"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 23

23*आज  के  विचार*

*( "बलिहार प्यारी जू" )*

*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 23 !!*


श्रीराधाश्यामसुन्दर के इस प्रेमरस वर्षा की छींट भी हम पर पड़ जाए तो हम धन्य हो गए !      वो धन्यता सब पर भारी है .........ये प्रेम की यात्रा कहीं रूकती , थकती दिखाई नही देती .........इसमें तो  और और  की माँग ही उठती रहती है .........क्यों की प्रेम अतृप्ति का ही  नाम है ......याद रखो !  वज्रनाभ !   प्रेम एक प्यास जगाती है ........या ये  प्यास किससे बुझेगी  उस ओर  दिखाती है ..........क्यों की हम प्यासे हैं ........बस  किसके प्यासे हैं यही हमें समझ नही आता ............फिर दौड़ पड़ते हैं ....पैसे के लिये .....कि शायद  धन से ये प्यास बुझे .......पर नही .....फिर दौड़ते हैं .........स्त्री  और पुरुष के देह के पीछे  कि शायद इससे प्यास बुझे ........पर नही ..........ऐसे  दौड़ते  रुकते  फिर दौड़ते ...हाँफते....  इस जिन्दगी को पूरा कर देते हैं ......पर  प्यास का पता ही नही चल पाता कि  वो प्यास किससे बुझेगी  .....किससे बुझती ।

हे वज्रनाभ !    ये अनन्त जन्मों की प्यास  जब तक  अपनें सच्चे प्रियतम "जो तुममे ही है" ........तुम्हारी और  टुकुर टुकुर देख रहा है .......कि शायद अब मुझे पुकारेगा .......पर नही ............वो खड़ा है साँवरा ......तुम्हारे ही दरवाजे पर........पर तुम  उसकी ओर देखते ही नही  ।

काश !  तुम  उस सच्चे प्रियतम की ओर एक बार देख लेते !  

मैं सच कहता हूँ ........तुम्हे फिर कहीं  जानें की जरूरत ही  नही पड़ती ।

फिर तो  उस दिव्य प्रेम सरोवर में  तुम भी किलोल करते ..........

भुक्ति की छोडो .......मुक्ति तुमसे आकर कहती  मुझे स्वीकार करो .....तो तुम्हे मुक्ति भी  प्रिय नही लगती .....क्यों की ऐसे  प्रेम सरोवर की क्रीड़ा को छोड़कर कहाँ  उन  ज्ञानियों के शुष्क मुक्ति की ओर तुम देखोगे ।

तब प्यास बुझेगी  ?    वज्रनाभ नें  प्रश्न किया  ।

हँसे  महर्षि शाण्डिल्य ..........प्यास और बढ़ेगी ...........पर इस प्यास पर  करोड़ों तृप्ति  न्यौछावर करनें का तुम्हारा मन करेगा ।

 ये प्रेम है ही ऐसा ।

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मैने तुझे कहा था ना ........बरसानें की किसी भी  सखी की मटकी मत फोड़ना .......पर तुझे तो मेरी बात माननी ही नही है ना !

मनसुख को  डाँटते हुये  कृष्ण बोल रहे थे ..........।

अब मुझे क्या पता थी  कि   वो    सच में ही मथुरा जाकर  कंस के किसी सैनिक को पकड़ लाएगी ..........मैने सोचा था कि  बस ऐसे ही धमकी दे रही है ......मनसुख  रोनी सी सूरत बनाकर बोल रहा था ।

मैने तुझे बार बार कहा है .............पर तू  !     

और साधारण सखी नही है  ये .....ललिता सखी है ..........बरसानें की मुख्य सखी है .....तेनें  उसकी ही मटकी फोड़ दी ........अब भुगत !

सब सखा  कदम्ब के वृक्ष में चढ़े हुए हैं ...........कृष्ण भी  चढ़े हुए हैं ।

मनसुख नें  आज सुबह ही .........ललिता सखी की मटकी फोड़ दी ......

ललिता सखी नें लाख मना किया ............पर मनसुख माना नही .....और  फोड़ दी उसकी  मटकी .........ललिता सखी नें मनसुख को कहा भी था  देख !   मैं  कोई तेरे  नन्दगाँव की  गूजरी  नही हूँ ...........जो तू मटकी फोड़ देगा और मैं कुछ नही कहूँगी ..........पर माना नही मनसुख ........फोड़ दी मटकी ।

ललिता सखी नें  धमकी भी दी थी .....देख  मनसुख के ! .....मान जा !

मैं सीधे मथुरा जाऊँगी .......और वहाँ  तेरी शिकायत करूंगी .........और वहीँ से   किसी  सैनिक को पकड़ लाऊँगी ............

पर  मनसुख माना नही .....और ललिता सखी की मटकी फोड़ दी ।

अब देख !  तू  !   इस ललिता सखी  नें तुम सबको  मथुरा के कारागार में बन्द नही कराया तो !     

इतना कहते हुये  पैरों को पटकती हुयी .....क्रोध में  चली गयी थी .......और जाते जाते ये भी बोल गयी ललिता सखी ...........बस    दो घड़ी में ...........सैनिक आरहा है .......तेरे सब सखाओं को ..........और तेरा वो  कन्हैया .....बुला लियो ........सब को नही पिटवाया ......और तुझे तो कारागार में ........सीधे  मथुरा के कारागार में  ।

हे कन्हैया !  मुझे बचा ले भाई ............मुझे नही जाना कारागार में ।

चुप ! चुप !   खुद भी फंसेगा  और हम सब को  फ़ंसायेगा ............

धीरे से थप्पड़ मारा कन्हैया नें मनसुख को ..........कन्हैया नें मारा तो सब मारनें लगे ................

