आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 126 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही !
रामप्रिया ! लक्ष्मण को "वीरघातिनी" शक्ति लगी है ।
घबड़ाई हुयी त्रिजटा बोली ।
क्या ! मेरा हृदय काँप उठा था ............
हाँ रामप्रिया ! मशाल लेकर मेरे पिता विभीषण जब समर भूमि में निकले ...........तब उन्होंने देखा ............लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं ।
ओह ! वो दौड़े हैं प्रभु श्रीराम के पास..........बतानें के लिये कि लक्ष्मण को मेघनाद नें शक्ति मारी है........।
पर इधर मेघनाद अब अपनें रथ से उतरा है ..................
और लक्ष्मण के पास जा रहा है ................
तभी हनुमान भी देखनें के लिये निकले हैं ................पर उन्होंने देखा कि लक्ष्मण को उठानें का प्रयास कर रहा है मेघनाद ।
वायू की गति से आगे बढ़े हनुमान ......और एक लात मारी मेघनाद में .......वो दूर जाकर गिरा है.......पर हनुमान को देखते हुए मेघनाद नें भिड़ना अभी ठीक नही समझा ........"मर गया है लक्ष्मण" ।
"मैं कल राम को भी इसी तरह मारूँगा" ये कहते हुए मेघनाद चला गया ।
हनुमान नें अपनी गोद में उठाया है सुमित्रानन्दन को ..........और लेकर चलें है श्रीराम के पास ।
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सब मेरे कारण हुआ ............सबकी मूल मैं ही हूँ ।
मेरे कारण ही त्रिजटा ! श्रीराम को इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है ।
मेरे कारण ही कितनें निरपराध वानर मारे जा रहे हैं .........और !
मेरी हिलकियाँ फूट पड़ी.............मुझे इस तरह रोता देख त्रिजटा भी अपनें अश्रु रोक न सकी ।
त्रिजटा ! लक्ष्मण को मैने कितना भला बुरा कहा था ....ओह !
मैं बस रोये जा आरही थी ....................
आज लक्ष्मण को मेरे कारण ही शक्ति लगी .........और ! त्रिजटा ! अगर लक्ष्मण को कुछ हो गया तो .............
मुझे समझा रही थी त्रिजटा.........और मुझे बारबार सांत्वना भी दे रही थी कि .......कुछ नही होगा लक्ष्मण को..........रामप्रिया ! मेरा विश्वास करो लक्ष्मण को कुछ नही होगा ।
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श्रीराम नें जैसे ही देखा हनुमान गोद में लेकर आरहे हैं लक्ष्मण को ।
त्रिजटा नें मुझे शान्त करके आगे बताना शुरू किया था ।
क्या हुआ हनुमान ? क्या हुआ मेरे लक्ष्मण को ?
हनुमान नें लक्ष्मण को नीचे वल्कल में सुलाया..........पर मेरे श्रीराम नें अपनी गोद में रख लिया था लक्ष्मण का मस्तक ........।
अश्रु भरे नेत्रों से हनुमान की ओर देखा श्रीराम नें ............पूछ रहे थे क्या हुआ ? ये सब कैसे हुआ ?
प्रभु ! मेघनाद नें शक्ति मारी है लक्ष्मण जी के ऊपर ...........
हनुमान नें बताया ।
तभी सब वानर वहाँ आगये .......सुग्रीव , जामवन्त, अंगद और मेरे पिता विभीषण और अन्य भी ।
देखो ना ! विभीषण ! ये क्या हो गया मेरे भाई को..........
सुग्रीव ! आप देखो ना ..... मेरा भाई अपनी आँखें ही नही खोल रहा ..........लक्ष्मण ! आँखें खोल ना !
भाई ! आज क्यों सो गया तू ? मै तुझे कितना कहता था ........सो जा .....सो जा ....पर तू उस समय तो सोता नही था.......अब आज क्या हुआ ? उठ भाई ! ...उठ !
सब रो रहे हैं रामप्रिया !
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त्रिजटा ! मेरे देवर लक्ष्मण को कुछ तो नही होगा ना ?
बता ना ! अगर कुछ हो गया तो ! मेरी बहन उर्मिला ? ओह !
क्या कहूँगी मैं उसे ? तेरे सुहाग को उजाड़नें वाली तेरी बहन ही है ।
त्रिजटा ! मेरे श्रीराम रो रहे हैं ............ओह ! धिक्कार है मुझे ........सब मेरे कारण है ........मैं मर ही जाती तो अच्छा होता ।
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जामवन्त ! देखो ना ! कोई जड़ी बूटी मंगवाओ ......मेरे भाई लक्ष्मण को ठीक करो ।
फिर रोनें लगे श्रीराम...........लोग क्या कहेगें !
कितना स्त्री लम्पट है राम ......अपनी स्त्री के लिये अपनें भाई को !
हनुमान ! मेरा हृदय काँप रहा है......कहीं लक्ष्मण को कुछ हो गया तो !
बिना लक्ष्मण के मैं अयोध्या जाऊँगा ..? और वहाँ मुझे मिलेगी उर्मिला .............तब मैं क्या कहूँगा ? कि तेरे सुहाग को उजाड़नें वाला यही राम है ..........!
वो बेचारी उर्मिला कुछ बोलेगी तो नही .............पर उसका सर्वस्व तो मैने छीन ही लिया ना ?
हनुमान ! इधर आओ ..........रामप्रिया ! हनुमान को लेकर गए हैं मेरे पिता विभीषण एकान्त में ।
सुनो हनुमान ! लंका में एक वैद्य हैं..........सुषेण ..............उनको लेकर आओ ..........वो बहुत अच्छे वैद्य हैं ............जल्दी जाओ ...........कहीं देर न हो जाए ।
रामप्रिया ! हनुमान चल पड़े हैं वैद्य सुषेण को लानें ।
कैसे वैद्य हैं ये ?
मैने सिसकियाँ भरते हुए पूछा ।
बहुत श्रेष्ठ वैद्य हैं ............रावण के अपनें राज वैद्य हैं ।
हनुमान उड़ चले थे ....................लंका नगर की ओर ।
शेष चरित्र कल ........
Harisharan
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