"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 35

35 आज  के  विचार

( शरद की वह प्रथम पूर्णिमा )

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 35 !! 



शरद ऋतु था  उस समय  जब कामदेव गोलोक से वृन्दावन आया ....

वह  प्रसन्न हुआ .....

........चलो !  मेरे युद्ध के लिये "शरद" मेरा सहायक ही होगा  ।

नाना जाति के फूलों से वृन्दावन  महक रहा था ......कामदेव नें चारों ओर दृष्टि घुमाकर देखी .....मल्लिका  गुलाब  जूही   ये सब चारों ओर खिले हुए हैं.........और  जिनकी  आवश्यकता थी .......उनको  और  खिला दिया क़मदेव नें ........शीतल वयार  चल रही है ........ऐसी वयार  जो काम वासना से दूर भी हो ....उसके मन में भी कामोद्दीपन हो उठे ।

मुझ "मदन" को   वो "कृष्ण" पराजित करेगा......फिर हँसता है - काम ।

हाँ हाँ .....समझ गया मैं .......कृष्ण  नारायण का ही एक रूप है .......पर उससे क्या  !    नारायण  के ही इस रूप को  कामदेव पराजित करेगा ।

"बस तापसी का भेष न हो ......तापसी की चर्या न हो उसकी  "

मेरा पुष्पों का बाण ही काफी होगा  उस कृष्ण के लिये तो ....

कामदेव खुश हो रहा है  ।

तभी ....संध्या की वेला हुयी.......और ये सन्ध्या  कुछ ख़ास थी ।

शरद की  पहली पूर्णिमा थी  ये  ।

मैं  चारों ओर फैल गया था  वृन्दावन में .....फूलों में था  मैं ......यमुना में बह रहा था मैं .........हवा में था मैं .......चन्दा की चाँदनी में था मैं  ।

"हा हा हा हा हा......मैं भी सर्वव्यापी हूँ......नारायण से कम नही हूँ "

अहंकार  बढ़ते बढ़ते  कितना बढ़ गया था   आज इस कामदेव का ।

तभी -   सूर्यास्त हो चुका था ........दिशाएँ अरुण हो गयी थीं ......ऐसी अरुण  जैसे   कुंकुम की तरह .......अनुराग ही मानों  वृन्दावन के आकाश में उड़ चला हो.......

मैने देखा  ........एक किशोर ...एकाकी  किशोर ........वह अपनें नन्दगाँव के महल से निकला .......और वृन्दावन  के सघन कुञ्ज में पहुँच गया था .....कामदेव  देखते ही  समझ गया कि    कृष्ण यही है ।

ओह !  ये  ?    ये  तो बहुत  सुन्दर है.........मेरी तरह सुन्दर है ये ।

वह  देखनें लगा......कृष्ण को.......कितना कोमल है .....इसका अंग अंग  सौन्दर्य से भींगा हुआ है ....नही ये तो मेरे से भी सुन्दर है .....इतनी सुन्दरता , इतनी  सुषमा , इतनी शोभा तो मुझमें  कभी नही थी ......

विचित्रता ये है  इस किशोर की ......कि  इसे जितना देखो .....और सुन्दर होता जाता है .....और  और   ....कामदेव चकित हो रहा है  ।

घुँघराली अलकें  .......उन सघन अलकों पर ..........मोर पिच्छ ...मस्तक पर गोरोचन का तिलक .........उफ़ !    इसकी मुस्कान   ।

कामदेव चकित रह गया ......क्यों की उस किशोर के आते ही ......वृन्दावन में  कामदेव का प्रभाव समाप्त हो गया था ......अब तो  प्रभाव इसी  किशोर का ही रह गया  ।

कामदेव देखता ही रह गया था .........इस किशोर के आते ही .........प्रकृति  प्रेमपूर्ण हो उठी थी........पक्षियों नें  चहकना भी छोड़ दिया था .....और   किशोर को ही देख रही थीं .......भौरों नें  गुनगुनाना छोड़ दिया था .......ये सब  भी  इसी की ओर ही  मुड़े थे  ।

मैं भी  कितना मूर्ख  हूँ .......इसको रिझानेँ के लिये कुछ तो अप्सरायें लाता.....अकेला आ गया .....कामदेव  को अब चिन्ता हुयी ।

पर  आश्चर्य भाव से  वो  उस नन्द किशोर को  ही देखता रहा ...........

किशोर नें   एक शिला को अपना आसन बनाया ........गोवर्धन की शिला थी वो .........उसी शिला में   बड़े  आनंद से वो बैठ गया था .....कामदेव नें  देखा   ।

उस किशोर की एक एक अदा .....स्वयं कामदेव को मुग्ध कर रही थी ।

वो जिस तरह बैठ रहा था ........वो जिस तरह   झुक रहा था .....उसकी वो आँखें ..........जो  मत्त थीं ...........वो  कभी कभी  मोर या  तोते  की ध्वनि सुनकर  मुस्कुरा देता था .......उफ़ !  उसकी वो मुस्कान  ! 

