"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 37

37 आज  के  विचार

( कृष्ण नें जब कामदेव को हराया.....) 

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 37 !! 



मैं तो मजाक कर रहा था   गोपियों ! 

हँस पड़े थे श्याम सुन्दर ।

क्या !    आनन्द की लहरें चल पडीं ......गोपियों में  उमंग भर गया था ।

"तुम सिर्फ मेरी हो"......अब क्या ये भी  कहना पड़ेगा ?  

हास्य ठिठोली चल पड़ी थी  उस मण्डली में ।

नही श्याम सुन्दर !    हमनें तो सोच लिया था  कि ......

क्या सोचा था  ?     मेरी प्यारी गोपियों !    क्या सोचा था ?

तुम्हे देखते हुये ,   तुम्हे निहारते हुए .....हम इस देह को ही त्याग देंगी !

उससे क्या होता ?        श्याम सुन्दर नें   सहज पूछा ।

मन जिसका चिन्तन करते हुये  मरे......कहते हैं -  दूसरा जन्म  उसी का मिलता है .....तो   श्याम सुन्दर !   हम तो यही सोच कर बैठी थीं ...कि तुमनें अगर हमें  स्वीकार नही किया .........तो हम मर जाएँगी  और दूसरे जन्म में   तुम्हे ही  प्राप्त करेंगी ।

"इतना प्रेम करती हो तुम सब मुझ से"

ये कहते हुये   गोपियों के निकट आगये थे  कृष्ण ।

क्यों,   तुम्हे क्या लगता है ?   हम मात्र ठिठोली करती हैं तुमसे ? 

नही .....तुम्हारा  प्रेम   मेरे प्रति  दिव्य है......स्वार्थ रहित है ........मैं जानता हूँ  हे बृजगोपियों !   तुम्हारे जैसा प्रेम  पानें के लिये तो   देवता भी तरसते हैं ........ये कहते हुये  घुटनों के बल बैठकर  एक गोपी के हाथों को चूम लिया था  कृष्ण नें  ।

ओह !    कामदेव खुश हुआ....अच्छा !   तो  युद्ध की तैयारी  !  

पर युद्ध भूमि  ?     कामदेव  फिर हँसा .......इन गोपियों का ये  कोमल देह ......इनका देह ही -  मेरी युद्ध भूमि है ......

तैयार हुआ कामदेव ........गोपियों के अंग अंग में जाकर बस गया  ।

"तुम्हारे ये अधर बड़े कोमल हैं........और  कमल पंखुड़ी की तरह भी"

ये कहते हुये ........अपनें अधर  उस गोपी  के अधर पर रख दिया था ।

कामदेव काँप उठा   ।

मंगल कलश की तरह  ये वक्ष .........छू दिया      श्याम सुन्दर नें ।

कामदेव  चीख उठा   ।

दन्त से काट दिया ...........कान में  कुछ प्यार भरी बतियाँ  कह दीं ।

आलिंगन .....एक प्रगाढ़ आलिंगन में बांध दिया गोपियों को   कृष्ण नें ।

छटपटा उठा  कामदेव  ।

वक्ष में....पृष्ठ में.....नाभि में.....नख के अग्र भाग से क्षत कर दिया  ।

वो सुंदरियाँ ........वो बृजगोपिकाएँ ......वो प्रेमिन .......वो प्रेमजोगन...

अब पूर्ण कृष्ण की हो गयीं .........कृष्ण के बाहु पाश में बद्ध हो गयीं.........कृष्ण की सुगन्धित साँसों से  उनकी साँसें  महक उठी .........

उनकी करधनी ....ढीली पड़ गयी ........उनके हार टूट गए ....उनके केश बिखर गए .............उनकी बेणी   खुल गयी ..........कृष्ण के ऊपर गिरी वो  गोपियाँ  ।

पर  ये क्या ?    कामदेव अपनी पूरी ताकत से लड़ रहा है .............

