( शाश्वत की कहानियाँ )
!! श्रीरामानुजाचार्य चरित्र - भाग 4 !!
गदेशनिस्पर्शन विस्फुलिंगे निष्पिण्डि निष्पिंढ़यजित प्रियासि..
( श्रीमद्भागवत )
कल से आगे का प्रसंग -
रामानुज ! ओ रामानुज !
क्या है माँ ? क्यों बुला रही हो ? माँ के बुलानें पर रामानुज नें पूछा ।
वो ब्रह्मसूत्र पढ़ रहे थे ।
देख ! हमारे भाग्य खुल गए पुत्र ! देख कौन आया है !
रामानुज जैसे ही बाहर आये ...............
ओह ! सामनें कांचीपुरी के राजा खड़े थे ।
उनके साथ में उनकी 11 वर्ष की पुत्री ।
आइये राजन् ! शास्त्र में राजा को विष्णु भगवान का रूप ही तो माना जाता है ............ससम्मान अपनें घर में रामानुज नें राजा का स्वागत किया ।
कारण क्या है ? एक अकिंचन ब्राह्मण के घर आप राजा पधारे !
राजा को जल इत्यादि देकर, तब पूछा था रामानुज नें राजा से ।
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ये मेरी बेटी है ...................ये मेरी बहुत लाडिली है ।
पर इसके साथ एक दुर्घटना घट गयी ........राजा के मुख मण्डल में उदासी छाई हुयी थी ।
क्या हुआ राजन् ! सारी बातें बताइये ............रामानुज नें कहा ।
आज से 2 वर्ष पहले की बात है ...........मेरी पुत्री अपनी सखियों के साथ बाग़ में खेलनें गयी थी .................
पर बाग़ में ही एक बहुत पुराना पीपल का वृक्ष है ...........खेलते खेलते मेरी बेटी उसी पीपल के वृक्ष के नीचे सुस्तानें के लिए चली गयी ।
और गलती से ....इसनें उस वृक्ष में ही थूक दिया ।
राजा के पसीनें आगये थे ये बात बताते हुए .............पीला चेहरा हो गया है राजकुमारी का .............नेत्रों से आँसू गिराते हुए कहा ........क्या फूलों की तरह थी मेरी ये बेटी !
राजन् ! आप धैर्य रखें और सारी बात पहले इनको बता दें !
ये बात राजा के मन्त्री ने राजा से कही ।
हाँ .........तो उसी पीपल वृक्ष में रहता था एक ब्रह्म राक्षस....उसनें मेरी बेटी को अपनें कब्जे में ले लिया है .........।
ये हर समय डरी डरी रहती है ..........कुछ खाती पीती नही है .......रात्रि में डर जाती है ........सोती नही है ।
रामानुज नें उठते हुए कहा ............आप यादव प्रकाश जी के पास जाइए ............वो आपके कांचीपुरी के विद्वान् भी हैं .......और इन सबके जानकार भी हैं ।
और हे राजन् ! आपतो यादव प्रकाश जी से ही सलाह इत्यादि लेते रहे हैं ...........कोई कर्मकाण्ड इत्यादि भी आपके यहाँ होता था तो यादव प्रकाश जी ही जाते थे .......फिर आज ये रामानुज ही क्यों ?
रामानुज ने इस बात को भी जानना चाहा ।
नही रामानुज ! हमारे राजपरिवार से पहले उन्हें ही बुलाया गया था ।
तुम सही कह रहे हो ........मन्त्रवेत्ता हम लोग उन्हीं को मानते थे ......
पर .................अपनी पुत्री के सिर में हाथ फेरते हुए राजा बोले ......यादव प्रकाश जी से भी कुछ नही हुआ ।
तो मुझ से क्या होगा ? मै तो उन्हीं का छात्र हूँ.......रामानुज नें कहा ।
नही ......हे रामानुज ! तुम से होगा .............क्यों की अंतिम में यादव प्रकाश जी नें हम लोगों से ही कहा था .........कि ब्रह्म राक्षस को मात्र रामानुज ही हटा सकते हैं .............।
राजा नें यादव प्रकाश की सारी बातें बताई ...............
