34 आज के विचार
( अथः रास पंचाध्यायी प्रारंभ्यते )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 34 !!
मुझे कोई नही जीत सकता.....मेरे समान शक्तिशाली कोई नही है !
ब्रह्मा को मैने नचाया .....शंकर......हाँ .......शंकर नें मुझे जला दिया भस्म कर दिया ......पर उससे क्या ? मैं तो बिना देह के और शक्ति सम्पन्न हो - प्रकट हुआ हूँ ................
"पर भगवान श्रीराम के सामनें तुम्हारी दाल गली नही थी "
काम देव के अहंकार को अब चोट पहुँची थी ......और पहुंचानें वाले थे परम कौतुकी देवर्षि नारद जी महाराज ।
राम ! इस शब्द को दोहरानें लगा था कामदेव......फिर झेंप गया -
" हाँ जब कोई एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करके ही बैठ जाए .....तब मैं भी कुछ कर नही सकता ............
पर देवर्षि ! नचाया तो मैने तुम्हे भी है .......कैसे विश्व मोहिनी के लिए !
झेंपनें की बारी अब देवर्षि नारद जी की थी ।
छोडो उन पुरानी बातों को !.......देवर्षि ! कोई बात नही .........हम हैं ही इतनें बड़े शक्ति सम्पन्न कि ......हम से कोई टकरा नही सकता ।
हम सारे जगत को एक इशारे में नचाते हैं ............कामदेव ! कामदेव नाम है मेरा.........अहंकार बढ़ना स्वाभाविक था इसका ।
इतना अहंकार शोभा नही देता कामदेव ! देवर्षि समझा नही रहे ......इसको अब लड़वाना चाहते हैं ..............एक अच्छी खासी लड़ाई अब होनें वाली है ...........जिसे ये ब्रह्माण्ड देखेगा ............।
मेरे अहं को तोड़नें वाला कोई हो तो बताओ ! कामदेव नें कहा ।
चलो मेरे साथ ! आज ही मिला देता हूँ तुम्हे.....उस "भूमापुरुष" से ।
इतना कहकर चल पड़े देवर्षि , कामदेव पीछे पीछे चल दिया था ।
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भगवान नारायण से लड़ानें लाये हो ? हँसा कामदेव ।
नही .....नारायण से नही.....वैकुण्ठ को देखकर भयभीत हो गए क्या ?
भयभीत नही....पर भगवान नारायण से मैं युद्ध नही कर सकूँगा .......
देवर्षि नें पूछा ..........वैसे मैं तुम्हे नारायण के पास लाया नही हूँ ......पर तुम अभी मेरे पीछे पीछे चले आओ ..............हाँ ये बात भी बता दोगे तो यात्रा अच्छे से कट जाती .............
कौन सी बात ? कामदेव पूछता हुआ चल रहा है पीछे पीछे ।
यही बात कि ........भगवान नारायण से भी कभी भिड़े हो क्या ?
हाँ .............नर नारायण दोनों तपस्या कर रहे थे .........बद्रीनाथ में ......बस गलती से लड़नें चला गया था मैं ...............
फिर ? आगे क्या हुआ ?
अब होना क्या था ............नारायण और नर तप में लीन थे .......मैने अपनी सारी शक्ति लगा ली .............बड़ी बड़ी अप्सराओं को नचवा भी दिया ...............पर उन्हें तो कोई असर ही नही ...........बाद में नारायण ऋषि नें अपनें नेत्र खोले .............मुस्कुराये .........और बड़े प्रेम से उन्होंने अपनी जंघा को मसला ........उसी में से एक अत्यन्त सुन्दरी उर्वशी अप्सरा प्रकट कर बोले ..........तुम्हारे पास क्या ऐसी अप्सरा एक भी है ? जाओ ! ले जाओ इसे .........।
देवर्षि ! क्या बताऊँ .......क्या अप्सरा थी वो ...........उर्वशी !
अब हार तो माननी ही पड़ी मुझे ......क्यों की जिसकी जंघा से ऐसी सुन्दरी प्रकट हो सकती हैं .............मैं क्या हूँ उनके सामनें ?
चलो ! आगये हम ........देवर्षि नें उस लोक में प्रवेश करते हुए कहा ।
ये कौन सा लोक है ? गोलोक ? कामदेव उस लोक को बड़े ध्यान से देख रहा था ............
हाँ ......मदन ! यही है गोलोक .........चलो ! अब हम तुम्हे "गोलोक बिहारी" से मिलवाते हैं ..........चलो !
कामदेव चारों ओर देखता हुआ ........चकित सा चला जा रहा था ।
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जय हो श्री गोलोक बिहारी सरकार की - जय ..........
जय हो श्री मुरली मनोहर लाल की - जय ......
दिव्य सिंहासन है ..........उस सिंहासन में मोर मुकुट धारण किये ......मन्द मुस्कुराते हुए.......फेंट में बाँसुरी ..........पीताम्बरी .......
देवर्षि नें प्रणाम किया ......साष्टांग प्रणाम किया ............
