आज के विचार
( "भक्तमाल" पढ़िये और देखिये जादू ....)
नमो नमो श्रीभक्त सुमाल.......
( गो. नाभा दास जी )
आप जिन कहानियों को हमें सुनाते हैं ......स्वामी जी ! क्या ये सब बनी घटनाएं हैं ?
इग्लैंड में उन दिनों स्वामी विवेकानन्द जी किसी के फ़ार्म हाउस में मेहमान थे........स्वामी जी के पास उनके शिष्य आते रहते थे........
और सत्संग चलता था ...........।
पर इन चार पाँच दिनों से स्वामी जी कहानियाँ ही सुना रहे थे ........पर इन कहानियों में भी इतना भाव था कि सब गोरे लोग आँसू पोंछते हुए ही दिखाई देते थे ।
पर आज भगिनी निवेदिता नें पूछ ही लिया .............आप जिन कहानियों को हमें सुनाते हैं .......क्या ये सब बनी घटनाएं हैं ?
मेरा कोई दावा नही है कि ये सारी कहानियों की घटनाएं घटी ही होंगीं ....पर मेरा ये दावा अवश्य है कि जो "वेदान्त श्रवण" भी अन्तःकरण को इतनी जल्दी शुद्ध नही कर पाता....... जितनी जल्दी ये कहानियाँ कर देती हैं .........ये अनुभव है....इसलिये मै तुम लोगों को सुनाता हूँ ।
ये कहानियाँ आप कहाँ से सुनाते हैं ?
निवेदिता का प्रश्न था ।
भारत में .......भारतीय भाषा में एक ग्रन्थ लिखा गया ..........करीब 500 वर्ष पहले ...............जिसे भारतीय साधू श्रीनाभा दास नें लिखा .....और पता है निवेदिता ! इस ग्रन्थ को जो पढ़ेगा ........उसे ही समझ में आएगा ......कि हाँ ......अन्तःकरण में कुछ तो हो रहा है .....
अन्तःकरण पिघल रहा है ................ये जादू देखना हो ....तो इस ग्रन्थ को पढ़ो ।
भक्तमाल ................इस ग्रन्थ का नाम है ......
स्वामी विवेकान्द जी नें कहा था ।
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आप क्यों इस भाषा के ग्रन्थ को पढ़ते हैं ?
सनातन धर्म के ये उद्भट विद्वान थे ।
उपनिषद् से लेकर .....खण्डन खण्ड खाद्य ......जैसे अद्वैत वाद के ग्रन्थ से लेकर ........हनुमान चालीसा तक .........सब के विद्वान थे ये ।
इनका नाम था .....धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज ।
पर स्वामी करपात्री जी महाराज का अंतिम समय आगया था ।
शरीर ज्यादा ही अस्वस्थ रहनें लगा था ............
पर स्वामी करपात्री जी नें ये नियम रख दिया अंतिम समय में .....
कि मुझे और कोई ग्रन्थ न सुनाया जाए .......मात्र भक्तमाल सुनाई जाए ।
इतने बड़े विद्वान .......सनातन धर्म के हर शास्त्र से जिनका नजदीकी का सम्बन्ध था ..........पर उन्होंनें चुना अंतिम समय में सुननें के लिए तो हिंदी के इस ग्रन्थ को ?
आज एक काशी के विद्वान नें पूछ ही लिया ..........
आप क्यों इस भाषा के ग्रन्थ को पढ़ते हैं ?
वेदान्त श्रवण कीजिये ।
स्वामी श्री करपात्री जी भक्तमाल सुन रहे थे .............
रुके ...........उठ नही सकते थे ............जिन विद्वान नें ये बात कही थी .........उनको देखा .......फिर इतना ही बोले ...........इस ग्रन्थ की विशेषता है .......अन्तःकरण को पूर्ण रूप से साफ़ कर देती है ।
और मात्र इसके श्रवण करनें से ।
वेदान्त श्रवण में .........फिर भी एक अहंकार सा आजाता है .....कि हमनें वेदान्त श्रवण किया .......इसे कोई साधारण नही समझ पाता ।
पर भक्तमाल सुनकर...........ऐसा चमत्कार होता है ........कि मन , बुद्धि, चित्त अहंकार ......सब गल जाते हैं ........नेत्र आँसुओं से भींग जाते हैं ............आहा ! क्या दिव्य ग्रन्थ है ये भक्तमाल !
ये कहना था .....सनातन धर्म के सर्वमान्य विद्वतवरेण्य धर्म सम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का ।
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मै आगया हूँ .......श्री जनकपुर धाम ......कल रात्रि में पहुँचा था ।
किसी और को कथा सुनानें नही .........स्वयं श्री किशोरी जी को कथा सुनानें ............और वो भी भक्तमाल की ।
आपको पता है .........भक्तमाल में बड़ी प्यारी प्यारी कथाएँ हैं ।
और इन कथाओं में एक अलग ही जादू है ......हाँ ।
आपके अन्तःकरण को ये तुरन्त पवित्र कर देती है .......जन्म जन्म की मैल जो हमारे अन्तःकरण में जमी हुयी है ......उसे निकाल देती है ।
हृदय पिघल जाता है .................हृदय जो पाप के कारण कठोर हो गया है ..........वो मात्र इन कथाओं को सुनकर कोमल हो जाता है ।
और पाप सब बह जाते हैं ........आपके आँसुओं के माध्यम से ।
हाँ ..........साधकों ! ये मेरा अनुभव है ..............
