"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 73

73 आज  के  विचार

( जब उद्धव का विद्या-गर्व गलित होनें लगा..... )

"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 73 !! 

मेरा शब्द ज्ञान,  पर इनका अनुभव गम्य ज्ञान .......मेरा  शब्द ज्ञान कैसे गलित होता जा रहा था - मैं समझ रहा था  ।

उद्धव उस रात यही सोचते रहे........सोया कोई नही ......वैसे -

 "कृष्ण के जानें के बाद  नींद भी हम सब से रूठ गयी है"

ये बात कही थी बृजपति नें .........और मुझे शयन के लिये  आग्रह करनें लगे थे  ।

मुझे भी कहाँ नींद आती ...........उद्धव कहते हैं   ।

आँखें खोलकर मैं लेटा रहा , सोचता रहा  - मुझे जो  कार्य देकर श्रीकृष्ण नें  यहाँ भेजा है ........वो कार्य क्या  मुझ से होगा ?    

समझाना उद्धव !     श्रीकृष्ण ने कहा था ....

   इनको समझाऊँ  ?       जिनको  क्षण क्षण में  भावावेश आजाता है प्रेम  के सागर में  जो डूबते और उबरते रहते हैं.....इनको मैं  कैसे समझाऊँ   !         

सुनिये !    सुनिये ना  !        

उद्धव का  ध्यान  उधर गया ..........वो  उठकर बैठ गए  ......मैया यशोदा  बृजपति से कुछ कह रही थीं  ।

कितना समय हो गया होगा  ?      

 ब्रह्ममुहूर्त होनें वाला है............पर अभी  समय है  ।

मैं स्नान कर लेती हूँ ..........फिर माखन  भी तो निकालना है ।

ये कहते हुए  बेचारी  मैया उठी  ।

बैठो ना  यशोदा !    अभी स्नान करके क्या करोगी ?    अभी रात ही है ।

नही........आज मेरा लाला आएगा.......और आएगा  तो,   आते ही माखन मांगेगा......तब मैं क्या करूंगी  ?  

ओह !   उद्धव  नें  ये जब सुना......सोचनें लगे ........इनको  क्या समझाऊँ ?    कैसे समझाऊँ   !       

हँसी आयी उद्धव को........."मैं  इन मूर्तिमती ममता को क्या क्या ज्ञान दे रहा था.......पर  ये भी इनकी करुणा ही है मेरे ऊपर  कि ...मुझ जैसों को सुन लेती हैं....नही नही  मुझे तो लगता है....मैं जब बोलता हूँ .....तब  वो अपलक मुझे देखती रहती हैं........ओह ! अब समझ आया मेरे .........मैं खुश हो रहा था  कि ......ध्यान से मुझे सुनरही हैं ......पर नही......वो मुझे नही सुनतीं.......वो तो मुझ में  अपनें लाला को देखनें का प्रयास करती हैं........मुझे देखते हुए  वो अपनें लाला के चिन्तन में खो जाती हैं...    उद्धव यही सब विचार कर रहे हैं  ।

उद्धव ! वत्स !   क्या तुम उठ गए हो  ?  

बृजपति नें मुझे आवाज देकर पूछा था  ।

हाँ  पितृचरण !       बृजपति को आज  "पिता" कहनें का  मन किया ।

पिता ही तो हैं   मेरे ये......शायद पिता से भी  बड़े ........मेरे श्रीकृष्ण के पिता हैं.....मेरे लिये तो  सर्वाधिक आदरणीय व्यक्तित्व हैं  ।

क्या यमुना स्नान को  चलोगे  ?  

   बृजपति मुझे अपने साथ यमुना स्नान को  ले जाना चाह रहे थे ........पर  मुझे आज  एकाकी जाना था........क्यों की   गोपों से , गोपियों से विशेष मिलनें के लिये कहा था श्रीकृष्ण नें मुझ से ....और हाँ......."मेरी प्रिया से भी मिलना".......अपनी प्रिया श्री राधा   का  नाम लेते  ही कैसे भाव विभोर हो गए थे मेरे कृष्ण  ।

मुझे उनसे भी मिलना है......विशेष मिलना है.........

ऐसा विचार करते हुये......हे  पितृचरण !    आप जाएँ ......मैं  आनन्द से   वृन्दावन की शोभा देखते हुये   जाऊँगा......और मुझे कृष्ण सखाओं से भी तो भेंट करनी है ........

उद्धव नें जब ये कहा ,  तब   "हाँ तुम्हे  जैसा रुचे".......
वत्स !    मैं जाता हूँ......तुम आराम से  उठो  और   स्नान करनें जाना ।

आप भी ना  !      वो  मैया यशोदा  फिर बाहर आगयी थीं  ।

आप जाइए ना !    स्नान करके आइये ..........इन बालकों को  क्यों  जल्दी उठा देते हैं आप  !     

उद्धव !   कन्हाई  को भी ये  यमुना ले जाते थे......जल्दी उठा देते थे  ।

तू सो जा !   उद्धव !   तू सो जा..........

इतना कहकर  मैया यशोदा फिर गईं  , अब  मुझे आवाज आरही थी दधिमन्थन करनें की   ।

वत्स !  तुम छोटे हो ....यशोदा ठीक कहती है .....तुम सो जाओ अभी  ।  

इतना कहकर   बृजपति चले गए  थे   ।

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उठे उद्धव !     सोये कहाँ थे बस  लेटे थे..........

