वो भीलनी शबरी - भक्तमाल कथा

आज के विचार

( वो भीलनी शबरी - भक्तमाल कथा )

वन में रहती एक , शबरी कहत सब ....
( भक्तमाल )

वो भीलनी थी ...........हाँ  भीलनी  ।

उसकी शादी होनें वाली थी ...............

नाम तो  उसका था शबरी...उसके समाज नें ही ये नाम दिया था शबरी ।

पूरी तैयारी थी  शादी की ..........भील समाज बहुत खुश था  ।

पर  शबरी   ..........नही नही .......ये न खुश थी ....न दुःखी  ।

अपनी सहेलियों के साथ   घूम रही थी .....उसकी सहेलियाँ इसे छेड़ रही थीं ..........पर   इसको कोई फ़र्क नही पड़ रहा था  ....ये तटस्थ थी  ।

अरे !   ये  बकरियों को  क्यों लाया गया है ..........और इनकी तादाद भी हजारों में है ..............इनको बाँधा गया है  ।

ये सारे प्रश्न  इसनें  अपनी  सहेलियों से पूछा था .........।

शबरी !  तू भी ना !   क्या तुझे पता नही ..............तेरी कल शादी होनें वाली है  ............शबरी  नें कहा......शादी होनें वाली है  तो  ?

तो  ................तेरे दूल्हा के साथ जो बराती आयेंगें   उनका स्वागत इनको काट करके ही तो होगा ..............यही  तो  भोजन है ..........इनको कल काटा जाएगा ........फिर इनको  खायेगें .......

सहेलियों  नें हँसते हुये ये सब कहा ........।

क्या  ?    मेरी शादी में  ये सब कटेंगे  ? .....मेरी शादी से इन सबकी जिंदगी खतम !  ...............और इनकी  संख्या  सैकड़ों  में है  !

तेरे दूल्हे के बराती भी तो हजारों में हैं .............सब सखियाँ खिलखिलाती हुयी हँसनें लगीं ..............और शबरी को लेकर  वहाँ से चली गयीं  ।

हृदय  में  एक शूल सा गढ़ गया था शबरी के   ।

मेरी शादी में  ये निरपराध  प्राणी मरेंगें  !

मेरी शादी में   इनकी  हत्या होगी  ! 

बेचारे कैसे मेरी ओर देख रहे थे  !  

रात्रि में सो रही शबरी  तड़फ़ उठी  ।

ऐसी शादी  को धिक्कार है .........धिक्कार है  ।

शबरी उठी ..............अचक से उठी  थी .........।

बाहर गयी ............बंधे हुए  उन बकरे  बकरियों को  खोल दिया .....

सब भाग गए ..................।

अब  शबरी  तू क्या करेगी ?

शबरी नें मन में विचार किया  ।

तू भी भाग जा !    ऐसे  हिंसक मानवों  के साथ  तू भी क्यों रहे  !

बस .............उन्मुक्त  हवा  में साँस लेते हुए ............भागी शबरी  .....भागती रही ......जब तक सुबह नही हुयी  थी  ।

पर पम्पा सरोवर में जाकर  ही उसनें विश्राम किया  ..........जो उसके गाँव से काफी दूर था   ।

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राम कहो !    बेटी ! राम कहो  !

एक ऋषि नें आकर  सरोवर के पास   सो रही  उस कन्या से कहा था ।

हाँ ....वही कन्या शबरी थी ...........।

उठी ..........आहा !  कितनी शीतलता का अनुभव किया था उसनें ।

चरणों में वन्दन किया ............।

कहाँ की हो  ?    ऋषि नें पूछा ।

मै  पास के ही गाँव की हूँ ...........शबरी नाम है मेरा  .......झुक कर उसनें अपना परिचय दिया  था  ।

इन ऋषि  का नाम था मतंग ....... ऋषि  मतंग     ।

सब जानते थे ..........सब पहचानते थे ..............शबरी को देखते ही  उसका भूत काल और भविष्य भी समझ गए थे  ।

वात्सल्य  से भरे हुए ऋषि में  पिता दीख रहे थे शबरी को ....और ऋषि मतंग को ....अपनी पुत्री.......जो कल भगवान   राम को  इस कुटिया में लानें वाली थी ............।

मुझे   अपनी कुटिया में रहनें दीजिये ना !   कृपा करिये  !

