संतो की क्षमा श्राप से भी भारी है

मदनटेर से श्री गोविन्द शरण बाबा जी कहते हैं

"उमा क्षमा श्रापहु ते भारी"

अगर संत तुम्हारे अपराध पर कुछ ना बोले, तुम्हें क्षमा कर दें, तो जान लेना कि तुम्हारी दुर्गति निश्चित है। अगर डांट दिया तो (तुम) बच गए।

एक संत भगवान नाव में बैठे हुए थे, उनके शिष्य भी पास बैठे हुए थे। बड़ी नाव थी, गंगाजी पार कर रहे थे। दो पुलिस कर्मचारी चढ़े। पहले पुलिस घोड़ों पर चलते थे। बंदूक पर संगीन ( बड़ी चाकू) लगी होती थी, वह लिए हुए थे। नाव बहुत बड़ी थी। संत बहुत सिकुड़े हुए बैठे थे। उनके शिष्य भी साइड में बैठे थे। पहले तो पुलिस वाले ने अभिमान में जूते की ठोकर मार कर कहा - ऐ, साइड हटो। तो वे और साइड हट गए। "और साइड हटो"। अब कितना हटे, जगह हो तब ना, तो वे चुप बैठे रहे। तब शिष्य को दो थप्पड़ पुलिस वाले ने मारे, वे शांत बैठे रहे।

नाव पार गई। नाव किनारे तक नहीं जाती जहां कम पानी होता है क्यूंकि नाव गहरे पानी में चलती है।  तो पुलिस वाले जूते पहने थे, इसलिए छलांग लगाने के लिए बंदूक का सहारा लिया और बंदूक नीचे लगाई, और जैसे ही छलांग लगाने को हुआ तो बंदूक पर जो चाकू लगी थी वह सीधे उसकी गर्दन के पार चली गई।

अब गुरु सीधे उठे और शिष्य को कम से कम दस थप्पड़ लगाए। लोग बोले "महाराज इसमें इसका क्या दोष"? गुरु बोले कि "अगर इसने थोड़ा भी डांट दिया होता तो वह मरता नहीं, इसने कुछ नहीं बोला इसलिए उसका नाश हो गया।"

संत कुछ ना बोलें तुम्हारी गलती पर तो यह मत मानना कि वह दब गया। वह तो चुप हो गया लेकिन उसका मालिक तुम्हे दंड देगा।

एक संत कहते हैं
"दुखिया को ना सताइए दुखीया देगा रोए
जब दुखिया का मुखिया सुने तब तेरी गति क्या होय?"

इन संतों को ऐसा न समझो कि ये अनाथ है।  ये भगवान के साक्षात पार्षद हैं जिनके लिए भगवान कहते हैं कि "अहम भक्त पराधीनों"

Post a Comment

0 Comments