आज के विचार
( एक अद्भुत घटना )
मै भगतन को दास, भगत मेरे मुकुट मणि ....
( सन्तवाणी )
राजस्थान के पिलानी में बिड़ला जी का काम जोर शोरों से चल रहा था .........उनके इंजीनियर इस काम को देख रहे थे ।
ये बिल्डिंग मुझे जल्दी चाहिये बस ...........मै कुछ नही जानता ।
बिड़ला जी का एक प्रिय इंजीनियर था ......होगा करीब 55 वर्ष का ।
उसको स्पष्ट आदेश दे दिया था ।
सर ! हो जाएगा..............उस इंजीनियर नें स्वीकार किया ....और अपनें लोगों को डाँटना और डपटना चालु कर दिया था ।
एक महिनें में ये पूरी बिल्डिंग बनके तैयार होनी है ........इसलिये मुझे कोई बहाना नही चाहिये ।
भैया ! 1 महिनें के लिए मुझे यहाँ रहनें दो ना !
एक साधू नें आकर उस इंजीनियर से कहा था ।
भाग यहाँ से ...................कहाँ कहाँ से आजाते हैं ......ये बाबा जी लोग..........काम करना नही है .....फोकट के खानें की आदत जो लग गयी है ...........बहुत बड़बड़ाया था वो इंजीनियर ।
साम्यवाद से प्रभावित था ये बिड़ला जी का इंजीनियर .....इसलिये कुछ नास्तिकता भी आही गयी थी ।
सर ! आप इन बाबा जी .....और भगवान से क्यों चिढ़ते हैं ?
मजदूर लोग इंजीनियर साहब को छेड़ते हैं ।
देखो ! मुझे कर्मवादी प्रिय हैँ.............अरे ! भगवान नें कहीं कहा है क्या ? कि माला लो .....और मुझे परेशान करते रहो .........।
इंजीनियर की बातें सुनकर मजदूर लोग हँसते थे ।
सुनो ! रामकुमार ! ( इंजीनियर का नाम रामकुमार था )
बिड़ला जी उस साधू को अपनें साथ ले आये थे .........साधू सीधे बिड़ला जी से बोल आया था .......।
एक कमरा इन साधू महात्मा जी को दे दो ।
पर सर ! अभी तो पूरा काम हुआ भी नही है ?
इंजीनियर की ओर देखते हुए बिड़ला जी बोले -
कोई बात नही .........मैने इनको सारी स्थिति बता दी है .......कि मात्र दरवाजा है .....लाइट भी नही है .........और ये कुछ दिन मात्र रहेंगें .....।
इंजीनियर जानता था ........कि बिड़ला जी आस्तिक व्यक्ति हैं....और सन्तों और महात्माओं को ये बहुत मानते हैं ।
जब बिड़ला जी को ही आपत्ति नही है ........तो मै क्या हूँ .......
पर ये ईश्वर , ये धर्म ...ये आस्था ......इसी नें तो मनुष्यजाति को आलसी बना दिया है ।
एक कमरा दिखा दिया था उन महात्मा जी को ................।
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महात्मा जी वृद्ध थे........इनके पास एक चित्रपट था ........गोपाल जी का .........बस .........कुछ काजू बादाम अपनें पास रखते थे ...।
इंजीनियर का कॉटेज पास में ही था.......वो रोज सुनता था ।
भोग लगाते थे वो महात्मा जी ......अपनें चित्रपट के गोपाल जी को ।
इंजीनियर कहता था.............सुगन्धि बहुत अच्छी आती है बाबा की कुटिया से ।
ईश्वर को तो आप मानते नही हो........सब स्टाफ इंजीनियर साहब को छेड़ते थे .......ये सहज थे .....नास्तिक होंनें के बाद भी ।
ईश्वर है ही नही ..........ये तो इन धन्धाखोरों का काम है ।
फिर शुरू हो गए थे ये इंजीनियर साहब ।
लो प्रसाद !
...........वो महात्मा जी जो भोग लगाते थे ....उसे सबको बाँटते थे .................इंजीनियर को पहले देते ।
भोग लगाते हुए एक दिन देख लिया था .......इस इंजीनियर ने ........इन महात्मा जी को ............उसे बड़ा कौतुहल सा लगा ।
ये क्या !
