आज के विचार
("कंस जब सखी बना" - एक कहानी )
बृषभानु सुते देवी , स्तम्नमामि हरिप्रियाम्....
( गर्ग संहिता )
नारायण नारायण नारायण !
अरे ! देवर्षि ! आप ?
......ख़ुशी से उछल पड़ी थी वो काली कलूटी कुरूप सी सखी ....। बड़ी श्रद्धा से प्रणाम किया था चरणों में नारद जी के ।
अच्छा अच्छा ! ठीक है ..............इससे ज्यादा क्या कहते देवर्षि ।
गुरुदेव ! आपनें मुझे पहचाना नही ?
ये सखी तो पीछे ही पड़ गयी ........और अब रिश्ता भी जोड़ लिया ....गुरुदेव ! मै इसका गुरुदेव और ये मेरी शिष्या ?
देवर्षि हँसे ..............फिर उस बृषभान खिरक में गोबर फेंक रही सखी की ओर ध्यान से देखा ........छी ! नारी जात पर कलंक है ये तो ......कितना विशाल शरीर ........उसपर भी काली है ये ......
आँखें इस सखी की जैसे - अंगार उगल रही हों ।
पर इसे कहीं देखा है ! सोच में तो पड़ ही गए थे नारद जी ।
ये नारद जी आज बृहत्सानपुर यानि बरसानें आगये थे ..........तो बृषभान जी से पता चला .......कि दोपहर का समय है ......श्री राधा रानी शयन कर रही हैं .....।
इसलिये तब तक के लिए बृषभान खिरक ( गौशाला ) में ही आगये नारद जी .......और गौओं को बड़े प्यार से सहलाके समय बिता रहे थे.......पर ये सखी है कि पीछे ही पड़ गयी थी......नारद जी के ।
श्री बृजेश्वरी राधा रानी की सखियाँ तो रम्भा, उर्वशी को भी मात देनें वाली हैं .......फिर ये इतनी कुरूप !
फिर मुड़कर देखा , न चाहनें के बाद भी नारद जी नें उस सखी को ।
इसको कहीं देखा है ........नारद जी फिर दिमाग में जोर डालनें लगे ।
मै हूँ .......मथुरा का राजा कंस ........गुरुदेव ! आपनें पहचाना नही!
कंस ?
नारद जी को परमाश्चर्य हुआ .........कंस की ये स्थिति ! स्थिति देख.......हँसी फूट पड़ी ।
पर तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? नारद जी अपनी हँसी को दवाते हुए जैसे जैसे इतना ही पूछ पाये थे ।
मै .............मै क्या बताऊँ गुरुदेव !
********************************************************
महाराज कंस ! कृष्ण को कहाँ से शक्ति प्राप्त हो रही है इसका रहस्य हमनें जान लिया है...........चाणूर नें उत्साहित होकर बताया ।
हाँ ....बहुत बढ़िया बताओ ......उसकी वो अजेय शक्ति का स्रोत कहाँ है ? क्यों की चाणूर ! पूतना कोई कम नही थी .......शकट, और तृणावर्त इंद्र के समान बल रखते थे .................
पर कंस की बातों पर अब ज्यादा ध्यान नही देते उनके राक्षस भी ....इसलिये चाणूर अपनी बात ही बताता रहा ।
"बरसानें की राधिका, वही है कृष्ण की आराधिका ................
कुछ तुक बन्दी भी मिलाकर बोलता था चाणूर ।
हां ...................तो ?
चाणूर बोला .................श्री राधा रानी बृषभान गोप की बेटी ।
बस उसी में रहती है कृष्ण की जान .................उसे ही मार दो !
कितनी सरलता से बोला था ये चाणूर ।
बरसाना तो बृषभान गोप के संरक्षण में है .......और वहाँ के मुखिया भी वही हैं ..................कंस विचार कर रहा है ।
और आपनें सुना ही होगा ..................गोकुल से पलायन कर चुके हैं नन्द राय और उनके समस्त परिकर ..............और पता है कंस महाराज ! नन्द राय को शरण किसनें दिया है ........?
बृषभान नें .................बरसाना ही तो है नन्दगाँव भी ।
पहले कहाँ था कोई नन्द गाँव ? जब से रहनें लगे हैं नन्द जी तब से बृषभान नें ही इसका नाम करण कर दिया......नन्द गाँव ।
क्षत्रिय हैं बृषभान जी .......सूर्यवंशीय क्षत्रिय ..........चाणूर नें सारी बात समझा दी थी ।
पर मै एक स्त्री को मारूँ ? कंस को थोडा ये अच्छा नही लगा ।
चाणूर नें समझाया ......शत्रु, शत्रु होता है .....क्या स्त्री क्या पुरुष ?
