8 आज के विचार
( जब आँखें नही खोलीं, श्रीराधारानी नें....)
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 8 !!
"सिर्फ तू ! तेरा कोई विकल्प नही"
....सच है प्रेमी का क्या विकल्प ?
प्रेम के लिए तो 'प्रियतम" ही चाहिए ........अरे ! फूट जाएँ वे आँखें जो "प्रिय" को छोड़ किसी और को हम निहारें ! फूट जाएँ वे कान जो "प्रिय" की बातों के सिवा कुछ और सुनना पड़े ।
प्रेम अनन्यता की माँग करता है वज्रनाभ ! प्रेम, मछली के समान है ......भ्रमर प्रेम का आदर्श नही हो सकता ...........प्रेम का आदर्श तो मीन है .......जिसे जल के सिवाय कुछ नही चाहिये .........दूध नही ......घी नही.........सिर्फ जल .....और जल नही मिले तो मर जाना पसन्द है ....पर चाहिये तो सिर्फ जल ही .............आहा ! धन्य है मछली की अनन्यता ।
अपनी इष्ट श्रीराधारानी के प्राकट्य की कथा सुनकर भाव में डूब गए हैं वज्रनाभ ............महर्षि शाण्डिल्य कहते हैं ........प्रेम के कुछ आदर्श हैं .....जिन्हें युगों युगों से प्रेमियों नें सम्मान दिया है .............
मछली .........पपीहा ..........मोर ...........
हे वज्रनाभ ! मछली की निष्ठा देखो जल के प्रति ..........पपीहे की निष्ठा देखो स्वाति बून्द के प्रति ........पपीहा प्यासा मर जाएगा .......पर स्वाति बून्द को छोड़कर कुछ और पीयेगा ही नही .........
"गंगा जल भी नही".........प्रेम उन्मत्तता से भरे महर्षि शाण्डिल्य बोले ।
और 'मोर"........श्याम घन देख ....आकाश में काले काले बादलों को देख वो नाच उठता है ......मोर का सर्वस्व है बादल.....मोर प्यार करता है बादल से.....पर बादल ? बादल उस मोर के ऊपर बिजली गिराता है ।
बज्रपात करता है ..........इतना करनें के बाद भी मोर के प्रेम में कमी कहाँ आती है ?
हे वज्रनाभ ! धन्यवाद देता हूँ मैं तुम्हे कि तुम्हारे कारण ही इन आल्हादिनी श्रीहरिप्रिया सर्वेश्वरी श्रीराधारानी के, पावन चरित्र के, गान करनें का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है ।
अब सुनो "श्रीराधाचरित्र" को .............इस चरित्र को जो भी सुनेगा ...गायेगा .......चिन्तन मनन करेगा .......उसके हृदय में प्रेम का प्राकट्य होगा ही ........ये पूर्ण सत्य है ।
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कीर्तिरानी ! हमारी "लाली" अपनें नेत्रों को क्यों नही खोल रहीं ?
हे महाराज ! मेरा भी मन बहुत घबडा रहा है ............कहीं ?
नही ऐसा मत कहो .............ये अपनें नेत्रों को खोलेगी ।
श्रीराधारानी नें जन्म तो ले लिया ...........पर नेत्र नही खोले ।
इतना ही नही ..........दुग्ध का पान भी नही कर रहीं । ये चिन्ता में डालनें वाली बात और हो गयी थी महल में .......बृषभान और कीर्तिरानी के साथ साथ महल के और बरसानें के लोग भी दुःखी होनें लगे थे ।
देखो ना ! कितनें खुश थे हमारे बृषभान महाराज ......और कीर्तिरानी........पर ये क्या हो गया........बालिका न दूध पी रही हैं .......न नेत्र ही खोल रही है ।
बरसानें में इस तरह की चर्चाओं नें अपनी जगह बना ली थी ।
आज दो दिन होनें को हैं.........पर बच्ची ऐसे दूध नही पीयेगी .........तो वो जीयेगी कैसे ? नही ....ऐसे मत बोलो .........हमारे महाराज बृषभान ने बहुत तप व्रत किये हैं .........तब जाकर उनको ये बेटी हुयी है ......हे भगवान ! इस पुत्री को स्वस्थ कर दो ।
अजी ! स्वस्थ है बच्ची तो ..........तुमनें देखा नही है क्या ?