सामनें मुस्कुराते गोपाल जी का चित्रपट है....उनके सामनें बैठे हैं ये महात्मा जी ..........बड़े प्रेम से आँखें बन्दकर खिला रहे हैं ।
और प्रेम से प्रार्थना कर रहे हैं.........नेत्रों से अश्रु धार बह रहे हैं ।
रोमांच हो रहा था ये सब देखकर ....इंजीनियर को ।
भावुक हैं.....ये महात्मा.........अपनें बच्चे की तरह प्यार करते हैं ........."गोपाल जी" कहकर इस चित्र को ........।
ऐसा विचार करते हुए इंजीनियर जाकर सो गए ।
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ओह ! इंजीनियर साहब ! देखो ! ये बाबा तो शायद मर गए ।
चौकीदार नें सुबह ही सुबह आवाज दी.....इंजीनियर उठे .......और बदहवास से दौड़े ........
शरीर शान्त हो गया था महात्मा जी का .......कैसे ?
कैसे , क्या ? इसका कोई उत्तर है क्या ? मृत्यु आगयी ।
महात्मा जी के शरीर का संस्कार करवाया उन इंजीनियर साहब नें ।
कमरे में आये .................महात्मा जी के गोपाल जी सो रहे हैं ।
इस समय तक तो महात्मा जी इन्हें उठा देते थे ...........और भोग भी लगा देते थे ..........बेचारे बिना महात्मा जी के ........।
फिर अपनें कॉटेज में गए इंजीनियर ............पर रह रह कर वही गोपाल जी का चित्रपट याद आरहा था ।
फिर गए ........कुछ बादाम लेकर गए ।
उठाया चित्रपट को ...................पोंछा .........महात्मा जी की तरह ही हाथ जोड़ा ...............फिर चन्दन .......कुछ फूल बाहर से ले आये ।
और बादाम भोग लगा दिए ।
आँखें बन्द करके वो बैठ गए ............ऐसे ही करते थे वो महात्मा जी ।
अरे ! इंजीनियर साहब ! ...........थोडा बाहर आओ तो कोई मिलनें आया है आपसे । किसी नें आवाज दी थी ...............इंजीनियर साहब बाहर आगये .................बिल्डिंग की बाते हुयीं ...........मेटेरियल अच्छा लगना चाहिए .....सारी बातें हुयीं ..............।
फिर इंजीनियर साहब उस कमरे में गए ......जहाँ भोग लगाके आये थे ।
ओह ! चौंक गए ..................उस दृश्य को देखकर .............
नास्तिकता आस्तिकता में कब बदल गयी ........पता ही नही चला ।
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जी ! भाई जी ! ........... ...आज आपनें जो केले मुझे दिए थे .....वो सड़े गले थे ......मेरे गोपाल जी को वो पसन्द नही आये ।
ऋषिकेश में महात्मा जी बैठे थे........हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के सामनें .........और शिकायत कर रहे थे ।
क्यों तुम्हारे "गोपाल जी" तुमसे बातें करते हैं ?
और क्या ?
प्रत्यक्ष ........भाई जी ! जो खानें की इच्छा हो .....वो बोल देते हैं ।
अच्छा ! देखो ! मुझे पता नही था कि ............देनें वाले नें आपको सड़े केले दे दिए .......क्षमा करना ...........।
भाई हनुमान प्रसाद पोद्धार जी नें दूसरे व्यक्ति से ..........कुछ मेवे मंगवा दिए थे ।
हाँ ....ये ठीक हैं .......मेरा गोपाल इसे प्रेम से खायेगा ।
तभी सेठ जी जयदयाल गोयन्दका जी वहाँ आये ......
इनको पहचाना आपनें ..........ये इंजीनियर ।
बिड़ला जी के यहाँ ....................हाँ .........कैसे हो ?
पर अब तो ये महात्मा जी हैं ........इनके तो चरण छूनें चाहियें ।
पर महात्मा जी सेठ जी से कैसे अपनें चरण छुवाते ।
पर तुमनें वहाँ ऐसा क्या देखा .................जिसे देखकर इंजीनियर से तुम महात्मा बन गए ।
हनुमान प्रसाद पोद्धार जी नें पूछा था ।
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मै उस दिन आया ....बाहर व्यवसाय की चर्चा करके जैसे ही आया उस कमरे में ......जहाँ गोपाल जी के चित्रपट को मैने भोग लगाया था कुछ मेवे ...........बस ....उस समय मैने वहाँ देखा ...........एक ज्योति पुञ्ज है ......और उस ज्योतिपुंज में एक बालक है ........सुन्दर सा बालक ....वो मेवा उठाकर खा रहा है .....और मुस्कुरा रहा है ।
ये मैने जैसे ही देखा ...........मै स्तब्ध रह गया ..............मुझे वह बालक देखकर मुस्कुरा रहा था ............मेरा सब कुछ छीन लिया उसनें ।
और फिर तो मै कहीं नही गया..................वहीं से ........निकल गया .......किसी का शौक नही रहा .......बस अपनें उस गोपाल जी को छाती से चिपकाते हुए ..........बाबा जी बन गया ।
पता नही आगे क्या होगा ? पर भाई जी ! मेरे गोपाल जी का ख्याल रखना ............मुझे अब इनकी बहुत चिन्ता होनें लगी है ।
इतना कहकर वो चले गए ।
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क्या हुआ ? गंगा के उस किनारे भीड़ है............क्या कोई घटना घट गयी है ? पोद्धार जी ने पूछा ।
हाँ ..........वहाँ एक महात्मा जी रहते थे .....उनका शरीर शान्त हो गया ।
और लोगों नें बताया ......।
ओह ! ठाकुर जी इनकी आत्मा को शान्ति दें .........इतना कहकर जैसे ही आगे बढ़े थे पोद्धार जी .....तभी ........
