( शाश्वत की कहानियाँ )
!! श्रीरामानुजाचार्य चरित्र - भाग 10 !!
तस्माद् केनाप्युपायेन मनः कृष्णे निवेसयेत्...
( श्रीमद्भागवत )
( साधकों ! आज कल शाश्वत यमुना जी के किनारे मिलता है ....
मै शाम को निकलता हूँ ......श्री बाँके बिहारी , श्री राधाबल्लभ दर्शन करनें .........वह उस समय यमुना जी में बैठा ध्यान करता रहता है ।
तीन दिन से मै उससे वहीं तो मिल रहा हूँ ........फिर हम लोग नाव में बैठ कर ......पल्ली पार जाते हैं ।
"मेरे पास पैसे नही है नाव के लिए" वो मना करता है...पर मै उसे बहला फुसला कर ले ही जाता हूँ....सत्संग हमारा अच्छा हो जाता है वहाँ ।
कल श्रीराधा बल्लभ जी का और श्रीबिहारी जी का दर्शन करके जब मै यमुना जी के किनारे गया .....तो शाश्वत एक युवक को समझा रहा था ।
मै शान्ति से अपनी माला लेकर जाप करता रहा ......और शाश्वत की बातें सुनता रहा .......कल एकादशी भी थी ।
क्यों अपनें जीवन को बर्बाद कर रहे हो यार !
"यार" बड़ी आत्मीयता से कहता है ये शाश्वत ।
एक लड़की के लिए ? उसके मांसल देह के लिए ? उसकी गोरी चमड़ी के लिए ? या उसके बाल या उसके नाख़ून के लिए ?
बस जब तक ब्रह्मचर्य है तभी तक तो आकर्षण है ना उसका ?
फिर उसके बाद ? .................
पर इतना आसान नही होता....प्यार को भुला पाना......युवक नें कहा ।
सब भूल जाते हैं .........अच्छे अच्छे भूल जाते हैं .......सारे कस्मे वादे धरे के धरे रह जाते हैं ...........शाश्वत नें सहजता में ही कहा ।
तुम "श्री कृष्ण" की ओर क्यों नही मुड़ जाते ?
शाश्वत की बातें सुनकर वो युवक चौंक गया .......मै उन दोनों को ही देख रहा था ............।
कृष्ण की ओर ? मै समझा नही ? उस युवक नें कहा ।
शाश्वत समझाता है .............मन को कहीं और घुमाना ही तो है ना ?
लड़की से घुमाकर "श्री कृष्ण" में नही ले जा सकते ?
ये सब कहनें की बातें हैं ................लड़की में जो आकर्षण है .....वो मूर्ति में ? उस युवक को शाश्वत आज कोरा भक्त लग रहा था ....मात्र एक भक्त ...........जिसमें कोई लॉजिक नही थी ।
वो बोला भी - आपकी बातों में लॉजिक नही है !
शाश्वत खूब हँसा ..........काफी देर तक हँसता ही रहा ............फिर मुझे भी अपनें पास बुला लिया .......और उस युवक से बोला ......हाँ भाई ! मेरी बातों में कोई लॉजिक नही है......तुम्हारी बातों में बहुत लॉजिक है ।
हाथ दिखाना ? ब्लेड से काट ली नस ? ये लॉजिक है !
शाश्वत हँसा ..............खूब हँसा ...............फिनायल पी ली .....दो दिन हॉस्पिटल में रहकर आगये ..........ये लॉजिक है .....है ना ?
रात रात भर जागकर बातें करते हो ...........लड़ते हो और झगड़ते हो ..........और सुबह 6 बजे सोते हो .......वाह ! ये लॉजिक है ।
पर मूर्ति में मन लगानें को कह रहे हो आप तो ?
