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"स्वच्छता अभियान" - एक कहानी

आज के विचार

("स्वच्छता अभियान" - एक कहानी )

हरि सर्वेषु भूतेषु ....
( श्रीमद्भागवत )

मै उन्हें जानता हूँ ............वो बहुत बड़े  महात्मा हैं .........नही नही .....बड़े महात्मा से मेरा मतलब ये नही  कि उनके बड़े बड़े आश्रम हैं ...या उनके  शिष्यों की  संख्या अनगिनत है ........नही ।

बड़े महात्मा से मेरा  तात्पर्य,  वो  अन्दर से महात्मा हैं.........बड़े महात्मा से मेरा तात्पर्य  अंदर से  वो  मर्यादित हैं .....बड़े महात्मा से मेरा तात्पर्य  उनका एकान्त  स्वच्छ है ..............पूर्ण स्वच्छ है   ।

नही नही ...........वो पहले ऐसे नही थे ................पहले तो  वो  बाहरी स्वच्छता के बड़े हिमायती थे ........स्वच्छता  ही  लक्ष्य है .........ये उनका नारा है .....ऐसा लगता था मुझे  ।

वो महात्मा  काशी से आये थे .......ब्राह्मण थे ...........स्वयं  पाकी .....यानि  स्वयं बनाकर ही खाते थे  ।

किसी नें  अगर  उनके वस्त्रों को भी  छू दिया ........तो फिर कपड़े धोनें बैठ जाते थे ............ब्राह्मण के अलावा  किसी भी जात के व्यक्ति की परछाईं अगर  पड़ गयी उनके  भोजन  में  तो भोजन  जमुना जी में ही डाल देते ..........उस दिन भोजन ही नही करना उन्हें  .........फिर क्रोध में भुन भुन .....।

पानी भी पीते थे  तो पाँच बार हाथ धोते थे .............शौच जाकर   मिट्टी हाथ में लगाना .......ये तो  सब करते ही हैं ........पर ये तो लघुशंका करके  भी   हाथ में  और पाँव में  पाँच पाँच बार मिट्टी लगाते थे ......गर्मियों में तो ठीक .....पर सर्दियों में  उनके पाँव  घिस जाते थे ......ज्यादा पानी के प्रयोग से    उनके पाँव में घाव भी होजाते थे ।

आप बाँके बिहारी जी दर्शन करनें  नही जाते  ? 

ये मैनें प्रश्न किया था .........ये बात है आज से  दो वर्ष पहले की  ।

नही .........मै नही जाता .........कैसे कैसे लोग आये होते हैं वहाँ .....उनके शरीर से छुवना .........उनके शरीर से निकल रहे पसीनें .....जिससे उनके शरीर से  बदबू आती है .........छिः  ।

कैसे हैं ........लोग कहाँ के हैं ........क्या खाते हैं  ....स्नान भी करते हैं या नही ?   और करते भी हैं  तो चर्बी  युक्त साबुन से ...............

मै सुनता रहा उनकी बातें ..........हद्द है .........ये क्या है इनका  ?

मेरा मन उत्तर देता .......स्वच्छता अभियान .........और  मै हँस देता ।

एक दिन  मै  बिहारी जी का प्रसाद  "दूध भात"  लेकर आया ......और यमुना जी के किनारे   बैठ कर .......आनन्द से दूध भात पाउँगा ......ऐसा विचार करके  आया ही था यमुना के किनारे .......कि  यही महात्मा मिल गए मुझे ..............मैने उन्हें  पहले  "दूध भात" का प्रसाद देना चाहा ।

मै कच्चा किसी के हाथ का नही खाता .....

.......चावल जिसमें हों उसे ये कच्चा कहते थे  ।

मैने कहा .........महात्मन् !   ये  श्रीबाँके बिहारी जी का प्रसाद है .......।

हाँ  तो !      प्रसाद भी तो किसी नें बनाया होगा ना ...........फिर  भोग लगाया ..........उसके बाद तुम लाये ..........लाते समय कितनें लोगों नें  तुम्हे छूआ होगा ........और छूनें वाले  कौन जात के थे .........नहाये थे या नही  ?       मै नही खाऊंगा .........चाहे प्रसाद हो मै नही खाऊंगा ।

मुझे आज पहली बार  इन के महात्मा होनें पर शक़ होनें लगा था ।

प्रसाद  को अस्वीकार कर रहे हैं  ये !

