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वैदेही की आत्मकथा - भाग 70

आज  के  विचार

( वैदेही की आत्मकथा - भाग 70 )

सकुचि राम फिरि अवनि बिलोकि .....
( रामचरितमानस )

**कल से आगे का चरित्र -

मैं वैदेही !

कैकेई माँ के मूर्छित होनें से चित्रकूट की सभा उस दिन के स्थगित कर दी गयी थी ..............

"कैकेई मर ही जाये , क्या फ़र्क पड़ता है"   सभा में ही एक अयोध्या के नागरिक नें कह दिया था .....रोषपूर्ण दृष्टि से मेरे श्रीराम नें उसे देखा ।

वो बैठ गया ..............सिर झुकाकर बैठ गया  ।

कैकेई नें  जो गलत किया है ....उसका फल  तो उसे भोगना ही पड़ेगा ना  राम  !    गुरु वशिष्ठ जी नें   उठकर कहा ।

पर श्रीराम नें   स्पष्ट कह दिया ..........हे गुरु महाराज !  जो भी मेरी माँ कैकेई को दोष देगा ......वो जड़ है .......वो मुर्ख है   ।

श्रीराम नें   शत्रुघ्न कुमार की और देखा...........कुमार और लक्ष्मण तुरन्त आये .........मूर्छित माँ कैकेई को लेकर   श्रीराम   उनके शिविर में गए  ।

लक्ष्मण और कुमार शत्रुघ्न चले गए थे .............

मैने अपनी गोद में  माँ कैकेई का सिर रख लिया था ......और  अपनें आँचल से हवा कर रही थी  ।

रा म !    रा म ! 

कुछ देर बाद माँ कैकेई की मूर्च्छा टूटी तो उन्होंने  मेरे श्री राम को ही पुकारा  था  ।

माँ !  मुझे क्षमा कर दो .......माँ !   इस राम को क्षमा कर दो  ।

ये क्या !   

  अब   मेरे श्रीराम  कैकई माँ के  चरणों में गिर कर बिलख रहे थे  ।

नही ..........राम !   ऐसे मत बोल  !     श्रीराम के मुख मण्डल में हाथ फेरते हुये कैकई माँ नें कहा था ।

माँ !  तुम्हारा कितना बड़ा त्याग है ...............ये तुम नही जानती  ।

तुम्हारे इस वरदान से  जगत का कितना कल्याण होनें वाला है....ये तो   जब मैं  लौटके आऊंगा  चौदह वर्ष बाद  अयोध्या    माँ !   आप तब देखना........ ।

इतिहास में  ये  अध्याय शायद नही लिखा जाए .................पर माँ !    सच्चा त्याग तो यही है ना  कि  किसी को पता न चले ..........और हम  बहुत बड़ा उपकार जगत में  कर जाएँ  ।

माँ !  तुमनें किया है ..........................

मेरे श्रीराम  बोले जा रहे थे........और नेत्रों से अश्रु प्रवाह कर रहे थे ।

तभी  उठीं माँ कैकेई ............और  मेरे श्रीराम की प्रदक्षिणा करनें लगीं ..........राम !  तुम्हे सब ब्रह्म कहते हैं ..............देवता भी तुम्हारी स्तुति करते हैं ...............पर राम !  आज ये  कैकेई  तुमसे कुछ माँगना चाहती है...........दोगे ना  राम !    

क्या !    

श्रीराम   स्पष्ट नही बोल रहे थे  माँगनें के लिये  ।

हँसीं कैकेई माँ............... तू तो ब्रह्म है .......फिर  तू देनें में हिचकिचा क्यों रहा है राम !     कह दे ना  -   दूँगा ..............बोल ।

माँ !   आप कहिये तो .......राम उस कार्य को कर सकेगा तो अवश्य करेगा ........माँ की इच्छा कौन  पुत्र पूरा नही करना चाहेगा माँ !

कर सकेगा तो ?   ईश्वर तो सर्वसामर्थ्यवान को ही कहते हैं ना !   फिर ?

कातर दृष्टि से श्रीराम की और देखते हुये    माँ कैकेई नें कहा था ।

सिर झुकाये रहे  श्रीराम  ।

उस शिविर में उस समय कोई नही था.....मै,  मेरे श्रीराम और माँ कैकेई ।

माँग माँ !     क्या चाहिये  ? 

कुछ देर में   बोले थे ...........सोच कर बोले थे  ।

रो गयीं कैकेई माँ.........आज सूखी आँखों में सागर उमड़ आया था ।

कुछ नही चाहिये राम !   बस एक   चीज दे दे .....बस एक  ।

हाँ माँगों ना  !  माँ ! क्या चाहिये  ?       

हिलकियाँ बंध गयीं  माँ कैकेई की .............

मेरे पुत्र भरत से  एक बार मुझे माँ कहलवा दे ।

बस .......भरत के मुख से   मैं  अपनें लिये माँ सुनना चाहती हूँ ।

वो नही बोल रहा ..............वो मुझे माँ कभी नही  बोलेगा ? 

मुझे गर्व है अपनें भरत पर.............पर  राम !  ये कान तरस रहे हैं ............बुलवा दे ना  भरत से   ......... माँ ...........।

मेरे श्रीराम  भी  फिर रो पड़े .................

अंतिम में  इतना ही बोले   ......माँ !  आस्तित्व तुम्हारे त्याग को नमन करेगा ........हो सकता है .............मानवी  तुम्हारा नाम  सुनना न चाहे ......मानव  तुम्हारा नाम   रखना न  चाहे   .....पर  आस्तित्व  तुम्हे  सदैव नमन करेगा ............आप महान हो माँ !  आप महान हो ।

कैकेई माँ  हँसी ..............जा  अब तू !    राम !      जा  !   

चरणों में प्रणाम करके  श्रीराम  चल दिए थे ..............मैं भी  ।

माँ कैकेई के समान त्याग आज तक किसी नें नही किया...न कर सकेगा ।

शेष  चरित्र कल ......

Harisharan

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