ये चमत्कार मैने स्वयं देखा है .............मैनें एक नास्तिक के साथ इसका प्रयोग भी किया है ............पर वह नास्तिक , आस्तिक तो नही बन सका ....
पर वह सीधे भक्त बन गया है ......हाँ उच्च भक्त .....आस्तिक से भी ऊँची स्थिति ............बहुत ऊँची ।
आप पढ़िये भक्तमाल ...............और स्वयं जादू देखिये ।
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एक कथा भक्तमाल की ...........पढ़िये -
एक राजा था ........पहले पहले छोटे छोटे रजवाड़े होते थे भारत में ........उनका ही कोई राजा था ।
.....पर नास्तिक ..........ऐसा मानना था उस राजा की पत्नी का ।
और इसी बात का रानी को दुःख भी था ...........वो ठाकुर जी से नित्य प्रार्थना करती थी ..........हे भगवन् ! आपनें मुझे सबकुछ दिया ........पर मुझे ऐसा नास्तिक पति क्यों दिया ।
मै सन्तों को बुलाती हूँ..............इन्हें पसन्द नही ...........
मै सत्संग करवाती हूँ ............पर ये उस सत्संग में आते भी नही ।
सन्त लोगों के द्वारा मै भजन कीर्तन का आयोजन रखती हूँ ......पर ये भी इनको पसन्द नही .............रानी फिर अपनें ठाकुर जी , जिन्हें कहती .......नही .....नही ....... राजा जी मुझे मना नही करते ये सब करनें के लिए .......पर वो स्वयं शरीक़ नही होते ...........।
रानी को दुःख था तो इसी बात का ....कि पति मुझे नास्तिक मिला ।
एक दिन की बात ...............
रात्रि का समय था ........रानी सो रही थीं .......राजा भी सो रहे थे ।
तभी स्वप्न में .......राजा के मुख के निकल गया ..........
.हे कृष्ण ! मेरे नाथ ! मुझे कब अपनाओगे !
रानी उठी ...............सुना उसनें ......मेरे पति स्वप्न में प्रार्थना कर रहे हैं .....कृष्ण ! भगवान का नाम ले रहे हैं !
रानी नें विचार किया ..................ओह ! स्वप्न में पुकार रहे हैं ....इसका मतलब जाग्रत में भी पुकारते होंगें ..........तभी तो स्वप्न में इनके मुख से ये सब निकल रहा है .............आहा !
रानी के आनन्द का पारावार नही था .......जैसे तैसे रात गुजारी ।
सुबह होते ही .....नगाड़े बजनें लगे ......शहनाइयाँ बजनें लगीं ......
राजा उठे ............झरोखे से नीचे देखा ...............नगाड़े बज रहे हैं .....शाहनाइयाँ बज रही हैं ..........राजा नें पूछा .......ये सब क्यों बजा रहे हो .......आज ऐसा क्या है ?
रानी की आज्ञा है महाराज ! सेवकों नें उत्तर दिया ।
राजा नें सेविकाओं को बोल कर रानी को बुलवाया ।
रानी ! क्या बात है ..............ये सब नगाड़े और शाहनाई ?
क्या है आज ? या क्या हुआ ऐसा आज ?
राजा को देखा रानी नें ...............मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी रानी ।
बड़े प्रेम से अपनी बाहों का हार राजा के गले में डाल दिया .....और बोलीं ......आप तो बड़े कि छुपे आशिक़ निकले !
क्या रानी ! मै समझा नही ...........राजा नें रानी से फिर पूछा ।
पता है आज तक मै इसी बात से दुःखी थी ......कि मेरा पति सर्वगुण सम्पन्न होनें के बाद भी नास्तिक है ...........।
पर आज मै बहुत खुश हूँ ........रानी नें चहकते हुए कहा ।
क्या हुआ ऐसा ? राजा नें आश्चर्य से फिर पूछा ।
क्या हुआ .......? महाराज ! रात्रि में, सपनें में आपके मुँह से ये पुकार निकली.........हे कृष्ण ! मुझे कब अपनाओगे ?
रानी नें आनन्दित होते हुये कहा ।
क्या !
राजा चौंक गया ......ये "कृष्ण" नाम मेरे मुँह से निकल गया ?
हाँ ....हाँ पतिदेव ! आपके मुँह से निकल गया ये नाम ।
ये सुनते ही धड़ाम से पति धरती में गिर गया ..................
पत्नी घबडा गयी ........क्या हुआ आपको महाराज !
राजा नें कहा .........भगवान का ये कृष्ण नाम... मेरे प्राण थे ........मैनें बहुत छुपा कर रखा था इन्हें ...........पर ये क्या ?
मेरे आराध्य का नाम मेरे प्राण थे .....जब प्राण ही निकल गए तो रानी ! अब ये देह कैसे बचेगा ।
हे कृष्ण !
कहते हुए राजा नें अपनें प्राण तत्क्षण त्याग दिए ।
ओह ! क्या भक्ति है यार !
प्रेम गुप्त रहे .........भक्ति दिखावे की वस्तु थोड़े ही है ......
भक्ति प्रदर्शन की वस्तु थोड़े ही है ।
है ना अच्छी कथा !
पढ़िये भक्तमाल ......ऐसी ऐसी हजारों प्रेमपूर्ण कहानियाँ हैं ..इसमें ।
आपका मन पवित्र होगा .........ये जादू तुरन्त होगा ........हाँ ।
श्रीकिशोरी जू को कथा सुना रहा हूँ ........भक्तमाल की .....।
"गदगद् स्वर पुलकित अंगअंगनि, लोचन बरसत अँसुवन धार"
Harisharan
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🙏🙏
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