मैने  दूध भात  बड़े प्रेम से खाया.................

वो मेरी ओर देखते रहे ............फिर  स्नान करनें चले गए यमुना जी  ........ये शायद  दिन में  चार बार तो नहाते ही होंगे   ।

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सुबह  ही सुबह  मुझे  मेरे घर वालों नें जगा दिया था ......करीब  4 बजे ।

कोई महात्मा जी आये हैं ........और तुम्हे खोज रहे हैं .........हम लोगों नें कहा भी  5 बजे उठते हैं .........फिर  अर्चा इत्यादि करके   सत्संग में जाते हैं .........आप   हो सके तो 1 घण्टे बाद आ जाइए  ।

मेरे घर वालों नें कहा ........हमनें बहुत कहा ....पर महात्मा मान नही रहे .........तुम जाकर मिल लो  ।

मैने   भीतर से देखा...........कौन हैं  महात्मा  ?

ओह !   ये कैसे आगये यहाँ ?       ये तो बिहारी जी  दर्शन करनें भी नही जाते..........लोग  कैसे कैसे होते हैं .....उनसे छू जाऊँगा  इसलिये ।

मै  तुरन्त बिना नहाये.........नीचे गया .........उनसे मिलनें  ।

उनके नेत्र ऐसे लग रहे थे  जैसे  रात भर ये सोये नही हों  ।

मुझे देखते ही  वो मेरे पास आये ...........और मुझे गले लगानें लगे ।

मै  स्वयं पीछे हटनें  लगा ........मै नहाया नही हूँ  महात्मन् !

मेरे  द्वारा ये सुनते ही ...........वो रो पड़े ..........क्या इस  शरीर पर  दो लोटा पानी डाल देनें से  ये स्वच्छ हो जाएगा  ? 

नही होगा ......ये हमारा अंहकार ही तो है............मेरे अहंकार नें मुझे  अस्वच्छ ही रखा है ...........।

पता नही  आज ये कैसी  बातें बोल रहे थे ।

मैने उनका हाथ पकड़ा ........और कहा ........आप जाएँ  अपनी कुटिया में .....मै सत्संग से सीधे आपके पास आरहा हूँ ............।

वो मेरी बातें सुनकर  चले गए ..........पर मै सोचता रहा ..........कि क्या हुआ ऐसा  ?    ये तो बदले बदले लग रहे हैं ............कल रात्रि में  बिहारी जी का    प्रसाद ...........जिसे पानें के लिये  लोग तरसते हैं .....पर  शयन का भोग प्रसाद  कहाँ सबको मिल पाता है .......!

मै यही सोचते हुए  सत्संग  से  यमुना जी के किनारे उन महात्मा की कुटिया में चला गया था ......मुझे उत्सुकता थी .......कि ऐसा क्या हुआ  जिसके कारण ये बदल गए  थे  ।

*******************************************************

हरि जी !    मेरे सामनें वो सूगर आकर खड़ा हो गया था ..........

गन्दा सूगर ..........कीचड़ में सना हुआ .............

मै डर गया .......ओह !  मुझे फिर नहाना पड़ेगा ........रात्रि में ।

मेरे सामनें  वो  महात्मा जी अपनी बात बता रहे थे ..............

और हरि जी !  ये बात है  कल की .......जब आप  यहाँ से  बिहारी जी का प्रसाद लेकर चले गए थे ....उसके बाद  मै अपनें  आसन में आया.....और लेट गया ।

तभी मुझे लगा..... ....एक सूगर मेरे सामनें आकर खड़ा हो गया है  ।

मै उसे देखते ही घबड़ाया ..........दुर्गन्ध से कुटिया में रहना अब मुश्किल हो गया था  ............

