*यमुना महारानी जी की कृपा*

   रूपा की मां का निधन उस समय हो गया जब रूपा 6 साल की थी। उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली उसकी सौतेली मां जो कि बहुत ही क्रुर  थी वो रूपा को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी। लेकिन रूपा अपनी सौतेली मां को अपनी मां की तरह ही प्यार करती थी। रूपा की मां उसके पिता के सामने तो रूपा को बड़े प्यार से बुलाती थी लेकिन पिता के जाते हैं रूपा से खूब काम करवाती। अब रूपा 10 साल की हो चुकी थी ।रूपा की सौतेली मां के यहां भी एक बेटी पैदा हुई। अपनी बेटी को तो वह खूब प्यार करती खूब लाड लडाती   । लेकिन रूपा से घर का सारा काम करवाती। उसको यमुना मे जल भरने के लिए जब भेजती तो उसको दो रोटी बना कर देती जो कि बिल्कुल ही जली हुई काले रंग की होती थी उसको कपड़े में बांधकर दे देती थी और उसको कहती कि तू जब यमुना में जल भरने जाएगी तब वहां बैठ कर खा लेना क्योंकि वह चाहती थी कि उसके जाने के बाद वह अपनी बेटी को अच्छा अच्छा भोजन खिला सके ।उन दोनों  रोटियो को लेकर जो की कपड़े में बंधी होती थी यमुना जी के पास जाकर जब खाने लगती तो रोटी जो कि बिल्कुल काले रंग की और  सख़्त  होती थी तो रूपा से खाई न जाती थी तो वह कपड़े सहित  उन दोनों को यमुना के जल में डाल देती ताकि  रोटी भीग कर नरम हो जाए। यमुना महारानी  जी श्याम रंग की( काले रंग की )रोटी को  देखकर बहुत प्रसन्न होती अरे यह तो मेरे श्याम सुंदर जी  के रंग जैसी रोटियां है और वह उन दोनों को प्रणाम करके उसको इतना स्वादिष्ट बना देती कि रूपा  को  रोटी खाकर इतना आनंद आता कि वह मन ही मन अपनी मां का धन्यवाद करती कि मेरी मां मेरा कितना ध्यान रखती है जो मुझे इतनी स्वादिष्ट रोटियां बना कर देती है ।अब तो रोज का यही नियम  हो गया उसकी मां उसको जली हुई काली रोटियां बना कर देती है और रूपा उन दोनों रोटियो  को यमुनाजी में भीगोती और यमुना महारानी उन दो रोटियों को प्रणाम करती कि जैसे श्यामसुंदर को प्रणाम  करती होऔर उन दोनों रोटियो  को अमृत मई बना देती ।अब तो यमुना महारानी जी को भी उन दोनों रोटियो  में अपने श्यामसुंदर ही नजर आते थे और वह हर रोज 2 रोटियों के दर्शन करने के लिए लालायित रहती कि कब रूपा आए और  कब रोटियां को यमुना जी के  जल में भिगोए और वह उनके दर्शन करें। रूपा उन दोनों  रोटियो को खाकर बहुत संतुष्ट हो जाती और रात को उसकी मां को अपनी बेटी का बचा खुचा खाना खिला देती। लेकिन रूपा को रात के खाने से ज्यादा दिन के खाने में आनंद आता था ।1 दिन रूपा को बुखार हो गया और वह यमुना में जल भरने ना जा सकी ऐसे ही उसको दो-चार दिन बुखार चढ़ा रहा तो उसका यमुना जी में जाना ना हुआ ।अब तो यमुना महारानी हर रोज  रूपा की बाट जोहती कि कब रूपा आए और वह श्यामसुंदर रूपी रोटियो  के दर्शन करें ।लेकिन रूपा बीमार होने के कारण ना आ सकती थी और उसकी मां रोज रूपा को ताना देती कि वह बहाना बना कर लेटी हुई है ।