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"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 106

*आज  के  विचार*

*( जब वृन्दावन में दाऊ पधारे )*

*!!  "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 106  !!*

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उफ़  !   दस वर्षों से भी ज्यादा  समय बीत गया है  श्याम सुन्दर के  मथुरा गए ..... दस वर्ष से ज्यादा होनें को आये हैं  ......पर  प्रतीक्षा सबकी  अभी भी बनी हुयी है   कि ........."श्याम आयेंगें"  ।

मैं  चन्द्रावली ..........हाँ  कह सकते हैं .....राधा की सौत  ।

बहुत चिढ़ती थी  मैं  राधा से ............क्यों की श्याम सुन्दर  इसे ही ज्यादा मानते थे...............मुझ से छोटी है  राधा ..........पर  इस छोटी बहन से भी मैं ईर्श्या ही करती थी.....इसके बाद भी  सदैव राधा नें  मुझे "जीजी" कहकर ही आदर दिया..........सम्मान सदैव दिया मुझे   इस प्रेम की पुजारन नें........हाँ  गलत मैं थी.....मेरी कोई तुलना ही नही थी  राधा से ......राधा,  राधा थी   और मैं   विकार और दुर्गुणों  से भरी  चन्द्रावली .......हाँ  अब लगता है   कि   श्याम  राधा को  इतना क्यों मानते थे  ।  

मैं  अभी  मिलकर आरही हूँ  राधा से............ श्याम सुन्दर से कोई शिकायत नही है उसे ............वो तो मैं थी कि,   राधा की दशा देखकर  दो चार गालियां देनें की इच्छा हुयीं  श्याम सुन्दर को ......और मैने तो दे भी दीं .........पर   राधा  !        "जीजी !    आप  कुछ भी कह सकती हो उन्हें ......पर  मेरी दृष्टि में तो  वो   परम दयालु हैं ..........द्वारिका में जाकर बस गए हैं ................कुछ ऐसी परिस्थिति बनी होगी .........मैं तो उन्हें किंचित् भी दोष नही देती............वो प्रसन्न रहें  ,  भले ही  वृन्दावन न आएं ......पर प्रसन्न रहें  वे "

चन्द्रावली  !  

  अब समझी तू   कि      श्यामसुन्दर  राधा को क्यों चाहते थे  ?  

प्रेम का  अद्भुत रूप ,   राधा  में मुझे आज दिखाई दिया था ..........मैं  उसे  देखती रही थी .............वो  नेत्रों से निरन्तर अश्रु प्रवाहित कर रही थी........पर बीच बीच में  आँसुओं को पोंछते हुए कहतीं -  ये  दुःख के आँसू नही हैं ........पता है   मेरे श्याम सुन्दर नें विवाह कर लिया !

हाँ  जीजी !   सच कह रही हूँ .........श्याम सुन्दर  द्वारिका गए और वहाँ जाकर  किसी राजकुमारी से विवाह कर लिया  ।

मुझे बता रही थी............हाँ  "रूक्मणी"  नाम है ,  मैने भी  कह दिया ।

जीजी !  आपको पता है ?        किसनें बताया  ?     राधा एक बच्ची की तरह  पूछती है मुझ से  ।

एक नही   आठ  विवाह किये हैं   श्याम सुन्दर नें   । 

ये सुनकर  वो  कितना हँसी थी ..............खिलखिलाकर  हँसी थी  ।

जीजी !  सच  !      आठ विवाह किये हैं  मेरे  श्याम नें  !

हूँ.................मैने इतना ही कहा   ।

तुम्हारे मन में कभी ईर्श्या नही जागती  ?       कुछ देर बाद  मैने  राधा से पूछा था ..........क्यों की  राधा  !      मेरे हृदय में तो  मात्र ईर्श्या ही है ।

मैं तुमसे भी तो कितना जलती थी ..........  आठ विवाह किये श्याम नें ........तुम्हे  जलन नही हो रही उन राजकुमारियों से ?

जीजी !  क्यों जलन हो  ?       हमारे प्राणेश  को प्रिय लगी होंगीं  वे राजकुमारियां  तभी तो विवाह किये ना  !    और प्राणेश की प्रियता  क्या हमारी प्रियता नही है  ?     

नही,   मुझे तो बहुत जलन होती है ........मेरा हृदय तो उन राजकुमारियों के बारे में सोच सोच कर जलता है ..........मैने कहा ........और  उठ गयी  थी .....हाँ उठते हुए   राधा को  मैने पहली बार प्रणाम किया  था...... .......राधा !     आज चन्द्रावली कह रही है,    तुम्हारे आगे  ये चन्द्रावली  कुछ नही है .............तुम्हारे पैर की धूल भी नही है  ।

जीजी !  आप ऐसा मत बोलो ...........आप मुझ से बड़ी हैं   ...........

मैं  चन्द्रावली   अब रुक नही सकती थी  राधा के पास.......मेरे नेत्र बहनें के लिए आतुर थे ....और  राधा के आगे मैं रोना नही चाहती थी  ।

मैं चल दी  ...........राधा से मिलकर   मेरी दशा ही अलग हो चली थी  ।

मेरे कदम कहाँ पड़ रहे हैं  मुझे पता नही था.........मेरे शरीर में रोमांच हो रहा था.........कि  तभी मैने  सामनें देखा .....मथुरा के मार्ग में देखा -

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रथ आरहा है  !         