मै आपकी सेवा करूंगी ...........शबरी नें  हाथ जोड़कर कहा ।

नही ......मुझे सेवा की जरूरत नही है ............इतना कहकर  मुस्कुराते हुए  ऋषि  आगे बढ़ गए  थे  .

शबरी दौड़ी पीछे ...............चलिये आपकी सेवा नही ..........पर आपके कुटिया की सेवा करूंगी  !  झाड़ू लगाउंगी ............।

पर क्यों करोगी  ?      मेरी कुटिया की सेवा   क्यों करोगी    ।

शबरी नें कहा ...............मुझे  आपमें  दैवीयता दिखाई दे रही है ।

मुझे आप ठुकराये नहीं ................मुझे भी उस परमसत्ता से मिलाएं  जिसे  आप सब ऋषि मिलनें के लिए तप करते रहते हैं  ।

कुछ देर  रूककर  ऋषि  मतंग नें  कहा ..............ठीक है  ।

उछल पड़ी थी ......शबरी ....................और  ख़ुशी ख़ुशी  ऋषि के पीछे पीछे  चलती रही  .........चलती रही  ।

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मै   आज जा रहा हूँ शबरी !      ऋषि मतंग नें कहा  ।

कहाँ जा रहे हैं  गुरुदेव !       शबरी  नें  सोचा था  कहीं आस पास में जाकर आजायेंगें  ।

मै  अपनें  आराध्य श्री  राम के पास जा रहा हूँ .......।

आँसू  गिर गए शबरी के .........रो पड़ी  वो बेचारी ।

पर  आपनें मुझ से कहा था .............कि श्री  राम आयेंगें,  यहीं पर ।

आपनें मुझे  साधना की शिक्षा दी है ................मै सावधानी पूर्वक ये सब कर रही हूँ ........मै इन्तजार में हूँ ........कि प्रभु आयेंगें !    फिर आप कैसे जा सकते हैं  !  शबरी  के आँसू बह रहे थे  ।

पुत्री !    आयेंगें  राम ...........तुम  यहीं रहो ............प्रतीक्षा करो !

राम आयेंगें  !    अवश्य आयेंगें ..............किसी की बात मत सुनना ......बस  तेरा गुरु कह रहा  है ........राम तेरे यहाँ ही आयेंगें .....।

मुस्कुराते हुए ...........शबरी के सिर में हाथ रखते हुए ....ऋषि मतंग नें अपनें शरीर को त्याग दिया था   ।

शबरी  की आयु   इस समय थी  12 वर्ष की  ।

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हट् !  हट् ! हट् !    छूना नही ................

रोज झाड़ू लगाती है  ये बुढ़िया ................और सोचती है  इसके यहाँ  प्रभु राम आयेंगें ...........शुद्र जात की  ये बुढ़िया  !  

ये सब  ऋषि  दुत्कारते थे  इस बेचारी  शबरी को ...........

पर  ये   सब   सहती रहती थी............कुछ नही बोलती थी ।

रोज झाड़ू  लगाती थी ............प्रभु  श्रीराम  आयेंगें !  आयेंगें  मेरे यहाँ ही आयेंगें .......क्यों की मेरे गुरुदेव नें कहा है  ।

आज  इन्तजार करते करते ..........85 वर्ष की हो गयी थी ये शबरी ।

ए ए !    इधर छूना नही ..............बिल्कुल छूना नही  ।

वो ऋषि  चिल्ला रहे थे .......सरोवर में नहानें के लिए आये थे ।

पर  मार्ग में तो शबरी  झाड़ू लगा रही थी .......काँटो को बीन रही थी ।

तभी वो ऋषि  वहाँ से गुजर रहे थे .....नहानें के लिये ही जा रहे थे ।

झाड़ू में  एक कंकड़ फंस गया था ....जो उछल कर ऋषि के अंग में जाकर लग गया ................ये जात की शुद्र !      छी !     इसके झाड़ू से उछलनें वाले कंकड़ नें मुझे  छु लिया ............हे भगवान !   

