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वैदेही की आत्मकथा - भाग 69

आज के विचार

( वैदेही की आत्मकथा - भाग 69 )

जहँ तहँ काक उलूक बक, मानस सकृत मराल....
( रामचरितमानस )

**कल से आगे का चरित्र -

मैं वैदेही !

दूसरे दिन  सभा फिर  जुटी .......एक विशाल सभा  चित्रकूट में  ।

मध्य   बड़ी गादी में  ससम्मान मेरे पिता जी  को बिठाया गया था ।

मेरी माँ सुनयना  ,   सासू माताओं के साथ बैठीं थीं  ।

गुरु वशिष्ठ जी....जाबालि , अत्रि  अन्य  बड़े बड़े  ऋषि भी  विराजे थे ।

भरत  भैया बैठे हैं .......................

"पिता जी के सत्य की रक्षा की जानी  चाहिए" .........मेरे श्रीराम अपनी बात पर ही दृढ थे .......और सभा के प्रारम्भ में ही ये बात कह दी थी ।

"आपके बदले  मैं  जाऊँगा  वन में" .......भरत भैया का स्वर वही था ।

पर मेरे श्रीराम नें स्पष्ट अस्वीकार कर दिया ............

ये पिता के सत्य की  रक्षा कहाँ है  ?

प्रतिनिधि का प्रश्न ही  नही है भरत !     और माता कैकेई नें तुम्हारे लिए राज्य माँगा है .............।

रा  म !   रा  म !        

ये आवाज इतनी तेज़ आयी थी  की सबनें मुड़कर पीछे देखा था ।

माँ कैकेई !   मैं चौंक गयी ..........इस तरह  !      

और इतनी तेज़ आवाज में  बोलते मैने सुना नही था  ।

"राम !  भले ही मैं  अब  तुम्हे राम कहनें की  अधिकारिणी नही हूँ .....क्यों की ये तेरी माता कैकेई  कुमाता होगयी है ............वो लड़खड़ाते हुये सभा के  उच्च मंच पर  चढ़ रही थीं   ।

मेरे श्रीराम नें आगे बढ़कर  उनका हाथ पकड़ा ........और मंच के मध्य में ले आये ........................।

पर तू अभी भी इस दुष्टा को  माता कहता है ...................ये कहते हुये  अपनें हाथों से  मेरे श्रीराम का  मुखारविन्द छूआ था  ।

ये तू ही कर सकता है राम !        जिस कैकेई नें  तुझे ये वल्कल पहनाये ........वनवासी भेष दिया.......उसे  तू  माता कह सकता है !

माँ कैकेई बोल रही थीं ...............और काँप रही थीं   ।

मै किसकी लज्जा करूँ राम !    मै तो  पतित्यक्ता हूँ .....पतिघातिनी हूँ ।

अनाथा  और  अपनें ही अपराध से  अनाश्रिता ............।

राम !    मै इस सभा में कहती हूँ .........जिसे मैने  अपनें उदर में धारण किया  उस भरत के लिये मैने कुछ नही किया ..........मैने जो भी किया अपनें लिए ......फिर हँसती हैं माता कैकेई .......राजमाता कैकेई !

ये कहते हुये  अट्टहास करती हैं  ......राजमाता !   

आप  राजमाता हैं  .......माँ कैकेई !  आप राजमाता हैं ............

चाहे भरत  राजा बने या  राम राजा बने  .....आप राजमाता हो ।

मेरे श्रीराम नें  माता कैकेई को सम्भाला ...।

आप बैठिये ................मेरे श्रीराम नें माता कैकेई को कौशल्या माँ के पास में बिठाना चाहा ।

नही ...........आज मुझे बोलनें दे .......मेरे राम !  आज मुझे बोलनें दे ।

सबकुछ मेरे कारण हुआ है .......है ना  ?  

तो मुझे बोलनें दे आज .................।

राम !     तू तो महान है .....नही नही तू तो भगवान है ..........सच में ।

जिस कैकेई नें पिशाचिनी बनकर   तुझे  राज्य से निर्वासित कर दिया ......उस कैकेई को  बचानें वाला तू ही तो है .........नही तो इस कैकेई के शरीर को  अयोध्या की सेना काटकर  कुत्तों के आगे फेंक देती ।

माता कैकेई उन्मदिनी की तरह लाल लाल आँखें करके ..............इधर उधर देख रही थीं ..............

हाँ तेनें ही तो मुझे बचाया था  राम !    

और ये सीता !       मेरा हाथ पकड़ लिया था कैकेई माँ नें ...........ये सीता ! कल आयी थी,   रात में आयी थी .......कह रही थी  सेवा करूंगी ........सच राम !  तेरी  तरह ही है  ये तेरी पत्नी भी ...........नही तुझसे भी ज्यादा ...........मैने इसे भी  वनवासी कपड़े दिए थे,   वल्कल ...........इसके गहनें उतरवा रही थी ...........और ये  कल रात में आयी .......मेरे पैर  दवानें लगी ...........ओह !  राम !    