उस युवक को ये बात अजीब लग रही है ।
शाश्वत बहुत बुद्धिमान है ........उसी युवक के स्तर पर उतर आया .....और उसी के अनुरूप तर्क भी दिए ........और पूर्ण सन्तुष्ट करके उसे भेजा ।
मन ही तो घुमाना है.........तुम्हे इस तनाव से ही तो मुक्ति पानी है ना ? तो मै जैसा कहता हूँ कर के देख लो ।
मै कब कह रहा हूँ मूर्ति में मन लगाओ ........मैने तो कहा है श्री कृष्ण में मन लगाओ.......चिन्मय कृष्ण में..........मूर्ति में क्यों लगाना ।
पर वो चिन्मय तो सर्वत्र है .......है ना ? वो मूर्ति में भी है ........।
तुम जितना रो रहे हो उस लड़की के लिए ..........कोशिश करके एक बून्द आँसू भी कृष्ण के लिए निकाल देते तो पता नही तुम क्या हो जाते ! पर तुम तो बेकार हो ..........एक लड़की के लिए मर रहे हो ...और वो तुम्हे घास भी नही डाल रही ..............।
शाश्वत नें गम्भीर होकर कहा .......देखो ! तुम्हे उस लड़की को छोड़ना तो होगा ही ........राजी राजी , या गैर राजी ।
तो भैया ! क्यों न उस लगाव को .....उस अपनत्व को ..........तुम श्रीकृष्ण में लगा देते ।
वो काफी देर तक सोचता रहा .........फिर उसनें कहा .......क्या करूँ ?
कैसे इसकी शुरुआत करूँ ?
शाश्वत नें समझाया ..............देखो ! नित्य बांकेबिहारी जी जाओ .......दर्शन करो ........उनसे बतिआओ ..........अपनें हृदय की बातें उनसे शेयर करो ........उस लड़की नें तुम्हे धोखा दिया है ना .....तो बताओ श्री कृष्ण को ...............।
तुम घर में भी अपनें हृदय में श्री कृष्ण को देखो ..............श्री कृष्ण बहुत सुन्दर हैं ...............इस लड़की में क्या सुन्दरता है !
शाश्वत नें अच्छे से समझा दिया था उस युवक को ....उसके प्रेम को दिशा दे दी थी .............शाश्वत नें ।
युवक अब सोच रहा था .....शाश्वत की बातों को ।
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कल से आगे का प्रसंग -
इस धनुर्दास में ऐसा क्या है ? जो हमारे पूज्य स्वामी जी श्री रामानुजाचार्य जी ........इसी को लेकर कावेरी स्नान के लिए जाते हैं .........और लौटकर भी इसी के साथ आते हैं ...ये तो हर समय स्वामी जी के ही साथ रहनें लगा है । श्री रामानुजाचार्य जी के अन्य शिष्य गण धनुर्दास से ईर्श्या करनें लगे थे ।
ये तो ब्राह्मण भी नही है ........और हम तो ब्राह्मण भी हैं ......और स्वामी जी के पुरानें सेवक भी हैं ........पर हमारे श्री रामानुजाचार्य जी ।
ये पहलवान था ..................शरीर भी इसका बहुत अच्छा था ।
नही नही .....ये कहाँ मानता था सन्तों को और आचार्यों को !
एक दूसरे शिष्य नें कहा ।
पर ये है कौन ? स्वामी जी के ही शिष्य पूछते हैं ।
ये श्रीरंगम् के पास का ही है .........................
पहलवानी में इसका नाम था ...............पर इसका दिल आगया था एक नाचने वाली पर । श्री रामानुजाचार्य जी के ही एक शिष्य नें ये बात बताई ।
नाचनें वाली पर ? अन्य शिष्य भी आगये थे धनुर्दास के बारे में जाननें के लिये ।
हाँ ......ऐसा पागल प्रेमी हमारे दाक्षिण प्रदेश में आज तक नही हुआ ।
सब लोग बड़े ध्यान से सुन रहे थे ।
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उस नाचनें वाली का नाम था हेमाम्बा .......उसके सुन्दरता की चर्चा प्रदेश भर में थी ........।
एक दिन यही छैला युवक धनुर्दास गलती से हेमाम्बा का नृत्य देख लेता है ..........बस ..........अपना हृदय दे बैठता है ।
पर हेमाम्बा को चाहनें वाले बहुत थे .........हजारों की चहेती थी ।
पर जो हर समय उपलब्ध हो ........उससे प्रेम कहाँ होता है ....प्रेम तो उससे होता है ....जो "उपलब्ध" भी हो ...और "अनुपलब्ध" भी हो ......तब प्रेम फलता फूलता है ।
अपना सब कुछ लुटा दिया उस हेमाम्बा के पीछे धनुर्दास नें ।
उसकी सुन्दरता पर मर मिटता था ये धनुर्दास............