तू मर क्यों नही जाती !    तू  इस स्थान को क्यों नही छोड़ देती ।

अजी !     वो मतंग नामके एक  ऋषि थे .......उन्होंने ही इसे सिर में चढ़ा रखा था ............नही तो  ये हम लोगों के बीच में रहनें लायक भी है  ।

अरे !  मै तो अपवित्र हो गया .........क्या करूँ  !

वो ऋषि  जल्दी जल्दी  सरोवर में गए ........और जैसे ही  उस सरोवर में डुबकी लगाई ...............अरे !  ये क्या हो गया  ?

सरोवर में  तो कीड़े पड़ गए ......कीड़े ही कीड़े हो गए सरोवर में  ।

देखो !   शबरी के कारण कीड़े पड़ गए सरोवर में ।

मर क्यों नही जाती तू !     हम ऋषियों  के स्नान का यही तो  सरोवर था  ...उसमें भी कीड़े  कर दिए तेनें ........।

बेचारी डर से काँप रही थी शबरी !   डर से  ।

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सब ऋषियों नें  स्वागत की तैयारियां कर ली थीं ........

प्रभु राम  आयेंगें  !  प्रभु  राम आयेंगें ..........

चलो अच्छा है........अब  तो    उनके ही चरण पड़ें ..........तभी ये सरोवर भी स्वच्छ हो जाएगा ...............सब ऋषि यही कह रहे थे ।

सुन !  तुझे हम श्राप दे देंगें.......अब अगर हमारे सामनें  भी आई तो !

बेचारी शबरी झाड़ू ही तो लगा रही थी ........सब ऋषियों नें एक साथ कहा  ।

नही ....नही ......आप लोग मुझे श्राप न दें ........मै नही आऊँगी  बाहर ।

शबरी  दौड़कर  अपनी कुटिया में  चली गयी ......और  खूब रोई ।

अपनें गुरुदेव की चरण पादुका में सिर रखकर  हिलकियों से रो गयी ।

मुझे क्यों छोड़ के गए आप !  बताइये !  क्यों छोड़ कर गए  !

मुझे भी ले जाते अपनें साथ ......रोते रोते मूर्छित ही हो गयी थी शबरी ।

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मेरी शबरी कहाँ है  ?

एक ऋषि की कुटिया के बाहर   खड़े होकर  प्रभु पूछ रहे थे ।

मेरी भागवती शबरी कहाँ है  ?

पता पूछ रहे थे  प्रभु राम  ।

मेरी  शबरी  की कुटिया कहाँ है  ?

एक ऋषि नें मुँह बनाकर कहा ...............वो है  ।

प्रभु  श्री राम शबरी की कुटिया में ही गए  ।

जैसे ही  राम गए ............शबरी !   शबरी !   कहाँ हो ?

राम आये !    मेरे प्रभु राम आये  ! 

ओह !   वो तो कुटिया में और छुप गयी   ।

भगवान श्री राम  भीतर ही गए ......शबरी !    कहाँ छुपी हो  !

शबरी  सामनें आगयी .........श्री राम के  चरणों में गिर गयी .........नेत्रों से आँसू बहनें लगे उसके .............चरणों को धो डाला उसनें ........।

बेर दिए  प्रभु को,  प्रभु नें  आनन्द से बैठकर खाये ....................शबरी  अपलक देखती रही ......पागलों की तरह देखती रही ................उसे कुछ सूझ नही रहा था ........पढ़ी लिखी है नही .....तो वन्दन , प्रार्थना करना भी नही आता था उसे .........पर  उसकी मौन प्रार्थना  प्रभु सुन रहे थे ।

प्रभु तक यही तो पहुँचता  है .........मौन  प्रार्थना   ।

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आप लोग !     इतनें सब ऋषि   यहाँ  ?

