आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 165 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही !
"श्रीराजाराम अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं पुत्री"
महर्षि वाल्मीकि नें आकर मुझे सूचना दी ।
क्या ! मैं चौंक गयी थी ।
कोई कारण महर्षि ! अश्वमेध यज्ञ करनें का ? .......मैने पूछा ।
मैने सुना है आत्मग्लानि से भर गए हैं श्रीराम ...........
पर क्यों ? ऐसा क्या कृत्य हुआ है उनसे...जो आत्मग्लानि से भर गए ।
"शम्बूक" नामक शुद्र का वध जो कर दिया राजा राम नें ........महर्षि के मुख से ये सुनकर मैं स्तब्ध हो गयी ।
पर कुछ तो अपराध किया होगा ना उस शम्बूक नें ........बताइये ना महर्षि ? मैने प्रार्थना की ।
तपस्या कर रहा था वो शम्बूक...........जो उसके अधिकार क्षेत्र में नही आता । महर्षि का कहना था ।
क्या तपस्या और लोग नही कर सकते ? शुद्र तप नही कर सकता ?
मेरे प्रश्न का उत्तर दिया महर्षि नें ।
"ईश्वर की भक्ति कर सकते हैं ..........ईश्वर के पवित्र नाम का स्मरण कर सकते हैं ..........पर तपस्या करके सशरीर स्वर्ग जानें की जिद्द तो अनधिकार चेष्टा हुयी ना पुत्री ?
मैं और स्पष्ट सुनना चाहती थी महर्षि के मुख से ।
क्या किसी को भी वैज्ञानिक शोध करनें की आज्ञा दी जासकती है ?
या कोई भी राष्ट्राध्यक्ष के निवास पर जानें की जिद्द करे.......तो क्या उसकी जिद्द पूरी की जा सकती है ?
वैज्ञानिक प्रयोगशाला में किसी को प्रवेश का अधिकार नही दिया जा सकता .......क्या पता वो वहाँ जाकर क्या कर दे !
ऐसे ही स्वर्ग जानें की जिद्द से कोई अगर तपस्या करे ..........और उसमें अभी अधिकार नही आया.....तो क्या उसकी जिद्द मान लेनी चाहिये ?
महर्षि स्वयं मुझ से पूछ रहे थे ।
मैने कहा - नही ....व्यक्ति को उतनी ही स्वतन्त्रता प्राप्त होती है ....या होनी चाहिये ......जिससे व्यवस्था या सुरक्षा संदिग्ध न हो ।
पुत्री ! सतयुग में एक ही वर्ण था ब्राह्मण.....सब ब्राह्मण ही थे ।
पर त्रेतायुग के आते आते......ब्राह्मण, जो सत्वगुण से ओतप्रोत है .....उसे ब्राह्मण कहा गया .........जो रजोगुण और सत्वगुण से मिश्रित था उसे क्षत्रिय कहा गया .......जो मात्र रजोगुणी स्वभाव का था उसे वैश्य कहा गया .......और जो तमोगुणी था उसे शुद्र कहा गया ।
महर्षि मुझे समझा रहे थे........मस्तक ब्राह्मण है ........हाथ क्षत्रिय हैं ......पेट वैश्य है............और पांव शुद्र हैं ।
इसमें कोई बड़ा छोटा नही सब बराबर हैं...पर कार्यक्षेत्र बांटा गया है ।
जिसकी सात्विक बुद्धि नही है...उसनें तप करके अगर शक्ति पा ली....तो क्या उसकी शक्ति से समाज में शान्ति आएगी या वो अपनी शक्ति का दुरूपयोग ही करेगा समाज में अशान्ति फैलानें के लिये !
मुझे घटना सुनाइये .....मेरे श्रीराम से क्या हुआ ? मैने प्रार्थना की ।
मुझे महर्षि नें उस घटना के बारे में बताया...जो अयोध्या में घटी थी ।
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भरी सभा में उस समय एक ब्राह्मण आया ..........और श्रीराजा राम के सामनें अपनें पुत्र का शव रखते हुए बोला ........हे राम ! यही है आपका रामराज्य ? बालक असमय काल के ग्रास बन रहे हैं !
पुत्री सीता ! श्रीराम चौंक गए थे..........ऐसा कैसे हुआ ?
देखो राजन् ! आप राजा हो.......अगर आपकी प्रजा अकाल मृत्यु का ग्रास बन रही है तो कमी हैं कहीं .....ये विचार आप कीजिये ।
राजा राम चिंतित हो उठे थे ..........पर कुछ देर बाद ही एक और ब्राह्मण आया ........उसकी गोद में भी ऐसे ही एक मृत बालक था ।
ये दूसरी घटना हुयी थी........राजा राम काँप गए ......ये क्या ?