क्या तेज़ है.......क्या दमकता हुआ मुख मण्डल है .........पर आँखें नही खोल रही इतनी ही बात है । कुछ लोग ये भी कहते .......पर इसके साथ सबका मत एक ही था कि मानों अपनें होंठ सिल ही लिए हैं उस बच्ची नें ......दूध ही नही पीयेगी तो बचेगी कैसे ?
कितनें झाड़ फूँक वालों को बुलाया......कितनें वैद्यराज आये.....और तो और कीर्तिरानी की माता "मुखरा मैया" नें भी बहुत "राई नॉन" किया......पर सब कुछ व्यर्थ था .....कुछ फ़र्क ही नही पड़ा ।
बरसानें के लोग कितनें खुश थे ........पर अब बरसानें में उदासी सी छानें लगी थी .......सब नारायण भगवान से प्रार्थना करनें लगे थे .......कि हमारी "भानुदुलारी" को आप ठीक कर दें । हमारे जीवन का सारा पुण्य हम अपनें बृषभान जी को देते हैं ............बस उनकी पुत्री ठीक हो जाए ......आँखें खोल ले ......और दूध पीनें लगे ।
हे वज्रनाभ ! इन भोले भाले लोगों को क्या पता ...........की आस्तित्व किस दिव्य प्रेम का दर्शन करानें जा रहा है जगत को ।
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यशोदा ! तुम्हे पता चला ..............हमारे मित्र बृषभान के यहाँ पुत्री हुयी है .........बृजपति नन्द आनन्दित होते हुए बतानें लगे थे ।
कब ? बृजरानी आनन्दित हो उठीं ..........वो दूध पिला रही थीं .......अपनें कन्हैया को .............कन्हैया नें भी सुना ..........तो वो भी मैया की गोद में पड़े पड़े मुस्कुरानें लगे ।
कब हुयीं हैं उनके लाली ? बृजरानी नें पूछा ।
सिर झुकाकर बड़े संकोच से बोले नन्द .........दो दिन हो गए !
देखो ना ! अब बड़े नाराज होंगें बृषभान ............पता नही कैसे मनाऊँगा मैं उन्हें !
चलिये कोई बात नही ........मैं कीर्तिरानी को समझा दूंगी .........पूतना , तृणावर्त , शकटासुर .......इन सब राक्षसों का कितना आतंक फैला दिया है कंस नें.......कन्हैया को हमनें कैसी कैसी विपत्तियों से बचाया है ........मैं समझा दूंगी......वो मान जाएंगीं ।
बृजपति ! आपनें मुझे बुलाया ?
एक ग्वाले नें आकर नन्द को प्रणाम करते हुए पूछा ।
हाँ ........सुनो ! शताधिक बैल गाड़ियों को सुन्दर सुन्दर सजा दो .........और शीघ्र करो .............हम लोग बरसानें जा रहे हैं ।
नन्द राय की आज्ञा पाकर वो ग्वाला गया .........बैल गाडीयों को सजा दिया.....सुन्दर तरीके से सजाया था ।
यशोदा और बृजपति नन्द एक गाडी में बैठे ...........यशोदा की गोद में कन्हैया .........देखो देखो ! कैसे हँस रहा है ....कितना खुश है ........ऐसा प्रसन्न तो ये आज तक नही हुआ था ..............."ससुराल जा रहा है मेरा कान्हा".............इतना जैसे ही बोला यशोदा ने ........कन्हैया तो खिलखिला उठा ।
नन्द और यशोदा नें एक दूसरे को देखा ........और खूब हँसे ।
कितना अच्छा होता ना कि रोहिणी भी आजातीं ...............