"आप  का जिसनें भी अपराध किया है ..........उसकी और से  ये राम ! आपसे क्षमा माँगता है" ................मै समझ गयी थी  माँ कैकेई का स्वास्थ न बिगड़े इसलिये   मेरे श्रीराम   बात को बदल रहे थे ।

नही .....नही ..............क्षमा तू क्यों मांगेगा रे !    

पर एक बात बता राम !  क्या ये कैकेई तुझ से क्षमा माँगनें योग्य है ?

क्या राम ! इस कैकेई को तू क्षमा करेगा  ?

माँ  ! ऐसे क्यों कह रही हो आप  ?   मेरे श्रीराम  के नेत्र बह गए थे ।

मै भी पगली हूँ ना .........मुझे तो सबनें क्षमा कर रखा है .............मेरा दोष कोई देखता ही नही ........अगर इस कैकेई का  दोष कोई देखेगा  तो वो मुझे  मृत्यु नही दे देगा ?        नही ....मृत्यु से भी इस कैकेई के पाप कहाँ कटेंगे  राम !       

मैं तो वो पापिनी हूँ .....जिसे इतना अधिकार भी नही था  कि  पति के शव को अंतिम समय छू भी सकूँ  !

मन्थरा है .........हाँ है मन्थरा.......वही मन्थरा जिसनें तेरे वनवास की भूमिका बनाई .........आज मेरे साथ केवल  वही मूर्खा  मन्थरा है ........पर  वो आज भी  मुझ से स्नेह करती है .......मैं उसे छोड़ भी नही सकती .....क्यों की मै उसे छोड़  दूंगी तो लोग उसे मार देंगें.......मै उसकी रक्षिका बनी हूँ ...........और  वो  मेरी रक्षिका बनी है .......।

मेरे पास आजकल कोई नही आता ......मेरी वो  दासियां  सब  मुझे छोड़कर चली गयीं ..........दास दासी भी  मेरी और इस तरह से देखते हैं ......जैसे  मैं उनकी सबसे  बड़ी शत्रु हूँ  ।

मेरे श्रीराम नें   रोषपूर्ण नजरों से शत्रुघ्न कुमार की और देखा .......

नही नही ........किसी को कुछ मत कह ........किसी का कोई दोष नही है ........राम !        ये मेरे ऊपर इन सबकी कृपा ही तो है ......कि   ये कैकेई अभी भी   जिन्दा है .........।

पर  कैकेई जिन्दा है तेरे कारण ............................

राम !  तू जानता है ...................बस तू जानता है ..................

इतना कहते हुये  मूर्छित ही हो गयीं थीं  कैकेई माता  ।

*****************************************************

कुछ देर में होश आया .......................

राम !   पति से वरदान माँगा  तो पति ने मेरी इच्छा पूरी की ........

राम ! आज मैं अपनें पुत्र से  एक वरदान माँगना चाहती हूँ ।

कैकेई माता के मुख से ये सुनकर  सबनें भरत भैया की ओर देखा ।

नही ........पुत्र तो अब कैकेई का तू ही है ना ?     

बोल देगा ना वरदान ........बोल  ?

क्या कहना है माता आपको ?   मेरे श्रीराम नें कहा ।

कुछ नही   एक वरदान ......................

राम !   मुझे ये वरदान देदे ......कि  इस कैकेई नें जो  दो वरदान मांगे थे तेरे पिता से .......उन्हें  तू भूल जा  ।

नही माँ !  ये नही हो सकता .........श्रीराम नें गम्भीर होकर कहा ।

चरणों में गिर गए मेरे श्रीराम ..........

माँ !  आप आशीर्वाद दो ....कि  ये राम  चौदह वर्ष वन में बिताकर पिता के वचनों को पूरा करे  ।

क्या कहा.......ये कैकेई आशीर्वाद देगी ?  राक्षसी कैकेई,   देवता जिसका अति आदर करते हैं .........ऐसे राम को ये कैकेई  आशीर्वाद देगी  ?

कैकेई को अपनें पति के शव का स्पर्श करनें का अधिकार नही है !

कैकेई को सती होंनें की बात  मुँह से निकालनें का भी अधिकार नही है !

कैकेई को  अकेले मरनें का अधिकार भी नही है !

कैकेई को कुछ बोलनें का अधिकार भी नही है !

कैकेई को अपनें वरदान लौटानें का अधिकार भी नही है !

नही है ....नही है ....नही है..............कैकेई को कुछ करनें का ....कुछ कहनें का  कोई अधिकार नही है ।

..ओह !  कैसा उन्माद था कैकेई माता का ..... चित्रकूट में .......।

शेष चरित्र कल ..............

Harisharan

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