हे वज्रनाभ !      चन्द्रावली सखी नें देखा  ..........वो रुक गयीं  ।

कौन है रथ में  ?       ध्यान से देखनें की कोशिश की   ।

रथ  तीव्रता से दौड़ते हुए आरहा था ..............चन्द्रावली नें देखा   ।

पर..............रथ  तो  वायु की गति से चल रहा था ........सामनें से निकल गया  ........रथ में कौन  ये देख नही पाई थी  चन्द्रावली  ।

रथ   नन्दभवन में ही गया था ........और वहीं रुका    ।

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गौर वर्ण का कोई  सुन्दरपुरुष है............पहचाना सा लगता है  ।

चन्द्रावली गयी थी  नन्दभवन में देखनें   की  कौन आया  ? 

झुककर प्रणाम किया था  मैया यशोदा को उस पुरुष नें ..............

कौन ?          कन्हाई ?  

      मैया को कन्हाई के सिवा और कुछ स्मरण ही नही है   ।

नहीं मैया  !    मैं  तेरा दाऊ  ........बलराम  !    

ओह ! दाऊ..........चन्द्रावली ख़ुशी से झूम उठी थी  ।

दाऊ !       मैया यशोदा   के नेत्रों से अश्रु  बह चले .........हृदय से लगा लिया  ।

ओह !      कैसा है  तू  ?    मेरा कन्हाई नही आया  ?   

"नही आया"....................दाऊ नें कहा  ।

अच्छा !   आजाता  तो ये बूढी आँखें उसे देख लेतीं .............

पर नही आया.....अच्छा ,   अच्छा   एक बात बता  दाऊ !     महर्षि शाण्डिल्य कह रहे थे कि .........तुम लोग मथुरा से  चले गए हो ......पर कहाँ गए  ?      

"द्वारिका"  बलराम नें कहा  ।

दाऊ !  द्वारिका दूर है  ?  

आगे आगयी थी   चन्द्रावली ..............और दाऊ से पूछनें लगी थी ।

दूर है .............समुद्र के मध्य है   ।

मेरा कन्हाई  समुद्र में रहता है .................मैया नें आश्चर्य से पूछा ।

नगरी बसाई है   कृष्ण नें .......द्वारिका नाम की.........बलराम नें  ये बातें बताईं   ।

चल तू  !     थक गया होगा ...............कुछ खा ले .........

अच्छा !  तेरी  माँ  रोहिणी कैसी है   ?        

माखन रोटी लाते हुए  पूछा था मैया नें   ।

देख,   जल  लाना भी भूल गयी........ चन्द्रावली नें कहा ......मैं ला देती हूँ मैया  !  और जल लेनें रसोई में चली गयीं   ।

सिर में हाथ फेरतीं हैं दाऊ के  मैया यशोदा ...........फिर  अतीत में खो जाती हैं .............

शादी की   कन्हाई नें ?    इस प्रश्न पर   थोड़ी हँसीं  थीं   मैया  ।

"हाँ कर ली".........दाऊ नें कहा   ।

सुना तो है कि   आठ  विवाह किये हैं .........कन्हाई नें  ?     

दाऊ  थोडा मुस्कुराये.........आठ नही  मेरी मैया ! 
  सोलह हजार एक सौ आठ ।

हा   इतनें विवाह किये हैं   ?

ओह !       इस  प्रसंग पर तो  मैया यशोदा खुल कर हँसीं ...........पर  हँसी   कुछ ही क्षण    फिर  आँसू में बदल गए थे   ।

यही आँगन है ...........जहाँ एक दिन मचल गया था  कन्हाई ........कहनें लगा .....माखन दे ......फिर कहने लगा था  चन्दा दे,    फिर तो रोते हुए धरती में लोट गया ।

ओह !   कितनें वर्षों  बाद हँस रही थीं  आज मैया ।

कहनें लगा था -  ब्याह करा दे.........ब्याह करा दे....।

बलराम  सुन रहे हैं .............उन संकर्षण को  ये समझते देर न लगी थी कि ......कृष्ण के वियोग में  बृज की  क्या स्थिति हो गयी है   !  

चन्द्रावली !    चन्द्रावली !       जल लानें में इतनी देर  ?  

 अरे !  मुझ  बूढी को ही  उठना पड़ेगा ..........कोई गोपी  भी तो आजकल यहाँ नही आती ...........दाऊ !  बुलाती हूँ   तो कहतीं हैं ......."कन्हाई ज्यादा याद आता है  नन्दभवन में "।

आप बैठिये  मैया !      मैं स्वयं जल पी लूँगा .........दाऊ उठे  ।

नही  बैठ तू  ?    मेरा दाऊ !        तुझे "दाऊ दादा" कहता था कन्हाई ........अब दाऊ दादा आया है  तो.........कितना हँस रही थीं मैया ।

ओह !     चन्द्रावली  !        मैया  जोर से चिल्लाईं ..........

दाऊ भीतर गए ..........जब देखा  तो चन्द्रावली मूर्छित पड़ी थी  ।

"सोलह हजार विवाह" की बात सुन ली थी  चन्द्रावली नें   ।

शेष चरित्र कल -

Harisharan

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