तुलसी की माला

🙏🏼🙏🏼सुनहरी नाम की लड़की जोकि गांव में सबसे खूबसूरत लड़की थी ।बड़ा हो या छोटा आदमी हो या औरत हर कोई उसके रूप की हमेशा प्रशंसा करता था ।वह गांव में जब नदी से पानी भरने जाती तो सब को बड़े प्यार से बुलाती वह बड़ी हंसमुख लड़की थी ।गांव में हर एक लड़के की  चाह थी कि वो  उससे शादी करे क्योंकि उसका रूप ही ऐसा था ।रूप के साथ-साथ उसमें हर गुण विद्यमान थे  वह हर काम में  निपुण थी लेकिन जोड़ियां तो ऊपर से ही ठाकुर जी बना कर भेजते हैं ।गांव के ही बड़े ही संपन्न परिवार में उसकी शादी बड़ी धूमधाम से सरजू नामक व्यक्ति से हो गई। सरजू बहुत ही नेक लड़का था इतनी गुणवान सुंदर पत्नी को पाकर वह तो फूला नहीं समा रहा था। शादी की पहली रात ही उसने अपनी पत्नी सुनहरी को उसके सुनहरे रूप के समान  एक सुंदर सोने का हार भेंट  के रूप में दिया और उसके गले में डालता हुआ बोला सुनहरी तुम्हारे रूप के आगे तो यह हार कुछ भी नहीं है लेकिन फिर भी मैं तुम्हारे लिए यह तोहफा लेकर आया हूं। यह हार मैं अपनी पहली  मेहनत की कमाई से लेकर आया था और आज से यह हार तुम अपने गले से कभी मत उतारना यह हार तुम्हारे और मेरे प्यार की निशानी रहेगी जब तुम यह हार उतारोगी तो मैं समझूंगा तुम अपने प्रियतम को प्यार नहीं करती। तो सुनहरी ने लज्जा   कर गर्दन हां में हिला कर कहा हाँ   हाँ   मैं  यह हार जीते जी अपने गले से कभी नहीं उतारूंगी।  सुनहरी की जिंदगी बहुत खुशहाल चल रही थी उसका पति और उसके घर वाले उसको बहुत प्यार करते थे। जल्दी ही उसने अपने अच्छे स्वभाव  और गुणों से सारे घर वालों का मन मोह लिया ।सुनहरी कभी भी नहीं चाहती थी कि उसके घर वाले उसके कारण कभी दुखी हो। 1 दिन सुनहरी नदी से पानी भर रही थी तभी अचानक से उसके गले का हार उतर कर नदी में बहने लगा सुनहरी के तो जैसे प्राण ही निकल गए उसने हार को पकड़ने की बहुत कोशिश की उसको तैरना  भी आता था वह बहुत दूर तक नदी में तैर कर हार को पकड़ने की कोशिश करने लगी लेकिन हार उसके हाथ में नहीं आया ।अब तो सुनहरी दुःखी मन से नदी किनारे आकर बैठ गई और आंखों में आंसू भर कर यह सोचने लगी कि मेरे पति ने तो कहा था कि जब तक तेरे गले में यह हार रहेगा तब तक तेरा मेरा प्यार बना रहेगा ।अब मैं अपने पति को क्या जवाब दूंगी। वह इतना डर गई कि काफी समय वही बैठी रही और आंखों में आंसू भरकर काफी देर ईश्वर से प्रार्थना करती रही कि मेरा हार जो पानी में बह गया है यह किसी  तरीके से  मुझे  मिल  जाए लेकिन बहते हुए पानी से वह हार अब काफी आगे जा चुका था। सुनहरी को नदी किनारे बैठे बैठे काफी समय हो गया था तभी वहां पर एक बूढ़ी औरत जो काफी समय से सुनहरी को रोते हुए और उदास बैठे  हुए देख रही थी उसके पास आकर बोली बेटी में देख रही हूं तू काफी समय से यहां बैठी हुई है ।क्या कोई परेशानी है तो मुझे बताओ पहले तो सुनहरी हिचकचाई फिर जब बूढ़ी माई ने उसको ज्यादा जोर देकर पूछा तो उसने रोते हुए बताया कि मेरा हार नदी में बह गया है अब तो मेरा प्रियतम मेरे से बिछड़ जाएगा तो बूढ़ी माई ने सुनहरी को कहा कि क्या कोई एक हार के लिए अपनी जीवनसंगिनी को छोड़ सकता है। तो सुनहरी ने कहा आप नहीं  समझोगी माता जी ।और इतना कहकर वह सुबक सुबक कर रोने लगी ।
