Full width home advertisement

Post Page Advertisement [Top]

"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 115

*आज  के  विचार*

*( आल्हादिनी शक्ति का रहस्य )*  

*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 115 !!*

***********************************

 साधकों !  ये  "राधाभाव"  की साधना अत्यन्त प्राचीन है.....और गोप्य भी......कुछ  हद्द तक कह सकते हैं कि  ये "तन्त्र" के अंतर्गत आता है ।

पर  सावधान !    तन्त्र कहते ही  साधक डर जाते हैं ......नही  ....बल्कि आप  देखेंगें तो पायेंगें  की "गोपालसहस्त्र नाम"   जो कृष्ण भक्त वैष्णवों का  बड़ा पावरफुल सहस्त्रनाम  है .......सांसारिक कामनाओं की पूर्ति तो करता ही है .......पर  तुरन्त अन्तःकरण को शुद्ध कर कृष्ण के दर्शन का अधिकारी भी बना देता है .....ऐसे उदाहरण मैने अनेक देखें हैं ......और स्वयं का भी अनुभव है ।  

तो  वह गोपालसहस्रनाम  तन्त्र के अंतर्गत आता है  ।

साधकों !   जो  इस राधाभाव की प्राचीन साधना से परिचित हैं .........वह समझेंगें कि  - 

वृन्दावन   और बरसाना   "राधाभाव" के मुख्य केंद्र हैं .......इन स्थानों में  इस भाव की साधना करनें वाले बहुत विरक्त सन्त  थे ......हैं ......वो  एक सिद्ध  युगलमन्त्र को  निरन्तर जपते रहते थे .....हैं ........

राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे 
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे !! 

अभी भी हैं  वो महात्मा,  गिरिराज जी की तलहटी में ........सिद्ध महात्मा हैं .......शरीर में कुछ नही पहनते ...........मैने उनके दर्शन किये ....और एकान्त में उनसे पूछा  कि   "राधा भाव" की प्राप्ति  कैसे हो ?  उनका उत्तर था ..........भगवती  ललिता की आराधना करो ..........फिर कुछ देर में बोले ........युगल मन्त्र का खूब जाप करो   ( जो मैं करता ही था )

फिर उन महात्मा जी नें मुझे कहा..........ये युगल मन्त्र,  तन्त्र के अंतर्गत आता है ......इसे साधारण मत समझना .........यही युगलमन्त्र तुम्हे निकुञ्ज प्रवेश का अधिकारी बना देगा ........फिर  बोले -  पर  भगवती ललिता को अवश्य मना लेना ........उनके बिना कुछ भी सम्भव नही है ........उन्हीं महात्मा के वचन  थे  ये ..........जैसे  श्रीराघवेंद्र के दरवार में बिना  पवनसुत की आज्ञा,  प्रवेश निषेध है .......नन्दी की आज्ञा बिना

शिवालय में प्रवेश निषेध है .......ऐसे ही   ललिता सखी की आज्ञा के बिना  युगलवर  श्रीराधामाधव के निकट पहुँचना भी असम्भव ही है ।

मैं यहाँ ये भी  उद्धृत  करना उचित समझता हूँ  कि ......."राधाभाव"  की साधना करनें वाले   गोरखपुर के  श्रीराधा बाबा जी ............उन्होंने अपनी ये घटना स्वयं बताई है ........"उन्हें युगलसरकार नें आज्ञा दी इस   नवरात्रि में ......कि   भगवती त्रिपुरा सुन्दरी की  साधना करो .........और विधि विधान से करो" ।

 ..विधि कर्मकाण्ड के लिये ,   काशी में रहनें वाले   महामहोपाध्याय प. गोपीनाथ कविराज  जी नें मार्गदर्शन किया था ......श्री राधा बाबा के लिये  नित्य एक सौ आठ कमल के फूल  भगवती त्रिपुरा सुन्दरी की पूजा के लिये ......पूज्य भाई जी ( हनुमान प्रसाद पोद्दार जी  )  नें व्यवस्था कर दी थी  ।

बाद में इस रहस्य का उद्घाटन स्वयं राधा बाबा जी नें ही किया था .........कि  भगवती त्रिपुरा सुन्दरी ही ललिता सखी हैं .......इसलिये मुझे युगलवर नें त्रिपुरा की आराधना करनें को कहा  ।

"श्रीकृष्ण प्रसंग"  नामक अपनें ग्रन्थ में  श्री गोपीनाथ कविराज लिखते हैं .......स्वयं  श्रीकृष्ण नें भी  अपनी ही आल्हादिनी श्रीराधा के साथ  मिलन के लिये त्रिपुरा सुन्दरी की  उपासना की थी  ।

और वैसे भी हम "बृजलीला" में देखते ही हैं -  ललिता सखी की  कितनी हा हा खाते थे  श्रीकृष्ण...और कहते थे - मेरी राधा से मिला दे  ललिते ! ।

क्यों की  इन दोनों को मिलानें वाली  भी  ललिता ही हैं  ।

अच्छा !  एक साधक नें   कल मुझ से मेरा अनुभव पूछा है .......कि  आप क्या कहेंगें  इन "आल्हादिनी शक्ति" की यात्रा के बारे में ?  ...........प्रश्न कर्ता अच्छे साधक हैं ............विद्वान हैं ...............