क्योंकि उसको सारा काम करना पड़ता था। 1 दिन यमुना महारानी जी से रहा न गया और वह सोचने लगी चलकर देखा तो जाए कि रूपा इतने दिन आई क्यों नहीं क्योंकि अब यमुना महारानी जी से श्याम सुंदर जी के दर्शन के बिना रहा नहीं जा रहा था। तो  यमुना जी 1 दिन बूढ़ी माई का रूप बनाकर रूपा के घर गई और उन्होंने  उसका दरवाजा खटखटाया  रूपा की मां ने दरवाजा खोला और कहा कि माताजी तुम कौन हो तो यमुना महारानी रूपी बूढ़ी औरत बोली कि मैं रूपा की मां की बहन हूं यानी रूपा की मौसी हूं मैं बड़ी दूर गांव से आई हूं तो मैं मैंने सोचा कि चलो रूपा से मिल कर जाया जाए तो रूपा की सौतेली मां टेढे मेढे मुहं  बनाती हुई उसको अंदर ले आई ।जब यमुना महारानी जी ने अंदर जाकर देखा कि रूपा तो बीमार पड़ी हुई है और उससे हिला भी नहीं जा रहा तो रूपा उनको देखकर हैरान हो गई और प्रणाम करते हुए बोली माता जी आप कौन हो तो ।वह बूढ़ी औरत जो बोली कि मैं तुम्हारी मौसी हूं तू मुझे नहीं जानती क्योंकि तब तु बहुत छोटी थी जब मैं पहले यहां आई थी ।अब मैं काफी समय बाद यहां तुम्हें मिलने के लिए आई हूं ।अपनी मौसी को देखकर रूपा बहुत प्रसन्न हुई। रूपा की मौसी ने उसकी सौतेली मां को बोला रूपा को तो बहुत तेज बुखार है आप उसको थोड़ा सा काढ़ा बनाकर दे दो और एक रोटी बना कर दे दो रूपा की सौतेली मां  चिढती हुई अनमने मन से उसके लिए काढा और रोटी बना कर ले आई तो यमुना महारानी जी बनी हुई बूढ़ी औरत ने रूपा को अपनी गोदी में बड़े प्यार से बिठाकर काढ़ा पिलाया और एक रोटी खिलाई ।रूपा को उस रोटी में वही स्वाद आया जो यमुना किनारे वह खाती थी ।तो रूपा की आंखें  उसी स्वाद रूपी रोटी खाने से छलक उठीऔर वह मौसी के गले लग गई इतने में उसकी सौतेली माँ  अंदर आई और दोनों को ऐसे प्यार करते हुए देख कर अपना आपा खो बैठी और रूपा को पकड़ती हुई बोली यहां मैंने कोई धर्मशाला नहीं खोली हुई जो कोई भी हमारे यहां आ जाए तुम दोनों निकलो यहां से ।मैंने अभी मंदिर में जाना है और वह रूपा और उसकी मौसी को धकेलती हुई घर के बाहर ले गई और खुद अपनी बेटी को लेकर बाहर चली गई। और बोली जब तक मै न आऊँ तब तक यही बैठी रहो मैं यहां पास के मंदिर में जहां पर बहुत बड़ा  संकीर्तन हो रहा है उसके बाद बहुत  बड़ा भंडारा है। मै अब रात को आऊंगी । मौसी और रूपा घर के बाहर  बनी दहलीज पर बैठ गई ।उधर जब उसकी मां और उसकी बेटी मंदिर में गए और वहां पर बहुत  अच्छा संकीर्तन हो रहा था लेकिन उसकी मां का ध्यान संकीर्तन से ज्यादा बाहर बन रहे पूरी कचोरी जलेबी की तरफ था और उसके मुंह में  बार-बार पानी आ रहा था अब उससे रहा नहीं गया उसने सोचा देखा जाए कितना समय लगेगा ।वह वहां  चली गई अपनी बेटी को लेकर जहां पर हलवाई पूरी और कचोरी बना रहे थे ।