धनुर्दास को ये अगर सहजता से मिल जाती .........तो इतना पागलपन नही होता धनुर्दास को........इसके पागलपन के बढ़नें का कारण ये भी था कि ये असुरक्षात्मक अनुभव करता था स्वयं में.... ....हेमाम्बा को लेकर ।
"कहीं किसी के साथ ये सुन्दरी चली गई तो"
और सुन्दरता थी भी इसकी गजब की ।
पर आशिक़ भी कम गजब का नही था ये धनुर्दास ।
ये जब चलती थी हेमाम्बा ......तब उसके मुख की और देखता हुआ ये धनुर्दास चलता था ......यानि उल्टा चलता था ।
कहाँ जा रही हो ?
आज सुबह ही स्नान करके ....सुन्दर साडी पहनकर तैयार थी । धनुर्दास सूर्योदय हुआ नही कि .....पहले इस हेमाम्बा के घर में ही चला आता था.....और उसी के पलंग के पास बैठकर उसे देखता रहता ।
आज जब धनुर्दास आया ......तब तक तो उसनें उठकर स्नान भी कर लिया था ।
कहाँ जा रही हो ? मै भी चलूँगा ........तुम्हारे साथ !
धनुर्दास नें जिद्द की ...................।
श्री रंगम में भगवान श्री रंगनाथ की सवारी निकलेगी आज..........मेला लगेगा ..........मै वही जा रही हूँ । हेमाम्बा नें कहा ।
मै भी जाऊँगा .........चहकते हुए धनुर्दास नें कहा था ।
पर तुम क्या श्रीरंगनाथ भगवान को देखोगे ?
या वहाँ भी मुझे ही देखते रहोगे ?
मेरे लिए तो तुम्ही रंगनाथ भगवान हो .................
ये कहते हुए जो गजरा लेकर आया था हेमाम्बा के लिए धनुर्दास .....वो गजरा बालों में लगा दिया था ........और अपलक नेत्रों से अपनी प्रेयसि हेमाम्बा को देखनें लग गया था ।
श्री रंगम के लिए...... हेमाम्बा और धनुर्दास साथ में कुछ सहेलियाँ भी थीं हेमाम्बा की .......ये सब लोग होकर चल दिए थे ।
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पता है आज तुम धनुर्दास को...... यहाँ इतनी सेवा करते हुए देख रहे हो ........पर सेवा क्या है .? ...... इसे वो भी पता नही था ?
रामानुजाचार्य जी के एक शिष्य नें धनुर्दास के बारे में सारी बातें बता दीं थीं ......।
पर ये तो परमभक्त है........सदगुरु की सेवा में सब कुछ लगा दिया ।
कितनी सेवा करता है ये धनुर्दास ...........।
पर इसे मोड़ा स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी नें ।
कैसे ? ? ?
सारे शिष्यों ने पूछ लिया था ।
उस दिन सवारी निकलनें वाली थी ........श्री रंगनाथ भगवान की ......
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पूरी सवारी में उस दिन चर्चा का विषय बन गया था ये धनुर्दास ।
हजारों लोग श्री रंगनाथ भगवान के दर्शन करके कृतार्थ हो रहे थे .....अपनें आपको धन्य समझ रहे थे ।
उस समय .................................
स्वामी जी ! श्री रंगनाथ भगवान की सवारी में एक पागल आया है .....
एक शिष्य नें आकर स्वामी रामानुजाचार्य जी के कान में हँसते हुए कहा ।
कैसा पागल ?
यहीं पास के ही गाँव का है भगवन् ! एक किसी नाचनें वाली से प्रेम कर बैठा है ........और देखिये ना वो रहा ..........रामानुजाचार्य जी को दिखाया ...............आश्चर्य में पड़ गए रामानुजाचार्य जी भी ।
वो युवती जा रही है........सीधे सीधे .......पर वो धनुर्दास उलटा चल रहा है ..............क्यों ? ये ऐसे क्यों चल रहा है ?
