( शाश्वत की कहानियाँ )
!! श्री शंकराचार्य चरित्र - भाग 8 !!
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्ण मुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्ण मेवावशिष्यते ।
( उपनिषद् )
क्या शाश्वत ! कमाल का लिखा है "शाश्वत की कहानियाँ"......और शुरुआत जो आद्य जगद्गुरु श्री शंकराचार्य के चरित्र से की है .....वो तो और दिव्यतम लग रहा है ।
कल रात्रि में, मै शाश्वत से मिला था ......बरसानें गया हुआ था वो कल ही आया है ...........वहीं मिला पान की दुकान में ......हाँ हाँ .....श्री बाँके बिहारी जी की शयन आरती से पहले ।
क्यों गए थे तुम बरसानें ? मैने शाश्वत से पूछा ।
कुछ शरीर से साधना हो जाए .........इस शरीर से जितना बन सके उतना करना ही चाहिए........शाश्वत नें सहजता से उत्तर दिया ।
पर यार ! इतनी तपस्या करनें की जरूरत क्या है ?
मैने ऐसे ही कह दिया था ।
अब देखो .....आद्य जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी नें घूम घूमकर कितनी तपस्या की ........और अंतिम में शरीर भी त्यागा तो केदार नाथ में ।
ओह ! आयु भी कितनी थी उनकी ?
मात्र 35 वर्ष ! मैने कहा था ।
नही .......35 नही .....32 वर्ष की उम्र में आचार्य शंकर नें समाधि ली थी ........शाश्वत नें कहा ।
ओह ! इतनी छोटी आयु में ही वो काम कर दिखाया .....जिसे मनुष्य शताधिक वर्षों में भी नही कर सकता ।
भगवान शंकर के अवतार थे ..............हमें भी तप करना, कष्ट को सहना .......त्याग मय जीवन बनाना .........यही सब शिक्षा देनें आये थे अवतार लेकर ....भगवान श्री शंकर.......शंकराचार्य जी के रूप में ।
शाश्वत मुझे बता रहा था ।
संयमित जीवन अब नही रहा मनुष्य का .........इसलिए ऐसी दुर्दशा हो रही है ......देखो ! ........ शाश्वत अच्छी बातें बताता है ।
समय से उठो .....समय से खाओ .......समय से नित्य नियम करो ....समय से कुछ भगवन्नाम का जाप कर लो ...भले ही एक माला ही सही ....ध्यान करो.......हल्का खाओ ..........जितनी भूख लगे उससे कुछ कम ही खाओ .............आचरण अच्छे बनाओ ......
पर दुर्दशा क्या दिखती है तुम्हे शाश्वत! मनुष्य की ?
क्यों ये दुर्दशा नही है ? .................डॉक्टर तुम्हारे पैसे खा रहे हैं ......वकील तुम्हारा पैसा ले जा रहा है ........ज्योतिषी लोग राहू केतु बता कर धन खींच रहे हैं ..........ये सब असंयमित जीवन के कारण ही तो हो रहा है ।
संयमित जीवन ही तपस्या है ............इसे करो ।
ये शरीर तो नाशवान है .......पर तुमनें जो अपनें आपको बांध रखा है.....नाना प्रकार के बन्धन में ......यही बन्धन तुम्हे दुःख देगा ।
अपनें आपको पहचानों ................तुम कौन हो ?
शाश्वत बहुत गहरी बातें कर रहा था ।
फिर कुछ देर विचार करके शाश्वत बोला ................
सुनो ! मै जब "श्रीशंकराचार्य चरित्र" को लिख रहा था ना ....तब मै केदार नाथ गया था .............और वहीं बैठकर मैने श्री शंकराचार्य जी के महाप्रयाण को लिखा था .............।
क्या तुमको कुछ अनुभूति हुयी उस समय ?
शाश्वत काफी देर तक मौन रहा ।
*****************************************************
आद्य जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी नें अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की .....
करीब 272 के लगभग आपनें ग्रन्थों की रचना की थी .........
प्रस्थान त्रयी ( ब्रह्मसूत्र, उपनिषद्, गीता ) पर शांकर भाष्य प्रसिद्ध टीका है ही ..."विवेक चूड़ामणि" जैसे गम्भीर ग्रन्थों की सूची भी लम्बी है ।
हजारों सन्यासी साथ साथ में चल रहे थे ................उन हजारों सन्यासी में सब ही ब्रह्म बोध को प्राप्त महापुरुष नही थे ..........भीड़ देखकर मनचले युवा भी आगये थे सन्यास लेनें .........भीड़ उन्हीं की थी .............।
पर उन सबमें से छाँट कर ........मात्र चार शिष्यों को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया ।
जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की ........
दक्षिण भारत में श्रंगेरी मठ .......
