49 आज के विचार
( "वो साँवरी सुनारन" - एक प्रेम कहानी )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 49 !!
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प्रेम क्या है ? यदुकुल नरेश वज्रनाभ नें प्रश्न किया ।
मुस्कुराये महर्षि शाण्डिल्य - "जिसमें समस्त रस, सभी भाव उमड़ते घुमड़ते हो उस रस सागर का नाम ही - प्रेम है ।
प्रेम सबमें है ......प्रेम - विहीन व्यक्ति इस जगत में कोई नही है .....हे वज्रनाभ ! तुम्हे पता है ? ईश्वर नें जब जीव को इस पृथ्वी में भेजा तो जीव का एक ही प्रश्न था ........"हम संसार में जा रहे हैं ..........पर संसार को तो "अपार" कहाँ जाता है .......उसका पार कहाँ ? हम तो भटक जायेंगें ..........अनन्त जन्मों तक संसार के राग द्वेष में फंसे रहेंगें ......जन्म फिर मृत्यु .....फिर जन्म.......जीव दुःखी हो गया .......फिर बोला.......आप तक पहुंचनें का कोई तो सरल उपाय बता दो .......की आपके पास कैसे आएं ? जीव नें ये प्रश्न किया था ।
हमारे श्रीकृष्ण तो करुणा वरुणालय हैं .........करुणा से भर गए ....अपनें जीव को बड़े प्रेम से देखते हुए बोले .....मेरी एक डोर तुम्हारे पास ही रहेगी.....उस डोर को पकड़ कर जब चाहो मेरे पास चले आना ।
वो डोर क्या है गुरुदेव ! वज्रनाभ नें पूछा ।
वो डोर है प्रेम की डोर .........महर्षि आनन्दित हो उठे ।
और ये प्रेम की डोर जीव के पास रहती ही है .......इसे कृपा करके भगवान नें ही दे दी है ......ताकि इस प्रेम की डोर को पकड़ कर जब चाहे वो जीव जा सकता है ......अपनें सनातन साजन के पास ।
माँ के हृदय में वात्सल्य देकर भेजा ईश्वर नें ......"वात्सल्य रस" प्रेम ही तो है .......हमारे जो मित्र हैं उनमें "सख्य रस" दिया ........ये प्रेम ही तो है ......हमें पत्नी दी .......हमें प्रेयसि दी........"मधुर रस" ......कहो या "श्रृंगार रस" कहो.......हे वज्रनाभ ! याद रखो........निरन्तर उस कृपालु श्रीकृष्ण की करुणा का स्मरण करो ......देखो ! प्रेम के रूप में सबके घट घट में वही बैठ गया है ........बस कुछ करनें की जरूरत ही नही है .........उसी प्रेम को पकड़ कर वापस जाना है अपनें साजन के घर......अपनें सनातन प्रियतम , सनातन साथी के पास ।
महर्षि नें प्रेम की महिमा का गान किया ।
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भान सरोवर के पास से एक सुन्दर साँवरी सुनारन जा रही थी ।
कोई बिछिया ले लो , अरे कोई तो ले लो !
ऐसे वैसी नही है ये बिछिया.......अनमोल रतन जड़े हैं इसमें ........अरी ! तू तो ले ले ...........देख ! इस बिछिया को मन्त्र तन्त्र से बांध दिया है मैनें......इसको जो लगाकर चलेगी इसकी ध्वनि जिस पति , प्रियतम के कानों में जायेगी ......बस वो तो गुलाम बन गया समझो ।
आहा ! कितना सुन्दर बोलती थी वो साँवरी.........सब बरसानें की सखियाँ उसकी आवाज सुनकर बाहर आगयीं........वो साँवरी थी .......सब देखनें लगीं ........सुन्दर थी .......नही सुन्दर ही नही ......बहुत सुन्दर थी ........रँग साँवरा था ... .....ज्यादा ही साँवरा था ....।
उसकी आवाज में जादू था ...............साँवरी तो थी पर गजब की लग रही थी ...........किसी अच्छे घर की सुनारन लग रही थी ।
तुम्हारे बरसानें में पानी मिलेगो ? थक गयी थी चिल्लाते चिल्लाते ....."बिछिया ले लो" ........सुबह से ही तो चिल्लाये जा रही थी ।
तो क्या तुम्हारी बिछिया एक भी नही बिकी ?