"आल्हादिनी ब्रह्म की शक्ति हैं .............जैसे - ब्रह्म , फिर परमात्मा फिर भगवान .........अब मेरा जो अनुभव रहा ........परमशान्त ब्रह्म है .....उस शान्त ब्रह्म से होती हुयी ...शक्ति .............भगवान,    जो आकार लेकर प्रकट हुआ है .........और सबको  अपनें हृदय से लगा रहा है .......यहाँ तक "आल्हादिनी"   की जो यात्रा है ......वो कितनी विलक्षण है   ..........मैं साधारण रूप से आपको बता रहा हूँ ..........ताकि आप समझ सकें ।

आप लोगों नें  डेम देखा है ?    नदी को रोककर जो  डैम बनाये जाते हैं वो देखे होंगें ना  ?       बहुत जल होता है उसमें ......अगाध जल राशि होती है .....पर .शान्त होता है ...........उसमें  भी विद्युत तो रहती  ही है  पर शान्त ....जल कणों में ही एक होकर रहती है.........अब विद्युत अभियन्ता यन्त्रों के माध्यम से   पानी से विद्युत उत्पन्न कर ............मोटे मोटे  तारों के माध्यम से  उस बिजली को   पावर हाउस में  सुरक्षित रखा जाता है ........फिर   उसी पावर हाउस से .............घरघर तक ,  कल कारखानें तक,  पँखा  हीटर  रेफ्रिजरेटर  सब चलाते हैं  ।

मेरे साधकों !    ब्रह्म में,  शक्ति  शान्त थी ( ब्रह्म यानि जो सर्वत्र है) .......परमात्मा ( परमात्मा यानि जो योगी के हृदय में प्रकट है )  में  जाकर कुछ हलचल हुयी .......पर भगवान ( भगवान यानि निराकार  आकार लेकर प्रकट हो गया )  तक आते आते  वो शक्ति    जन जन में आल्हाद को,  आनन्द को  प्रकट करनें लगी.........बस  यही है आल्हादिनी शक्ति........और इसी का नाम है  श्रीराधा.।

.........श्रीराधा भाव सर्वोच्च भाव है .......ये प्रेम साधना है .......रस का उपनिषद् है ..........हाँ   इस रस साधना  में   काम, क्रोध द्वेष, राग इन्हीं सबका प्रयोग करके  उस उच्च  भाव में पहुँचना है ..........इन्हीं   कामक्रोधादि से ही सीढ़ी बनाकर चढ़ना है  .......अद्भुत है ये  साधना !

काम यानि इच्छा ...........इच्छा  प्रियतम की ही हो ........क्रोध ........प्रियतम नही .....तो क्रोध .......प्रिय क्यों नही ....इस बात पर क्रोध .......प्रिय   का स्मरण क्यों नही हुआ .....क्रोध । ........अब लोभ .......लोभ,  उसको निहारनें का लोभ ......उसे  छूनें का लोभ ......उसे चूमनें का लोभ ..............इस तरह  से इन  दुर्गुणों को त्यागना नही है ........अपितु दुर्गुणों का ही सही प्रयोग करके  पहुँचना  है  प्रिय के धाम .....यानि निकुञ्ज ...........पर  अंतिम  एक बाधा है ........क्या  ? 

अहंकार छोडो.........यानि  सखी भाव की  प्राप्ति .......

कैसे ?     कैसे .............यही प्रश्न किया   था मान सरोवर में  साधना करते अर्जुन नें भगवती त्रिपुरा से ..........तब जो  उत्तर दिया ...

Harisharan   

**************************************************

मान सरोवर में   अर्जुन  साधना कर रहे हैं........दिव्य वन हैं वहाँ .......मोर अनेक,  पक्षी  आनन्दित हो  कलरव कर रहे हैं........भगवती त्रिपुरा सुन्दरी   अर्जुन की साधना से  प्रसन्न  हो,     प्रकट हो गयीं   ।

शेष चरित्र कल -

Harisharan

No comments:

Post a Comment

Bottom Ad [Post Page]