"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 59

59 आज  के  विचार

( सखी ! बैरिन निंदिया भी गयी....)

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 59 !! 

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बरसानें के गहवर वन में  श्रीराधारानी बैठी हैं .............दोनों हाथ धरती में रखी  हुयी हैं ........और हाँ  जहाँ देखती हैं ........नजरें वहीं टिक जाती हैं   कुछ देर तक के लिए  ।

आँसू  आज नही बह रहे ...............कितना बहें  ?      

सखियाँ चारों ओर हैं.....सबके मन में  एक ही हैं विषय है   - कन्हैया......
..और उनकी बातें      ।

शान्त बैठी  श्रीराधारानी  एकाएक मुस्कुरा उठती हैं .............फिर  कुछ ही क्षण में   वो गम्भीर हो जाती हैं ...............कुछ देर बाद  वो सबको चारों ओर देखनें लग जाती हैं ..........ऐसी दशा  देख  श्रीजी की  निज सखियाँ   बस  भगवान से यही मनाती हैं  कि  "कन्हाई" को भेज दो वृन्दावन !.......हे    विधाता !     मिला दो दोनों को .......अब हमसे इनकी ये दशा देखी नही जाती  ।

पता है मेरे सपनें में कन्हाई आये  !        एक सखी नें  कहा  ।

श्रीराधा रानी नें  बड़े प्रेम से उस सखी को देखा ........मानों  श्रीराधा   कह रही हों ......ओह !     तू धन्य है  सखी  ! 

क्या देखा तेनें  ?      ललिता सखी नें पूछा   ।

"मैं यमुना जल भरनें गयी..........वहाँ  जल तो मैने भर लिया ......पर उठाये कौन  ?   मटकी  भारी हो गयी   .....मुझ से उठाया नही गया ।

बस  मैने रोना शुरू किया .........सोचनें लगी    कि  आज कन्हाई होता तो मेरी मटकी उठा देता ना  !     

उस सखी के सपनें  को सब सुन रही हैं  ध्यान से ...........श्रीराधा रानी  मानों एकएक शब्द को पी रही हों ...............

फिर क्या हुआ  ?   ललिता सखी नें पूछा   ।

पता है  तभी   मेरे सामने  कन्हाई आगया !        सब  पगली गोपियाँ  तालियाँ बजानें लगीं ............आगे क्या हुआ ?  

आगे ?     फिर वो मेरे साथ साथ चलता रहा ............मुझे छेड़ता रहा .......हँसी ठिठोली करता रहा ........मैं उससे पूछती रही .......वो बताता रहा......मैने उससे पूछा .........तुमनें  राजा कंस का वध कर   दिया   ....कैसे ?      वो विनम्र होकर बोला ......मैं जब वृन्दावन से जा रहा था  ना  तब  तुम सबनें  कहा था ......"यात्रा मंगलमय हो" ....."तुम हर जगह विजयी ही रहो" ........इसलिये मैं  कंस का वध कर सका .....सखी !  तुम सबके आशीर्वाद से मैं  विजयी हुआ हूँ...........कन्हाई नें मुझ से कहा ....गोपी बोली     ।

अच्छा !  तूनें ये नही पूछा  कि  वो कब आएगा  ?     ये प्रश्न किया   एक सखी नें .......पर   श्रीराधा रानी  को ही सबसे ज्यादा इसके  उत्तर की प्रतीक्षा थी   ।

नेत्र बह चले  उस सखी के ........रो गयी वो सखी  ।

अरी !  क्या बताऊँ  ?        ऐसे ही बतियाते बतियाते वो मेरे  घर तक आया था ......मैं उससे  यही प्रश्न करनें वाली थी .........मैने पीछे मुड़कर देखा.. .....पर  वो नही था ..........वो  अंतर्ध्यान  हो गया था .........मैं रोनें लगी ....तभी  मेरे पति नें  मुझे जगा दिया........ओह !   जब उठी  और मैने जब आस पास देखा ......तब लगा ........रही कंगालन की कंगाल ।

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मैने भी  सपना देखा है......दूसरी सखी  फिर बोली  ।

श्रीराधा रानी नें  उसकी ओर देखा...और इशारे में कहा  - सुना !  

मैं कल सो गयी थी  जल्दी .........मुझे तीव्र ज्वर हो गया था .....तो मैं सो गयी ................

