*गोविंद का वादा*



फुलवा और गोविंद रेवती के दो बच्चे थे । रेवती मंदिर के बाहर फूलों की माला को बेचने का काम करती थी ।माला को बेचकर ही वो अपने बच्चों का पेट पालती थी। उसकी बेटी फुलवा अत्यंत सुंदर और गोल मटोल थी ।उसका बेटा गोविंद उसके साथ मंदिर में फूलों की माला बनाने  मे उसकी सहायता  करता था और रेवती माला को बेचती थी।  एक दिन गोविंद अपनी बहन के साथ मंदिर की सीढियों पर खेल रहा था और अचानक से उसकी बहन का मंदिर की सीढ़ियों से पांव फिसला और उसके सर में चोट लग गई चोट इतनी गहरी थी कि इसकी आंखों की रोशनी चली गई। अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर रेवती  अत्यंत दुखी हुई और मंदिर में बैठे ठाकुर जी को कहने लगी कि मेरी बेटी के साथ  आपने ऐसा  क्यों कर दिया मेरी इतनी  रूपवान बेटी  को किसकी नजर लग गई । लेकिन अब जो होना था सो हो चुका था इसलिए भगवान की इच्छा मान कर रेवती  मन ही मन दुखी रहने लगी। लेकिन गोविंद अपनी बहन का पूरा ख्याल रखता था और कभी भी उसको अकेले  न छोडता। हमेशा उसके   साथ रहता।  एक दिन रेवती  मंदिर से माला बेच कर घर वापिस आ रही थी कि घर आते हुए सड़क पार कर रही थी अचानक से एक ट्रक ने उसको जोरदार टक्कर मारी और वह उछलकर दूसरी तरफ जा गिरी। आज उसके साथ उसके बच्चे नहीं थे वह घर पर ही थे ।लेकिन रेवती  जो कि बिल्कुल जख्मी अवस्था में पड़ी हुई थी उसको लगा कि उसका बेटा गोविंद उसके पास है तो जख्मों की पीड़ा को ना सहते हुए उसने अपनी आखिरी आवाज लगाई  कि गोविंद बेटा अपनी बहन का ख्याल रखना और इतना कहते ही उसने दम तोड़ दिया ।जब गोविंद और फुलवा को पता चला कि उसकी मां इस दुनिया में नहीं रही तो वह बहुत दुखी हुए  लेकिन गोविंद ने जल्दी ही अपनी मां की जगह मन्दिर मे माला को बेचना शुरू कर दिया और अपनी बहन का पूरा ध्यान रखता था ।एक दिन भाई दूज का दिन था फुलवा जोकि देख नहीं सकती थी लेकिन फिर भी वह घर का सारा काम कर लेती थी ।उसने एक थाली लेकर उसमे घी का दीपक रखा  तिलक लिया और अपने भाई गोविंद को बोली कि आज भाई दूज है ।थाली  में केवल दीपक और तिलक को देखकर गोविंद बोला कि बहना इसमें तो मिठाई  नहीं है मैं अभी बाजार से मिठाई लेकर आता हूं इतना कहकर  गोविंद मिठाई लेने के लिए चला गया।फुलवा वहीं बैठ कर उसका इंतजार करने लगी तभी अचानक से ना जाने कब दिए की आग  घर में पडे कपड़ों को लग गई और धीरे-धीरे आग फैल गई जब गोविंद वापस आया तो उसने देखा कि उसकी झोपड़ी में आग लगी हुई है तो वह घर के अंदर गया और फुलवा को खींचकर उसमें बाहर कर दिया और कहने लगा कि तुझे नहीं पता कि घर में आग लगी हुई है फुलवा एकदम से घबरा गई वह  घबराई हुई अपने भाई के सीने के साथ लग गई ।अब उनकी झोपड़ी पूरी तरह से जल चुकी थी अपनी झोपड़ी को जलता हुआ देखकर गोविंद और  फुलवा  बहुत दुखी हुए। मोहल्ले  में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था कि जो उनको अपने घर रख सकता ।