कंस को बात ठीक लगी .........शत्रु को परास्त करनें के लिए ...साम, दाम, दण्ड , भेद .....सबकी आवश्यकता पड़ती है ...........
हूं ..........राधा में कृष्ण के प्राण बसते हैं ..........! मन ही मन सोच रहा था कंस ........कि कैसे, क्या करें ?
******************************************************
किसी को साथ नही लिया अकेला ही चल पड़ा है ......कंस ।
बरसाना पहुँचा .......................
आहा ! कितना सुन्दर सरोवर है.......कमल खिले हैं चारों ओर ।
तमाल वृक्ष की झाड़ियों से देख रहा है कंस ।
बीच में श्री राधा रानी हैं ......उनके चारों ओर अष्ट सखियाँ हैं ।
श्री राधा रानी के मुख पर जो तेज़ है ......उस तेज़ के कारण अच्छे से देख ही नही पा रहा है कंस ।
पर साथ में चल रही वो सखियाँ ........अष्ट सखियाँ ..........उनकी सुन्दरता भी, अप्सरा क्या ! किसी देवियों से कम नही है ।
कंस देख रहा है ..........तमाल के झुरमुट से ।
श्री राधा रानी को एक दिव्य सिंहासन में बैठाया था समस्त सखियों नें .......ये सिंहासन फूलों का बनाया गया था......अति सुन्दर था ।
जब मुस्कुराती थीं राधा रानी .....तब ऐसा लगता ....फूल झर रहे हैं ।
जब अपनें अगल बगल में खड़ी सखियों की ओर मुड़ मुड़कर बतियाती थीं श्री राधा रानी .......तब उनके कान के कुण्डल हिलते थे ......और उनके कपोल को जब छूते थे ..........तब ऐसा दिव्य लगता था .........
कंस देख रहा है ....................और चकित है !
वृक्षों से मोर उतर आये थे ...........और वो सब नृत्य दिखानें लगे थे अपनें अपनें पंखों को फैलाकर .........श्री राधा रानी उन्हें अपनें हाथों से दानें खिलानें लगीं थीं ।
तभी - सखियों ! वो देखो !
एकाएक ललिता सखी बोल उठीं .......।
सबनें देखा ..............कंस को ।
क्या है ललिता उधर ! कितनी मासूमियत से बोलीं थीं श्री राधा ।
मथुरा का राजा आया है आपके दर्शन करनें.....ललिता सखी नें कहा ।
पर यहाँ तो किसी पुरुष का प्रवेश नही है !
श्री बृजेश्वरी राधा रानी बोल उठीं ........
"इस मथुरा के राजा को सखी बना दो"
ललिता सखी को ये बात प्रिय लगी ............मुस्कुराईं ललिता ।
प्रेम सरोवर का जल हाथ में लिया ..............और उसी कंस की ओर छींट दिया ।
******************************************************
नारद जी को कंस नें अपनी सारी बातें बता दी....।
अपनी हँसी को जैसे तैसे रोके हुए थे नारद जी .........
सखी बन गए तुम राजन् ! तो आगे क्या हुआ ?
ये बात भी बड़ी मुश्किल से बोल पाये थे नारद जी ......क्यों की हँसी आरही थी ......और हँसना भी उचित नही था ।
उस विशाल देह धारी सखी कंस नें कहा ......क्या गुरुदेव !
मै जैसे ही सखी बना.........ललिता सखी के जल छींटते ही ।
मै भागनें लगा ..........तब ललिता सखी जोर से बोलीं ....राजा कंस ! अब भागनें से कुछ नही होनें वाला ................ये सखी रूप हमनें दिया है ....तो हम ही लेंगीं ...........विश्व ब्रह्माण्ड में किसी की ताकत नही है कि तुम्हारे इस सखी रूप को हटा सके ।
हे गुरुदेव ! तब मै रुक गया .............मै रो भी नही सकता था .....और मथुरा जा भी नही सकता था .........आप ही बताइये ना ! गुरुदेव ! इस रूप को लेकर मै कहाँ जाऊँ ?
नारद जी सोच रहे हैं ............किसी ऐसे स्थान में जाऊँ मै .....और खुल कर हँसू .................कंस का रूप ! सखी बना हुआ कंस ।
राजन् ! क्या तुम्हे इस रूप में रहनें में कोई दिक्कत !
अब ये क्या प्रश्न हुआ ........पर अंदर ही अंदर हँसी चल रही है नारद जी के ....इसी के कारण वो कुछ और पूछना चाहते हैं ....पूछ कुछ और रहे हैं ................।
सखी बनने के बाद ............मै चुपचाप उन अष्ट सखियों के साथ ही चल दिया था ...........और कोई उपाय भी तो नही था ना मेरे पास ।
हुँह ..........नारद जी हँसी को दवाये बैठे हैं ।
मुझ को बरसानें के लोगों नें देखा........ये कौन आगयी ?
