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वैदेही की आत्मकथा - भाग 125

आज  के  विचार

( वैदेही की आत्मकथा - भाग 125 )

"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -

मैं वैदेही !

रामप्रिया !   अपनें पिता रावण की दशा देखकर मेघनाद क्रोधित हो उठा है ।

पहले तो उसनें  अपनें पिता रावण के पैर छूए......फिर   रावण को  सम्भाला    और बोला ......पिता जी !   आप चिन्ता न करें ......मैं निकुम्भिला देवी   की आराधना करनें जा रहा हूँ......शक्ति प्राप्त कर मैं वहीं से   समर भूमि के लिए प्रस्थान करूँगा.......पिता जी !  आप अब देखिए    आपका ये पुत्र मेघनाद   समस्त वानरों सहित  राम लक्ष्मण को  भी मृत्यु का ग्रास बनाकर ही आएगा  ।

रामप्रिया ! इतना कहकर  मेघनाद चला गया है .............

ये रावण का पुत्र है .........पर बड़ा बलशाली है ............इन्द्र को इसी नें जीता था .........बन्दी बना लिया था देवराज को इसनें   ....तभी से  इसका नाम इन्द्रजीत भी पड़ा  ।

अब कहाँ गया है  ये मेघनाद ?     मैनें त्रिजटा से पूछा  ।

भगवती निकुम्भीला के मन्दिर में .....ये मेघनाद की  अपनी देवी हैं  ।

वैसे  तामसिक उपासना है    हम राक्षसों की .............पर   ये उपासना भी  विधि से की  जाए ............तो फल तुरन्त मिलता है ।

त्रिजटा नें इतना कहा .....और   कुछ देर में  बोली .......रामप्रिया ! 

दिव्य  रथ   प्रकट हुआ है यज्ञकुण्ड  से ...........इस रथ में बैठनें वाला  अदृश्य रहता है .........सामनें वाले को दिखाई नही देता   ।

मैं त्रिजटा की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी  ।

रथ में बैठ गया  मेघनाद ........और अदृश्य होकर चल पड़ा है   युद्ध भूमि की ओर   ।

*****************************************************

युद्ध भूमि में  किसी को समझ में ही नही आया ....कि अग्नि बाण  उन्हें कौन मार रहा है ...........एक साथ   हजारों वानर मरनें लगे हैं ।

वानर लोग  पर्वत वृक्ष लेकर दौड़ते तो हैं ......पर   ............मेघनाद के अदृश्य बाण  उन्हें  मार देते हैं...........चारों ओर वानरों के  मृत शरीर ही पड़े दिखाई दे रहे हैं  अब तो  ।

मैं त्रिजटा की बातें सुनकर घबड़ानें लगी थी  ।

रामप्रिया !     अब तो मेघनाद   और  आक्रामक हो गया है  ।

ओह !   मेघनाद नें सुग्रीव को मूर्छित कर दिया ..............त्रिजटा चिल्लाई ......रामप्रिया !   जामवन्त दौड़े   तब तक जामवन्त को भी मूर्छित ।

अंगद  नें   क्रोध में भरकर  आकाश में छलाँग लगाई ............ताकि उस  अदृश्य  मेघनाद को पकड़ सके .......पर   वो भी मूर्छित  ।

चारों और   रक्त से लथपथ   भूमि हो गयी है ।

नल नील    ये भी ...............त्रिजटा बताते बताते  दुःखी हो गयी  ।

चारों और  हाहाकार मचा दिया इस मेघनाद नें ..............

सबको मूर्छित कर दिया ............पर मेरे पिता विभीषण सामनें आये हैं ......तब   वो हँस रहा है .......चाचा !       मैं नही मारूँगा तुम्हे  ।

नही नही .......ये मत सोचना  कि आप      मेरे चाचा हो इसलिये मैं आपको छोड़ रहा हूँ .........चाचा !  मैं आपको इसलिये छोड़ रहा हूँ .....ताकि  ये सब आपके लोग मर जाएँ ........और आप अकेले  विश्व् में घूमते रहो ...और आपको कोई सहारा न मिले ........तब पता चलेगा कि  अपनें भाई और परिवार को   छोड़नें का  फल क्या होता है  !      

रामप्रिया !    इतना कहकर   उसनें मेरे पिता जी को छोड़ दिया ......बाण  भी नही चलाया  ।

विभीषण !     सुनो !       कराहते हुए जामवन्त उठे ..........पर  फिर गिर गए ...........मेरे पिता  विभीषण उनके पास में गए हैं  ।

हनुमान कहाँ हैं  ?    विभीषण !  बताओ हनुमान कहाँ हैं ? 

क्या  उसे भी मार दिया  मेघनाद नें .......या उसे भी  हमारी तरह मूर्छित कर दिया ........?      

"हनुमान स्वस्थ  हैं".............मेरे पिता नें ही कहा ..........

पर मेरे पिता विभीषण नें  ये पूछा  ........जामवन्त ! आपनें हनुमान के बारे में ही क्यों पूछा है ..........आपको  तो सेनापति सुग्रीव के बारे में पूछना  चाहिये था  ..........

नही विभीषण !    सुग्रीव कुछ नही हैं....अन्य भी कुछ नही हैं ....कराहते हुए बोल रहे थे जामबंत .......अगर  हनुमान स्वस्थ  हैं .......तो ये युद्ध हम जीत ले जायेगें........किन्तु हनुमान अगर  नही रहे ....तो इस युद्ध को हम हार चुके हैं ......जामवन्त नें इतना ही कहा ......और   चारों ओर दृष्टि घुमाई.......हाहाकार मचा दिया है मेघनाद नें.........ओह ! 

त्रिजटा मुझे बता रही थी  ।

शेष चरित्र कल ..................

Harisharan

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