तो वह दुखी मन से जाकर मंदिर की सीढ़ियों में बैठ गए  तभी वहां पर मंदिर का पुजारी आया जो कि गोविंद और  फुलवा को जानता था उन्होंने पूछा कि बेटा आप दोनों यहां क्यों बैठे हुए हो तो फुलवा ने बताया कि बाबा हमारी झोपड़ी जल गई है मां को तो पहले ही भगवान ने छीन लिया अब घर भी छीन  लिया ।इतना कह कर वह जोर जोर से रोने लगीं ।पडित जो कि बहुत नेक दिल इंसान थे वह उन दोनों को अपने साथ मंदिर में ही बने एक कमरे में जहां पर  वहऔर उसकी पत्नी रहते थे वहां ले गए और कहने लगे कि आज से तुम दोनों यहीं रहो ।पंडित की भी कोई संतान नहीं थी तो वह उन दोनों को ही अपनी संतान मानने लगा ।उस दिन भाई दूज होने के कारण गोविंद ने कहा कि फुलवा अब तुम मुझे तिलक लगा सकती हो। फुलवा ने बड़ी खुशी खुशी  गोविंद को तिलक लगाया आज गोविंद को तिलक लगाते लगाते  उसको मस्तक को  छुते हुए  फुलवा हो ना जाने अंदर से बहुत  अजीब सी खुशी हो रही थी। फुलवा  और  गोविंद अब मंदिर में रहकर बहुत खुश थे। क्योंकि मां-बाप के रूप में उसको पंडित और पंडिताइन जी मिल गए थे ।वह दोनों  फुलवा और गोविंद को बहुत  प्यार करते थे। गोविंद ने अब फैसला  किया  कि मुझे अब माला नही बेचनी मुझे  कोई और काम करना चाहिए क्योंकि  पहले मेरे ऊपर  अपनी बहन की ही जिम्मेदारी थी अब तो मुझ पर अपने मां-बाप की जिम्मेदारी भी आ गई है यह सुनकर पंडित और उसकी बीवी बहुत खुश हुए और कहने लगे हां हां बेटा आज से तुम कोई और काम ढूंढ लो ।तो गोविंद ने एक शर्त रखी जब भी मैं कोई काम पर जाऊंगा मेरे पीछे कोई नहीं आएगा तो पंडिताईन ने कहा कि हां हां बेटा जैसा तुम ठीक समझो। और अब गोविंद काम पर जाने लगा और वह सीढ़ियों से नीचे ना जाकर मंदिर की तरफ मंदिर के गर्भ गृह से होकर काम पर जाता था पंडित और पंडिताइन भी  सोचते थे कि शायद वो ठाकुर जी को प्रणाम करके वहां से जाता है इसलिए वह कभी भी उसके पीछे नहीं गए। एक दिन गोविंद ने आकर  बताया कि   कि उसको बहुत अच्छा काम मिल गया है। धीरे-धीरे गोविंद काफी पैसा कमाने लगा और अब  उनके पास किसी चीज की कोई कमी ना थी। गोविंद भाई दूज आने पर फूलवा को बहुत अच्छे-अच्छे उपहार देता ।अपने भाई की तरक्की पर फुलवा बहुत खुश होती ।एक दिन भाई दूज का दिन था तो गोविंद फुलवा से तिलक लगवा कर  जब काम पर जाने लगा तो फुलवा ने कहा कि भैया  रूको मैने तुम्हारे लिए  बहुत  सुन्दर पोशाक बनवाई है  तो गोविंद ने कहा रुको मैं थोड़ी देर में आता हूं लेकिन फुलवा ने यह बात ना सुनी और गोविंद काम पर जाने लगा तो फुलवा उसके पीछे पीछे चल दी अभी गोविंद मंदिर के गर्भ गृह में गया ही था कि फुलवा भी उसके पीछे चल दी  अचानक फुलवा का मंदिर की दहलीज से  पैर टकराया और वह लडखडा कर मंदिर के अंदर जा गिरी और उसके सिर पर चोट लग गई ।