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ह्रां ह्रीं ह्रुं फट् ...........
उनका स्वर तेज़ होता जाता था.............मन्त्रों को चिल्लाते हुए बोलते थे ............यादव प्रकाश जी ।
हे रामानुज ! इस तरह से जो जो यादव प्रकाश जी नें कहा ...... हम नें वही किया .............।
तीन दिन के बाद में वो ब्रह्म राक्षस मेरी पुत्री के ही शरीर से बोला ।
पहले तो खूब जोर का अट्टहास किया ..............पूरा राजपरिवार डर गया था ..........फिर जब यादव प्रकाश नें भी डरते हुए मन्त्रों को जोर जोर से पढ़ना शुरू किया .......तब ब्रह्म राक्षस नें कहा ...........ए यादव प्रकाश ! तेरे इन अनुष्ठानों से मै जानें वाला नही हूँ .......और मेरा कुछ नही बिगाड़ पायेगा तू ! और सुन ! यादव प्रकाश ! तू तो मुझ से भी नीच व्यक्ति है ...........मुझ से भी अधम है तू ।
अरे ! रामानुज जैसे परमपवित्र हृदय के स्वामी से तू ईर्श्या करता है .....धिक्कार है तुझे.....मै तुझे कहता हूँ......इस पूरी कांचीपुरी में अगर मेरा उद्धार कोई कर सकता है .....तो वह रामानुज है .......।
राजा नें कहा ........हे रामानुज ! अब आपका ही आधार है हमें ......हमारी पुत्री को बचा लो उस ब्रह्म राक्षस से !
राजा रामानुज के चरणों में पड़ गया ।
नही ऐसा न करें आप ........रामानुज नें राजा को उठाया .....
और राजकुमारी को देखते हुए ..........उसके नजदीक गए ।
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आचार्य ! मुझे बहुत भय लगता है .............मै रात रात भर सो नही पाती हूँ .............मै अकेले रह नही सकती ...........कोई तेज़ आवाज में बोले तो मेरा हृदय काँप उठता है ............रामानुज से इतना कहते हुए वो राजकुमारी अपनें आँसू बहानें लगी ।
सब मेरा उपहास करते हैं .......अब तो मेरी सखियाँ भी मेरे साथ नही खेलतीं ............वो अरुण अधर काँप रहे थे राजकुमारी के ....जब वो बता रही थी ।
जब भय लगे .........भगवान नारायण का स्मरण कर लिया करो !
आचार्य रामानुज नें शान्त भाव से कहा ।
नारायण का स्मरण ? राजकुमारी सोच में पड़ गयी ।
ये थोड़ी चंचल भी है रामानुज ! बच्ची ही तो है ..........ये क्या स्मरण कर पाएगी नारायण का !
राजा को ये उपाय अच्छा नही लगा ।
अपनें पिता के हाथ में कभी गदा देखी है ? रामानुज नें प्रश्न किया ।
चेहरे में चपलता तुरन्त दिखी राजकुमारी के ।
हाँ .....देखी है .................मेरे पिता जी बहुत अच्छी गदा चलाते हैं .....क्या घुमाते हैं !.............मैने देखी है गदा ।
उससे बहुत बड़ी और तेजोमय है .......भगवान नारायण की गदा ।
वो गदा जब घूमती है ना ......तब आसुरी शक्तियाँ काँप उठती हैं ।
आँखें बन्द करके ...........रामानुज स्मरण करनें लगे थे ......
और कुछ बोल भी रहे थे ..............
कौमोदकीं भगवतो दयितां स्मरेत
दिग्धामराति भट शोणितकर्दमेन ।
शत्रुओं के खून से लथपथ श्रीनारायण की वह प्रिय कौमोदकि गदा का स्मरण कर .............रामानुज नें फिर कहा ।
पर श्री नारायण के तो कोई शत्रु नही हैं ! उनके तो सब अपनें हैं ।
राजकुमारी नें ये बात आचार्य रामानुज से पूछा ।
आहा ! कितना सुन्दर प्रश्न किया है तुमनें .........