द्वारिका में शारदा मठ ........
उत्तराखण्ड में ज्योतिर्मठ ............
इन चारों स्थानों में अपनें प्रतिनिधि नियुक्त किये शंकराचार्य जी नें ।
आपके शिष्यों में ..............पद्माचार्य जी , सुरेश्वराचार्य जी , हस्तामलकाचार्य जी , और तोटकाचार्य जी ।
यह चार गद्दी इन्हीं चार शिष्यों को आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी नें दी ।
ऐसी बात नही है .......की इन चार शिष्यों को ही ब्रह्म बोध प्राप्त हुआ था .......अन्य भी थे ......जिन्होनें ब्रह्म को स्वयं में अनुभूत किया था ....पर उन महापुरुषों को गद्दी की कोई लालसा थी नही ......ये बात आचार्य चरण अच्छे से जानते थे .......इसलिये इन्हीं चारों को योग्य समझकर उन्होंने ये स्थान दिए ।
उत्तराखण्ड की ओर बढ़े चले जा रहे थे ...... शंकराचार्य जी ।
इन्हें अब जाना था .....केदार नाथ .......और वहीं जाकर इन्हें समाधि लेनी थी ।
******************************************************
मेरे हाथ में रुद्राक्ष की माला रहती ही थी उन दिनों ..........शाश्वत नें मुझे बताया ................मै उस माला में पञ्चाक्षरी मन्त्र का निरन्तर जाप करता रहता था ......."ॐ नमः शिवाय" इस मन्त्र का ।
पता नही उस दिन क्या हुआ ! सुबह की वेला थी ........वेदान्त की क्लास से आया ही था ।
एकाएक धुन सवार हो गयी ........केदार नाथ जाऊँगा ।
मुझे किसको पूछना था ..........चलो !
मै चल दिया ..........................
मेरे कण्ठ से यही मन्त्र निकलता...........ॐ नमः शिवाय ।
करीब ऋषिकेश से केदार नाथ तक पहुँचते पहुँचते ......मेरा मन्त्र जप सवा करोड़ के लगभग हो गया था .......तीन दिन लगे थे ।
गौरी कुण्ड के तप्त जल में स्नान करके.....मै धीरे धीरे आगे के लिए बढ़ा ।
घोड़े वाले भी थे ..........जो मुझे केदार नाथ ले जानें के लिए पैसे बता रहे थे .....मै मना करता तो मुझे कम पैसे बताते ...........पर मुझे तो पैदल ही जाना था भगवान शंकर के धाम में ।
और मेरे शंकराचार्य जी ने जहाँ देह त्यागा था उस स्थान में मुझे महसूस करना था - आचार्य चरण को ।
बारिश तो यहाँ होती ही है ...........एक दिल्ली के यात्री नें मुझे बताया .......पर आपको बरसाती रख लेनी चाहिए ...........।
मैने कहा ........बाबा केदार नाथ की मर्जी - जैसे ले जाएँ ........
मै इतना ही कहता था ।
यहाँ से 7 KM. है ............मुझे फिर वही दिल्ली के यात्री मिल गए .........हम लोग आगे पीछे हो रहे थे ।
मुझे थकान हो गयी थी .......बारिश में भींग भी तो गया था ।
बीकानेरी भुजिया और कच्चे चिउरा निकाल कर खानें लगा .......उसके ऊपर चाय पी ली ........कुछ पेट में गया तो थकान कम हुयी ......।
फिर आगे के लिए बढ़ गया ..............।
********************************************************
अपनें शिष्यों के साथ चले जा रहे हैं जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी ।
केदार नाथ पहुँचे .........दोनों हाथों को ऊपर उठाकर " हर हर महादेव".....शब्द का उदघोष किया ।
मन्दिर में प्रवेश करके........विधिवत पूजा अर्चना प्रारम्भ करवाई ।
वास्तु के अनुसार एक दिव्य भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया .....जो उसी क्षेत्र के राजा थे .....उनके धन से ।
आज सभी शिष्यों के साथ बैठे हैं आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी ।
हे भगवन् ! हम पञ्चाक्षरी मन्त्र का जप करते हैं .........पर हमें भगवान शंकर के दर्शन नही होते .........क्यों ?
एक शिष्य नें पूछ लिया था ।
जहाँ शब्द हैं ...........वहाँ उसका अर्थ भी विद्यमान होगा ।
तुम मात्र शब्द पकड़ते हो क्या ? नही .........वत्स ! शब्द के साथ साथ अर्थ का भी अनुसन्धान करो ..............
इतना कहकर उठ गए शंकराचार्य जी .................