"भाई जी ! मेरे गोपाल जी का ख्याल रखना" ..............
ये आवाज कान में गूँजी भाई हनुमान प्रसाद पोद्धार जी के ।
ओह ! ये वही इंजीनियर ...जो महात्मा बने थे ....उनका शरीर शान्त हो गया !
तेज़ चाल में चलते हुए ............ वहाँ गए ...........पोद्धार जी ।
उनकी कुटिया से "गोपाल जी" का चित्रपट ले आये ........और अपनें साथ गीता वाटिका गोरखपुर में अपनें कमरे में रख दिया था ........भाई जी ने , गोपाल जी के भोग का .......सब प्रबन्ध करते थे ।
एक दिन ...........भाई जी की कोई दूर की बहन आई थीं .......रतन गढ़ राजस्थान से .........।
भाई जी ! ये चित्रपट हमें दे दो ...........मै सेवा करूंगी ।
तब पोद्धार जी के कमरे की सफाई भी चल रही थी...........भाई जी नें अपनी बहन से कहा .....सेवा करनी होगी ...........पूरी सेवा ।
भोग इत्यादि सब ...........।
हाँ करूंगी ...............................भाई जी के यहाँ गोरखपुर से वो ले गयीं ........अपनें घर राजस्थान रतन गढ़ में ।
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बहन ! वो गोपाल जी कहाँ हैं ? वो जो तू गोरखपुर से लाई थी ।
भाई हनुमान प्रसाद पोद्धार जी दो वर्ष के बाद गए थे अपनें गाँव रतन गढ़ ........तब अपनी मुँह बोली बहन के यहाँ भी गए ......और जब गए ...तब पूछ लिया .......गोपाल जी कहाँ हैं ?
तब भाई जी की बहन नें कहा ........भाई जी !
कानपुर से एक तिवारी जी आये थे .......वो मुझे खोजते हुए आये ।
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आपके यहाँ गोपाल जी हैं ?
दरवाजा खटखटानें पर मैने ही खोला था ।
कौन गोपाल जी ? मैने पूछा ।
मै तिवारी हूँ .....कानपुर से आया हूँ .......मेरे गुरु जी के आराध्य देव का चित्रपट आपके यहाँ है ............जो आपको भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्धार जी नें दिया था ।
बहन ! मेरे सपनें में ......मेरे गुरु जी आये ....मैने उन्हें अपना गुरु मान लिया था ....वैसे वो किसी को शिष्य बनाते नही थे .....पर ऋषिकेश में मैने उन्हें गुरु मान लिया था ।
उन्होंने मुझे कहा ......मैने गोपाल जी ... हनुमान प्रसाद पोद्धार भाई जी को दिए थे .......पर भाई जी नें राजस्थान में अपनी बहन को दे दिए ........पर वहाँ सेवा नही हो रही है .........इसलिये तुम जाओ .....और जाकर मेरे गोपाल जी को अपनें यहाँ ले आओ ...........तुम सेवा करना उनकी ............मेरे गोपाल जी को बहुत भूख लगती है ....उनको खिलाना ............समय समय पर ध्यान देना .........।
बहन ! मेरे गुरु जी नें मुझे ये सब कहा.........और मै कल से निकला हूँ कानपुर से ..........उन सज्जन नें मुझे ये सारी बातें बताई ।
मैने दे दिए भाई जी ! उनको वो गोपाल जी ।
भाई जी भी चकित थे ........।
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ये घटना गौरांगी नें मुझे सुनाई ...........और ये भी कहा .......कि वो गोपाल जी कानपुर में आज भी विराजमान हैं..........।
हरि जी ! है ना ! अद्भुत घटना .............!
गौरांगी की ओर देखकर मै मुस्कुराया......अद्भुत घटना सुनाई थी ।
Harisharan
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राधे राधे
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