‘‘ जहाँ कोई होता है , वहाँ तो प्रेरणा कर देता हूँ । नहीं होता तो स्वयं आता हूँ । ’’

एक संत की बात है । वे बदरीधाम जा रहे थे । रास्ते में जुलाब लगने लगी । चालीस - पचास बार शौच लगीं । अब साथियों ने उन्हें छोड़ दिया । वे बेचारे रास्ते से कुछ हटकर जंगल में एक गुफा में जाकर पड़े रहे । दूसरे दिन एक बूढ़ा आया । एक पुड़िया दवा और दही - भात लेकर । संत ने दवा खा ली और दही - भात खा लिया । तीन - चार दिन वह रोज दवा और दही - भात लाता रहा और वे खाते रहे । तीन - चार दिन बाद उनके मन में कौतूहल हुआ कि यह कौन है । अतः जब वह दही - भात लेकर आया ।

तब उन्होंने उससे पूछा -- 

‘‘ तुम कौन हो ? ’’ 

उसने कहा --

‘‘ इससे तुम्हें मतलब ?  दवा लो , दही - भात खा लो । ’’

संत बोले --

‘‘ पहले बताओ कि तुम कौन हो ? ’’ 

वह बोला --

‘‘ यह नहीं बताऊँगा । ’’ 

बाबा बोले --

‘‘ मैं भी दही - भात नहीं खाऊँगा । ’’ 

उसने कहा --

‘‘ मत खाओ ’’

और यों कहकर वह लौटने लगा ।  पुनः कुछ देर बाद आया और बोला --

‘‘ खा लो । ’’ 

बाबा बोले --

‘‘ बताओ । ’’ 

आखिर वहीं उस बूढ़े की जगह भगवान प्रकट हो गये । 

संत बोले --

‘‘ महाराज ! कुछ अनुमान हो गया था कि इस भयानक जंगल में आपके सिवा और कौन होगा ।  पर नाथ !  क्या स्वयं आप इस प्रकार की सेवा भी करते हैं ? ’’ 

भगवान ने कहा --

‘‘ जहाँ कोई होता है , वहाँ तो प्रेरणा कर देता हूँ । नहीं होता तो स्वयं आता हूँ । ’’ 

यह सच्ची घटना है और कुछ ही समय पहले की बात है ।

( परम श्रद्धेय संत श्रीराधा बाबाजी )

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