"पुनर्जन्म" एक कहानी

आज  के  विचार

( "पुनर्जन्म" एक कहानी  )

अन्तेमति सा गति ....
( पद्मपुराण )

डॉक्टर हडसन.....अमेरिका के  एक अच्छे  डॉक्टर ।

एक कनाडाई युवती से  कुछ वर्ष पहले ही तो इन्होनें प्रेम विवाह किया था .........।

पर ये बात महत्व की नही है ..............महत्व की ये है  की विधाता की सृष्टि में इन्होनें भी एक योगदान दे दिया  ।

एक सुन्दर सा बालक जन्मा था  डॉक्टर  हडसन को  ।

और देखते ही  देखते  वह बालक कब बड़ा हो गया ,  ये हडसन दम्पति को पता ही नही चला  ।

कितना सुन्दर समय बीत रहा था.........अच्छी  गृहस्थी किसकी मानी जायेगी ?.........उसी की ना ....जिसके पास धन हो ....सुन्दर और  सुगृहणी हो .....और समय पर सन्तान हों  ।

ये सब तो था  डॉ. हडसन के पास........पर  पाँच वर्ष की उम्र में उसका  बालक  जैसे ही पहुँचा  .....उस बालक नें  तो  धड़ाधड़ संस्कृत  बोलना शुरू कर दिया था  ।

पहले तो  माता पिता नें इस बात को  गम्भीरता से नही लिया ...........पर  जब देखा  कि  बालक  कोई  गैर भाषा बोल रहा है .....और ये भाषा पाश्चात्य देशों की भी नही है ......पूर्व में  बोली जाती है ।

डॉक्टर हडसन नें अपनें  एक मित्र को बुलवाया .............कम्प्यूटर लेकर आया था उसका मित्र ..........उस भाषा की जानकारी ली गयी  कि ये बालक  एकाएक  क्या बोलनें लगा !

कम्प्यूटर नें उत्तर दिया ...........संस्कृत  ।

संस्कृत  ?           ये कहाँ की भाषा है ? 

हडसन दम्पति के  माथे से पसीनें चूनें लगे थे  ।

सुदूर पूर्व में,    और  आज से  1000 वर्ष पहले "बोल व्यवहार" में बोली जानें वाली भाषा है ........संस्कृत ....इसका मुख्य केंद्र है  इण्डिया ।

पूरी जानकारी के साथ बोला था  हडसन का मित्र  ।

तो हम लोग इण्डिया चलते हैं..................मिसेज हडसन जिद्द करनें लगी ......माँ  तो माँ है ..........।

पर  हडसन के मित्र नें     दम्पति को शान्त कराया  .........।

संस्कृत जाननें वाले  मेरे  एक  प्रोफेसर हैं.........अरे !  वो तो  बड़े वैज्ञानिक  भी हैं ............डॉक्टर हडसन  उछल पड़े ।

हाँ हाँ .......मै भी जानता हूँ ......डॉ.हडसन नें कहा  .........मित्र !  वो तो इण्डिया भी गए थे .............मित्र नें उत्तर दिया ......हाँ गए थे .....और उनका कहना था  कि  इण्डिया के प्राचीन विचार धारा को बिना समझे ........पूर्ण रूप से "मन" को नही समझा जा सकता  ।

हाँ .....मुझे याद है ......................दोनों मित्र खुश हो गए  ।

और  उन दोनों नें   कल ही चलना  निश्चय किया   था  ।

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प्रोफेसर साहब !     गुड़ मॉर्निंग !     

हडसन दम्पति  उनका वह बालक ..........और   मित्र ।

ये लोग  सुबह ही सुबह प्रोफेसर के यहाँ पहुँच गए थे  ।

ओह !  आइये  !   आइये  !