फिर  उसी जगह दोबारा चोट लगने से फुलवा की आंखों की रोशनी वापस आ गई। रोशनी के वापस आते ही फुलवा ने देखा कि उसका भाई गोविंद मंदिर के गर्भ गृह में खड़ा है और वो ठाकुर जी की प्रतिमा के अंदर प्रवेश कर रहा है तो यह देखकर  फुलवा अचानक से चिल्ला उठी गोविंद गोविंद कहां जा रहे हो। गोविंद ने पीछे मुड़कर देखा तो कि फुलवा की आंखों की रोशनी वापस आ चुकी थी और गोविंद ने कहा कि मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि जब मैं काम पर जाऊं तो मेरे पीछे कोई नहीं आएगा लेकिन फुलवा  अभी भी चिल्ला रही थी तुम कहां जा रहे हो और अचानक से गोविंद वहां से गायब हो गया और वहां पर तेज प्रकाश  फुलवा को नजर आने लगा और वहां से आवाज़ आने लगी कि फुलवा तुम्हारा भाई गोविंद तो उसी समय उस आग में जलकर मर गया था लेकिन तुम्हारी मां ने अंत समय में यह शब्द कहे थे कि हे गोविंद अपनी बहन का ख्याल रखना इसलिए  तेरा भाई गोविंद तो उस समय  तेरी मां के पास नहीं था लेकिन तेरी मां के हाथ की बनी हुई माला तो मैं रोज पहनता था तो उसकी करूण पुकार सुनकर मैं उसके पास आया और मैंने तेरा ध्यान रखने का वादा किया। तेरे भाई के जाने के बाद तूने मुझे तिलक लगाया था इसलिए मैंने सारी उम्र तेरी रक्षा करने का वचन लिया था ।और मैंने यह भी शर्त रखी थी कि जब तक तू मेरा सच नहीं जान लेती तब तक मैं तेरे पास रहूंगा आज तुमने मुझे पहचान ही लिया है आज से तुम मुझे साकार रूप में नहीं देख पाओगी लेकिन इस प्रतिमा के रूप में मैं तुम्हारे पास हमेशा रहूंगा ।यह सुनकर फुलवा एकदम से धड़ाम से नीचे गिर गई और कहने लगी कि गोविंद मैं तुम्हारे   बिना कैसे रहूंगी मुझे पता ही नहीं कब मेरा भाई चला गया है और तुम मेरे भाई बन गए हो तो गोविंद ने कहा कि संसार में जो आया है  उसे तो बिछड़ना ही है। लेकिन मेरी बहना  यह  जो गोविंद  तुझे भाई रूप में मिला है यह पाने के लिए हैं ना कि बिछड़ने के लिए। मैं सारी उमर भाई का फर्ज निभाता रहूंगा ।अब तो तुम्हारे नेत्रों की ज्योति भी वापस आ चुकी है अब  तुम मेरे दर्शन भी कर सकोगी ।तो फुलवा जहां  मंदिर मे प्रकाश नजर आ रहा था उसी प्रकाश रूपी गोविंद के चरणों में गिरती हुई बोली  हां भैया तुमने तो आज भाई दूज में मुझे मेरी नेत्रों की ज्योति वापस करके जिंदगी का सबसे बड़ा उपहार दिया है ।आज से मेरा सारा जीवन तुम्हारे चरणों में समर्पित है और उसी दिन और उसी समय से फुलवा ने अपना तन मन अपने गोविंद अपने ठाकुर के चरणों में समर्पित कर दिया। अब वह दिन रात  इस गोविंद  की सेवा करती थी।और  जब उसे अपने भाई अपने  गोविंद की ज्यादा  याद  आती और  उसकी तडप को सह  न पाती तो वह आंखो में आँसू दिल में तडप लेकर   दिन रात यही गाती ।

 " गोविंद चले आओ गोपाल चले आओ हे मुरलीधर मोहन नन्दलाल  चले आओ।"

भक्त वत्सल भगवान की जय

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