*ब्रज के कण कण में ठाकुर जी का वास है*

             मनोज और कांता की शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई ।दोनों ही एक बैंक में काम करते थे। दोनों के परिवार सत्संगी थे। और उसी सत्संग में दोनों का रिश्ता तय हुआ और ठाकुर जी की कृपा से मनोज और कांता एक ही बंधन में बंध गए ।सत्संगी परिवार होने के कारण मनोज और कांता दोनों ही ठाकुर जी के परम भक्त थे ।नियमित रूप से हरे कृष्णा का जाप करना उनका नियम था। लेकिन कामकाजी होने के कारण वह माला को हाथ में लेकर हरे कृष्ण मंत्र का जाप नहीं करते थे बल्कि काम करते करते ही अपने मन का मनका फेरते फेरते ठाकुर जी का महामंत्र का जाप करते थे। कांता बहुत ही मृदुभाषी शांतिप्रिय और सब का सम्मान करने वाली लड़की थी। ससुराल में आकर सबका सम्मान करना उनकी उसकी आदत में शामिल था ।अब कांता की शादी को 6 महीने हो गए मनोज और कांता इकट्ठे ही बैंक में जाते और काम करते। लेकिन 1 दिन ना जाने कांता को क्या हुआ कि उसको ऐसा लगा कि कोई उसको मैया मैया कहकर पुकार रहा है ।कांता ने जब इधर उधर देखा तो उसको कोई नजर ना आया। लेकिन उसको हर समय यही आभास होता रहता कि कोई उसे मां मां मैया मैया कहकर पुकार रहा है। कांता ने यह बात मनोज से कही तो मनोज ने कहा ज्यादा थकावट होने के कारण शायद तुम्हें ऐसा आभास होता है तुम कुछ समय घर में आराम करो तो कांता ने मनोज की बात मान कर दो दिन की छुट्टी ले ली ।लेकिन अब तो उसे उठते बैठते सोते जागते हर समय यही शब्द सुनाई देते    मैया मैया ।कांता परेशान हो उठी कि मुझे मैया मैया कहकर कौन  पुकारता है ।उसने फिर काम पर जाना शुरू कर दिया ताकि काम में व्यस्त रहने से शायद उसको यह ना सुनाई दे। लेकिन हर समय उसको बस मैया मैया शब्द सुनाई देता। अब कांता ने एक फैसला किया और अपना फैसला सुना दिया कि आज के बाद वह काम पर नहीं जाएगी और घर पर ही रहेगी ।मनोज ने कहा जैसी तुम्हारी मर्जी क्योंकि संपन्न परिवार होने के कारण उनके घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी। यह तो कांता अपनी मर्जी से काम पर जाती थी ।अब मनोज और कांता ने निश्चय किया कि वह अपनी गृहस्थी  को आगे बढ़ाएंगे और 1 साल बाद कांता के घर एक बहुत ही सुंदर कन्या ने जन्म लिया। वह कन्या बहुत  सुंदर गौर वर्ण वाले  थी  कांता और मनोज इतनी सुंदर कन्या को पाकर निहाल होते जा रहे थे सब परिवार के  लोग इतनी सुंदर कन्या को देख कर फूले नहीं समा रहे थे ।कांता की बेटी इतनी गोरी थी  कि उसके कारण चारों ओर रोशनी ही रोशनी नजर आती थी। ऐसे लगता था कि शरद की पूर्णिमा का चांद कांता के घर में साक्षात उतर आया हो ।कांता अपनी इतनी सुंदर बेटी को पाकर निहाल हो गई अब उसकी बेटी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। आसपास के लोग उसकी बेटी को देखने के लिए हमेशा लालायित रहते थे क्योंकि इतनी सुंदर   कन्या उन्होंने कभी नहीं देखी थी। हर कोई उसको देखना चाहता था उसको छूना चाहता था ।कांता को भी अपनी बेटी पर बहुत मान था। जब कांता की बेटी थोड़ी सी बड़ी हुई और उसने सबसे पहला शब्द मुंह से निकाला कान्हा । कांता और मनोज उसके मुख से ये शब्द सुनकर हैरान हो गए क्योंकि उसने सबसे पहला शब्द मां और बाबा नहीं बल्कि कान्हा  निकाला। कांता और मनोज यह सुनकर बहुत खुश हुए कि उनकी बेटी नंदिनी ने सबसे पहला शब्द कन्हैया बोला है ।