एक गोपी पानी ले आयी थी......और पानी पिलाते हुये पूछ रही थी ।
ना जी ! कछु नाय बिको ...............सुनारन बोली .............
अजी ! हम तो ऐसे ही आय गयीं ............नही तो हम नही जातीं ऐसे वैसे किसी भी गाँव में ..........पानी पी लिया था ..........और वहीँ बैठे बैठे बातें बनानें लगी थी वो सुनारन ।
अब देखो ! हम महलन की सुनारन हैं ..........ऐसे कोई गली कूचे में घूम के बेचवे वारी थोड़े ही हैं .........वो तो आगयीं यहाँ ।
तो क्या कहना चाह रही हो ?
बरसानें की एक गोपी, वो भी तुनक गयी ।
हाँ तो सही कह रही हूँ .
....हमारे इतनें कीमती बिछिया या गाँव में कौन लेगा ?
तू हमारे बरसानें के महल में ना गयी ? गोपी नें फिर पूछा ।
देख लियो बरसाना .......कछु नाय यहाँ ...........हम तो चलीं अब ......
इतना कहकर अपना थैला उठाया सुनारन नें और चल दी ।
अरी ! रुक तो ..........सुन ! महल में चली जा ..........वहाँ खूब तेरी खातिरदारी होगी.......और तेरे सारे गहनें भी बिक जायेंगें ।
बीर ! अब ना बेचनो मोय........गर्मी में वैसे ही परेशान हो गयी हूँ ।
अच्छा ! रुक तो ...........चल मेरे साथ ! वो गोपी चल दी उस सुनारन के आगे आगे ..............
पर कहाँ ले जा रही है तू ........सुनारन भी पूछती जा रही है ।
बृषभानु जी के महल में ........गोपी इतना ही बोली और चलती रही ।
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ये सुनारन है ........पास के गांव से आयी है .............कुछ गहनें लाई है .........देख लो ..........नही तो ये बातूनी बहुत है ...........यहाँ बरसानें में इसके कुछ भी गहनें नही बिके ना .........तो ये बदनामी करेगी बरसानें की ........गोपी इतना ललिता सखी को कहकर चली गयी ।
क्या लाइ हो ? दिखाओ ? ललिता सखी बोली ।
तुमको लेना है ? सुनारन सच में ही ज्यादा बोलती है ।
नही ...........मुझे तो नही लेना .....पर हाँ हमारी लाडिली को लेना है ।
ललिता सखी नें कहा .....और ये भी कहा .......कि पहले हमें दिखाओ ......हमें अच्छा लगेगा तो.........
पर इतना कहते हुए ललिता सखी नजरें गढ़ाकर सुनारन को देखनें लगी थी.........तुम्हे कहीं देखा है ? ललिता सखी नें कहा ।
अजी ! नजर न लगाओ अब हम पर..........घूँघट खींच लिया था उस सुनारन नें ।
अब देखो ! अपनी लाडिली को कहो कि .......उन्हें लेना है तो रुकूँ मैं .....नही तो जाऊँ.......सुनारन बोली ।
हूँ .......... ललिता सखी निज महल में गयीं........बड़ी गहरी नींद में सो रही थीं श्रीजी .......लौट आईँ ..........