रामानुजाचार्य जी के शिष्य नें कहा ........ये इसका घनिष्ठ प्रेमी है ।
इसका कहना है .......इस दुनिया में अगर कोई सुन्दर है तो इसकी ये प्रेयसि हेमाम्बा ही सुन्दर है .........।
रामानुजाचार्य नें देखा श्री रंगनाथ भगवान की ओर....सुन्दर तो ये हैं ।
इनके समान सुन्दर और कौन होगा ?
पर इस धनुर्दास को कौन समझाये.......शिष्य नें स्वामी जी से कहा ।
हाँ .......कौन समझाये ! ऐसा कहते हुए रामानुजाचार्य .....फिर कोई सेवा करनें लगे थे ........भगवान श्री रंगनाथ जी की ।
नाथ ! क्या ऐसा नही हो सकता ..............कि इसे आप बदल दें !
शिष्य नें ऐसे ही कह दिया था ।
ये चाहें तो बदल सकते हैं .........
श्री रंगनाथ भगवान की ओर देखते हुए कहा था रामानुजाचार्य नें ।
आरहा है भगवन् ! आपके ही पास आरहा है ....धनुर्दास ।
देखिये उसे .....उल्टा चल रहा है...उस युवती का मुख देखते हुए चल रहा है......एक क्षण के लिए भी ओझल नही होनी चाहिए हेमाम्बा ।
रामानुजाचार्य जी हँसे ।
विचित्र लगा वो रामानुजाचार्य जी को ।
भगवान श्री रंगनाथ के, रथ के सामनें आकर खड़ी हो गयी हेमाम्बा ।
हाथ जोड़कर खड़ी है ............प्रार्थना कर रही है ।
पर हद्द है धनुर्दास तो ..............भगवान श्री रँग नाथ को पीठ करके .....हेमाम्बा के मुख की ओर ही देखे जा रहा है .............।
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क्या कर रहे हो ये ?
रामानुजाचार्य जी नें धनुर्दास को रथ की ओर पीठ करते हुए देखा तो पूछ लिया ।
पर उसनें कोई ध्यान नही दिया रामानुजाचार्य जी के प्रश्नो में ।
हे रंगनाथ ! ऐसा विचित्र प्रेमी मैनें दुनिया में नही देखा ..........
इसे ये युवती सुन्दर लगती है.......पर नाथ ! आप अपनी सुन्दरता की झलक इसे एक बार दिखा दो ना !
ये गलत नही है नाथ ! रामानुजाचार्य जी भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं ।
प्रेम ही तो करता है ...........लोग छुप कर करते हैं .....ये खुले आम करता है ..............पर प्रेम ही करता है ।
आप मोड़ दो ना इसके प्रेम को ।
इसी प्रेम को , ऐसे ही पागलपन को .....अपनी और मोड़ दो ना !
इसका जीवन धन्य हो जाएगा ....इसका प्रेम धन्य हो जाएगा .......अगर यही प्रेम आपकी तरफ लग जाए तो ।
तभी एक फूल रंगनाथ भगवान के हाथ से गिरा ........समझ गए रामानुजाचार्य जी .........भगवान इसे अपनी ओर अब मोडेंगें ।
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ए ! क्या भगवान की और पीठ करके चल रहे हो !