पर यशोदा ! मथुरा में अपनें पति वसुदेव से मिलनेँ गयीं हैं रोहिणी ....दाऊ को तो छोड़ जाती ! .....यशोदा नें फिर कहा ।
अपनें पुत्र को भला कोई छोड़ता है ! छोडो यशोदा तुम भी ।
.....बृजपति चले जा रहे हैं इस प्रकार चर्चा करते हुए ।
सौ से अधिक बैल गाडी हैं ..........आधे गाडी में तो लोग बैठे हैं ............कुछ गाड़ियों में मणि माणिक्य सुवर्ण .........कुछेक गाड़ीयों में ..वस्त्र ....आभूषण इत्यादि ........कुछेक गाड़ियों में दूध माखन दही ......ये सब रखकर चले जा रहे हैं बरसानें की ओर ।
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ये क्या ! बरसाना उदास है ...........लोग सजे धजे हैं ...........पर वो उल्लास और उमंग नही है किसी में ।
बृजपति नें बरसानें में प्रवेश किया, तो कुछ उदासी सी देखी, लोगों में ।
महल में चहल पहल तो है .......बन्दनवार भी लगाये हैं ..............केले के खंभे बड़ी सुन्दरता से सजाएं हैं ...............रंगोली तो हर बरसानें वाले के द्वार पर बना हुआ है ...........मोतियों की चौक भी पुराई है ।
पर कुछ उदासी सी छाई है ।
महल में प्रवेश किया ...........याचकों की लाइन लगी है महल के द्वार पर ......स्वयं खड़े हैं बृषभान जी ............सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण किये हुए ......माथे में पगड़ी ...........मोतियों की लड़ी गले में.......सोनें के कड़ुआ हाथों में ......बृषभान जी प्रसन्नता से सब कुछ लुटा रहे हैं ।
बधाई हो ! मित्र बधाई हो !
जोर से आवाज लगाई बृजपति नन्द नें ............बरसानें के अधिपति बृषभान को ।
देखा बृषभान जी नें ।
कई बैल गाडीयाँ सजी धजी खड़ी हैं महल के द्वार पर .......
मित्र बृजपति ! और बृजरानी !
दौड़ पड़े बृषभान जी .....।
पास में गए .....तो गले नही मिले । ....हम आपसे नाराज हैं ........दो दिन हो गए ... ...और आप अब आये हो ! हम आपसे बात नही करते ?
मित्र का रूठना अधिकार है ।
हाँ .......हमसे गलती तो हो गयी है .........अब आप जो दण्ड दें ......वैसे भी मैं तो कहता ही था .......की सम्पत्ती वैभव इन बरसानें वालों के पास ही ज्यादा है ........."बृजपति" तो इन्हें ही बनाना चाहिये .....
नन्द जी नें हाथ जोड़कर आगे कहा .............हम तो नाम के ही बृजपति हैं .......सच्चे बृजपति तो हे बृषभान जी ! आप ही हो ।
तो क्या दण्ड दोगे हमें बृषभान जी ? "वैसे लड़के वालों के सामनें लड़की वालों को ज्यादा बोलना नही चाहिये" ........हँसते हुए बृजपति नें बृषभान जी को अपनें हृदय से लगा लिया था ।
क्या बात है उदास हो ? हे बृषभान जी ! आप सत्य पर दृढ रहनें वाले हैं .......इसलिये आपकी वाणी सदैव सत्य ही होती है ।
आपनें कहा था ............मुझे तो "लाली" चाहिये........और देखिये आपके लाली हो गयी .............हँसते हुए बोले बृजपति नन्द ।
पर आप उदास हैं ? क्यों ? नन्द नें फिर पूछा ।
महल में चलते हुए बातें हो रही थीं ........कीर्तिरानी के पास में आगये थे सब लोग .......बृजरानी यशोदा के साथ कई गोकुल की सखियाँ चल रही थीं उनके हाथों में हीरे मोती मणि माणिक्य से भरे थाल थे ...जो "लाली" को न्यौछावर करनें के लिए लाईं थीं बृजरानी ।
बधाई हो कीर्तिरानी !
लाला कन्हैया को गोद में लेकर ही दौड़ पडीं यशोदा ।
यशोदा भाभी ! कीर्तिरानी उठकर बैठ गयीं ।
नही ......लाली कहाँ है ? मैं देखूंगी , लाली कहाँ है ?