रामानुज आनन्दित हो गए ..........
सही कहा - हे राजकुमारी ! भगवान नारायण के तो कोई शत्रु हैं नही .......पर नारायण के जो अस्त्र आयुध हैं ना .....वो भी चिन्मय है ।
भगवान के भक्तों को ......जब कोई कष्ट पहुँचाता है .....तब ये भगवान के आयुध ही उन भगवत्भक्तों को कष्ट पहुंचानें वालों का भी विनाश कर देते हैं ........।
रामानुज नें समाधान कर दिया था राजकुमारी की शंका का ।
प्रणाम निवेदित करते हुए राजा अपनी राजकुमारी के साथ चला गया ।
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क्या है ! कौन है !
अर्ध रात्रि में एकाएक उठ गयी थी वो राजकुमारी ।
उसके कक्ष में मन्द प्रकाश है .....सुगन्धित तैल का दीया जल रहा है ।
उसको डर लगनें लगा ............आज कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी है ।
कहते हैं आज के दिन भूतों की, पिशाचों की सिद्धि की जाती है...तांत्रिक लोग सिद्धि करते हैं ।
डरनें लगी राजकुमारी .............कार्तिक के महिनें में भी उसके देह से पसीनें निकलनें लगे थे .........
ब्रह्मराक्षस राजकुमारी को आज अपने चंगुल में फंसा ही लेना चाहता था.............।
तभी राजकुमारी को याद आई श्री रामानुज की बात ........
और उसनें आँखें बन्दकर ... भगवान नारायण के आयुध का स्मरण किया ...........तीव्र गति से गदा घुमा रहे हैं नारायण .........वो स्मरण करनें लगी ............और गदा इस तरह से घूम रहा है ........वो कभी चक्र जैसा प्रतीत होता है ......और जब उसकी गति रुक जाती है ....तब वह गदा लगता है ।
आसुरी शक्ति उस गदा से बच नही पा रही है .................राजकुमारी स्मरण कर रही है ...........।
तभी राजकुमारी का कक्ष प्रकाश से नहा गया ......सूर्य के प्रकाश के समान तेज़ कक्ष में फैल गया ...........
और एक सुमधुर ध्वनि राजकुमारी के कानों में गूँजी ......
ॐ नमो नारायणाय ....................
भगवान नारायण की वो गदा उस कक्ष में ही प्रकट हो गयी ........
बहुत तेज़ आवाज में कोई चीखा ............चिल्लाया ......पर ये कुछ क्षण के लिए ही था ।
उसके बाद तो चतुर्भुज रूप धारण करके एक दिव्यात्मा प्रकट हुआ ....
हे राजकुमारी ! मै आपको प्रणाम करता हूँ ............मै ही हूँ वो ब्रह्म राक्षस ...............मैने ही आचार्य रामानुज के पास आप लोगों को भेजा था ............और आचार्य रामानुज की कृपा से ..........और भगवान नारायण की विशेष अनुकम्पा से ..........मै मुक्त हो रहा हूँ .....मेरे जैसा अधम पापी भी वैकुण्ठ जा रहा है ...........।
धन्य भाग हैं कांचीपुरी के जहाँ रामानुज जैसे आचार्य रह रहे हैं ..............
नारायण ! नारायण नारायण ! .............
ब्रह्म राक्षस मुक्त हो गया ये कहते हुए ।
राजकुमारी नें भगवान नारायण का स्मरण किया .......उसे मीठा सा आलस्य आया ....और वो अपनी शैया में सो गयी ....आनन्द से ।
इस घटना से अब तो राजपरिवार भी अति सम्मान करनें लगा था श्री रामानुजाचार्य जी का ।
शेष प्रसंग कल .........
Harisharan
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