पर ये क्या  ?      अपनी  फेंट से कुछ निकाल रहा है  !   

ओह !  बाँसुरी  !

  कामदेव  चकित रह गया.......ये बाँसुरी बजाता है ......चलो !  फिर  तो  मैं इसे  चुटकियों में  हरा दूँगा ...........डर मुझे ये था  कि  कहीं ये माला,  या  सुमिरनी ......या  किसी यौगिक क्रिया को न अपनाले ........पर ये तो बाँसुरी  बजायेगा ............बस  मेरा काम हो गया  अब  तो ।

हँसा कामदेव !         और अपना प्रभाव चलानें लगा  ।

पर  अपना प्रभाव चलाये ......उससे पहले कृष्ण का प्रभाव चल गया ।

कामदेव  नें  देखा...........

उस किशोर नें  बड़े मुग्ध भाव से पहले तो  चन्द्रमा को निहारा .......

और ऐसे निहारा जैसे  अपनी प्रेयसि को  याद कर रहा हो .........

जैसे - अपनी प्रेयसि के मुख का स्मरण कर रहा हो,
  उस पूर्ण चन्द्रमा को देखकर   ।

पर  मेरा प्रभाव उस पर पड़ क्यों नही रहा.......कामदेव चिंतित ।

अब उस किशोर नें   अपनें हाथ की बाँसुरी को.....अधरों पर रखा ।

और सप्तम स्वर से "क्लीं" बीज को गुंजारित करना  शुरू कर दिया था ।

क्या मेरा ही आव्हान कर रहा है  ये किशोर ?   या मुझे चुनौती दे रहा है ?

पर कुछ क्षण ही बीते होंगें  की कामदेव काँप उठा ..........

मेरी शक्ति क्षीण क्यों हो रही है  .......मेरा शरीर काँप क्यों रहा है .......मेरा हाथ  धनुष और बाण पर जा ही नही रहा  ।

क्या हुआ  ?  क्यों हुआ  ?     क्या हो रहा है मेरे साथ ये सब  ? 

कामदेव कुछ नही समझ पा रहा ।

कौन सी ऐसी शक्ति है ..........कौन सी शक्ति है  जो इसे बचा रही है मुझ से ...........और मुझे  कमजोर किये जा रही है .......।

आज तक  ऐसी किसी शक्ति से मेरा पाला नही पडा ..........ये क्या है ? 

क्या ये गोप कुमार कोई जादू जानता है ?  पर जादू मुझ पर चलेगा ? 

पर चल रहा है ...........कामदेव के कुछ समझ में नही आरहा ।

तभी बंशी नें पुकारना शुरू किया .........बंशी की पुकार सुनकर स्वयं  मोहित होता जा रहा था कामदेव........."बंशी में  जो स्वर छेड़ा था  वह स्वर तो मेरी  पत्नी रति  भी नही जानती" ........कामदेव नें अब  सुनना शुरू किया ...........ध्यान से  सुनना शुरू किया ............बंशी में वो किशोर कुछ गुनगुना रहा था ............कामदेव खुश हुआ .........हाँ .....ये  जो नाम ले रहा है ......यही है इस किशोर की शक्ति ......कौन है  ये ?

फिर ध्यान से सुननें की कोशिश की ...........कई बार कोशिश करनें के बाद  सफलता हाथ तो लगी थी कामदेव के  ..........

बांसुरी में  यही पुकार चल रही थी .........मानों ये किशोर अपनी प्रेयसि से  आज्ञा मांग रहा था ....प्रार्थना कर रहा था .................

"हे राधे ! बृषभान भूप तनये , हे पूर्णचन्द्राननें"

राधा !    इसकी शक्ति का नाम है राधा  !   कामदेव समझ गया था  ।

पर ये  प्रार्थना कर क्यों रहा है ?      क्यों ?      

"रास के लिये ....अब  मैं महारास करना चाहता हूँ .......हे मेरी  राधे ! 

आप आज्ञा दो.......आप ही हो इस रास की  रासेश्वरी .........आप ही हो  इस वृन्दावन की अधीश्वरी ......इस रास मण्डप की शोभा आप हो ।"

प्रार्थना कर रहा है ये किशोर  .......अपनी  आल्हादिनी शक्ति से ..।

कामदेव समझ गया  ......अब  वो  अपनी नई रणनीति बनानें में जुट गया था .......कि इस कृष्ण को कैसे  युद्ध में हराउँ  ।

क्यों की  हे  वज्रनाभ !    सारी रणनीति  फेल कर दी थी कामदेव की कृष्ण नें ...........ये सोच के आया था  कि ...मन्त्र तन्त्र या योग  से  मुझ से भिड़ेगा ......पर नही .....ये तो   अलग ही है .........ये तो  बाँसुरी बजाकर ........शरद की रात्रि में .....और महारास कर ..........ओह ! 

कामदेव  को   एक विचित्र स्थिति में फंसा दिया था,
   इस प्यारे से किशोर नें  ।

शेष चरित्र कल ......

Harisharan

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