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*गोपाल की उल्टी रीति*


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नित्य लीला स्थली श्री धाम वृंदावन के काम्यवन मे श्री जयकृष्ण दास बाबा जी गोप-बालको के उत्पात से तंग आकर विमलकुण्ड़ के किनारे एकांत कुटिया मे रहकर भजन किया करते थे।
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श्री जयकृष्ण दास बाबा जी हर समय भजन में लीन रहते थे। केवल एक बार मधुकरी के लिए ग्राम में जाया करते और शेष समय दिन-रात हरिनाम जपते।
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एक दिन मध्याह्न में सिद्ध जयकृष्ण दास बाबा जी की अन्तरंग सेवा में ठाकुर जी की एक ऐसी घटना घटी कि वे' श्रीकृष्ण' विरह मे व्याकुल होने लगे।
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हुआ यह की उस समय विमलाकुण्ड़ के चारों ओर असंख्य गाय और गोप बालक आकर उपस्थित हुए।
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गोप-बालक बाहर से चीखकर कहने लगे :- बाबा प्यास लगी है, जल प्याय दे।
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जयकृष्ण दास बाबा तो पहले से ही गोप-बालको के उत्पात से परेशान थे, इसलिए बाबा चुपचाप अपनी कुटिया मे बैठे रहे।
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पर ठाकुर जी कहा मानने वाले थे, अपने गोप-सखाओं के साथ तरह-तरह के उत्पात करने लगे।
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कुटिया के दरवाजे के पास आकर बोले :- अरे ओ बँगाली बाबा ! हम जाने हैं तु कहा भजन करे है।
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दयाहीन बाबा कसाई के बराबर होय हैं। अरे बाबा कुटिया से निकलकर जल प्याय दे, हमको बड़ी प्यास लगी है।
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अब गोप-बालक बाबा को परेशान करने लगे। जयकृष्ण दास बाबा बालको के उत्पात से क्रुद्ध हो लकड़ी हाथ में लेकर कुटिया से बाहर निकल पड़े।
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जयकृष्ण दास बाबा जैसे ही कुटिया से बाहर आये तो देखा की कुटिया के चारों तरफ असंख्य गाय और गोप-बालक हैं।
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सभी गोप-बालक एक से बढ़कर एक सुंदर। एक से बढ़कर एक अदभुत और मनमोहक श्रृंगार।
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उन गोप-बालको को देखकर जयकृष्ण दास बाबा जी का क्रोध ठंड़ा पड़ गया।
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जयकृष्ण दास बाबा ने गोप-बालको से पुछा:- लाला तुम सभी कौन गाँव से आये हो ?
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सभी बालको ने एक साथ जबाब दिया:- नंदगाँव तें।
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बाबा ने एक बालक को पास बुलाकर प्रेम से पुछा :- तेरा नाम क्या हैं ?
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बालक ने कहा :- मेरा नाम 'कन्हैंया' है।
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एक और बालक से बाबा ने पुछा:- लाला तेरा नाम क्या है ?
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बालक ने कहा:- बलदाऊ ! मेरा नाम 'बलदाऊ' है।
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तब गोप बालक कन्हैया ने कहा :- "देख बाबा जी पहले पियाय दे,पाछे बात करियो।"
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बाबा ने स्नेह परवश हो करुवे से गोप-बालको को जल पिला दिया।
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बालक ने कहा :- "देख बाबा हम नित्य किते दूर से आवें है, प्यासे जायं है। तू कछू जल और बालभोग राख्यो कर।"
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"नहीं-नहीं रोज-रोज आकर अपाधि नहीं करना" कहते हुए बाबा कुटिया मे चले गये।
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बाबा कुटिया मे आकर सोचने लगे :- "ऐसे सुंदर मनमोहक बालक और ऐसी सुंदर गायें तो मैंने कभी नहीं देखी, न कभी ऐसी मधुर बोली ही सुनी। यह इस जगत के था किसी और जगत के।"
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यह सब सोचते हुए जयकृष्ण दास बाबा जी उन गोप-बालको को एक बार  फिर देखने को जैसे ही कुटिया से बाहर निकले वहाँ न गायें थी और ना ही कोईगोप-बालक। दूर दूर तक गायों तथा बालको के कोई चिन्ह नही थे।
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जयकृष्ण दास बाबा दुःखित और अनुतप्त हो अपने दुर्भाग्य और गोप बालको के प्रति अपने अंतिम वाक्य "रोज-रोज आकर अपाधि नहीं करना" की बात सोचते सोचते आविष्ट हो गये।
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बाबा रात भर 'प्रिया प्रियतम' की याद मे अश्रु विसर्जन करते रहे।
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उसी समय 'भगवान श्रीकृष्ण' बाबा के सामने उपस्थित हो उन्हें सान्त्वना देते हुए बोले :-'बाबा दुःख मत कर कल मैं तेरे पास आऊँगो।'
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तब श्री जयकृष्ण दास बाबा जी का आवेश भंग हुआ और उन्होंने धैर्य धारण किया।
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दुसरे दिन एक वृद्धा व्रज माई जयकृष्ण दास बाबा की कुटिया मे गोपाल की एक मूर्ती लेकर आई और बाबा से बोली :-
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"बाबा मोपे अब गोपाल की सेवा नाय होय। बाबा आज से तू मेरे गोपाल की सेवा किया कर।"
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जयकृष्ण दास बाबा ने कहा :- "माई मैं कैसे इनकी सेवा करूँगा ? रोज सेवा की सामग्री और भोग कहाँ से लाऊँगा ?"
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"बाबा तू बस सेवा किया करना सेवा की सामग्री मैं रोज आकर दे जाऊँगी" गोपाल को बाबा को देकर ऐसा कहते हुए वृद्धा माई चली गई।
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गोपाल जी की रूप माधुरी देख बाबा मुग्ध हो गये।
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उसी रात जयकृष्ण दास बाबा को स्वप्न में वृद्धा माई ने श्री वृन्दा जी के रूप मे दर्शन दिये।
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गोपाल की उल्टी रीति है। अगर कोई बुलाता है तब भी उसके पास नहीं जाते, और कभी कोई नहीं भी बुलाता तो उसके पास जरूर जाते है।
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ऋषि मुनि भी बुला बुलाकर हार जाते है, उनके मानस पटल पर भी कभी उदय नहीं होते।
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पर उनके प्रेमी भक्त उन्हें नहीं भी बुलाते तो हाथ धोकर अपने भक्त के पीछे पड़ जाते हैं।
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जयकृष्ण दास बाबा ने उनके आने को उपाधि मानकर उनसे यही कहा था न "रोज-रोज आकर अपाधि नहीं करना"
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इसलिए आज ठाकुर जी बाबा के पास आकर ऐसे जमकर बैठे की जाने का नाम भी नहीं लेते।

🚩🚩🚩नर्मदे हर 🚩🚩🚩

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