तो बूढ़ी माई को उस पर दया आ गई और उसने अपनी झोली में से एक तुलसी की माला को निकाल कर कहा बेटी यह तुम अपने गले में डाल लो, है तो यह तुलसी की लेकिन मेरे ठाकुर जी की कृपा से तुम्हारे लिए तो यह तुलसी की माला है लेकिन यह सब को हार नजर आएगी तो सुनहरी हक्की बक्की से बूढ़ी माई की तरफ देखने लगी और कहने लगी कि आप क्यों मेरे से मजाक कर रही हो। तो बूढ़ी माई ने कहा कि नहीं मैं मजाक नहीं कर रही तो सुनहरी ने कहा वह हार तो मेरे प्रियतम की निशानी थी यह माला में किसके लिए पहनू और क्यों किसी को धोखा दूं। तो बूढ़ी माई ने अपने झोले में से एक ठाकुर जी की प्रतिमा को निकालते हुए कहा इस माला को पहन लो और इस माला को पहनने के बाद यह भी तुम्हारा प्रियतम होगा क्योंकि तुलसी की माला तेरे ठाकुर प्रियतम को बहुत ही प्रिय है। वह  हार तो तू अपने पति प्रियतम के लिए पहनती थी और यह तुलसी रूपी माला का हार तू इस ठाकुर प्रियतम के लिए पहनो। यह माला सिर्फ तेरे लिए माला है लेकिन सबको यह हार ही नजर आएगी। सुनहरी को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन फिर भी उसका मन करा कि यह पहन ले ।तो सुनहरी ने माला पहन ली ।तभी दूर से उसकी एक सहेली उसके पास आई जो कि काफी समय बाद उसको मिली थी और आकर कहने लगी सुनहरी तू तो शादी के बाद और सुंदर हो गई है तेरे से सुंदर तो यह गले में पहना हुआ तेरा हार है जो तेरे रूप को और निखार रहा है तो सुनहरी हक्की बक्की सी होकर बूढ़ी माई की तरफ देखने लगी। लेकिन बूढ़ी माई तब तक दूर जा चुकी थी। तो सुनहरी ने कहा क्या वास्तव में यह माला सबको हार नजर आ रही है तो वह मन में प्रसन्न होती हुई और बूढ़ी माई का धन्यवाद करती हुई घर की तरफ चल पड़ी। घर जाकर किसी ने भी उसको यह नहीं कहा कि तूने गले में माला पहनी हुई है सबको माला हार ही  नजर आ रही थी। अब सुनहरी रोज उस माला को धारण करके जब स्नान करती थी। तो तुलसी माला को धारण करके  रोज स्नान करने से  उसके शरीर के रोम छिद्र  सब खुल गए और उसने भक्ति रूपी हवा अंदर जाने लगी धीरे-धीरे रोज स्नान करने से उसके रोम छिद्रों से भक्ति रूपी हवा अंदर जाने से उसके शरीर का चोला भक्तिमय हो गया था। अब सुनहरी वह सुनहरी नहीं रही थी उस माला को धारण करके वह अपने ठाकुर जी की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगी थी हर समय ठाकुर जी की सेवा में ही मगन रहती उसका पाठ पूजा करती घर वाले भी कुछ ना कहते क्योंकि वह भगवान का नाम ही ले रही थी कोई गलत काम नहीं कर रही थी ।लेकिन सुनहरी अब तुलसी माला के प्रभाव से सुनहरे मन और तन वाली हो चुकी हुई थी। एक दिन उसका पति उसके पास आया और कहने लगा की मैंने गांव में एक नई जमीन खरीदी है और मुझे कुछ पैसों की जरूरत है क्या तुम मुझे अपने गले का हार दोगी ताकि मैं उसको बेचकर उससे जो पैसे मिलेंगे उसको मैं जमीन  में कम पड़ते पैसों में डाल सकूं ।