मेरा शरीर ही ऐसा है ......विशाल ...और उसमें ये सखी रूप ।
नारद जी ऊपर से लेकर नीचे तक देखनें लगे .........पर हँसी के कारण पूरा शरीर भी नही देख पाये कंस का ।
फिर ?
फिर क्या ? गुरुदेव !
कोई मुझे छेड़ता था ......कोई मुझे कुछ कहता था ।
तब दया दिखाते हुए राधा रानी नें मुझे खिरक ( गौशाला) में ही रख दिया ......मै क्या करता ? .....यहीं बैठा हूँ .....गोबर उठाता हूँ ।
अब तो नारद जी से रोकी नही गयी अपनी हँसी ............
आप हँस रहे हैं गुरुदेव ! कंस को अच्छा नही लगा ।
नही ....अब तुम इस जंजाल से निकल जाओगे .....इसलिये मै हँस रहा हूँ ...........नारद जी ने बात को सम्भाला ।
गुरुदेव ! अब आप ही कुछ करो ..........
चरणों में गिर गया था कंस ।
ठीक है .................इतना कहते हुए चल दिए नारद जी ।
*********************************************************
हे बृषभान ! आपके यहाँ राजा कंस है ........और कई महीनों से है .........उसे आप मुक्त कीजिये ।
नारद जी चले गए थे बृषभान के महल में .......तब बृषभान जी और कीर्ति रानी नें बहुत स्वागत किया था ।
नारद जी नें जब देखा कि सब कुछ कर चुके हैं बृषभान जी ......तब अपनी बात पर आये थे ।
कंस है आपके यहाँ ...................
मेरे यहाँ राजा कंस ?
बृषभान जी नें आश्चर्य से नारद जी की ओर ही देखा था ।
आपको विश्वास नही तो अपनी श्रीराधा पुत्री से ही पूछ लो ।
कीर्ति रानी नें दासी को भिजवाया .....तो अपनी सखियों के साथ चहकते हुए श्री राधा आगयीं ।
क्या राजा कंस हमारे यहाँ हैं ?
बृषभान जी नें श्री राधा रानी से पूछा ।
आपके खिरक में ...........वो भी खिरक में गोबर उठा रहे हैं मथुरा के राजा कंस !
नारद जी नें हँसते हुए ये सारी बातें बताईं ।
सखियाँ "खें खें" करके हँसनें लगीं थीं.......श्री राधा भी मुस्कुराये जा रही थीं ......।
मैने कुछ पूछा है आप सब से ? गम्भीर होकर बोले थे बृषभान जी ।
आगे आयीं ललिता सखी ......और उन्होंने कहा.....उस दिन हम सब प्रेम सरोवर में स्नान करनें के लिए तैयार थीं.....तभी कंस आगया ।
और तुम लोगों नें उसे सखी बना दिया ......?
बृषभान जी ने सखियों से जब ये कहा .......तब "खें खें" करके फिर हँसी सखियाँ ।
चलो ......सब चलो मेरे साथ खिरक में .............बृषभान जी सब सखियों और राधा रानी और नारद जी को लेकर खिरक में आये ।
जैसे ही नारद जी को देखा कंस नें वह दौड़ा ...........
ये है। कंस ! देखो कैसी दसा बना दी है ......महाराज कंस की .....इन बरसानें की छोरियों नें ...........नारद जी हँसी उड़ानें लगे ......पर कंस समझ नही पारहा ।
कंस को इस अवस्था में देखकर बृषभान जी को दया आगयी .....
ललिता बेटी ! ठीक कर दो कंस को ।
जो आज्ञा ! सिर झुकाकर ललिता सखी नें राधा जी की ओर देखा ........इशारे में राधा रानी नें भी कह दिया ......बना दो इसे पुरुष ।
जल हाथ में लेकर ललिता सखी कुछ बुदबुदाई थी ......
और उस जल का एक छींट दिया था कंस के ऊपर ।
कंस तो पुरुष बन गया ..............
बृषभान गोप मुस्कुराये ...........राजा कंस ! दुनिया में तुम कहीं सुरक्षित नही हो .............तुम मात्र बरसानें में ही सुरक्षित हो ......यहीं आकर रहो........सखी बनकर ......तुम्हारा यहाँ कोई कुछ नही बिगाड़ सकेगा .............।
इस बात को सुनकर कंस कुछ नही बोला ...............सिर झुकाकर वहाँ से चला गया ........पर फिर कभी बरसानें की ओर मुड़कर देखनें की उसकी हिम्मत नही हुयी थी ।
Harisharan
0 Comments