शबरी की कुटिया में ही  सब ऋषि एकत्रित हो गए थे ।

तब श्री राम नें पूछा .....आप सब लोग क्यों आये हैं  यहाँ ।

हे प्रभु !   हम ऋषि   बड़े चिंतित हैं ............हम लोग अच्छे से स्नान नही कर पा रहे .....एक ही तो  सरोवर है यहाँ ..........उसमें भी  कीड़े पड़ गए हैं ......हम क्या करें  ?

पर ये हुआ कैसे  ....सरोवर में कीड़े  ?    प्रभु राम मुस्कुराते हुए बोले ।

इसी शबरी के कारण .........एक ऋषि बोल पड़ा ।

शबरी के कारण ?   प्रभु राम नें  उस ऋषि को  देखा ।

इस बेचारी शबरी के कारण ?     ये तो पूर्ण निर्दोष है ........

प्रभु राम नें  फिर कहा .....चलिये  आप बताइये ये दशरथ नन्दन राम क्या कर सकता है आप लोगों के लिए  !

प्रभु !  आप बस अपनें चरणों को छुवा दीजिये उस सरोवर में  .......

सब ऋषियों नें एक स्वर में कहा  ।

अच्छा !   चलो .....इतना कहकर  प्रभु उन ऋषियों के साथ चल दिए ।

पर ये क्या  ........चरण छुवाये प्रभु राम नें .........सरोवर में ......पर कीड़े  कम होने के स्थान में और बढ़ गए  ।

कहीं ये  साधारण राजकुमार तो नही ? 

एक ऋषि नें सन्देह भी  कर दिया था  ।

क्यों न एक काम करें  !   प्रभु राम नें मुस्कुराके कहा  ।

शबरी को लाया जाए .....और उसके  चरण को  ?

एक ऋषि नें कहा ....क्षमा  करें ....भगवन् !   उसके कारण ही तो सब कुछ हुआ है ...........कीड़े पड़े हैं सरोवर में  ।

फिर भी देख लेने  में क्या हर्ज है  ............मुझे तो लगता है  शबरी के अपराध के कारण ही ये सब हुआ है  ।

जाओ !   भई  लेकर आओ शबरी को ....जाओ !

नाक भौं सिकोड़े  कई ऋषियों नें ......पर प्रभु श्री राम की आज्ञा कैसे काटें .........।

गए .......शबरी  तो डर गयी  बेचारी .......

पर प्रभु की आज्ञा है .....तुम चलो ...............ऋषियों नें जब प्रभु की बात कही तब शबरी चली थी  ।

शबरी !    सुनो   !  तुम अपनें चरण इसमें डाल दो ना !   

शबरी को देखते ही  प्रभु श्री राम नें मुस्कुराके कहा ।

नही .......नही ........वो फिर भागी ............पर  इस बार दौड़ कर श्री राम नें ही शबरी को पकड़ा ............अब  अपनें चरण  छुवा भी दो ना ।

शबरी नें जैसे ही अपनें चरण  सरोवर में रखे ...........

ओह ! आश्चर्य !        कीड़े खतम हो गए ..........सरोवर का जल और स्वच्छ हो गया ..............पहले से भी ज्यादा  ।

अब  ऋषियों को संबोधित करते हुए ...............बोले थे  श्री राम !

भक्ति सबसे ऊँची है ...........भक्ति  में जात पांत मै कहाँ देखता हूँ ।

भक्ति  ज्ञान और योग ....इन सबसे  ऊँची वस्तु है ................भक्ति मुझे प्रिय है ...........।

हे ऋषियों !     मेरे भक्त का अपमान मेरा ही अपमान है  ...क्यों की भक्त और मै ........हम दोनों तत्वतः एक ही हैं  ।

ऋषि सब सिर झुकाये  श्री राम की बात सुन रहे थे  ।

पर शबरी !     वो   तो   धन्य थी ..........धन्य  परम धन्य  ।

आकाश से फूल बरसे थे  उसी समय शबरी के ऊपर .....
पर  शबरी तो  संकोच से जमीन में गढ़े  जा रही थी  ।

Harisharan

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