर कैसे काले पड़ गए ? ये होंठ तो तुम्हारे लाल थे ना ........फिर कैसे काले पड़े ?
श्रीराधा रानी फिर व्यंग कसती हैं ।
सखी के काजल लगे नयनों को चूमा होगा तुम्हारे अधरों नें .......मैं सब समझती हूँ ..............जाओ ! मेरे पास से जाओ ।
तभी ..............बाहर से हल्ला शुरू हो गया ........."होरी है"....
नन्द गाँव के सब ग्वाले बृषभान जी के महल में आ खड़े हुए थे ।
श्रीराधा जी नें देखा कन्हैया को .........सिर झुकाये खड़े हैं ........नयनों से अश्रु टपकनें लगे ...............हाथ जोड़ लिए ।
श्रीराधा को दया आगयी ...................कृष्ण को पकड़ कर अपनें हृदय से लगा लिया ............दोनों युगलवर गले मिलते रहे .........।
अब थोड़ा इधर भी तो आओ ..................हँसते हुए ललिता सखी नें कृष्ण को अपनी तरफ खींचा ....................
रंग देवी सखी लहंगा फरिया ले आई ................और बड़े प्रेम से .......जो जो पहनें हुए थे सब उतार दिया .......और लहंगा पहना दिया ....फरिया पहना दिया ............चूनर ओढ़ा दी .........लाल टिका लगा दिया ............बेसर लगा दी नाक में ...............पैरों में पायल .........बालों को गूँथ दिया .......बड़े सुन्दर लग रहे हैं अब तो ये ।
लो जी ! सिन्दूर दान भी स्वयं श्रीराधा रानी नें किया ....कृष्ण की माँग में ........आहा ! नजर न लगे ....श्रीराधा रानी देख रही हैं बड़े प्रेम से ।
"होरी है".........फिर चिल्लाये सब नन्दगाँव के ग्वाले ..........।
सखियों ! जाओ तो इस बार इन नन्दगाँव के ग्वालों को ठीक करके ही आओ.......देखो ज्यादा ही उछल रहे हैं ये सब ।
रँग गुलाल से नही मानते ये ..........ललिता सखी बोली ।
तो लठ्ठ बजाओ इन सब पर ..........हँसते हुए श्रीराधा रानी बोलीं ।
बस फिर क्या था ...........ऊपर से कुछ सखियों नें रंगों की वर्षा कर दी ......और कुछ नीचे लठ्ठ लेकर तैयार .................
रंग से भींग गए ....नहा गए ......कोई किसी को पहचान नही पा रहा ......अबीर उड़नें लगे आकाश में ............फूलों की वर्षा रंगों के साथ साथ हो रही है .........अब तो पिचकारी लेकर खड़ी हैं भानु दुलारी ।
तभी सखियों के पास जानें की जैसे ही कोशिश की ग्वालों नें.......
सखियों नें लठ्ठ बजानें शुरू कर दिए ............ग्वाल बाल भागे ......पर सखियाँ भी कहाँ कमजोर थीं ......वो भी भागीं पीछे ।
हँसते हुए इस प्रसंग को बता रहे थे महर्षि शाण्डिल्य .............
पूरे बरसानें में कीच ही कीच मच गयी है ......केशर की कीच है चारों ओर ...........पिचकारी की झरी लग गयी है ...........
और कुछ सखियाँ लगातार लट्ठ बजा रही है नन्दगाँव के ग्वालों के ऊपर.....भागते जा रहे हैं ग्वाले.......अपनें आपको बचाते जा रहे हैं ।
पर ये क्या ? श्रीराधा रानी अद्भुत सौन्दर्य के साथ, अपनी अष्ट सखियों के साथ .........चली जा रही हैं ।
नन्दगाँव दूर नही है बरसानें से .......पैदल ही चलीं नन्दगाँव ।
पर ग्वालों को इस बार मार मारकर भगाया है इन सखियों नें...........लट्ठ से खूब पूजा करी है इनकी ।
पर अब श्रीराधा रानी अपनी सखियों के साथ नन्दगाँव पहुँची .......और बड़ी खुश थीं ..........गारी गा रही थीं सखियाँ ।
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नन्दभवन के सिंह द्वार पर पहुँची श्रीराधिका ।
गीत गा रही थीं सखियाँ .......बड़े प्रेम से गीत गाती हुयी पहुँची थीं ।
अरे ! आओ ! आओ ............पर तुम यहाँ क्यों आयी हो ?