सुनहरी यह बात सुनकर एकदम से घबरा गई और अपने पति से कहने लगी कि नहीं नहीं अपने जीते जी तो मैं इस हार को अपने गले से कभी नहीं करूंगी। तो उसका पति उसको प्यार से समझाते हुए  बोला कि मुझे जरुरत ना होती  तो मैं तुमसे कभी ना मांगता जब पैसे आएंगे तो मैं ऐसे 10 हार  बना कर दूंगा। अब तो सुनहरी के पांवों तले से जमीन खिसक गई थी अगर वह तुलसी की माला को उतार कर दे देती तो वह दिखने में हार थी लेकिन थी तो वह तुलसा की माला ही ।अब तो सुनहरी के लिए बहुत बड़ी दुविधा आ गई थी। उसने सोचा कि अगर मेरे पति को सच्चाई पता चल गई तो वह अवश्य ही मुझे घर से बाहर निकाल देगा और मुझसे सारे नाते तोड़ लेगा ।तो मैं रात के समय अपने ठाकुर जी को लेकर कहां जाऊंगी अब तो मेरे सर से छत जरूर छूट जाएगी और साथ में ठाकुर जी कहां जाएंगे तो  उसने अपने पति को कहा कि अगर आप चाहे तो मैं सुबह आपको ये हार दे दूंगी तो उसके पति ने कहा कोई बात नहीं मुझे सुबह ही चाहिए। तो सुनहरी ने सोचा कि सुबह अगर मुझे घर से मेरा पति निकाल भी देगा तो मैं अपने ठाकुर जी को लेकर अपनी मां के घर चली जाऊंगी। लेकिन वह अपने पति को इतना प्यार करती थी और अपने घर से उसको इतना लगाव था की इस को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती थी ।वह सारी रात ठाकुर जी के आगे बैठकर प्रार्थना करती रही कि यह कृष्ण कन्हैया तूने द्रौपदी की लाज बचाई थी ।अब मेरी भी लाज बचाओ ।कहकर सारी रात आंसुओं से ठाकुर जी के पांव धोती रही और कहती रही कि वह प्रियतम तो मुझे घर से निकाल देगा  तू भी    मेरे प्रियतम हो, मैं कहां जाऊंगी इतना कहकर रो-रोकर ठाकुर जी के कदमों में सो गई।
सुबह जब वह उठ कर नहा धोकर ठाकुर जी के पास आई तो उसने देखा कि ठाकुर जी के आसपास का सारा फर्श गीला पड़ा हुआ है और जब उसने ठाकुर जी की प्रतिमा को देखा तो वह भी पानी से भीगी हुई थी और उसको  यह देखकर भी आश्चर्य  हुआ कि ठाकुर जी के गले में वही हार पड़ा हुआ है जो कि नदी में बह गया था तो सुनहरी का माथा ठनका और वह सारी बात समझ गई ।वह ठाकुर जी के चरणों में गिरकर जोर जोर से रोने लगी और कहने लगी अरे ओ मेरे प्रियतम मेरी लाज रखने के लिए कब तक तू नदी में गोते लगाकर इस हार को ढूंढ कर लाए हो। तूने तो अपने प्रियतम होने का पूरा फर्ज निभा दिया और ठाकुर जी की प्रतिमा को गले से लगा कर खूब आंसू बहाने लगी।
जिस भक्त के गले में तुलसी की माला धारण होती है ठाकुर जी हमेशा उसके आसपास ही रहते हैं तुलसी की माला को धारण करने से और उसको डाल  के स्नान करने से हमारे शरीर के सभी विकार नष्ट होकर उसमें  भक्ति की धारा का प्रवाह चलने लग पड़ता है। और ठाकुर जी उसके प्रियतम बनकर हमेशा उसके आसपास ही रहते हैं जैसे उन्होंने सुनहरी की लाज रखी वैसे ही हर वैष्णव को तुलसी की माला को धारण करना चाहिए तो उसके ठाकुर रूपी प्रियतम हमेशा उसके आस पास रहकर उसके हर कार्य पूरा  करते हैं ।
बोलो तुलसी मैया की जय।
ठाकुर  प्रियतम की जय हो ।
RADHE RADHE JAI SHREE KRISHNA JI

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