आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 75 )
सकल मुनिन्ह सन विदा कराई....
( रामचरितमानस )
**कल से आगे का चरित्र -
मैं वैदेही !
"हम दक्षिण की ओर जायेंगें"......चित्रकूट को हमें अब छोड़ना होगा ।
सन्ध्या की वेला थी........अयोध्या से आये एक समूह को छोड़कर आये थे मेरे श्रीराम और लक्ष्मण ।
बैठे , मैने जल लाकर दिया ...........जल पीनें के बाद बोले ।
हम दक्षिण की ओर जायेंगें ..................
मैने लक्ष्मण की ओर देखा ........लक्ष्मण नें सिर झुका लिया था ।
"हम तापस बनकर आये हैं.....वन में सुखपूर्वक वास करनें नही आये हैं"
ये कहते हुये सन्ध्या वन्दन करनें चले गए थे ।
क्या बात है लक्ष्मण ? अब क्या हम चित्रकूट भी छोड़ देंगें ?
लक्ष्मण नें जो कुछ मुझे बताया ......उसनें मुझे भी सोचनें पर मजबूर कर दिया था ।
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ये हमारा द्वादश वर्ष चल रहा था .............चित्रकूट में 12 वर्ष हमनें पूरे कर लिये थे ..............पता ही नही चला ............मेरे श्रीराम साथ रहें तो बारह जन्म भी यूँ ही बीत जाएँ ।
पर इस वर्ष अयोध्या से चित्रकूट आनें वाले लोगों की संख्या एकाएक बढ़ रही थी ...........अब किसी को रोका तो नही जा सकता ना !
अयोध्या से दूरी भी नही थी चित्रकूट की ...........घोड़ों में बैठकर तुरन्त आया जा सकता था ..........अयोध्या के श्रीमन्त हाथियों में भी बैठकर आनें लगे थे............कुछ समुदाय तो यहीं रहना भी शुरू कर दिए थे ...........मेरे श्रीराम उन्हें मना भी कैसे करें ?
वन में कोई रहना चाहे .........उसकी इच्छा ।
अब तो ये स्थिति थी कि ........आये दिन कोई न कोई आता ही रहता ।
कल अयोध्या से एक समाज आया था ............जिसे आज ये विदा करके आये .......वो कहनें लगे थे ..........आहा ! कितना सुन्दर स्थान है ....हम भी मन्दाकिनी के किनारे पर्णकुटी बनाकर यहीं रहेंगें .......।
मेरे श्रीराम उस समय कुछ नही बोले ......क्या बोलते .....किसी को मना तो किया नही जा सकता ..........।
उन सबको विदा करके जब लौट रहे थे .........तब लक्ष्मण से मेरे श्रीराम नें कहा था .............
हम चित्रकूट छोड़ देंगें .....................
क्यों प्रभु ! चित्रकूट में सब अच्छा तो है ................
ये देखो लक्ष्मण ! अयोध्या से आये उन अश्वों नें यहाँ की वन सम्पदा को रौंद दिया.........और वन में रजोगुणी मानव रहेगा ........तो वन सम्पदा को उजाड़ेगा ही.........और यहाँ कोलाहल भी .......वन का अपना अधिदैव होता है लक्ष्मण ! कोलाहल से अधिदैव चले जाते हैं वन से ।
ये स्थान तो पशु पक्षीयों का है .....वृक्ष वनस्पतियों का है ........
लक्ष्मण ! "प्रकृति मात्र मानव के लिये है" ....ये विचार ही आसुरी विचार है ......इस जगत में हर स्थान पर मानव का हस्तक्षेप उचित नही है ।
उनके लिये नगर हैं...........हाँ इन ऋषि मुनियों की बात अलग है .......ये प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ नही करते ............।
और लक्ष्मण ! तुमनें कुछ दिनों से ध्यान नही दिया ! हमारे पास ऋषियों नें आना बन्द कर दिया है ..........कारण यही है ........हमारे लोगों नें कोलाहल जो फैला दिया है इस वन में .....इस सुन्दर वन में ।
चलते हुये श्रीराम लक्ष्मण को कह रहे थे .............
तभी एक वृद्ध ऋषि आगे आये ........वो मन्दाकिनी जा रहे थे .......
नही राम ! ऋषियों का आना आपके पास इसलिये कम हुआ है कि ......आपके यहाँ स्थाई आवास बनानें से .........असुरों का समूह इधर देखनें लगा है...........ऊपर से जाते हुये असुर कभी मल मूत्र ऋषियों की कुटिया में डाल देते हैं.....या कुछ पशु माँस को ...........।
ओह ! श्रीराम को बहुत कष्ट हुआ ...............
डरनें लगे हैं ये ऋषि लोग ..............वो वयोवृद्ध ऋषि बोले ।
मूर्ख हैं राम वो जो इस तरह से असुरों से डर रहे हैं ..........वो तुम्हे जानते नही हैं ......तुम तो पूर्णब्रह्म हो .........तुम तो आस्तित्व हो राम !
नही........बात ये नही है .............श्रीराम नें उन वृद्ध ऋषि को अपनी साधना में जानें दिया ........फिर लक्ष्मण से बोले थे ।
लक्ष्मण ! क्या हमारा ये कर्तव्य नही है............इन ऋषिओं को निश्चिन्त कर दें ..........हम क्षत्रिय हैं लक्ष्मण ! शान्ति फैलानें वाले ........ज्ञान का आलोक देनें वाले इस ऋषियों को हमें निश्चिन्तता देनी ही होगी ।
अगर ये नही रहेगें.........क्यों की लक्ष्मण ! असुर समाज इनको नष्ट करनें में लगा है ...........ये नही रहेंगें तो नकारात्मकता इतनी बढ़ जायेगी .............कि ये पृथ्वी रहनें लायक नही रहेगी ।
हमें आध्यात्मिक ऊर्जा इन्हीं साधना में रत ऋषियों से ही प्राप्त होती है...........तुम समझ रहे हो ना लक्ष्मण ?
प्रभो ! असुर समाज कहाँ है ? इनका मूल कहाँ है ? इनको संचालित कौन कर रहा है ? लक्ष्मण नें पूछा था ।
दक्षिण से संचालित है ..................श्रीराम नें कहा था ।
लक्ष्मण ! हमें चित्रकूट में ही नही रुकना है अब ...........
उत्तर दिशा से हमें दक्षिण की ओर जाना है ....................असुर समूह के गढ़ में जाना होगा .......हाँ .......ये कहते हुए .लाल मुख मण्डल हो गया था उस समय श्रीराम का ...............
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भाभी माँ ! चित्रकूट से हम अब आगे बढ़ेंगे ........दक्षिण की ओर ।
लक्ष्मण नें मुझ से कहा ।
दक्षिण दिशा की ओर ?
मैं सोच रही थी .........................
कल ही चित्रकूट से चले जायेंगें ?
हाँ भाभी माँ ! लक्ष्मण नें कहा .........
शेष चरित्र कल .......
Harisharan
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