हे राम ! रामराज्य का ढिढ़ोरा पीटनें वाले राम ! देखिये आपके राज्य में क्या हो रहा है ................बचाइये इसे ................दो मृत बालक श्रीराम के चरणों में छोड़ दिए थे उन ब्राह्मणों नें ।
राम खड़े हुये .........मैं इसके 'कारण" में जाऊँगा ........और जो भी कारण होगा उसे मिटाऊंगा ।
इन दो बालकों के शव को सुरक्षित रखा जाए ......राम इन्हें जीवन प्रदान करेगा ..........और अगर नही किया तो .....? राम स्वयं आमरण अनशन में बैठता है ............।
पुत्री सीता ! राजा राम के इस अनशन की घोषणा से सब दुःखी हो गए .......ब्राह्मण भी दुःखी हो गए ............पर श्री राम अपने वचन पर अडिग थे ।
पूरी अयोध्या नें अनशन किया .......क्यों की उनका प्यारा राजा ही भूखा प्यासा है तो प्रजा कैसे खाये !
गुरु वशिष्ठ जी भी नही खोज पा रहे थे कारण ..............
महर्षि वाल्मीकि मुझे बता रहे थे.............मैं सुन रही थी ।
एक दिन देवर्षि नारद मेरे गुरुदेव .......राजा राम के पास गए .....रात्रि का समय था ...अनशन में बैठे थे श्रीराम .......तब देवर्षि बोले .....
हे रामभद्र ! मुझे "कारण" पता है ........कि आपके राज्य में बालकों की मृत्यु क्यों हो रही है ?
राजा राम उठे .....चरणों में प्रणाम किया देवर्षि के .......क्या कारण है देवर्षि ? आपको अगर ज्ञात है तो कृपा करके मुझे बताएं ।
चलो मेरे साथ ........देवर्षि आगे और राजा राम पीछे पीछे चल पड़े थे ....कहाँ जाना है ये बात मात्र देवर्षि जानते थे........राजा श्रीराम अनुसरण कर रहे थे देवर्षि का ।
एक स्थान ............दुर्गम स्थान था वो ...............वहाँ देवर्षि लेगये .....और एक काले व्यक्ति को दिखाया ............जो अत्यन्त कुरूप था ........वृक्ष से उलटा लटका हुआ था ..........और नीचे से उसनें धूम्र दी थी अपनें मुख में ............।
ये क्या है देवर्षि ? राजा राम नें पूछा ।
इसका नाम है "शम्बूक" ..........चाण्डाल है ये ................फिर ये ऐसा कार्य क्यों कर रहा है .......ये कार्य तो सात्विक व्यक्तियों का है न ।
हाँ ..........ये सशरीर स्वर्ग जानें के लिये तप कर रहा है .......।
देवर्षि नें कहा ।
पर सशरीर स्वर्ग जाना ये मानव के अधिकार क्षेत्र में नही आता ।
हाँ ......और ऐसी ही जिद्द का परिणाम आपके ही सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु का हम देख चुके हैं .........हे राजा राम ! त्रिशंकु नें भी जिद्द की थी ......पर उन्हें देवताओं नें जानें कहाँ दिया स्वर्ग ....उलटे लटक गए ।
वो राजा त्रिशंकु फिर भी रज और सत्व से मिश्रित क्षत्रिय थे पर ये तो तमोगुणी शुद्र है ........!
हे राम ! जाओ ........और इसका वध करो .........देवर्षि नें कहा ।
नही .......मैं इसको कैसे मार सकता हूँ .......इसका अपराध क्या है ?
अनधिकार चेष्टा अपराध है राम ! निष्काम तप कोई भी कर सकता है ....निष्काम तप, जप, कोई भी कर सकता है .........पर सकाम तप के लिये कुछ निश्चित हैं .........सकाम तप के लिये ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ही निर्धारित हैं..........क्यों की सकाम का प्रयोग करनें के लिये विवेक का होना आवश्यक है .....और उस शुद्ध विवेक की प्राप्ति के लिये सात्विक बुद्धि का होना भी अतिआवश्यक है ।
राम ! जाओ और वध करो इस शम्बूक का .......देवर्षि नें फिर कहा ।
श्रीराम गए........और जाकर देखा उस शम्बूक को ।
बन्धु ! ये तप छोड़ दो ..........और निष्काम कर्म में लग जाओ .....सेवा भाव से तुम वो सब पा सकते हो .......जो इस तप से तुम्हे मिलेगा ।
राजा श्रीराम गम्भीर भाव से बोल रहे थे ।
जाओ जाओ ! राम ! मैं तुम्हारी बातें सुननें वाला नही हूँ ..........मुझे तप करनें दो और ऐसी शक्ति प्राप्त करनें दो .....जिससे मैं स्वर्ग से आ जा सकूँ ......मेरी यही इच्छा है । शम्बूक की कर्कश आवाज आयी ।
पर तुम्हारी इस जिद्द के कारण निरपराध लोग मर रहे हैं .............
मुझे कोई मतलब नही है ........कोई मरे या जीये !
शम्बूक नें राजा राम की बात न मानी .............
तब काँपते हाथों से खड्ग निकाला श्रीराम नें ......और दौड़े उस शम्बूक के पास ...........और देखते ही देखते उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया ।
पर श्रीराम के पवित्र हाथों से मृत्यु पानें पर वो शम्बूक मुक्ति का ही अधिकारी हो गया था........देवों नें पुष्प वृष्टि भी की थी ।
मेरे मुँह से निकला ........ओह !............मुझे महर्षि वाल्मीकि ये घटना सुना रहे थे ........मैं स्तब्ध थी ।
शेष चरित्र कल .....
Harisharan
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