Full width home advertisement

Post Page Advertisement [Top]

वैदेही की आत्मकथा - 73

आज  के  विचार

( वैदेही की आत्मकथा - 73 )

सुरपति सुत धरि बायस बेषा..
( रामचरितमानस )

**कल से आगे का चरित्र -

मैं वैदेही !

देवराज इंद्र का  वह पुत्र था ......"जयन्त"  यही नाम  था उसका ।

बड़ा वीर था .........सुरों को  उसनें कई युद्धों में  विजय दिलाई थी ।

पर .................

****************************************************

एक दिन  दशानन  नें  धावा बोल दिया  स्वर्ग में .................

अवसर चूको मत  देवताओं !   दशानन रावण बचके नही जाना चाहिये ।

देवराज इंद्र नें   सबको  चेताया ................।

दशानन  चला तो गया था   स्वर्ग में........ पर  उसे पता भी नही चला  कि वह घिर चुका था  .....चारों और से दशानन को देवों नें घेर लिया था ।

"रावण !    आज के बाद तुम   स्वर्ग की और  दृष्टि उठानें की हिम्मत भी नही कर पाओगे" .......अपना वज्र  रावण की ओर किया  इंद्र नें ।

रावण नें चारों और देखा...........देव  पूरी तैयारी के साथ आज थे ।

तभी   मेघनाद आगया ..................क्यों की उसे पता था मेरे पिता स्वर्ग गए हैं .............कहीं किसी विपत्ति में तो नही फंस गए  !

तो मेघनाद  आया .........उसनें देखा ,  मेरे पिता रावण   देवों के  स्वर्ग में  फंसे पड़े हैं.......इधर देखा न उधर .....सीधे   देवराज इन्द्र को ही   पकड़ लिया ...........और इंद्र को पकड़ कर चिल्लाया ...........मेरे पिता को छोड़ दो .....नही तो  देवों  के नायक इन्द्र को मै अभी ........

तुरन्त  सब देवों नें अपनें अपनें  शस्त्र नीचे रख दिए  ।

जयन्त  नें देखा....उनके पिता इंद्र के साथ   अब मेघनाद और रावण   खेल कर रहे थे....और हास्यास्पद स्थिति बना दी थी  रावण नें इंद्र की ।

जयन्त से रहा नही गया ..........तलवार लेकर कूद गया था  ........

पर मेघनाद ...........जयन्त भले ही  वीर हो ....पर  मेघनाद  तो जयन्त  के  पिता  को ही जीतनें के कारण "इंद्रजीत" की  उपाधि पा चुका था  ।

एक  प्रहार ही काफी था  मेघनाद का ...जयन्त के लिये .........

बेचारा दूर जाकर गिरा ..............मूर्छित ही हो गया  था   ।

*****************************************************

क्या कहा ?    दशानन से हम सुरों को मुक्ति दिलानें वाला कोई आया है !

जयन्त नें सुन लिया था  मेरे श्रीराम के बारे में ............देव,  किन्नर , यक्ष  सब आपस में बातें कर रहे थे  ।

क्या  ये सच है ?      जयन्त बहुत खुश हुआ  था   ।

हाँ हाँ  सच है ...........अयोध्या में उनका  जन्म हुआ है .......।

देवों नें कहा  ।

क्या वह मेघनाद से भी  ज्यादा शक्तिशाली हैं  ?  

जयन्त  को मेघनाद ही शक्तिशाली लगता है ..........दशानन से भी ।

क्या वो  अयोध्या के राजकुमार    जितेन्द्रिय हैं ?     

क्यों की मेघनाद जितेन्द्रिय है .............इसलिये  वो वीर है ..........

किसी नें कह दिया  था उस  जयन्त से   कि मेघनाद जितेंद्रिय है ........इसलिये  रावण से भी ज्यादा वीर   है वो  ।

रावण में कम वीरता है ......कारण ?  ......वो विलासी है ........पर  मेघनाद जितेंद्रिय है ..........

तब से   जयन्त भी अप्सराओं से दूर रहनें लगा था ........"मेघनाद के बराबर मै भी वीर बनूंगा" ......उसका यही  लक्ष्य है ..........वो मेघनाद  को  अपना एक मात्र शत्रु मानता है   ।

जयन्त को   ये  अच्छी सूचना मिली थी. ........अयोध्या में किसी नें जन्म लिया है .......जो रावण और उसके  परिवार को  नष्ट करनें वाला है  ।

नाम ?   उसका नाम क्या है ? 

राम .........राम नाम है उसका   ।  जयन्त प्रसन्न हुआ  ।

आज कल कहाँ हैं   वो राम ?

चित्रकूट में ।

 ........जयन्त को  देवों में से ही एक देव नें ये सूचना भी दी ।

वो चल पड़ा था   देखनें के लिये .............चित्रकूट की  ओर  ।

शेष चरित्र कल ......

Harisharan

No comments:

Post a Comment

Bottom Ad [Post Page]