कन्हैया और उनके सखा तो सब बरसानें ही गए हैं ना ?
बृजरानी यशोदा बोलीं ...........फिर बोलीं .....आही गयी हो तो भीतर आजाओ ....................
श्रीराधा रानी संकोचपूर्वक भीतर गयीं ........सखियाँ भी साथ में थीं ।
क्या खाओगी तुम लोग ? बृजरानी नें बड़े प्रेम से पूछा ।
नही ...आज हम खानें नही आयी हैं.....हम तो आज गायेंगीं.....नाचेंगी ...और आपसे फगुआ लेकर जायेंगी......ललिता सखी हँसकर बोली ।
अब कन्हैया तो है नही......मुझ बूढी को नाच दिखाके क्या करोगी ?
हँसते हुये बैठ गयीं बृजरानी .........अच्छा ! दिखाओ नाच गाना ।
ये हमारी सखी है ......नई बहू है .....बढ़िया नाचती है ...........ललिता सखी उस नई बहु को दिखाती हुयी बोलीं ।
बृजरानीजी ! आपको इसका नाच दिखानें के लिये ही हम यहाँ आयी हैं ।
चलो ! नाचो बहू ! विशाखा सखी हँसते हुए बोली ।
सारी सखियाँ हँस रही थीं ।
उस नई बहु नें नाचना शुरू किया.........और सखियों नें गाना ।
"नारायण कर तारी बजाएके, याहे यशुमति निकट नचावो री"
सब गा रही हैं.......ताली बजा रही हैं .....हँस रही हैं ...........
यशोदा जी नें देखा..........ध्यान से देखा .......एक बहू नाच रही है .....घूँघट करके नाच रही है ..........इसकी नाच को देखकर लग रहा है इसको मैं जानती हूँ ........बृजरानी बार बार सोचती हैं ......इस को कहीं मैने देखा है ..........रहा नही गया बृजरानी से ..........पास में गयीं ........और जैसे ही घूँघट हटाया ...........
कन्हैया सखी बनें नाच रहे हैं ।
तू यहाँ क्या नाच रहा है ?
बृजरानी नें भी पीठ में एक थप्पड़ दिया ।
फिर हँसी आगयी .........अरे ! तू कैसे फंस गया इन बरसानें वारियों के चक्कर में ?
कन्हैया क्या कहते ..............श्रीराधा रानी मुस्कुराते हुए जानें लगीं तो बृजरानी नें माखन खानें दिया ..............सखियों नें भी खाया ।
अब जा ! छोड़ के आ ...........बृजरानी नें फिर कृष्ण को भेज दिया ।
गली में चले गए कृष्ण .............बस -
अब तो कृष्ण नें एक ताली बजाई जोर से ...............बस, आगये ग्वाल बाल .....गली को ही घेर लिया चारों ओर से सखाओं नें.........सखियाँ फंस गयीं ।
कन्हैया आगे बढ़ें .....और श्रीराधा रानी के गालों में अबीर मल दिया ।
रंग से भरा कलशा लेकर आया मनसुख .......कृष्ण नें बड़े प्रेम से श्रीराधा रानी के ऊपर रंग का पूरा कलशा डाल दिया .........।
अब तो ललिता सखी से भी रहा नही गया ..............उसनें कृष्ण को पकड़ा ........जोर से पकड़ गालों को रगड़ दिया ..........रँग, पूरे नीले वदन में लगा दिया ........गुलचा मारकर ..........गालों को काट कर ....ललिता सखी बोली ......"होरी है" ।
कृष्ण हँसे .............और अपनी प्यारी श्रीराधा रानी के पास गए ......बड़े प्रेम से दोनों गले मिले .........
श्याम सुन्दर नयनों की भाषा में बहुत कुछ बोले थे अपनी प्रिया से ....
और उनकी प्रिया भी सब कुछ कह चुकी थीं ।
तो अब ? श्रीराधा रानी नें पूछा था ।
श्याम सुन्दर गम्भीर हो गए थे ...........कुछ नही बोले .........
पता नही क्यों ..........नेत्र सजल हो उठे थे उनके ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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