उठे  वो प्रोफेसर .................कितनी  अच्छी गाय  रखी हैं आपनें  ।

हाँ .............गाय के शरीर में   गिनती के  10 बार  हाथ फेरो  .....तो बी पी कण्ट्रोल में आजाती है ........है ना  आश्चर्य की बात  ।

प्रोफेसर नें   उन आये लोगों को ये   बातें बताईं  ।

और  एक कप में गौ मूत्र रखा था ......उसे लेकर  पीनें लगे  प्रोफेसर ।

सॉरी  !  मैने आपको पूछा नही ..............क्यों की ये कॉफी या टी नही है .....ये गौ मूत्र है ............और इसके पीनें से   कैंसर जैसी बीमारियाँ  ठीक हो जाती हैं ...........अल्सर,   ब्लड की खराबी .........ऐसे कितनी बीमारियाँ हैं ........जो गौ मूत्र से ठीक हो जाती हैं ....।

लगता है ......इण्डिया से यही सब सीख कर आये हैं ......प्रोफेसर ।

मन ही मन बोल रहे थे हडसन दम्पति ।

तभी पीछे से आवाज आई............

" गावो विश्वस्य मातरः "

हडसन दम्पति की गोद में बैठा  वो पांच वर्ष का बालक बोल पड़ा ।

प्रोफेसर चौंक गए.......ये  संस्कृत के श्लोक बोल रहा है ....और शुद्ध ।

डॉ . हडसन !  बहुत बढ़िया किया ............संस्कृत पढ़नें  से मानसिक रोग भी ठीक होते हैं .......डॉ . तुमनें ठीक किया इस बालक को अभी से  भारतीय भाषा ,  ये कहूँ देवों की भाषा तुम सिखा रहे हो  ।

नही ..........प्रोफेसर !   नही ..............हमनें कुछ नही सिखाया .........ये   दो दिन से  ऐसे ही बोल रहा है ..........हडसन दम्पति बोले जा रहे थे ..........।

एकाएक ?       एकाएक कैसे बोल सकता है  ?

कुछ सोचनें लगे थे    प्रोफेसर  ।

हाँ ............आप मेरी पत्नी से  भी पूछ सकते हैं ..........पता नही क्या हुआ ........दो दिन पहले से ही  ये धड़ाधड़ संस्कृत बोलनें लगा ।

पत्नी नें  भी बताया ...............और  ये गम्भीर हो गया है  तब से ।

माथे में सिलवट सी पड़नें लगीं थीं  प्रोफेसर के  ।

माँ के आँसू बह चले .......प्लीज़ ! प्रोफेसर  इस बालक को   आप ठीक कीजिये .........प्लीज़ !     उन प्रोफेसर  के  सामनें  प्रार्थना की मुद्रा में खड़ी हो गयी थी   मिसेज हडसन  ।

हाँ ....हाँ .........मै देखता हूँ इसे .........

मै बात   कर सकता हूँ इससे  ?   प्रोफेसर नें पूछा ।

हाँ हाँ ......क्यों नही ..........................

दम्पति हडसन   एक हॉल में गए ..........उनका बच्चा भी साथ में था ।

और   उनका मित्र भी  ।

स्नानादि से निवृत्त होकर   आगये  थे प्रोफेसर ।

"नाम किमस्ति तव  ?     प्रोफेसर नें   बालक से पूछा ।

मम नाम  "राधा चरण दास"  ।  बालक नें उत्तर दिया ।

त्वम् कुत्र वसतिस्म ?    प्रोफेसर नें फिर  पूछा ।

भारत देशे  वृन्दावन !.........बालक नें उत्तर दिया   ।

अहो   आश्चर्यम्  !      प्रोफेसर  चकित थे  ।

पर वह बालक  शून्य में तांक रहा था ..................

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80 वर्ष के  वयोवृद्ध थे वे ..............संयमी,  तपस्वी ,  साधना के प्रति   समर्पित ............।

जब इनकी उम्र   15 वर्ष की थी ...........तभी    ये वृन्दावन आगये थे ।

गुरु  भी ऐसे मिले  ...............जिन्होनें   निस्वार्थ भाव से  परमार्थ का मार्ग  इस बालक को दिखा दिया  ।