ये रही हमारी प्यारी लाली ...........कीर्ति रानी नें दिखाया ।
ओह ! कितनी सुन्दर है ये तो ! .........ओह ! अपलक देखती रहीं उन "भानु दुलारी" को ....बृजरानी यशोदा ।
क्या न्यौछावर करूँ मैं ? थाल के मणि माणिक्य को छोड़ दिया बृजरानी नें .......अपनें गले का सबसे मूल्यवान हार उतार कर किशोरी जी को न्योछावर में दे दिया .......फिर भी मन नही माना .........अपनें हीरे से जड़े कड़े उतार कर .......लाली के ऊपर न्यौछावर कर लुटा दिया ..........पर नही ........इसके आगे ये हार , ये कड़े क्या हैं !
क्या दूँ ? क्या दूँ मैं ? बृजरानी भाव में उछल रही हैं ।
कुछ नही मिला तो अपनी गोद में खेल रहे कन्हैया को ही "श्रीजी" के ऊपर घुमा कर उनके ही बगल में रख दिया .........इससे बढ़िया न्यौछावर और कुछ नही है ............गदगद् भाव से बोलीं बृजरानी ।
पर ये क्या !........कन्हैया खुश ......कन्हैया को तो अपनी "प्राण" मिल गयीं ......वो खिसकते हुए अपनी "सर्वेश्वरी" के पास गए .........अपनें नन्हे करों से "प्रिया जू" के नन्हे नन्हें नेत्रों को छूआ ..........बस फिर क्या था ।
नेत्र खुल गए श्रीराधा के ...........खोल दिए नेत्र श्रीराधा नें ।
बृषभान जी नें देखा ..........मेरी लाली नें अपनें नेत्र खोल दिए.......
वो तो बृजपति का हाथ पकड़ कर नाचनें लगे .........बृजपति ! आप पूछ रहे थे ना .....कि मैं उदास क्यों हूँ ? मेरी कन्या नें नेत्र नही खोले थे .......।
ये बात फ़ैल गयी हवा की तरह पूरे बरसानें में ............अब तो सब लोग आनन्द मनानें लगे .....नाच गान फिर से शुरू हो गया ।
कीर्तिरानी के नेत्रों से आनन्दाश्रु बह चले थे .......यशोदा भाभी ! आप सोच नही सकतीं मैं कितनी खुश हूँ आज ।
हृदय से लगा लिया था बृजरानी नें कीर्तिरानी को ...........
अरे ! देखो ! देखो ! ये दोनों कैसे खेल रहे हैं .............
ऐसा लग रहा है .............जैसे ये दोनों ही प्रेम के खिलौनें हैं ........और प्रेम से खेल रहे हैं ............प्रेम ही इनका सर्वस्व है ।
श्रीराधा कृष्ण दोनों बालक रूप में एक दूसरे को देखकर किलकारियां भर रहे थे ।
अरी ! कीर्ति ! बहुत खेल लिए अब थोडा दूध तो पिलाकर देखो ......
मुखरा मैया सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं.....उन्होनें आकर दूध पिलानें के लिए कहा .......कीर्ति रानी जब दूध पिलानें लगीं.....नही पीया दूध ......मात्र कन्हैया को ही देखती रहीं "लली श्रीराधा" ........पर कन्हैया नें अपनें कोमल हाथों से श्रीराधा के मुख को कीर्ति रानी के वक्ष की ओर कर दिया .....मानों कह रहे हों....राधे ! अब तो मैं आगया ......अब तो दूध पी लो । ......बस प्रियतम के सुख के लिए .......प्रियतम की बात सर्वोपरि है ये जानकर श्रीराधा रानी नें दूध पी लिया ।
हे वज्रनाभ ! ये प्रेम की लीला अद्भुत है .....इसे बुद्धि से नही समझा जा सकता .....ये तो हृदय के माध्यम से ही समझ में आता है ।
!! घर घर मंगल छायो आज, कीरति नें लाली जाई है !!
शेष चरित्र कल .....
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