नहीं .....जाओ अभी ..........लाडिली सो रही हैं .........।
ठीक है.......सो रही हैं ? तो जगा दो ......सुनारन विचित्र है ।
ऐसे कैसे जगा दें ? ललिता सखी नें जबाब दिया ।
अब हम इतनी दूर से आयी हैं ..........तो क्या तुम्हारी लाडिली उठ भी नही सकतीं ? हद्द है .....ये सुनारन तो लड़नें पर उतारू हो गयी थी ।
कौन ! कौन है ललिते ! श्रीराधा रानी उठ गयीं ।
अरे ! एक काली सुनारन आयी है ............ललिता नें वहीँ से बोला ।
देखो जी ! नही लेना है तो मत लो ......पर ये काली गोरी का भेद न करो यहाँ ............अरे ! मैं सब जानती हूँ ........उस काले कन्हैया नें तुम्हारे बृज मण्डल को घुमा रखा है ...........क्या मुझे काली काली कहती हो ....ये काले बादल न बरसें ना .....तो तुम अन्न न खा सकतीं ।
अरे ! तू तो नाराज हो गयी ......ललिता सखी नें कुछ मनुहार किया ।
काहे नही हों हम नाराज ...............
पर तू है बहुत सुन्दर ......ललिता मुस्कुराईं ।
इतनी सुन्दरता कहाँ से पाई तेनें बता ना ? ललिता बोलनें लगीं ।
मेरा हृदय अब ठीक नही है इसलिये मैं जा रही हूँ ........सुनारन तो जानें लगी ...........।
अच्छा ! अच्छा ! रुक जा ............रुक फिर पूछ के आती हूँ ........
ललिता सखी फिर गयी ...........और इस बार महल के भीतर से वापस आकर सुनारन को भी ले गयी ।
जब जा रही थी निज महल में साँवरी सुनारन .........तब उसकी ख़ुशी देखनें जैसी थी .............वो गदगद् भाव से भरी थी .........वो बोलती भी जा रही थी ...........स्वर्ग फेल है ...वैकुण्ठ भी तुच्छ है इस बरसानें की शोभा के आगे तो ..............आहा ! कितना दिव्य है ये बरसाना और बरसानें में भी ये लाडिली का महल .............
बातूनी सुनारन बोलती ही गयी श्रीजी के निज महल में ।
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ये रहीं हमारी श्रीराधा रानी ..............ललिता सखी नें दिखाया ।
हे लाडिली ! ये है वो साँवरी सुनारन ...........कह रही है पास के गांव से आयी हूँ .............आभूषण लेकर आयी है ........बातें तो बड़ी बड़ी करती है ......बोलती भी खूब है ..............
श्रीराधा रानी नें सुनारन की ओर देखा ........वो हाथ जोड़े खड़ी थी ।
सुन्दर है .........श्रीराधा जी के मुख से निकल गया ।
हम काहे की सुन्दर हैं .......सुन्दर तो आप हैं !
साँवरी सुनारन नें अब बोलना शुरु कर दिया था ।
आप का ही नाम है ना ! श्रीराधा ! आहा ! मैने आपका नाम बहुत सुना है .........और जब से सुना है तब से ही आपको देखनें की इच्छा थी .......सुनारन बोली ।
आहा ! कितना मीठा बोलती है .........सुनारन ! सच में तू मुझे बहुत अच्छी लगी ......पर तुझे देख कर मुझे ऐसा लगता है कि तेरा और मेरा परिचय जन्मों जन्मों का है..........श्री राधा रानी बोलीं ।
अजी ! ये तो आपकी महानता है नही तो हम कहाँ सुनारन .........
अच्छा ! बता क्या चाहिये तुझे ? श्रीराधा रानी उस के पास गयीं ....और उसका हाथ पकड़ उठाया .............
बोल ! क्या चाहती है तू ? ध्यान से देखनें लगीं उस सुनारन को ।
ये घुँघराले बाल........मैने छूए हैं ........ये कपोल ..........जानें पहचानें से लग रहे हैं.......ये हाथ ........श्रीराधा जी को रोमांच होनें लगा....