बालक  नें भी  सेवा खूब की ...........साधना  जी जान लगा कर किया ।

इनको  अपनी कुटिया का  महन्त बना कर  गुरु जी पधार गए  ।

महन्त श्री राधा चरण दास ..........यही नाम  रखकर गए थे गुरु जी ।

जैसे गुरु होते हैं .....वैसे ही चेला  ।

अब गुरु  सच्चा होगा ........तो  शिष्य भी सच्चा ही होगा ।

ज्यादा प्रपञ्च फैलानें में    गुरु भी नही    थे  इसलिये ये शिष्य भी वैसे ही    निकले ।

सुबह   4 बजे ही उठना .......और  नित्य  नियम से यमुना स्नान करना .....निधिवन में जाकर   झाड़ू लगाना .............बाँके बिहारी जी के दर्शन करना .............और नित्य   4 लाख नाम जप करना ।

किसी का अपराध न हो जाए .......इस बात  से सदैव सावधान रहना ।

किसी का दिल न दूखे   इस बात को लेकर भी सावधान रहना ।

किसी से  कुछ माँगना नही .......जो मिल जाए .....उसे ही  भगवत्कृपा समझ कर  भोग लगाकर खा लेना ।

अन्तःकरण तो कब का शुद्ध हो चुका था......इन राधा चरण दास का  ।

इस तरह श्री धाम वृन्दावन की भूमि में रहते हुए ......आज 80 वर्ष के हो गए थे   राधा चरण दास ।

एक दिन  कुछ अमेरिकन दल   आ पहुँचा   इन  बाबा राधा चरण दास की कुटिया में  ।

सुन्दर बाग़ लगाया था...............बाबा नें  ।

कोई लाईट नही थी ............कुटिया में  ।

आवश्यकता ही नही थी ...............भोग लगाकर   7 बजे तक प्रसाद पाकर  ........अपनें भगवान को सुला देते थे .....।

हाँ स्वयं  रात्रि के  12  या 1 बजे तक  वृक्षों को गले लगाते हुए  भजन करते थे ...............।

इनका नियम  था ........नित्य  पक्षियों को   दाना डालना .........मोरों को तो ये अपनें हाथों से खिलाते थे.........और हाँ  उस समय   किसी का कुछ भी बोलना .... तेज़ आवाज   में बोलना इनको बिलकुल पसन्द नही था.......।

ये सब देखकर ही  ये अमेरिकन युवाओं का दल इनकी कुटिया में आगया था ..........सात्विक वातावरण.......प्राकृतिक वातावरण .....मोरों का नाचना ......पक्षियों का चहकना.........ये सब कितना दिव्य लग रहा था  इन अमेरिकन युवाओ  को  ।

हम बस  कुछ दिन ही  रहना चाहते हैं यहाँ  प्लीज़ !  उनमें से   एक जो थोड़ी  हिंदी जानता था उसनें कहा  ।

ऊपर से लेकर नीचे तक  राधा चरण दास जी नें देखा उन युवाओं को ।

हम चाहें तो फाइव स्टार होटल में    भी रुक सकते हैं .....पर  ।

हम आपसे  अध्यात्म की ऊर्जा  प्राप्त करना चाहते हैं .....इसलिये ।

महात्मा राधा चरण दास नें देखा ........बड़े सुन्दर सुन्दर युवा .......ओज वान .........छरहरे शरीर के ।

अच्छा लगा महात्मा को...........कुटिया में .रहनें की आज्ञा दे दी ।

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आगे क्या हुआ  ?        

जलं .............प्यास लग गयी थी   उस बच्चे को ।

मिसेज  हडसन नें  जल्दी लाकर पानी पिलाया ।

प्रोफेसर  आपको क्या लग रहा है  ?   

डॉ . हडसन नें पूछा  ।

इस बालक के द्वारा पुनर्जन्म का रहस्य खुल सकता है  डॉक्टर ।

पर  मेरे पाँच वर्ष के बच्चे को  कोई मानसिक क्षति तो नही होगी ना ?