अब धीरे-धीरे नंदिनी और बड़ी होने लगी लेकिन कांता को यह सुनकर और हैरानी हुई कि उसकी बेटी उसकी भाषा ना बोलकर बल्कि ब्रज की भाषा बोलती थी और वह उसको मैया कहकर पुकारती थी ।उसके घर में कोई भी ब्रजभाषा नहीं बोलता था। लेकिन नंदनी तो ऐसी ब्रज भाषा बोलती थी जैसे वह ब्रज में ही रहती हो । अब नंदिनी और बड़ी होने लगी ।अब नंदिनी 10 साल की हो चुकी थी। लेकिन एक दिन कांता को ना जाने क्या हो गया कि उसकी पीठ पर बड़े-बड़े घाव हो गए और उन घावों में से खून रिसता रहता था ।कांता को जब भी  दर्द होता तो  वह कृष्णा कृष्णा कहकर ठाकुर जी को  पुकारती।नंदनी  अपनी मां को दुखी देख कर बहुत दुखी होती थी और वह कांता की पीठ पर हमेशा मरहम लगाती और कहती मैया चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा ।मेरे कन्हैया सब ठीक कर देंगे ।लेकिन कांता का दर्द और ही बढ़ता जा रहा था ।1 दिन शरद पूर्णिमा का दिन था कांता ने खीर बनाई और उसका भोग ठाकुर जी को लगाया और साथ में उसने नंदनी को बोला कि बेटा मेरे से छत पर नहीं जाया जाएगा क्या तुम छत पर जाकर चंद्रमा को खीर का भोग लगा दोगी। नंदिनी ने कहा कि हां  मैया। लेकिन वह कहती मैया थोड़ी देर रुको मैं अभी आती हूं और जब थोड़ी देर बाद वो वापस आई तो कांता नंदिनी का रूप देखकर हैरान हो गई क्योंकि नंदनी खुद इतनी गौर वर्ण वाली  और  रूपवान थी और ऊपर से  उसने सफेद रंग की पोशाक धारण कर रखी थी ना जाने वह कहां से सफेद रंग के पुष्पों की माला गले में डालकर बालों पर सफेद रंग के फूलों का गजरा लगा कर हाथों और पैरों में भी फूलों की माला को पिरोकर और बाजुओं पर भी सफेद फूलों की माला को बांधा हुआ था ।कांता ने उसका रूप देखा  और  वह इतनी हैरान हो गई उसे ऐसे लगा कि चांद छत पर नहीं बल्कि उसके आंगन में आ गया हो वह नंदनी के रूप को ही निहारती रह गई।   तभी नंदिनी मां से बोली लाओ मैया  मैं चांद को भोग लगा कर आती हूं और वह खीर को लेकर छत पर चली गई। क्योंकि कांता के शरीर पर घाव होने के कारण वह सीढ़ियां नहीं चढ़ सकती थी ।नंदनी को छत पर गए काफी देर हो चुकी थी कांता को अब धीरे-धीरे छत से नूपुर की ध्वनि और बांसुरी की ध्वनि सुनाई देने लगी। कांता हैरान हो गई छत पर कौन बांसुरी और नूपुर बजा रहा है ।उसने नंदनी को काफी आवाज लगाई लेकिन नंदनि की कोई आवाज  वापिस नहीं आई तो कांता को फिक्र होने लगी तो वह अपने दर्द की परवाह न करते हुए धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़कर उपर गई तो वहां का दृश्य देखकर वह हैरान हो गई की नंदिनी पर चांद की पूरी किरणे पड़ रही हैं और वह बहुत ही सुंदर नृत्य कर रही है ऐसे लग रहा था कि नंदनी अकेली नहीं बल्कि उसके साथ कोई नृत्य कर रहा हो। वह नृत्य करते-करते बिल्कुल कोई अलौकिक कन्या लग रही थी।  ऐसा दृश्य देखकर कांता अंदर तक कांप  गई कि आज नंदनी को क्या हो गया है उसको तो यह भी आभास  नहीं था कि उसकी मां उसके पास खड़ी है  कांता  ने सोचा यह उसके साथ कौन नृत्य कर रहा है जो मुझे दिखाई नहीं दे  रहा लेकिन मुझे नूपुर और बांसुरी की धुन सुनाई दे रही है ।न तो  बांसुरी बजाने वाला नजर आ रहा है और ना ही नंदिनी के पांव में घुंघरू है। वह सब यह देख कर हैरान हो गई। वह नंदनी को आवाज ही देने लगी लेकिन नंदनी तो अपनी ही धुन में मगन थी तभी एकदम से नंदिनी नृत्य करती करती रुक गई और कांता की तरह देख कर कहने लगी मैया तुम आ गई मुझे माफ कर दो। कांता कहने लगी कि नंदिनी तुम मुझसे माफी क्यों मांग रही हो और यह तुम्हारा कोन सा रूप है तुम्हारे साथ कौन  नृत्य कर रहा है और कौन  बांसुरी बजा रहा है ।