रुको !   रुको  .......देखनें  दो  ..........कहीं  सच में ही  तो नही ले आएगी सैनिक ,   ये ललिता सखी  ।

वैसे बात की पक्की है .......ललिता ...........श्रीदामा बोल उठा  ।

आज तक  उसनें झूठ नही बोला है .....ये बात तो  पूरा बरसाना जानता है ......वो जो कहती है    करती है.......हाँ  ।

अब तू डरानें दे रहा है हम सबको .......कन्हैया नें  श्रीदामा की ओर देखते हुए कहा  ।

नही ,    मैं तो सच्ची बात बता रहा हूँ............

सच्ची बात रख अपनी अंटी में ..........बताएगा सच्ची बात  ।

हम भी  कम नही है  किसी से.......है ना कन्हैया ?   मनसुख डरते  हुये बोला .......।

तू चुप बैठ,  नही तो पिट जाएगा ! ........फिर एक चपत लगा दी थी कन्हाई नें मनसुख को .........कन्हैया की देखा देखि  फिर सब पीटनें लगे  मनसुख को ...........अब सब चुप हो जाओ ....कन्हैया चिल्लाये ।

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लो !  ले आई ललिता  कंस के सैनिक को ..........कन्हैया के माथे पर चिन्ता की लकीरें स्पष्ट दिखाई देंनें लगीं थीं  ।

अब क्या करेंगें  ?     कन्हैया नें सबकी राय जाननी चाही  ।

करेंगें क्या .......वो सैनिक एक है   हम  पचासों हैं ..........पीट देंगें ...

श्रीदामा बोला  ।

नही श्रीदामा !   कंस राजा को इस तरह चुनौती देना उचित नही होगा । 

सबनें कन्हैया की बात पर  हाँमी भरी  ।

अब तू तो कुछ  बोल !  भोजन भट्ट मनसुख  ?    कन्हैया मनसुख को बोले ..........तेरा ही सब किया है...........अब मुँह खोल  ।

मैं तो भोजन के लिये ही मुँह खोलता हूँ .....मनसुख  सुस्त सा बोला ।

तू अब कारागार में जायेगा .....वहाँ तेरी अच्छे से पूजा होगी .........

सब ग्वाल बाल  मनसुख को डाँटनें और डरानें लगे थे  ।

चुप चुप !   कन्हैया नें सबको फिर चुप किया .......सब लोग कदम्ब के वृक्ष से  देख रहे हैं ......ललिता सखी  एक सैनिक को ले आई है .......

और कदम्ब वृक्ष के पास आकर  बोली ......."ये सब यहीं  हैं ......यही हैं  जिन्होंने  मेरी मटकी फोड़ी" ........जैसे ही ललिता नें सैनिक को बताया ......बस ........फटाफट  कूदे   कदम्ब पेड़ से .ग्वाल बाल.... और सब भाग लिए   ।

बस रह गए  अकेले .........कन्हैया ।

चलो ! आओ नीचे 

.....तेज़ आवाज में सैनिक नें  लाठी दिखाते हुए कहा ।

कन्हैया करते क्या ..........पेड़ से नीचे उतर आये  ।

चंचल नेत्रों से  इधर उधर देखा कन्हैया नें ...........और जैसे ही भागनें लगे ............सैनिक नें  फुर्ती दिखाई और पकड़ लिया  ।

पर ये क्या ?   जैसे ही  सैनिक नें कन्हैया को पकड़ा ..............

कन्हैया को कुछ हुआ ...............ये पकड़  तो ?      

चौंक गए कन्हैया ............सिर अभी तक नीचे था ..........पर ऊपर उठाकर अब  बड़े ध्यान से   देखनें लगे............

फिर अपनें हाथ को देखा.......उस सैनिक के हाथ को देखा ......गोरे हाथ ......और कोमल हाथ ......इस  हाथ के  स्पर्श को मैं जानता हूँ........फिर ऊपर सिर करके  सैनिक को देखनें लगे.....इतना गोरा सैनिक .....

मुस्कुराये अब कन्हैया ...........सैनिक पगड़ी  बाँधे हुए था .......आगे बढ़कर  पगड़ी को जैसे ही हटाया ............वो काले घनें बादलों की तरह केश बिखर गए ...............

अच्छा !  तो आप हैं  ?    नकली मूँछों को हटा दिया ............

नजरें झुका लीं   लाडिली नें ..........शरमा गयीं ...........

पर  आप  हमें  कारागार में कैद कर ही दो  स्वामिनी ! .........कंस के कारागर में नही .....अपनें इस  हृदय के कारागार में ।

इतना कहते हुये ........आगे बढ़कर  अपनी प्राणप्यारी  श्रीराधारानी को  अपनें बाहों में भर लिया था कन्हैया नें   ।

और धीरे कानों में कहा ....."बन गए आपके कैदी .....कर लो न कैद  ।

वो लजीली मुस्कान पे.....कन्हैया नें अपनें आपको न्यौछावर कर दिया ।

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क्या कहोगे वज्रनाभ !

क्या इस रस के आगे ज्ञान, योग, कर्मकाण्ड और मुक्ति भी फीकी नही है ? 

ये प्रेम का सागर है ......जो  इसमें डूब गया ........वही धन्य है ।

फिर कहूँ ........ये आत्मा और परमात्मा की  प्रेम लीला है ....जो अनादि  है ........अनन्त काल से चल रही है .....और अनन्तकाल तक चलेगी .........कोई  ओर छोर नही है इसका ।

महर्षि  शाण्डिल्य इससे ज्यादा क्या कहते  ?   क्यों की  प्रेम में कहा नही जा सकता  यही तो दिक्कत है ..........अनुभव करो  ।

"पुतरिन पलंग बिछाये, पलक की कर दे बन्द किवार"

क्रमशः

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