आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 94 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
( आप जिसे आजकल "श्रीलंका" कहते हैं वह सिंहल द्वीप है वो लंका नही है....हाँ सिंहल द्वीप लंका के पास में ही था ....इसका प्रमाण श्रीमद्भागवत जी में भी है और वाल्मीकि रामायण में भी....पर सिंहल द्वीप और लंका अलग अलग है ....."सिंहले लंकेति"... श्रीमद्भागत के पंचमस्कन्ध के, 19 वे अध्याय के 30 वें श्लोक में आया है ।
और जिसे आजकल माल द्वीप कहते हैं वह मारीच द्वीप था )
मैं वैदेही - अपनी आत्मकथा लिख रही हूँ ..............
"हम रामपत्नी सीता का हरण करेंगें" ..........रावण नें मारीच से कहा ।
आप पागल तो नही हो गए दशग्रीव ! मारीच चिल्लाकर बोला था ।
हम राक्षस हैं ......हमारा भी अपना धर्म है राक्षसराज ! और हमारा धर्म है "वीरधर्म" वीरता ही हमारा धर्म है .......पर किसी की पत्नी को चुराना कहाँ की वीरता हुयी ?
आप अभी मेरी बात समझ नही रहे या समझना नही चाहते ......
राम कोई साधारण नही है.......इस बात को समझिए......ठीक है आपकी बहन सूर्पनखा के नाक कान काट दिए राम नें पर आपकी, और आपके कुनबे की भलाई इसी में है कि आप उस बात को भूल जाइए ।
स्त्री सम्पत्ती है ...रावण बोला .......स्त्री पुरुष की भोग्या है ........और मारीच ! भोग्य वस्तु में उसी का अधिकार है जिसकी भुजाओं में बल है ....पराक्रम है ।
तुम भीरु हो .......मारीच ! तुम कायर लग रहे हो ..................
स्त्री के हरण में कायरता कहाँ है ?
और मारीच ! राम की पत्नी के हरण होते ही ......राम मर जाएगा ......
राम मर जाएगा .............ये कहते हुए आकाश की ओर मुँह करके रावण खूब हँसा था ।
मेरी बात मानिए दशग्रीव ! लौट जाइए लंका.......मै आपके हाथ जोड़ता हूँ लौट जाइए....मारीच नें झुक कर जैसे ही रावण के पैर पकड़नें चाहे ......रावण नें लात मार दी......बेचारा दूर जाकर गिरा था ।
पर मारीच नें इस बात का बुरा नही माना .............वो रावण के स्वभाव से परिचित था ............मारीच शान्त भाव से उठा और रावण से फिर विनय की भाषा में बोलनें लगा था ।
आप अच्छे कुल के हैं राक्षसराज !.............और आप अच्छे नीतिज्ञ भी हैं ........अपनें से ज्यादा शक्तिशाली अगर हमसे कुछ छीन भी ले तो उससे ज्यादा भिड़ना उचित नही होता .....नीति यही कहती है.........राम नें क्या किया ........बस आपकी बहन को विरूप ही तो किया है .......कोई बात नही शल्य चिकित्सा से उसकी नासिका ठीक हो ही जायेगी ......और देववैद्य अश्वनी कुमार आपकी बात को काटेंगे नही ............
पर स्त्री चोरी ? वो भी विश्व विजयी रावण के द्वारा !
मारीच !
इस बार रावण को क्रोध आगया था ..............वो चिल्लाया ।
ये रावण महाज्ञानी है .....तुझसे उपदेश सुननें की आवश्यकता नही है उसे । मारीच ! ये रावण अब तुझ से दो टूक कह रहा है ........उसे सुन और मान .......अगर तेनें मना किया तो मारीच तेरा मस्तक काट कर इसी सागर में फेंक देगा..............
मारीच उठा .........वो समझ गया था मेरे गिड़गिडानें से अब कुछ होनें वाला नही है .....रावण जो सोच लेता है उसे करता ही है ........।
क्या करना होगा मुझे ? मारीच नें भी स्पष्ट जानना चाहा ।
हिरण बन .....सुन्दर से सुन्दर हिरण.......सुवर्ण का हिरण .....।
अपनी पूरी कला दिखा दे मारीच ............!
जब रावण नें देखा की मारीच अब मेरी बात मानेगा .....तब थोडा सरल हो गया ................।
देख ! मैं तेरा स्वामी हूँ ना ? मारीच ! आज तेरा स्वामी तेरी शरण में आया है ....तू सहायता नही करेंगा !
देख ! मेरी बहन के नाक कान काट दिए उस राम नें .........मैं तो अपनी बहन का बदला ही ले रहा हूँ ....गलत कहाँ हूँ .............रावण हाथ जोड़ कर बोला ..........।
मारीच समझ गया ........जो क्षण में खुश हो .......क्षण में नाराज हो जाए ये स्वभाव राक्षसी ही तो है ........और रावण राक्षस राज ।
मारीच रग रग से वाकिफ़ है रावण के .........................
चलो दशग्रीव ! इतना ही बोला मारीच............रावण चल दिया उसके पीछे मारीच ऐसे चल रहा था जैसे कोई फांसी में चढ़नें के लिए कैदी चल देता है ...................।
मारीच को पता है ..........इस बार राम के बाणों से मैं बचूंगा नही ।
शेष चरित्र कल .....
Harisharan
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