माता का घबराना स्वाभाविक था  ।

नही सब ठीक है ..............।

प्रोफेसर फिर उस बालक की ओर मुड़े  ।

बालक आगे  की बात बतानें के लिए तैयार था  ।

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वो अमेरिकन  दल के युवा  उन  "राधा चरण दास" के साथ ही उठते थे ।

यमुना में जाते थे ..........हाँ  गले में तुलसी की माला भी धारण कर ली थी उन युवाओं नें ...।

गोपी चन्दन का नाक तक खींचकर तिलक लगाते थे ........और  बड़े प्रेम से "राधे राधे" गाते हुए ..........कभी वृन्दावन  तो कभी बरसानें कभी गोवर्धन .......इन सब स्थानों   में  घूमते रहते थे   ये युवा ।

पर गुरु के प्रति इनकी श्रद्धा थी ......गुरु   राधा चरण दास भी तो बड़े  कोमल हृदय के थे .......अपनें इन बच्चों से बहुत प्रेम करते थे ।

कैसा है  तुम्हारा अमेरिका ?

पाँव दवा रहे हैं    अमेरिकन युवा शिष्य  तब  राधा चरण दास जी नें पूछ लिया था  ।

गुरु देव !  बहुत  भौतिक वाद है  ।

अच्छा !   सब अंग्रेजी बोलते होंगे वहाँ ?  

ये प्रश्न सुनकर सब हँसते .....कितना मासूम सा प्रश्न था ।

हाँ गुरुदेव !   सब अंग्रेजी बोलते हैं .........बड़ी बड़ी सड़कें हैं .........साफ़ सफाई है ............लोग भी   सभ्य   और सम्पन्न हैं   ।

पैसे बहुत हैं  वहाँ ..............और वहाँ के लोग  सब गोरे गोरे  ।

गुरुदेव ! आप भी चलो ना अमेरिका !   घूम कर आजाना ।

एक नें  कह दिया  ।

दूसरे नें तुरन्त कहा ................हम ही  ले जायेंगें और हम ही यहीं पहुँचा देंगें ........चलिए ना गुरुदेव !

जाओ अब सो जाओ ...............अमेरिका ले जाओगे मुझे !   मै  अपनें कन्हैया का  धाम बृज छोड़कर कहीं नही जाऊँगा  ।

प्रभुपाद जी भी तो गए थे ..................एक नें ये भी कह दिया ।

हाँ  तो  मै कोई प्रभुपाद हूँ ?..............मुझे नही जाना  ।

देखो !  गुरुदेव !   आप वहाँ जाओगे  ना ......तो  आपको  अच्छा लगेगा .........वो  विश्व् का एक शक्तिशाली देश है .............अरे !  अमेरिका ऐसा है .....अमेरिका वैसा है  ।

गुरुदेव !  चलो ...............आपका शरीर ही घूमकर आएगा ...अमेरिका से .....मन तो आपका वृन्दावन में ही  रहेगा ना ........और आप ही तो हमें ये शिक्षा देते हैं ......सारा खेल मन का ही है  ।

राधा चरण दास जी  सुनते रहे ..................

फिर बोले ......अच्छा जाओ !  सो जाओ !     कल बात करेंगें ।

सुबह उठे .........4 बजे उठे ...........वो अमेरिकन युवा लोग  ।

गुरुदेव !  गुरुदेव !

पर आज गुरुदेव उठे ही नही .....................

रात्रि में ही शरीर शान्त हो गया था   श्री राधा चरण दास जी का ।

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ये सब क्या  है  प्रोफेसर  !   मेरे कुछ समझ में नही आया  ।

मिसेज हडसन  बालक को उठा कर ले गयीं थीं ......थक भी गया था....अपनी पूरी कहानी जो सुना दी थी     बालक ने ....।

डॉक्टर हडसन को  प्रोफेसर बतानें लगे ................