पर ये क्या !    वो सूगर तो मेरे नजदीक आने लगा .......उसके बड़े बड़े दाँत थे ...........उसका शरीर कीचड़ से सना था  ।

मैने नाक बन्द कर लिया ..........पर ये क्या  सूगर नें छलाँग लगाई और मुझे गिरा दिया .........असहनीय दुर्गन्ध  से मुझे घबराहट होनें लगी थी .............वो सूगर मेरे ऊपर चढ़ गया .....और मेरी छाती पर लोटनें लगा ..........जैसे  मेरा शरीर ही कीचड़ हो  ।

ये मेरा शरीर  कीचड़ नही है .............स्वच्छ पवित्र देह है  ।

मेरी ये बात सुनकर  वो सूगर हँसा ...................ये स्वच्छ देह है ? 

उसकी स्पष्ट वाणी मेरे कानों में जा रही थी  ।

गन्दगी के अलावा इस शरीर में है क्या ?

कफ बनानें की मशीन यही  शरीर तो है .........लार बनानें की मशीन ये शरीर ही तो है ...........और तो और  विष्टा बनाने की मशीन भी ये शरीर ही है ..........क्या नही  ?     ये कहते हुए उस सूगर नें  अपना थूथन मेरी छाती पर  रगड़ दिया था  ।

तुम क्या समझते हो .....बाहर से  दो लोटा पानी  या चार लोटा इस शरीर पर डाल दोगे  तो  ये  शरीर स्वच्छ हो गया ?  पवित्र हो गया ?

इसके  भीतर देखो !........अरे बाहर से हल्की सी  चमड़े की परत ही तो है .....उस परत को हटाओ ......तो भीतर क्या है  ?   मांत्र मल मूत्र !  गन्दगी ........खून , कफ, पित्त  विष्टा ..............ये सब तो है ।

मेरी आँखें खुलनें लगीं ..................ये सूगर कोई साधारण नही था ......ये  सूगर तो मुझे दिव्य दृष्टि दे रहा था  ।

गन्दा हमें कहते हो  तुम महात्मा जी !      सूगर नें कहा ।

गन्दा फैलाते हो तुम .........उसे तो हम साफ़ करते हैं ......तुम्हारी गन्दगी को हम साफ करते हैं .........फिर  कौन हुआ गन्दा .........गन्दगी साफ़ करनें वाला या गन्दगी फैलानें वाला  ?

तुम महात्मन् !     ये गन्दा है .....ये अस्वच्छ है ........ये  अपवित्र है .....बस दिन भर यही सोचते रहते हो ........पर  तुम स्वयं  अपवित्रता में रहते हो .............तुम्हारे पेट में क्या है ?   क्या तुम्हारी विष्टा इसमें भरी नही है ?     

मै समझ गया था ...........मुझे  उपदेश करनें के लिए  मेरे पास वृन्दावन के ये  सूगर   आये थे ........।

मेरे अंदर हृदय में प्रकाश छा गया था ........ज्ञान का प्रकाश ।

मै अभी तक अज्ञान में ही जी रहा था ........मुझे पता ही नही ।

कितनी अच्छी बात कही थी .......स्वच्छता  बाहर या भीतर ? 

मै बाहर के स्वच्छता अभियान में इतना सक्रिय था  कि  मेरे अंदर ही इतनी गन्दगी भर रही थी मुझे पता  ही नही  था ।

अभिमान रूपी  विष्टा ..........मेरे  अन्तःकरण को गन्दा कर रही थी ।

पर मेरा उस ओर कोई ध्यान नही था ....।

क्रोध रूपी गन्दगी,   मै  दिन प्रतिदिन  समाज में   फैलाता जा रहा था ।

मुझे याद है ..........जल लेकर आरहा था मै ...........कुटिया में ।

तब एक  अछूत कहे जानें वाले  बालक नें  मेरे जल को छू दिया था .......

मेरा क्रोध  चढ़ गया .....एक थप्पड़ उस 4 वर्ष के बच्चे के गाल में  ।

क्यों ? 

छु दिया उस अछूत नें  मेरे  जल को ,    इसलिये ......?   

