आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 124 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही !
त्रिविक्रम के समान आकाश छूता हुआ था वो महाकाय.......कुम्भकर्ण ।
मायामयीदृष्टि से सब कुछ देख लिया था त्रिजटा नें ।
हजारों घट सुरा का पान करके आया है ये कुम्भकर्ण ।
ये रावण का प्रिय भाई है ........रामप्रिया ! ये बड़ा वीर है .........शायद रावण से भी बड़ा ........युद्ध में इसनें यमराज को जीता है ......और इन्द्र तो इससे डरकर समर भूमि को ही छोड़ भागा था .........त्रिजटा जब ये सब बता रही थी ..........तब मेरा ध्यान आकाश की ओर था .......वो दैत्याकार बड़ा भीषण लग रहा था देखनें में ।
त्रिजटा बोली........ये छ महिनें सोता है ......और केवल एक दिन जागता है .......पर हे रामप्रिया ! ये एक दिन में ही हजारों पशु , और हजारों घट मदिरा के पी जाता है ...............।
मैं आकाश में कुम्भकर्ण को ही देख रही थी ..............वो साँस भी ले रहा था तो ऐसा प्रतीत होता था जैसे आँधी चल रही हो ।
रामप्रिया ! इसके छ महिनें पूरे नही हुये हैं.....इसे रावण नें जगाया है .......और जागनें के बाद इसनें रावण को काफी ज्ञान भी दिया है ।
त्रिजटा की बात सुनकर मैं चौंकी .........ज्ञान क्या दिया होगा ?
आपको क्या लगता है ......ये सब महर्षि विश्वश्रवा के पुत्र हैं ..........महाज्ञानी हैं रामप्रिया !
अच्छा क्या ज्ञान दिया ?
रामप्रिया ! इसनें स्पष्ट कहा है दशानन से.....सीता ब्रह्म की आद्य शक्ति हैं .....और श्रीराम स्वयं ब्रह्म हैं......तुम मेरी बात मानों भैया ! सीता को लौटा कर श्रीराम की शरण में चले जाओ ।
तब रावण हँसा .......और उसनें अपनें भाई कुम्भकर्ण से कहा ..........मदिरा का पान करो .... भूख लग रही होगी .......हजारों बलिष्ठ महिष का माँस तुम्हारे लिए मैने तैयार किये हैं ...खाओ .........।
रामप्रिया ! मदिरा सात्विक सोच को बुझा देती है..........
किसको मारना है ?
चिल्लाया था कुम्भकर्ण माँसाहार और मदिरा का भक्षण कर ।
रावण खुश हुआ बोला ...."राम को मारना है"
मैं मसल दूँगा राम को !
इतना कहकर वो युद्ध भूमि की ओर बढ़ रहा है.....देखो ! रामप्रिया ! वो जा रहा है ।
मैं आकाश में ही देख रही थी........उस विशाल राक्षस को ।
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वो खानें लगा है हजारों वानरों को उठाकर ..........वो जहाँ अपनें पैर रख रहा है .........वहीँ सैकड़ों वानर दब कर मर रहे हैं ।
रामप्रिया ! युद्ध भूमि में त्राहि त्राहि मचा दिया है कुम्भकर्ण नें ।
मेरे पिता विभीषण श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय दे रहे हैं ।
पर ये क्या ! खा रहा है ये तो वानरों को........ हजारों वानरों को एक साथ ...........
इस तरह से तो घड़ी दो घड़ी में ही वानर सेना खतम हो जायेगी ।
तभी........ कुम्भकर्ण के ऊपर एक विशाल पर्वत मारा सुग्रीव नें ।
पर उसका असर कुम्भकर्ण के देह पर कुछ नही हुआ ..............।
पर कुम्भकर्ण झपटा सुग्रीव के ऊपर ...............सुग्रीव भागनें लगे थे कि पकड़ा कुम्भकर्ण नें और अपनी काँख में दबा कर राज भवन रावण के पास जानें लगा .........और चिल्लाता हुआ जा रहा था ....."तुम्हारा सेनापति मैने पकड़ लिया है" .............।
वानर सेना दुःखी हो गयी.........उनका राजा ही पकड़ा गया था ।
हनुमान नें देख लिया है .........कुम्भकर्ण प्रवेश करनें ही वाला था लंका में राजभवन के भीतर ......कि ..........काँख में दबे सुग्रीव अपनी शक्ति लगानें लगे .....दांतों से काटनें लगे थे उसके काँख को ......कुम्भकर्ण को पीड़ा हुयी .......और उसनें छोड़ दिया सुग्रीव को ..........
हे रामप्रिया ! सुग्रीव भागे श्रीराम के पास .............पर सुग्रीव के पीछे कुम्भकर्ण भागा .................।
आप ठीक तो हैं ना वानरराज ! श्रीराम के पूछनें पर भी कुछ बोल नही पा रहे हैं सुग्रीव ..........भयभीत थे ये ।
आप लोग अब डरो मत.......समर देखो ......शान्त होकर........
श्रीराम नें कहा ।
हनुमान भी वहीँ आगये थे ......वानर सेना को अपनें पीछे करके श्रीराम आगे आगये ............
कुम्भकर्ण नें श्रीराम को देखा ............एक मुदगल लिया और फेंक दिया श्रीराम के ऊपर .........और अट्टहास करनें लगा ।
रामप्रिया ! श्रीराम नें एक बाण से उस मुदगल को नष्ट करते हुए .......उसके दोनों हाथों को भी काट दिया है ।
पर ये क्या ! उसके कटे हाथों के नीचे भी दब कर पचासों वानर मर गए हैं ................।
दूसरे बाण से ............उसके दोनों पैर काट दिए ....................
कुम्भकर्ण चिल्ला रहा है ...............उसके चिल्लानें से सागर में भी खलबली मच गयी ................
अब तो एक बाण ऐसा चलाया है ......उसका मस्तक काट कर समुद्र में ही डाल दिया प्रभु श्रीराम नें ।
मैंने राहत की साँस ली ।
......रामप्रिया ! समस्त वानर सेना आनन्दित हो गयी है ......सुग्रीव तो कन्धे में बिठाकर श्रीराम को दौड़ रहे हैं ।
जय श्रीराम ! जय श्रीराम ! जय श्रीराम !
आकाश गूँज उठा है इस जयकार से .............
पर रावण नें जब ये सूचना सुनी...........कुम्भकर्ण मर गया !
रामप्रिया ! रावण मूर्छित हो गया है .................।
शेष चरित्र कल .....
Harisharan
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