पूरी शक्ति लगा दी है इस कामदेव नें.......पर  उसकी शक्ति  व्यर्थ जा रही  हैं ......ये हो क्या रहा है  .....कामदेव  अब थकनें लगा था   धीरे धीरे ।

पर श्याम सुन्दर  नही थके ......ये अभी भी  उसी  अनन्त प्रेम की ऊर्जा के साथ   विहार कर रहे हैं.......बड़ी तीव्र गति से नाच रहे हैं .......एक ताल में नाच रहे हैं ....एक स्वर में नाच रहे हैं.........मध्य में वही  श्याम ज्योति  ....और  चारों और   गौरांगी गोपियाँ ....नाच रही हैं  ।

कामदेव पसीनें पसीनें हो गया..और सोचनें लगा .....".इतनी सुंदरियों के साथ नृत्य , हास परिहास   चुम्बन,  परिरम्भन........करनें के बाद भी .......ये शान्त है !  .......कामदेव  के कुछ समझ में नही आरहा  ।

कितना ऊर्जावान  है ये अद्भुत  !      सबको  नचा रहा है  अपनें प्रेम में ......ये अद्भुत सुन्दरियां हैं ........इनको छू रहा है .........चूम रहा है .....फिर भी   ये अंदर से शान्त है........ये विचलित नही हो रहा !

इसको कोई फ़र्क ही नही पड़ रहा.......कामदेव  उस असीम ऊर्जा के साथ नाचते हुये  जब   श्याम सुन्दर को देखता है .......".इसकी ऊर्जा स्खलित नही हो रही .........अरे ! स्खलित क्या ......इसका मन  पहले जैसे  शान्त था,     वैसा ही शान्त अभी भी है .........ये अच्युत है .......हाँ ..अब मैं समझा  ये अच्युत  है ........इसका पतन नही है ......वासना इसका कुछ बिगाड़ नही पाएगी.......ये कितना सहज है ..........देखो !  सारे तनावों से मुक्त !     बस नाच रहा है .......ऐसे नाच रहा है  जैसे अपनी ही परछाई के साथ  कोई बालक नाचता है  ।

हाँ ......इसकी ही तो परछाईं हैं  ये  सब गोपियाँ .........नही नही  गोपियाँ ही क्यों   हम सब भी तो इसी की परछाईं हैं ........कामदेव  हार गया .........थक गया .......पूरी शक्ति लगा दी  थी  कृष्ण को पराजित करनें के लिये .....पर नही ..........कृष्ण तो अभी भी नाच रहे हैं ..........पर कामदेव थक गया ...........अब नही श्याम सुन्दर !   चिल्ला उठा कामदेव  ।

"मन्मथ" नाम है मेरा ...क्यों की दुनिया के लोगो के मन को मैं मथता हूँ  ।

पर मुझ मन्मथ के मन को  भी  आपनें मथ दिया ..........मैं आपकी शरण में हूँ ...........मुझे अपना   बालक स्वीकार कीजिये  ........

मै  हार गया आपसे ...........कामदेव चरणों में गिर गया कृष्ण के  ।

मुस्कुराये  श्याम सुन्दर ...........क्या  चाहते हो ?      

आपका पुत्र बनना चाहता हूँ ....कामदेव नें हाथ जोड़कर कहा  ।

ठीक है .....द्वारिका की लीला में  तुम मेरे प्रथम  पुत्र बनोगे.........

श्याम सुन्दर नें   वरदान दिया   ।

पर रासलीला  तो चलती ही रही ..........और चलती रहेगी  ।

हे वज्रनाभ !       रासलीला में   अब एक और  विघ्न उत्पन्न हो रहा था  ।

महर्षि शाण्डिल्य नें कहा    ।

क्या  विघ्न  ?    गुरुदेव  !      वज्रनाभ नें पूछा   ।

शेष चरित्र कल -

Harisharan

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