"यमुना जल  भरनें गयी .......जल भर  लिया .......और उठा भी लिया ...........पर  कुछेक कदम ही मैने आगे बढ़ाये थे कि ...........काँटा गढ़ गया .....मेरे पैरों में काँटा गढ़ गया  ।

फिर क्या हुआ  ?    ललिता सखी नें पूछा  ।

फिर क्या होना था ........मैं    रोनें लगी .............मैने कोशिश की .....पर काँटा निकला ही नही ...........मेरे सामनें  अब कोई उपाय नही रह गया था ............मेरे मन में  तभी आया........काश !  कन्हाई होता  ! 

बस .........उसी समय  कन्हाई  आगया ..........कहाँ से आया पता नही ..........मैं   उसे देखते ही   आनन्द विभोर हो गयी  ।

वो आया ...........बड़े प्रेम से उसनें  मेरे पैर का काँटा निकाल दिया ....फिर मेरे साथ ही  चलनें लगा  बतियाते हुए  ।

तुम तो मथुरा गए थे ना  ?   मैने पूछा   ।

हाँ  गया तो था........मुस्कुराते हुए   बोला वह  ।

फिर कैसे आगये  यहाँ  ?  

   मुझे  बहुत अच्छा लग रहा था  उससे बातें करना  ।

सखी !    तू नही है ना  मथुरा में  इसलिये आगया  !   

रो गयी सखी ये कहते हुये ..........कन्हाई नें मुझ से कहा  ।

हट्ट ! झूठे !      मैने   भी उसे कह दिया  ।

तो कहनें लगा .......हाँ  सच में ........तू नही  है ना ! मथुरा में ........इसलिये  मन  नही लगता वहाँ  .............

मैं हँसी ............मैं झूठ क्यों कहूँ  -  मुझे  अच्छा लगा .......मुझे  बहुत अच्छा लगा ..........कहते हुए  वो सखी फिर रो पड़ी ...........।

सखी !  नींद खुल गयी .................सोचनें लगी   क्यों  नींद खुली मेरी .........अभी और सोती  तो शायद  वो   और मेरे पास ही रहते .....

पर ....................

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नही  अब  हम  श्रीराधा से सपना सुनेंगें !    

चन्द्रावली आयी आगे ........नही  हे राधा !   आज मना मत करना ......सुना दो ना  अपना सपना !       

सपना !  कैसा सपना !    और मैं .!.....हँसी  श्रीराधा रानी ।

अब ज्यादा नाटक तो करो मत ..........हमको सुननी है  और वो भी  आज ही  ........हे राधा !    सब सुनना चाहती हैं  ...........

तुमको सपनें  तो आते होंगें  ना !    फिर सुनाओ ना !  

चन्द्रावली  श्रीराधा रानी से  उम्र में बड़ी हैं .....इसलिये  श्रीराधा से जिद्द भी यही कर सकती हैं ......इनका सम्मान श्रीराधा भी करती हैं ।

मौन हो गए सब .......सबकी दृष्टि टिक गयी है   श्रीराधा की ओर ।

गहबर वन  भी   मौन हो गया.....उसे भी सुनना है.....अपनी स्वामिनी का सपना.......पक्षी सब शान्त हो गए.....सखियाँ   सुननें को उत्सुक हैं .....कि  श्रीराधा रानी को  कैसा सपना आता होगा  ।

सखियों !      तुम भाग्यशाली हो कि...... कमसे कम सपनें में तो तुम "प्यारे" से मिल लेती हो......बतियालेती हो.......पर मैं  ? 

अब रो गयीं  श्रीराधा रानी .........मुझ से पूछती हो कि मैं सपना सुनाऊँ .........अरे !  जब से श्याम सुन्दर  मुझे छोड़कर चले गए  .....तब  से  मेरी  बैरन निंदिया भी चली गयी है .........मुझे नींद ही नही आती ......

अरी सखियों !  नींद आएगी  तब न सपना देखूंगी .........और सपना देखूंगी तब तो तुम्हे सुनाऊँगी ना !       हाय !     मैं  ऐसी अभागन हूँ ....जो सपनें में भी अपनें "प्राण धन" को देख नही पाती .......मुझ राधा से भाग्यशालीनी तो तुम लोग हो ......।

इतना कहकर   श्रीराधा रानी  हा कृष्ण ! हा प्राण ! हा गोविन्द !    यही कहते हुये मूर्छित होकर गिर गयीं थीं   ।

शेष चरित्र कल .....

Harisharan

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