डॉक्टर ! तुम तो जानते ही हो ........माता पिता के द्वारा  जब बालक गर्भ में आता है .......तब वह मात्र कलल ही होता है ........मात्र बिन्दु ।

उसमें  सोलह कोशिकाएँ  माता की और सोलह कोशिकाएँ पिता की होती हैं........इन कोशिकाओं के न्यूक्लियस होते हैं.......।   प्रोफेसर बता रहे थे  ।

इन न्यूक्लियस के घेरे में होते हैं  क्रोमोसोम  , और  इन क्रोमोसोम में   स्थान स्थान पर  गाँठे होती हैं.............इन गाँठों को  "जीन" कहा जाता है .......यानि संस्कार कोष  .......।

अब इन "जीन" की संख्या भी    अरबों में होती है .............प्रोफेसर नें  डॉक्टर को बताया  ।

एक  "जीन" में    डॉक्टर !    प्रकृति के एक अरब अक्षरों में   ये लिखा होता है  कि  शिशु  की आकृति , रँग, कद आदि कैसा होगा ?

डॉक्टर हडसन !     प्रकृति के इन अक्षरों को   वैज्ञानिक लोग  "एमोनो एसिड" कहते हैं   ।

जो विभिन्न क्रम में लगे होते हैं  ।

और  ये  "जीन" में   जो लिखा होता है ........वो क्रम से नही होता ।

कभी  कुछ आगे आसकता है ......कभी कुछ  ........प्रोफेसर नें   कुछ सोचते हुए कहा ..........महान वैज्ञानिक डॉ.  एरिच नें कुछ प्रयोग तो किये हैं .......कि  नैसर्गिक अक्षरों के क्रम में  कुछ परिवर्तन किया जाए ।

परमाणु विकिरण और  विषाणु के द्वारा  कुछ क्रम में परिर्वतन हो सके ।

और हाँ   डॉ.  हडसन !     इन "जीन" में पड़े   अनेक  प्रकृती के  आदेश  कई कई पीढ़ियों तक  निष्क्रिय ही रहते हैं ............पता नही क्यों ?

इसपर खोज करना बाकी है .............प्रोफेसर नें कहा ।

पर  डॉक्टर इतना तो है  कि ये सब  माता पिता के आनुवांशिकता पर ही आधारित है ...........इस बात को हर वैज्ञानिक मानता  है  ।

पर  मेरे बालक का संस्कृत बोलना  ये क्या है  ? 

ये तो आनुवंशिकता नही है .......मिसेज हडसन आगयीं थीं .....उनकी गोद में उनका बालक सो गया है ........उन्होंने ही ये प्रश्न किया ।

प्रोफेसर चुप हो गए .............

मि . हडसन  अब तुम जाओ .......कल आऊंगा तुम्हारे पास ...तुम्हारे घर.....और मिसेज हडसन  आपके हाथ की कॉफी भी पियूँगा ।

मिसेज हडसन !    याद रहे  सच्चा वैज्ञानिक  हठ नही करता ....

सत्य का शोध करता है .....ये बात मैनें महान देश भारत से सीखी थी ।

सब अपनें अपनें घर की ओर आगये थे  ।

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पुर्नजन्म कैसे होता है  ?

खेल रहा था  वह हडसन का बालक .........60 वर्ष का वैज्ञानिक आकर  ये प्रश्न करता है .....5 वर्ष के बालक से  ।

बालक देखता है ......बड़े ध्यान से .......प्रोफेसर को  ।

फिर  कहता है .....अंतिम समय का महत्व होता है  प्रोफेसर साहब !

मनुष्य मरते समय जो कामना करता है ..........वही बनता है ।

मै समझा नही ......प्रोफेसर नें  फिर पूछा   बालक से ।

जैसे  मै भारत के वृन्दावन में  एक साधू था ..........मेरी साधना अच्छी चल रही थी .........बहुत बढ़िया  ।

साधना करते करते मै  उच्च शिखर पर भी पहुँच गया था ..........पर ।

बालक फिर रुक गया .....ये सब संवाद संस्कृत में ही हो रहा था ।

पर पिछले  संस्कार का कोई  महत्व नही  ?    प्रोफेसर ये पूछना चाह रहे हैं .......कि क्या और जो साधना की है  उसका कोई महत्व नही  है ?

जैसे बालक तुमनें  15 वर्ष की उम्र से लेकर  80 वर्ष तक साधना की ....और कुछ अमेरिकन युवकों नें तुम्हारे चित्त में ये  बात डाल दी कि अमेरिका घूम लो .........तो उसी अंतिम चिन्तन के चलते  तुम  अमेरिका में जन्में   ......यही ना  ?