अब रूपा की सौतेली मां हलवाई के पास चली गई जहां पर बहुत बड़ी कड़ाही तेल से भरी हुई थी। अचानक से रूपा की सौतेली मां का पांव फिसला और उसकी हाथ में पकड़ी उसकी बेटी सीधा उस कड़ाही में जा गिरी जिसमें गरम-गरम तेल था और बेटी के तेल में गिरने से  तेल से छींटे  उठकर रूपा की मां के सारे शरीर पर पड़ गए और उस पर बड़े-बड़े फफोले पड़ गए और उसकी बेटी जो कि गरम तेल में गिर गई थी चिल्लाने लगी सब लोग भागे भागे वहां आए ।रूपा की मां बहुत ज्यादा चिल्लाने लगी हे भगवान  मैं तो पूरा जल गई और  उसकी आंखों में भी तेल चला गया था उसको पता नहीं चला रहा था कि उसकी बेटी कहां है वह चिल्ला चिल्ला कर लोगों को कह रही थी कि मुझे बचाओ मेरी बेटी को बचाओ। लेकिन सब लोग दूर खड़े तमाशा देख रहे थे किसी की हिम्मत ना हुई कि खोलते तेल में से उसकी बेटी को निकाल सके। तभी अचानक वहां रूपा और यमुना महारानी बनी उसकी मौसी वहां आ गए तो रुपा भागकर अपनी मां के पास जाकर बोली मां  क्या हुआ रूपा कि आवाज सुनकर उसकी सौतेली मां ने  कहा कि देखो तुम्हारी छोटी बहन कहां है देखो मैं पूरी तरह जल गई हूं मुझे बचाओ ।रूपा अपनी  मां और  छोटी बहन की दशा देखकर  बुरी तरह घबरा गई  और  उसको समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे । वह  रूआंसी सी होती हुई अपनी मौसी की तरफ देखने लगी कि अब क्या किया जाए। रूपा की मौसी ने जल्दी-जल्दी रूपा की सौतेली मां को अपने हाथों से उठाया और उसके हाथ लगते ही रूपा की मां  के शरीर में एकदम से जैसे ठंडक पड़ गई क्योंकि यमुना महारानी द्रवित रूप में रूपा की सौतेली मां के शरीर में चली गई थी और उसके सारे शरीर में पढ़ने वाले फफोले बिल्कुल ठीक हो गए थे अपने को ठीक हुआ देखकर रूपा की सौतेली मां चिल्लाने लगी मेरी बेटी कहां है तभी उसने देखा कि यमुना महारानी जी की कृपा से खोलता तेल बिल्कुल यमुना जी का शीतल बन चुका था और उसकी बेटी आराम से कडाही मे बैठी थी ।यह देखकर रूपा की मां  हैरान हो गई थी यह कैसे हो गया। उसको अपनी गलती का एहसास हो चुका था मेरे बुरे कर्म मेरे आगे आए हैं लेकिन रूपा के कारण ही आज मैं और मेरी बेटी बच गए हैं। ना जाने मुझ पर किस भगवान की कृपा हुई है। उसको समझ नहीं आ रहा था लेकिन वह अपनी बेटी  और रूपा को गले लगाती हुई घर की तरफ चल पड़ी। उसकी आंखों में आंसू थे और  यमुना महारानी जी कितनी कृपालु और दयालु है कि केवल शाम रुपी रोटी के दर्शन करने मात्र से ही उसने रोटी बनाने वालों और उसके दर्शन कराने वालों की जीवन की नैया को पार लगा दिया।यमुना  महारानी जी की कृपा से रूपा  को  आज अपनी सौतेली माँ  का  प्यार मिल गया था। अगर हम शाम को निरंतर भजेंगे उनका गुणगान करेंगे तो यमुना महारानी प्रसन्न होकर हम पर कितनी कृपा करेंगे। इसलिए हमें यमुना महारानी जी की कृपा पानी है तो हमें अपने श्याम जी को भजना होगा । बोलो यमुना महारानी जी की जय हो।
गौर दासी सुरभि के शब्दों से 🙏🏼🙇🏻‍♀🌹

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