तुरन्त सुनारन नीचे बैठ गयी ..........मैं आपको पायल पहनाऊँगीं ।
पर तू मोल क्या लेगी ? सुनारन का चिबुक पकड़ कर उठाया ।
मोल ? मोल मैं जो कहूँ ...........सुनारन बोली ।
नही ऐसे नही होता .......जो मोल भाव हो पहले ही बता ....ललिता नें स्पष्ट कहा ।
आप बरसानें की राजदुलारी हो .........फिर ये मोल भाव ?
श्रीराधा जी उस सुनारन की एक एक बात पर गदगद् हुयी जा रही थीं ।
अच्छा ! ठीक है ......ठीक है ...........तू जो कहेगी ।
सुनारन खुश हो गयी .........और उसनें अपनें झोला से आभूषण निकालनें शुरू किये ...............
ये पायल.........हे भानु दुलारी ! ये है पायल..........
इसमें मेरा हृदय है.........लो आपके पांवों को मेरा हृदय सौंपती हूँ ।
पायल लगा दिया सुनारन नें ..............ये कुण्डल ......आपको बहुत जंचेंगे..........लगा दिए कुण्डल ........ये हार .....शुद्ध मोतियों का हार है ..........बहुत कीमती है ........आँखें मटकाती हुयी बोली ।
सुनारन ! अब बता क्या लेगी ?
श्रीराधा रानी नें अंतिम में पूछा ।
मुझे हिसाब तो आता ही नही .......इसलिये मैं क्या कहूँ !
साँवरी सुनारन अब मटक रही थी ।
पर तूनें तो कहा था कुछ नही लुंगी ........ललिता सखी नें कहा ।
गलत बात है ! आप अपनी लाडिली से पूछ लो .......
मैने कहा था ना आपसे .........मोल जो मैं कहूँगी ।
हाँ कहा था .....कहो क्या चाहिये ........श्रीजी नें मुस्कुराके पूछा ।
मौन ही हो गयी थी कुछ देर तक वो साँवरी......कुछ बोल ही नही पाई ।
अरी ! कुछ तो कह .....क्या दूँ मैं तुझे ।
उठकर खड़ी होगयी .......नेत्र सजल हो गए उस सुनारन के .........जब नयनों को देखा श्रीराधा रानी नें ............तब वो चौंक गयीं ।
मुझे एक बार अपने हृदय से लगा लो ...........नेत्र बरस पड़े थे ।
श्रीराधा रानी बस देखती ही रहीं ............उनके भी समझ नही आरहा था कि ये सुनारन तो पहचानी सी लग रही है .........
प्यारी ! बस एक बार अपनें हृदय से लगा लो .............फिर वही बात दोहराये जा रही थी ।
श्रीराधा रानी से रहा नही गया ..........वो दौड़ीं ..........और उस सुनारन को जैसे ही गले से लगाया .....................
तुम ? प्यारे श्याम सुन्दर ? आनन्दित हो उठीं श्रीजी ।
ओह ! तो तुम हो..........वही मैं कह रही थी कि इस सुनारन को कहीं तो देखा है.......ललिता सखी नें हँसते हुए कहा ।
प्यारे ! मेरे प्राण ! मेरे सर्वस्व ! क्यों ऐसी लीला करते हो ?
कपोल को छूते हुये श्रीराधा रानी बोल रही थीं ।
तुम्हारे बिना एक पल भी चैन नही आता ............सच प्यारी !
पर ये क्या ? अन्य समस्त सखियाँ भी वहाँ आगयीं ........और ललिता के कहनें पर सबनें पकड़ लिया ...................
अब श्याम सुन्दर वहाँ से भाग भी तो नही सकते थे ।
श्रीराधा जी बस हँस रही थीं .......आनन्दित थीं ............क्यों न हों आनन्दित .....उनका प्यारा जो उनके सामनें था ।
नेह की गति अटपटी है.........हँसे महर्षि शाण्डिल्य ।
शेष चरित्र कल
Harisharan
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