मन में विचार आया  सूर्योदय से पूर्व का वृन्दावन दर्शन किया जाए ।

वो दिव्य होगा........ऐसा विचार करके    चल दिए थे उद्धव ।

बृजवासियों  के घरों में,  घी के दीये अभी भी जल रहे थे......रात्रि के जलाये दीये  अभी तक बुझे नही थे.....दधि मन्थन  शुरू हो  रहा था प्रत्येक घरों में.......दधि मन्थन के समय  गोपियों के  चूड़ियों की मधुर आवाज आरही थी.......उद्धव को रोमांच हो उठता है ........जब वो चलते हुए सुनते हैं......."हे कृष्ण !  हे गोविन्द !  हे सखे !"  मधुर कण्ठ से गा रही थीं गोपियाँ ........उनके मुख से निसृत ये शब्द  दिशाओं को पवित्र कर रहे थे......उद्धव  आनन्दित हैं   ।

यमुना में स्नान किया उद्धव नें .......बाहर आये .......सन्ध्या और गायत्री का जाप करनें लगे  थे........पर तभी उद्धव नें  देखा -

गोप ग्वालों का समुदाय  दिखाई दिया ... .....उन सबनें  पहले तो शान्त भाव से  स्नान किया ......फिर  उद्धव के पास आये ...........बड़े ध्यान से उद्धव को देखा ........आपस में कुछ  बातें कर रहे थे ...........तभी उद्धव नें अपनी आँखें खोलीं ..................

एक ग्वाल बाल नें पूछ लिया -   कन्हैया आया तुम्हारे साथ ?   

मैं  ज्यादा क्या बोलता.....सन्ध्या और गायत्री के जप में लीन था ।

पर  आचमन करके इतना ही बोला - " अभी तो नही आये"

मेरे समझ में नही आया ........कि  एकाएक ये क्या हो गया था  ....

वो सब ग्वाल बाल  अत्यन्त दुर्बल होगये थे ....क्षण में ही .........वो सब गिर पड़े थे ........

मेरे सामनें बह रही यमुना  सूख कर नाली के समान छोटी हो गयी थी ....

कछुओं की भरमार मुझे दिखाई देनें लगी थी यमुना में ........

मैने चारों ओर दृष्टि घुमाई ...........ऐसा लग रहा था ........कि दावग्नि से झुलस गया हो वृन्दावन ...........

ये क्या होगया था एकाएक वृन्दावन को.....

उद्धव के  कुछ समझ में नही आरहा था  ।

अभी अभी जो ग्वाल बाल  सुन्दर थे .......जिनका सौन्दर्य सुरों को भी मोहित करनें वाला था ........उनके देह  एकाएक  काले पड़ गए थे ।

उद्धव को सन्देह हुआ.......ये जीवित तो हैं  ?    

पास में गए ग्वाल सखाओं के ............

पर  ये क्या  ?   

"कन्हाई तो आगया .......सुनो  बाँसुरी  !      

एक ग्वाल सखा नें  कहा  ।

कहाँ  है  बाँसुरी  ?    हमें तो सुनाई नही दी.......

.सब ग्वाल बालों नें यही कहा ।

पर  "कन्हाई आगया"  इन शब्दों नें ही   उन ग्वालों को  प्रफुल्लित कर दिया था........वो पहले के समान सुन्दर हो गए थे........उनमें  मात्र इन शब्द नें ही   जीवन दे दिया था ......कि "कन्हाई आगया"  ।

कालिन्दी फिर निर्मल हो गयी थी ......जल अगाध आगया था उसमें ....कछुए भी   आनन्दित हो भ्रमण करनें लगे थे  ।

वृन्दावन फिर प्रफुल्लित हो उठा..............

 उद्धव  का सन्ध्या  गायत्री सब छूट गया .........वो  कुछ देर तक सोचते रहे ....चकित होते रहे ........पर   फिर बोले  -  

ये जो मैने देखा अभी.....उसका एक अच्छा परिणाम भी  तो निकला - 
कि  मैं  इस भूमि की दिव्यता से परिचित हो गया ........

अब ये बात भी मेरी समझ में आरही है ......कि  जिस "वृन्दावन" का नाम लेते ही संज्ञा शून्य हो गए थे मेरे नाथ कृष्ण .......उस वृन्दावन को मैने साधारण समझनें की गलती भी कैसे कर दी ।

अब मुझे  दर्शन करनें हैं   श्रीराधा रानी के ............

नही   उनके सामनें  अब मैं कुछ नही बोलूंगा ..........बस उनके चरण दर्शन मिल जाएँ  मुझे .......ओह !  मेरे श्रीकृष्ण की प्रिया !   

राधा राधा राधा........यही नाम  तो उस दिन  श्रीकृष्ण के रोम रोम से निकल रहा था........वो कैसी होंगीं ?     जिनका नाम लेते ही  अश्रुधार बह चले थे  मेरे नन्द नन्दन के......वो श्रीराधा कहाँ होंगी  ?  

ऐसा विचार कर  उद्धव नें सन्ध्या- गायत्री की क्रिया को  वहीं छोड़,   यमुना के पुलिन में ही  विचरण करने लगे थे । 

शेष चरित्र कल -

Harisharan

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