पर कामदेव नें साष्टांग नही..........हाँ .......अनमनें ढंग से हाथ जोड़ लिया ......पर वह भी बड़ी मुश्किल से ।
कैसे आये हो नारद जी !
कामदेव देख रहा है .........सुन्दर तो बहुत हैं ये .............और वाणी भी मिठास से भरी ................
मैं ठीक हूँ प्रभु ! हाँ .....आनें का कारण .......तो ये हैं मेरे साथ ........इन्हें तो आप जानते ही हैं .......कामदेव को दिखाते हुये नारद जी नें मुरली मनोहर श्याम सुन्दर से पूछा ।
ओह ! इनको कौन नही जानता ! अहंकारी के अहंकार को और बढ़ाना ये तो काम ही है श्याम सुन्दर का ........तभी तो आगे की लीला बनेगी ।
नारद जी नें कामदेव को देखा ..............कामदेव और अहंकार से फूल गया था ..........मानों कह रहा हो .......देखा देवर्षि ! मुझे कौन नही जानता ........मुझे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जानता है ।
पर इन पुष्पधन्वा कामदेव को मुझ से क्या काम आ पड़ा ?
श्याम सुन्दर नें पूछा ।
इनको ऐसा लगता है कि ये विश्व विजयी हैं ..........देवर्षि नें कहा ।
हाँ ....तो सच ही लगता है इनको ......ये हैं ही विश्व विजयी ।
श्याम सुन्दर मुस्कुराते हुए बोले ।
" ये आपसे युद्ध करना चाहते हैं .....क्यों की बस आप ही बचे हैं अब ! "
देवर्षि नें बिना लाग लपेट के मुख्य बात जो थी कह दी ।
हँसे श्याम सुन्दर...........उनकी हँसी पूरे गोलोक में गूँजी थी ।
तो कैसा युद्ध करना चाहते हो कामदेव ?
श्याम सुन्दर नें तो ये भी पूछ लिया ।
कैसा युद्ध ? मैं समझा नही । कामदेव नें देवर्षि की ओर देखा ।
दो प्रकार के युद्ध हैं .......एक किले का ..और एक मैदान का ।
श्याम सुन्दर समझानें लगे कामदेव को ।
किले में सुरक्षा है .......पर मैदान में कोई सुरक्षा नही ।
जैसे ? कामदेव स्पष्टतः समझना चाहता था ।
तो सुनो मन्मथ कामदेव ! किला यानि विवाह करके मन को विचलित होनें से मुक्त रखना.. ......और मैदान यानि ........हजारों सुंदरियों के साथ रमण करते हुये मन को शान्त रखना.........
नही ....नही ........बात पूरी भी नही हुयी थी कि कामदेव बीच में ही बोल पड़ा .........नही .......किले का युद्ध मैं राघवेन्द्र सरकार से लड़ चुका हूँ ।
विदेह नन्दिनी के साथ विवाह करके ...........वो वन में रहते थे ......तब मैने बड़ी कोशिश की ...कि मैं उनके मन को विचलित कर दूँ............पर वही जीत गए ............
हाँ ....मैं इस बार सबसे बड़ा युद्ध.....जो मैने लड़ा भी तो मुझे बड़े बड़े योगी .....योगेश्वर......तपसी सबको मैने पराजित किया है .......
हे श्याम सुन्दर ! हे गोलोक बिहारी ! मैं आपके साथ मैदान वाला युद्ध लड़ना चाहता हूँ .......खुला संग्राम.......कामदेव खुश था ।
तो ठीक है फिर ...........मिलना मुझ से वृन्दावन में ...........मैने अवतार लिया है ......और अब रासलीला करनें वाला हूँ ............मेरे साथ हजारों सुंदरियाँ होंगीं .............उनके साथ मैं अब रमण करनें वाला हूँ ...........तुम आओ .......तुम्हारा स्वागत है वृन्दावन में ।
श्याम सुन्दर नें अपनें दोनों हाथों को उठाकर कहा ........।
फिर ठीक है ....अब हमारी और आपकी मुलाक़ात होगी वृन्दावन में ।
इस बार तो प्रणाम भी नही किया कामदेव नें श्याम सुन्दर को ......और बिना देवर्षि को कुछ कहे ......चल दिया गोलोक धाम से ।
अच्छे से तैयारी करना काम देव ! कहीं तुम हार न जाओ ।
नही ......देखना देवर्षि ! इस बार मैं ही जीतूंगा......और श्याम सुन्दर के मन को "मथ" नही दिया मैनें तो मेरा नाम भी "मन्मथ" नही है......ये कहता हुआ चला गया मदन ।
इधर श्याम सुन्दर मुस्कुरा रहे थे ।
हे वज्रनाभ ! अब रासलीला का रस लो..........ये दिव्य है .....ये मधुरातिमधुर है ...........भगवान शंकर भी इस रास के दर्शन करनें गोपी बनके आये थे..............
पर ये बाबरा कामदेव ! लड़नें चला है श्याम सुन्दर से !
महर्षि शाण्डिल्य नें रासपंचाध्यायी की चर्चा छेड़ दी थी आज से ।
शेष चरित्र कल .....
Harisharan
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