और अपनी गुफा में जाकर बैठ गए ।
आँखें बन्द हैं भगवत्पाद शंकराचार्य जी की ।
कोई मेरी साधना में विघ्न नही डालेगा .......ये बात सबको बता दी गयी है आचार्य की ।
कुछ न कुछ आज होनें वाला है ....ऐसा सबको लग रहा था ।
पता नही क्यों आज समाधि में चले गए शंकराचार्य जी ........
साथ के शिष्य विचलित हो उठे थे ।
*****************************************************
मै धीरे धीरे पहाड़ी में आगे बढ़ रहा था..........बारिश की बजह से मुझ से चला नही जा रहा था .....ऊपर से ऑक्सीजन की कमी और ।
शाश्वत नें मुझे बताया .............।
तभी मन्दिर का शिखर दिखाई दिया मुझे .........
पता नही क्यों मेरे रोम रोम से ॐ नमः शिवाय मन्त्र गूंजनें लगा था ।
मै केदार नाथ मन्दिर के शिखर को देखनें लगा ..............और सहज ध्यान में लीन हो गया ।
पर तभी मेरे मन में ये विचार आया.....मन्त्र जपते हुए कितना समय बीत गया......पर अभी तक मुझे भगवान शंकर के दर्शन क्यों नही हुए ?
कहते हैं ......एक बार उन दयालु कृपालु महादेव का कोई नाम भी भूले से ले .......तो उसे दर्शन हो जाते हैं .........पर मै तो इस केदार नाथ की यात्रा में ही सवा करोड़ ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जाप कर चुका हूँ .....फिर मुझे दर्शन क्यों नही ?
तभी मुझे आद्य जगद्गुरु शंकर के वाक्य स्मरण में आये .....मैने पढ़ा था कहीं .....अपनें शिष्यों को उपदेश करते हुए आचार्य नें कहा था ...
शब्द और अर्थ का नित्य सम्बन्ध होता है ..........जहाँ शब्द होता है वहाँ उसका अर्थ भी होता है ..........।
ओह ! मुझे उसी समय कालिदास की ये पँक्ति भी याद आगयी ......
"वागर्था इव सम्पृक्तौ"...........।
फिर तो वो शिव यहीं कहीं होंगे .............मेरा मन मचल उठा दर्शन को ।
शास्त्र झूठे नही है ............तो क्या ये कारण है कि मैने आज तक शब्दों में ध्यान दिया .....उसके अर्थ की और मेरा ध्यान ही नही गया ?
जब नाम और उसका अर्थ एक साथ है ......तो अर्थ का ध्यान मुझे करना चाहिए था ....।
शिवाय का अर्थ ही होगा ......जो डमरू धारण किये हुए हैं ........मस्तक में चन्द्रमा हैं ..........हाथों में त्रिशूल है ...........ऐसा विचार जैसे ही मन में कौंधा...................
तभी चम चम चम करता हुआ मुझे केदार नाथ के मन्दिर का शिखर दिखाई दिया ...........उसपर महादेव ........डमरू बजाते हुए .....तांडव करते हुए ...........मस्ती में नाचते हुए ............
आहा ! मैने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया ।
********************************************************
केदार नाथ की गुफा में ध्यान में बैठे श्री शंकराचार्य ...............
वि. सं. 8 77 में ......तब उनकी अवस्था थी मात्र 32 वर्ष की .......
आचार्य कहीं गए नही ..................कहाँ जाना ?
शरीर का जो भी तत्व था ....पृथ्वी , जल , तेज़, वायु, आकाश ...वो सब यहीं मिल गया .......और आत्मा तो कहीं जाती आती है नहीं.......।
सनातन धर्म ऋणी रहेगा आचार्य शंकर का ...........
सनातन हिन्दू धर्मानुरागी भगवत्पाद श्री शंकराचार्य का ऋणी है ।
******************************************************
भगवान शंकर के दर्शन करके .......मै आनन्दित हो उठा था ।
मै शाश्वत ...........केदार नाथ के मन्दिर में प्रवेश करनें से पहले ........मैने साष्टांग प्रणाम किया मानसिक स्मरण करते हुए .......भगवान शंकराचार्य को .............आज हम लोग जो केदार में दर्शन कर रहे हैं ......ये भव्य दिव्य मन्दिर .............ये सब आद्य जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी की ही देंन है ।
अद्वैत मत ..........इन्हीं का दर्शन है ..............
शांकर भाष्य को विश्व् के विद्वानों नें अद्भुत सम्मान दिया है ।
मै शाश्वत ...........शंकरं शंकराचार्यम् ..........
इनके श्री चरणों में बारम्बार प्रणाम करता हूँ ।
इति श्री शंकराचार्य चरितम्.................
( श्री शंकराचार्य चरित्र को शाश्वत यहीं विराम देता है )
Harisharan
0 Comments