क्या तुम मेरी नंदिनी ही  हो ना। तो नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा मैया आज मैं तुम्हें सारी बात बताती हूं। तेरे घर जन्म लेने से पहले मैं ब्रज की नार थी। वहां पर मैं हर समय अपने कान्हा को  रिझाती रहती ।उसके सामने नृत्य करती उसको भजन सुनाती उसको लिए नए-नए फलों का भोग लगाती नित नए व्यंजन बनाती ।उसके लिए फूलों की माला बनाती ।बस यही मेरा काम था कान्हा तो मेरे रग-रग में था। लेकिन एक दिन  मै बगिया में से अपने कान्हा के लिए भोजन बनाने के लिए कुछ सब्जियां उतार रही थी तभी एक गाय जो कि उन सब्जियों को खाने लगी तो मैंने उसको बहुत मिन्नते  कि मैया यह सब्जी का भोग तो मेरे कान्हा को लगेगा। लेकिन वह गैया नहीं मानी तो  मुझे गुस्सा आ गया और मैंने  एक  लट्ठ उठा कर उस गाय को जोर-जोर से उस लट्ठ से उसको मारना शुरू कर दिया। उसके शरीर पर बहुत घाव हो गए और उन घावों को वह न सहते हुए उसने दम तोड़ दिया और इतने बड़े पाप को करके मुझे भी बहुत पछतावा हुआ और इस चिंता के कारण मैंने भी जल्दी अपने प्राण त्याग दिए ।वो गैया और कोई नहीं बल्कि तुम थी और वह   मैं वो गोपी थी । मैं तुमसे माफी मांगना चाहती थी इसलिए जब तुम   बैंक में काम करती थी और तुम्हें मैया मैया की आवाज सुनाई देती थी वह मैया मैया मै ही पुकारती थी ताकि मैं तेरे घर जन्म लेकर तेरे कर्ज को उतार सकूं। और यह जो घाव तुम्हारी पीठ पर घाव  है यह वही घाव  है जो मैंने तुम्हें दिए थे ।आज उन्हीं घावों पर मरहम लगाने के लिए मुझे तुम्हारे घर जन्म लेना पड़ा। क्योंकि ब्रज में अगर कोई  किसी बृजवासी चाहे वह पशु या पक्षी हो उस पर अत्याचार करता है तो उसकी कोई भी माफी नही है उसको तो अपनी करनी का फल भोगना ही पड़ता है। इसलिए ठाकुर जी का मै निरंतर जाप करती रहती थी इसलिए ठाकुर जी ने मुझे अपने नाम के साथ जोड़े रखा लेकिन मुझे ब्रज से दूर कर दिया ।यह मेरे लिये  सब से बडी सजा थी।ब्रज  से दूर  रहना  मतलब  मेरे लिए  सब से बडी सजा।लेकिन  मेरे  कान्हा  तो करूणा अवतार  आज  मेरे  गुनाहो को माफ करते हुए  आज  शरद पूर्णिमा के दिन  अपनी  गोपी संग रास रचाने आए थे ।यह नुपूर और  बासुंरी की आवाज़ मेरे  गोप कान्हा  की थी। अंत समय मैं कृष्ण कृष्ण का जाप  करती रही इसलिए मुझे कृष्ण तो मिल गए लेकिन ब्रज से मैं दूर हो गई आप इस जन्म में मैं तेरे इस घाव  को मै ठीक करूंगी और मैया तुम मुझे माफ कर देना ताकि मैं जब इस संसार से विदा हूँ  तो मुझे दुबारा ठाकुर जी की कृपा से ब्रज में वास मिले। इसलिए हमें कभी भी ब्रज  में रहने वाले किसी भी जीव  जंतु को नुकसान नहीं  पहुँचाना  चाहिए क्योंकि ब्रज के कण कण में ठाकुर जी वास करते हैं चाहे वह लता पता हो पशु पक्षी हो चाहे ब्रजरज हो ।उसमें ठाकुर जी का वास है इसलिए हमें बृज में रहने वाले हर एक इंसान और जीव-जंतुओं को नमन करना चाहिए और हमें अपना स्वभाव ऐसा बना लेना चाहिए कि हम अंत समय श्री कृष्ण  को ही भजे। क्योंकि अंत समय हम जिसको भजेगे हमें अगला जन्म वैसा ही प्राप्त होगा। इसलिए हमें निरंतर कृष्ण जाप करते रहना चाहिए।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
गौर दासी   सुरभि के शब्दों से🙏🌹🙇🌹

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