पर  क्रोध के कारण तो मै ही "अछूत" हो गया था ना ?  

क्यों की क्रोध रूपी गन्दगी  में ही ...........मै रह रहा था ।

फिर कैसे  मै स्वच्छ था ....पवित्र था    ?

ये कहते हुए उन महात्मा जी के नेत्र बह रहे थे .............हरि जी !

मै इस  शरीर  की स्वच्छता के आगे   सब कुछ भूल गया था ........ 

मै ये भी भूल गया था  कि   शरीर  तो  मल मूत्र का भांड ही है ........इसको क्या ध्यान में रखना ......मुख्य स्वच्छता अभियान तो अपनें भीतर का चलना चाहिये  ।

मन में तुच्छ वासना न हो, मन में अहंकार न हो, मन में क्रोध , लोभ , मोह, इन सबसे  अपनें  आपको स्वच्छ रखो .........मुख्य ये है  ।

हरि जी !      अहंकार  के कारण  मै  श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन करनें नही गया .........मुझे वृन्दावन आये हुये   पाँच वर्ष हो गए हैं ।

कोई मुझ से छुव  न जाए ..........इसलिये मैने श्री राधा बल्लभ जी के दर्शन नही किये .......छिः !  ऐसे अहंकार को धिक्कार है ।

उन महात्मा के नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होनें लगे थे  ।

मै प्रसाद से वंचित रहा ............ओह !     ये कहते हुए  वो धड़ाम से धरती पर गिर पड़े .......मैने ही  उन्हें सम्भाला था .........।

******************************************************

शाम को मेरे साथ वो बिहारी जी दर्शन करनें गए .........

वो महात्मा जी मेरे साथ  राधा बल्लभ जी की आरती भी करके आये ...

प्रसाद हाथ में लेकर ही उन्होंने खाया ...............और उस हाथ को  सिर में  लगाते हुए चल दिए ...........

उन्होंने  बृजवासी के घर से   रोटी मांग कर खाई .............जात भी नही पूछी  ।

महात्मा जी   रो गए थे ........मुझे गले लगा कर रो गए थे  ।

अब मै स्वच्छ हो गया ...............अब मै पवित्र होगया  ।

अभी तक  तो  मै  अस्वच्छ  ही था .........अहंकार के कारण ,  क्रोध के कारण, लोभ के कारण,  द्वेष के कारण ,   इन सबकी गन्दगी को हटानें का प्रयास ही  स्वच्छता  की ओर बढ़ना है .......बाकी  तो   बाहर से  कितना गंगा जल डालते रहो ..............भीतर की गन्दगी को साफ़ नही किया ......तो  आपको लगता है .............स्वच्छता हो गयी ?

अच्छा  !  अब  उन महात्मा जी का कहना है ...........वृन्दावन के सूगर भी धन्य हैं .............जो मुझे उपदेश कर गए .............वो वराह भगवान ही थे  ऐसा कहना है उन महात्मा जी का  ।

आज कल ये असली स्वच्छता अभियान में लगे हैं .......इनके पास में कोई  भी आता है   सबको यही कहते है ........शरीर को ही मात्र  साफ मत करो .....मन को भी साफ़ करो ......असली  सफाई  वही है  ।

कोई उनसे पूछता है ................मन की सफाई कैसे करें ?

तो उनका उत्तर होता है................झुको !  दैन्यता,   अपनें से बड़े जो हैं उनके सामनें  सदैव झुको .......उनकी कमियां  मत देखो ...........कमियां तो हम मै ही हैं ...........इससे अहंकार गलेगा  ।

भगवान का आश्रय लो ............इससे भी अहंकार खतम होगा ।

तिनके से भी निम्न  समझो अपनें आपको .........सहन करो  ......वृक्ष की तरह ........सबमें  भगवान है ................सूगर से लेकर   सूर्य पर्यन्त ......सबमें    भगवान है .....ऐसा मानों ।

यही है   असली स्वच्छता अभियान ......

अच्छा !  अब  आप बताओ ....  ...आप कब से शुरू कर रहे हैं ..........स्वच्छता अभियान ?

Harisharan

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