रामानुजाचार्य जी नें धनुर्दास से थोड़ी कड़क आवाज में ये बात कही ।
तुम्हे क्या मतलब ? अपना काम करो .........मै अपनें ईश्वर को देख रहा हूँ ......तुम अपनें ईश्वर को देखो ।
धनुर्दास की बातें सुनकर रामानुजाचार्य जी भी एक बार चौंकें ।
फिर हँसते हुए बोले ..........पर तुम्हारे इस ईश्वर से सुन्दर तो मेरा ईश्वर है ...........।
नही .........तुम्हारा ईश्वर पत्थर का है .....धनुर्दास नें कहा ।
तेरा ईश्वर भी खून हड्डी माँस....ये सब गन्दी वस्तुओं से बना है ।
मेरा ईश्वर सुन्दर है .............देखो ! हेमाम्बा की ओर दिखाया ....धनुर्दास नें ।
और मेरे ईश्वर को देखो ..............देखो ! कितना सुन्दर है ।
अरे जाओ ! ...........धनुर्दास नें देखा नही भगवान रंगनाथ की ओर ।
देख तो ले भाई ! एक बार ही सही देख ले ।
रामानुजाचार्य जी की करुणा उछाल मार रही थी ।
अरे ! देखा है तेरा भगवान ।
ऐसा कहते ही जैसे मुडा वो धनुर्दास सामनें भगवान श्री रंगनाथ जी खड़े हैं .........।
सुवर्ण का मुकुट ................पीताम्बरी धारण किये हुए हैं ।
सुन्दर हैं .......अति सुन्दर ।
आश्चर्य ! श्री रंगनाथ का विग्रह गायब हो गया ......और साक्षात् भगवान श्री नारायण प्रकट हो गए ...........।
सुन्दर रूप , नीला रँग, चार भुजा ...शंख चक्र गदा पदम् ...धारण किये हुए ......बड़ी बड़ी करुणा से भरी हुयी आँखें ..........कौस्तुभ मणि हृदय में .............
अपलक नेत्रों से देखता रहा आज धनुर्दास भगवान रंगनाथ को ।
आहा ! ये कितनें सुन्दर हैं ................इनका रूप लावण्य !
इनके ये नेत्र .............इनके अरुण अधर .............इनके कण्ठ में पड़ी हुयी माला ................इनकी मुस्कुराहट .........।
हेमाम्बा नें देखा .............पहली बार मेरे चेहरे से इसकी नजर हटी है .........धनुर्दास ! ए धनुर्दास ! आवाज दी हेमाम्बा नें धनुर्दास को ।
पर अब ये कहाँ सुननें वाला था ....सौंदर्य सिन्धु में ये डूब गया था ।
जगत में जितनी सुन्दरता है .............वो सब इसी सागर से ही तो निकलती है ......और एक एक बून्द इधर उधर पड़ जाती है ......तो उसी को हम सुन्दरी या सुन्दर कहते नही थकते ।
पर मूल सौंदर्य तो इसी सिन्धु से ही आरहा है .......।
चलो ! धनुर्दास ! चलो ! हेमाम्बा नें कहा ।
हटो मेरे सामनें से ...............मुझे देखनें दो इनके रूप सौंदर्य को .....आहा ! कितनें सुन्दर हैं ये .........दिव्य ! अद्भुत !
मुड़ गया था प्रेम धनुर्दास का ..............जो प्रेम हेमाम्बा के प्रति था वही प्रेम मुड़कर अब भगवान रंगनाथ के प्रति हो गया था ।
रामानुजाचार्य जी बहुत प्रसन्न हुए .........उनके सारे शिष्य प्रसन्न थे .....पूरा श्री रंगम आश्चर्यचकित था इस बात से .....कि धनुर्दास जैसा व्यक्ति भक्त बन गया ? पर बन गया था ......यही सच्चाई थी ।
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मन को ही तो लगाना है ना ? सारा खेल मन का ही तो है ना ?
मन को जैसे चाहो घुमा दो ...............शाश्वत कहता जा रहा था ।
लड़का लड़की से प्रेम में कहीं सुख है ?
खुजली को खुजानें में जो सुख मिलता है .....उसी को सुख मान बैठे हो ......ये विषय भोग ....लड़का लड़की का सुख ............ये क्षणिक खुजली मिटाना ही तो है ............विचार करो गम्भीरता से ।
और अगर मै जैसे कहता हूँ वैसा तुम अगर कर सको .......तो आत्मबल तुम्हारे अंदर बढ़ेगा ..........आस्तित्व से तुम्हारा सीधा जुड़ाव होगा ..........तुम अपनें में रहोगे ...........और मस्त रहोगे ।
शाश्वत उस युवक को समझा रहा था ।
"श्री कृष्ण से प्रेम करो".........पर वो युवक समझ नही पा रहा था ।
साधकों ! आप तो समझ रहे हो ना ?
शेष प्रसंग कल ...............
Harisharan
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