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भगवान् का प्रतिनिधि


रात नौ बजे लगभग अचानक मुझे एलर्जी हो गई। घर पर दवाई नहीं, न ही इस समय मेरे अलावा घर में कोई और।
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श्रीमती जी बच्चों के पास दिल्ली और हम रह गए अकेले।
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ड्राईवर मित्र भी अपने घर जा चुका था। बाहर हल्की बारिश की बूंदे सावन महीने के कारण बरस रही थी।
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दवा की दुकान ज्यादा दूर नहीं थी पैदल भी जा सकता था लेकिन बारिश की वजह से मैंने रिक्शा लेना उचित समझा।
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बगल में राम मन्दिर बन रहा था। एक रिक्शा वाला भगवान् की प्रार्थना कर रहा था।
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मैंने उससे पूछा, चलोगे ? तो उसने सहमति में सर हिलाया और बैठ गए हम रिक्शा में !
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रिक्शा वाला काफी़ बीमार लग रहा था और उसकी आँखों में आँसू भी थे।
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मैंने पूछा, क्या हुआ भैया ! रो क्यूँ रहे हो और तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं लग रही।
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उसने बताया, बारिश की वजह से तीन दिन से सवारी नहीं मिली और वह भूखा है बदन दर्द भी कर रहा है,
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अभी भगवान् से प्रार्थना कर रहा था कि आज मुझे भोजन दे दो, मेरे रिक्शे के लिए सवारी भेज दो।
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मैं बिना कुछ बोले रिक्शा रुकवाकर दवा की दुकान पर चला गया।
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वहां खड़े खड़े सोच रहा था...
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कहीं भगवान ने तो मुझे इसकी मदद के लिए नहीं भेजा। क्योंकि यदि यही एलर्जी आधे घण्टे पहले उठती तो मैं ड्राइवर से दवा मंगाता,
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रात को बाहर निकलने की मुझे कोई ज़रूरत भी नहीं थी, और पानी न बरसता तो रिक्शे में भी न बैठता।
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मन ही मन भगवान् को याद किया और पूछ ही लिया भगवान् से ! मुझे बताइये क्या आपने रिक्शे वाले की मदद के लिए भेजा है ?
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मन में जवाब मिला... हाँ...।
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मैंने भगवान् को धन्यवाद दिया, अपनी दवाई के साथ रिक्शेवाले के लिए भी दवा ली।
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बगल के रेस्तरां से छोले भटूरे पैक करवाए और रिक्शे पर आकर बैठ गया।
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जिस मन्दिर के पास से रिक्शा लिया था वहीँ पहुंचने पर मैंने रिक्शा रोकने को कहा।
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उसके हाथ में रिक्शे के 30 रुपये दिए, गर्म छोले भटूरे का पैकेट और दवा देकर बोला,
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खाना खा कर यह दवा खा लेना, एक एक गोली ये दोनों अभी और एक एक कल सुबह नाश्ते के बाद, उसके बाद मुझे आकर फिर दिखा जाना।
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रोते हुए रिक्शेवाला बोला, मैंने तो भगवान् से दो रोटी मांगी थी मग़र भगवान् ने तो मुझे छोले भटूरे दे दिए।
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कई महीनों से इसे खाने की इच्छा थी। आज भगवान् ने मेरी प्रार्थना सुन ली।
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और जो मन्दिर के पास उसका बन्दा रहता था उसको मेरी मदद के लिए भेज दिया।
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कई बातें वह बोलता रहा और मैं स्तब्ध हो सुनता रहा।
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घर आकर सोचा कि उस रेस्तरां में बहुत सारी चीज़े थीं, मैं कुछ और भी ले सकता था, समोसा या खाने की थाली... पर मैंने छोले भटूरे ही क्यों लिए ?
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क्या सच में भगवान् ने मुझे रात को अपने भक्त की मदद के लिए ही भेजा था ?
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हम जब किसी की मदद करने सही वक्त पर पहुँचते हैं तो इसका मतलब उस व्यक्ति की प्रार्थना भगवान् ने सुन ली, और हमें अपना प्रतिनिधि बनाकर उसकी मदद के लिए भेज दिया।
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हे प्रभु ऐसे ही सदा मुझे राह दिखाते रहो, यही आप से प्रार्थना है !

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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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