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*सत्संग का लाभ*

तीन साधुओं का एक दल घूमता हुआ किसी गांव में पहुंचा। सर्दी का समय था और शाम हो गई थी। वे ठहरने के लिए कोई जगह ढूंढने लगे।
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गांव के एक सेठ ने कहा, महाराज ! मेरे पास दो दुकानें हैं। एक में तो सामान रखा हुआ है, दूसरी अभी खाली है। आप वहां आराम से रह सकेंगे, दुकान गरम भी रहेगी।
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संत थके हुए थे, दुकान में पहुंचते ही जा कर सो गए। तीनों में से दो छोटे थे। उनको गहरी नींद आई हुई थी। लेकिन एक मुनि प्रौढ़ थे, नींद जल्दी खुल गई।
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सोचा, अब जाग गया हूं तो वापिस सोना नहीं चाहिए। कुछ स्वाध्याय करूं। वे आगम स्वाध्याय में लगे हुए थे।
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इसी बीच कुछ खटपट सी आवाज आई। संत ने जोर से पूछा, कौन हो ?
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पास वाली दुकान में कुछ लोग आए हुए थे। उनमें से एक ने देखा कि सामने वाली दुकान से कोई महात्मा जी पुकार रहे हैं, तो सोचा, इनसे डरने की जरूरत नहीं है।
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संतों की तो वंदना करनी चाहिए। उन्होंने आ कर नमस्कार किया। वे भी तीन थे। प्रौढ़ मुनि ने पूछा, अभी यहां कैसे आना हुआ ?
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आगंतुकों में जो लीडर था, वह बोला, महात्मन ! आप स्वयं सोच लीजिए, इतनी रात में किसी की दुकान में कौन आ सकता है ?
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संत ने कहा, अच्छा ! तुम चोर हो ?
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चोर बोला, हां महाराज ! हम चोर हैं। आपके सामने झूठ नहीं बोलेंगे। हमें जानकारी मिली थी कि सेठ के पास काफी माल आया हुआ है। वही चुराने आए हैं।
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संत ने सोचा, मुझे अपनी दुकान अभी खोल देनी चाहिए। संतों की दुकान है उपदेश देना, धर्म की बात बताना। सो उन्हें समझाने लगे,
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भाई ! ऐसा गलत काम क्यों करते हो ? तुम गृहस्थ हो, संसार में और भी बहुत धंधे हैं, चोरी करके किसी का धन लेना पाप है।
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पता नहीं ये कर्म तुमको कैसे भोगने पड़ेंगे ? यहां तुम चोरियां करते हो, हो सकता है कभी इसी तरह तुम्हारा भी नुकसान हो जाए।
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संतों के बोध देने पर चोर बोले, मुनिवर ! आपने हमको बड़ा ज्ञान दे दिया। अंधेरे में उजाला कर दिया। हमारे भीतर दीया जला दिया। इस क्षण के बाद कभी चोरी नहीं करेंगे।
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यों करते-करते पांच बज गए। जिस सेठ की दुकान में संत ठहरे थे, उसने सोचा की साधु लोग आए हुए हैं। जल्दी जाऊं तो कुछ सत्संग का लाभ पा लूं।
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लेकिन सेठ संतों के पास पहुंचा तो देखा कि वहां पहले से तीन आदमी आए हुए हैं। सेठ ने तीनों से परिचय पूछा।
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उनका मुखिया बोला, सेठ साहब ! हमारा परिचय यह है कि पांच घंटे पहले के तो हम चोर हैं और वर्तमान के अच्छे आदमी हैं।
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चोर की बात सुनते ही एक बार तो सेठ घबरा गया। लेकिन मुखिया ने समझाया, आज संत लोग यहां थे तो तब आपका माल बच गया, वरना हम तो आपको भी संत बना देते। सारा माल आज साफ हो जाता।
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सेठ संतों के चरणों में गिर गया और बोला, मुनिवर ! आप यहां विराजे इसलिए मेरा धन-माल बच गया, अन्यथा मैं तो रंक बन जाता।
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संतों ने कहा, सेठ साहब ! हमने तो कोई धन-माल बचाने का प्रयास नहीं किया। हमने तो चोरों की आत्मा को सुधारने का प्रयास किया। इनके भीतर जो अंधकार है उसमें कुछ उजाला करने का प्रयास किया।
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वे भव्य आत्माएं हैं। हमारा तत्वज्ञान या बोध इनके दिल को छू गया। इन्होंने आजीवन चोरी का त्याग कर दिया और प्रासंगिक रूप में तुम्हारा धन भी बच गया।
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साधु उजाले का जीवन जीते हैं। गृहस्थ प्राय: अंधकार का जीवन जीते हैं। उस अंधकार में प्रकाश करने का काम संत-महात्मा करते हैं।
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जैसे रात में बिजली जलाकर प्रकाश किया जा सकता है, वैसे ही जीवन में अज्ञान और पाप आदि के अंधकार को ज्ञान और धर्म के प्रकाश से दूर किया जा सकता है ।

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