हाँ .........पर प्रोफेसर  !  कैसे कह सकते हो  कि  साधना का महत्व नही है ...........ये क्या साधना का महत्व नही है कि  मुझे पता है .....मेरा लक्ष्य क्या है  ?      मुझे पता है कि सत्य क्या है  और असत्य क्या है ?

मुझे पता है .......कि  मै  इस भौतिकता से भरे देश में  क्यों आया हूँ ?

पर बालक !    अंतिम  चिन्तन का ही महत्व क्यों  ? 

उसी चिन्तन के द्वारा ही जन्म निर्धारित क्यों होता है  ?

प्रोफेसर पूछ रहे थे ।

बालक नें आँखें बन्द कर लीं ..............पलकों की कोर से आँसू गिरनें लगे बालक के .................ये तो  उस करुणानिधान की करुणा है  !

कि       अंतिम  चिन्तन  महत्वपूर्ण हो जाता है  ।

प्रोफेसर समझ गए थे सारे रहस्य को ।

जो  अंतिम में , मरते समय का चिन्तन होगा .....वह  अत्यंत महत्वपूर्ण होगा ...................ओह !    ..............प्रोफेसर  सब समझ गए थे ।

इसलिये   अंतिम समय की भावना डिवाइन होनी चाहिए ..........दिव्य होनी चाहिए .....भौतिक वाद से प्रभावित चित्त नही होना चाहिये ।

अब क्या चाहते हो तुम बालक ?   प्रोफेसर नें पूछा ।

मै अमेरिका घूमना चाहता हूँ ......................बालक नें कहा ।

ठीक है ............. मै  तुम्हारे माता पिता को बता देता हूँ .........।

और  प्रोफेसर नें बता दिया ............और ये भी कहा .....कि    जितना समय लगे .......इसको  अपना समय पूरा दो .....और  एक एक  स्थान अमेरिका का इसे दिखाओ  ।

मिसेज और मिस्टर  हडसन  अपने बालक को लेकर   अमेरिका की यात्रा में चल दिए  ।

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अमेरिका का बहुत बड़ा क्षेत्र है ..........उसे ही पूरा  घूमनें में  .....करीबन  3 महिनें लग गए थे  ।

तीन महिनें बाद लौटकर अपनें घर आया........हडसन परिवार ।

राधे राधे !   राधे राधे ! राधे राधे !  

बालक नें  शाम के समय  आज स्नान किया ............

मिसेज  नें वाशरूम में  जाते देखा ......तो दौड़ पड़ी ।

नही ...........सर्दी लग जायेगी .....बहुत ठन्डा पानी है  ।

हाथ के इशारे से बोला था वो बालक .........कुछ नही होगा ।

नहा लिया .................फिर  एक साफ सुथरा सा  चद्दर  अपनें शरीर में लपेट लिया .......उस 5 साल के बालक नें  ।

फिर  आँखें बन्द करके बैठ गया ..............

"रा" कहते हुए .....साँस को खींच था वो बालक  ...और "धा" कहते हुए साँसों को छोड़ रहा था .......ये क्रिया उसनें  21 बार गिनते हुए  किये ।

बस ..........मुस्कुराया वो बालक ,   "राधे राधे"  कहते हुए    धरती में  गिर पड़ा ।

मिसेज हडसन दौड़ी ...............पर     जैसे ही  उस बालक को   छूआ .....वह जा चुका था .........उसका शरीर शान्त हो गया था  ।

मिसेज और मिस्टर हडसन बहुत रोये ................

तब प्रोफेसर  नें आकर यही कहा था ......वह तो  "राधा चरण दास" था .....बस घूमनें आया था  अमेरिका...घूम लिया, मुक्त हो गया  ।

कितनी सहजता से बोल गए थे  वो प्रोफेसर ...............

क्यों की पुर्नजन्म के सिद्धान्त को ये समझ गए थे  अब ।

Harisharan

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